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[ गुट के एवं संग्रह अन्ध अन्तिम पाठ-काय शिसे कहो, ३
प्र कारका कवन पवन ते चाक उचारा, कवन पवन के रहैय अधारा ।
याको भेद बतावो मोव, प्रभु कहे गुरु पुतीय ॥ १॥ (२) अायुर्वेद के नुसखे-माषा-हिन्दी । पूर्ण । ५११. गुटका नं. ६ .. पत्र संख्या-२७ : साइज-६४६ इश । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-1 पूर्ण । विशेष-यंत्र चिन्तामयिय के कुल पाठ हैं ।
५१२. गुटका नं. १०-पत्र संख्या-३४ | साज-1x६ इञ्च | माषा-संस्कृत-हिन्दी लेखन काल-~| पूर्ण ।
विशेष-भक्तामर आदि पाठ एवं पूजा संग्रह है।
५१३. गुटका न०११- पत्र संख्या-७१ । साइज--x१३ इन। माषा-संस्कृत-हिन्दी । लेखन काल-~। पूर्ण ।
विशेष-प्रथम सत्रार्थ सूत्र है पश्चात् पूजात्रों का संग्रह है। ५१४. गुटका नं०१५-पत्र संख्या- । साइज--१०५४५५म । माषा-संस्कृत हिन्दी । लेखन काल-X | पूर्ण ।
विषय-सूची
कत्ता का नाम
विशेष
भाषा हिन्दी
कबीरदास
संस्त
पत्र १५ तक
(१) पद ( २ ) शब्द व धातु पाठ संग्रह (३) लमण चौबीसी पद (४) षोडशकारगाव्रतक्या
विद्याभूषण
नसानसागर
पद्य सं० ३०
प्रारम्भ-श्री जिनवर चौबीस नमु, सारद प्रयामा अध निगम।
नि: गुरु केरा प्रग्यमुपाय, सकल संत वंदत मुख पाय || ५ || षोडश कास्य व्रतनी कथा, भाषु जिन श्रागम छ यथा । श्रावक मुण जो निज मन शुद्ध, जे श्री तीर्थकर पद वृद्ध ॥२॥
अन्तिम माग-जे नर नारी ए व्रत करे, में तीकर पद अनुसरे ।
4ह मवि पावे रिवि पपार, पर भव मोच तयो अधिकार ॥ पामे सकल भोग संयोग, टले प्रापदा रौरव रोग । श्री भूषण गुरु पदाधार, ब्रह्मशान सागर कहे सार ॥३७॥