________________
धर्म एवं आचार-शास्त्र
१४६. अनुभवप्रकाश-दीपचन्द । १५ संख्या-२२ । साहज-१२६४८ इंच। भाषा-हि-दी नथ । विषय-धर्म ! रचना काल-सं० १७८१ पौष चुदी ५ । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ८४५ ।
६४७ श्ररहम्त स्वरूप वर्णन-पत्र संख्या-३ | लाइज-८४५६ | भाषा-हिन्दी (गया। विषयधर्म । रचना काल-X । लेखन काल-X । अपूर्ण । त्रैश्टन नं ११४४ ।
१४८. आचारसार-वीरनन्दि । पत्र संख्या-८२ | साइज-११४५६ इंच | भाषा-संस्मत । विषयपागार शास्त्र । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १८१६ वैशास्त्र बुरी ११ । पूर्ण । बटन नं. १७ ।
विशेष- प्रति उत्तम है, क्लिष्ट शब्दों के संस्कृत में अर्थ भी रिये हुथे हैं।
१४६. आचारसारवृत्ति-वसुनंदि । पत्र संख्या-३५० । साइज-१२४५६ इंव । भाषा-संस्कृत । वित्रय-ग्राचार शास्त्र । रचना काल-X । लेखन काल-० १८२४ । 'पूर्ण 1 वेष्टन ने० ३७ |
विशेष-मूलका श्रा० बकेर स्वामी हैं। मूल प्रम प्राकृत भाषा में हैं।
१५०. अपदेशरत्नमाला-सकलभूषण । पत्र संख्या-६ | साइम-१३४६ इंग्छ । माषा-संस्कत । विषय-प्राचार शास्त्र । रचना काल-सं० १६९७ श्रावण सुदी ५ । लम्बन काल-x | पूर्ण । वेपन नं ० १५ ।
विशेष-रचना का दूसरा नाम षटकर्मोपदेशरत्नमाला मी है । इस प की ४ प्रतियां और हैं वे सभी पूर्ण हैं ।
१५१. उपदेशसिद्धान्तरनमाला--भंडारो नेमिचन्द्र । पत्र सम्पा-११ । साइज-१.६x४३ च | भाषा-पाका । विषय-धर्म । रचना काल-x | लेखन काल-सं. १८११ श्रावणा सुदी ६ । पूर्ण । बेष्टन में० १५५ |
विशेष—महामा सीताराम ने नोनदराम के पठनार्थ लिपि कराई थी।
१५२. उपदेशसिद्धान्त रत्नमाला भापा । पर संख्या-१० । साइज-११६x४, | माषा-हिन्दी {पय) । विषप्र-धर्म । रचना फाल-सं० १७७५ चैत्र सुदी १४ । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ३७६ ।
विशेष-भाषाकार के मतानुसार उपदेशसिद्धान्तानमाला की रचना सर्व प्रथम प्राकृत भाषा में धर्मदास गणि ने की पी। उसी पथ का संक्षिप्त सार लेकर मंसारी नेमिचन्द ने अन्य रचना की भो। माषाकार में मंगरी नेमिचन्द की (चना की ही हिन्दी की है।
पारम्भ-शुद्ध देव अहंत गुरू, धर्मपंच मनकार ।
से निरंतर नाम हिय, धायकृती नर सार ॥१॥