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श्री गौतम गणधर सदा, लीखा लब्धि निधान । समरी सह गुर सरस्वती, वेविष वधारइ वान ||२|
अन्तिम पत्र - खरतर गध मति महिय विरजिउ, युग प्रधान जिनवंद श्राचारज मिहमागिर मुनि वरुए, श्री बिनसिंह गुरंद ||२०० ॥ हर्षचंद्र गणि हर्ष हितकरू, वाचक हंस प्रमोद
तास सीस पून्यकीरत इम भाथइ, मन घर श्रक प्रमोद || १ ||
संवत् सोलह सास समछ विजय दसमी गुरुवार | सांगानेर नगर रलिया मराउ, पभण्यउ एर विचार ||२|| पद्मम जिन सुपसा उलउ, दोष दोह गत जा दिन उदय मुद्री माउ, सुख संपद संतान !! रे ॥ एह चरित्र भवियन जे सांभलइ दुख दोह गवसु जाइ दोन उदय श्रकउ न तरुवर, तसंचरन बनि धया ||४|| इति श्रष्ट प्रवचन माता उपर पुण्यसार कथा संपूर्ण ।
(१०) सीमंधर स्वामी जिन स्तुति
(११) छः जीव कथा
विशेष-- ६५ पथ के आये पत्र किसी के द्वारा फड दिए गये हैं।
(१२) श्रावक सूत्र ( प्रतिक्रमण )
(१३) श्रतिचार वर्णन
(१४) नेम गीत
(१५) स्तवन
(१३) सीमंधर रचन (१५) चउर परिकर या
(१८) भक्तामर स्तोत्र
(११) नवत
(२०) नेमिराजुल स्तवन
(२१) ने राजुल गीत
(२२) सुभद्रा भाष
(२३) विजय सेठ विजया संदार्थी सभाग (२४) पद-करिअरिहंतनी चाकरी
लब्धिविजय
गणिलाल चंद
जिन हर्ष
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सूरकीर्ति जिनवल्लभ..
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[ गुटके एवं संग्रह प्रन्थ
विशेष
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