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वम एवं आचार शास्त्र]
। २५ च । विषय-प्राचार शास्त्र । स्नना काल-सं० १७८५ भादवा सुदी १५ । लेखन काल-सं. 14 कार्तिक बुद्री ।।। सर्व । वेटन नं०४७।
विशेष-भरडार में ग्राम को ११ प्रतियां और है जो समो पूर्ण है।
१५६. गुणतीसो भावना-पत्र सत्या-२ । साज-१११x६ इन्न । भाग-पाने : विषय-धर्म । लेखन काल-x1 पूगा । वन नं. १७६ ।
बना काल-
विशेष-हिन्दी गा में गायाओं के ऊपर घर्थ दिया हुया है । नाथाओं की संख्या २६ है।
१४६. गुरोपदेश श्रावकाचार--डालूराम। पत्र संख्या-१६ । साइज-१२३४६, इन 1 भाषाहिन्दी (पथ) | विषय-याचार शास्त्र ! रचना काल-~। लेखन काल-० १८६१ | पूर्ण । श्रेष्टन नं.:.।
विशेष—पचेवर में प्रथ की प्रतिलिपि हुई थी।
१६.. चारित्रसार (भावनासार संग्रह) चामुगडराय । ५ संख्या-११० । साइज-X12 इन। भाषा संस्कृत । विषय-याधार शास्त्र । स्वना काल- । लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन में० १.५ ।
विशेष-प्रयम बुद्ध तक है तभा अंतिम प्रशस्ति धपूर्ण है।
११. चारित्रसार पंजिका-पत्र संख्या-८ } साइज-१४ । भाषा-संस्कृत | विषय-प्राचार शास्त्र । रचना काल-x | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं ० ० ।
विशेष-प्रति प्राचीन है । नरिप्रसार टिप्पण भी नाम दिया हुआ है। विपण अति संक्षिस हैं।
भारम्भिक मंगताहारण निम्न प्रकार है
नमानंतसुखमानन्बीर्याय जिनेशिने । संसारवारापारास्मिन्निमजज्जीवतापिने ||१|| चारित्रसारे श्रु तसारं संग्रहे यन्मंदबुद्ध स्तमस्तावृत्त' पदं । अश्यक्तये व्यक्तपर प्रयोगतः प्रारभ्यते विभीष्टपंजिका मा
१६२. चारित्रसार भाषा-मन्मालाल | पत्र संख्या-२३५ । साइज-१०६४५ है। भाषा-हिन्दी । दिन-प्राचार शास्त्र । रचना काल-सं. १८.१ । लेखन काल- १७६ | गई । बेष्टन नं. १५ ।
प्रादि भाग (प)- श्री जिनेन्द्र चन्द्राः । परम मंगलमादिशत्रु तराम् ।
दोह! ---परम धरम.रम नेमि मम, नैमिचन्द्र जिनराय ।
मंगल ध र विमल, नमो नमन-बच-गाय ॥१॥