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________________ २४ पठन गुणाइन सामन देहि, तप याचार नहु नहि करेहि । ॐ हिय एक देव परिहंत, तापत्रय न आता करते ||२|| धन्तिम पार इम मंदारी नेमिचंद, रची कितीयक गाइ । जेह ||६१|| यह उपदेश रतनमाला सुम, प्रचरणौ श्रमदासगणी, तामहिं केतक ग्राह श्रनोपम नेमिचन्द भंडार भी । जिनवर भरम मावन काजमा यी धनुद्धि थी। जाके पद सुनता हु पर विरमयी ||१२|| संवत् सतरह से सतरि अधिक दोष पय सेत । चैतमास चातुदी, पुरण मौसु एव || १९६३ ॥ १५२. उपदेशसिद्धान्तर ब्रमाला भागचन्द्र पर संख्या ६२ हिम्य रचना काल सं० १६१२ बाद बुदी २ लेखन काल - १५४. उपासकदशा सूत्र विवरण- अभयदेव सुरिपत्र संख्या १० भाषा-संस्कृत विषय याचार शास्त्र रचना काल- लेखन कॉल x पूर्ण वेशन नं० १७१ श्रीमानमानश्व व्याख्या काचिदयिते उपासकदशादीनां प्रायो यतिरेचिताः॥१॥ १५५. उपासकाचार दोहा-लक्ष्मीचन्द्र पप संख्या २७ चीन हिन्दी| विषय आचार शास्त्र रचना काल- लेखन काल वेष्टन नं० १७८ | [ धर्मं एवं आचार शास्त्र विशेष जोड़ों की संख्या २९४ है । साद १०४ भाषा विशेष उपासक दशा सूत्र वे० सम्प्रदाय का सातवा अंग है जो दश प्यायों में बिमक्त है। संस्कृत में यह विवरण अतिसंचित है। विवरण का प्रथम पप निम्न प्रकार है पूर्व वेटन नं० ४०७ ॥ I -१०। साइज - २०६४ र भाषा १८२१ वैशाख १२१ पूर्व बुदौ । १५६. कर्मचरित्र बाईसी रामचन्द्र पत्र संख्या २ साइज २६३ ६ भाषा-हिन्दी विषय-धर्म रचना काल-लेखन काल-X पूर्ण वेशन में १५७ ॥ I विशेष-२ पत्र से धाने दीलतरामजी के पद हैं । १५७ क्रियाक्रोश भाषा - किशनसिंह | पत्र संख्या - ११४ | सादन- १०३५३ इञ्च । भाषा - हिन्दी
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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