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अध्यात्म एवं योग शास्त्र ]
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रेन वैराग्य पच्चीसी - भैया भगवतीदास । पत्र संख्या -४ | साइज - ७८ । भाषा - हिन्दी विषय- अध्यात्म | रचना काल सं० १७५० । लेखन काल- ४ । पूर्ण । वेटन नं० ५५६ |
२७६
वैराग्य शतक ....... - पत्र संख्या- ११ साइज १०४४ स्थ। भाषा प्राकृत विषयश्रध्यात्म | रचना काल -X | लेखन काल - सं० १८१६ बैसाख सुदी ११ । श्रपूर्यं । वेष्टन नं० १४४
विशेष - जयपुर में नाथूराम के शिष्य ने प्रतिलिपि को भी | गाथाओं पर हिन्दी में अर्थ दिया हुआ है । १०३ गाषायें हैं ।
प्रारम्भिक गाथा निम्न प्रकार हैं:
संसार मिसारे पथि सुहं वाहि वेखापरे ।
तो जीवो यकार जिपदेसिय धनं ॥ १ ॥
२८० षट्पाट - कुन्दकुन्दाचार्य । पत्र संख्या - ६२ । साह - १३४ इंच । माषा-प्राकृत विषयश्रध्यात्म | रचना काल–× । लेखन काल - सं० १७३६ मात्र बुदी ११ । पूर्ण । वेष्टन नं० ६२ ।
विशेष --- साइ काशीदास घागरे वाले ने स्वपठनार्थं धर्मपुरा में प्रतिलिपि की । चक्षर सुन्दर एवं मोटे हैं। एक पत्र मैं ४-४ पंक्तियां हैं ।
८१. प्रति नं० २ - पत्र संख्या - २४ । साइज - ११९५ ३ | लेखन काल - सं०] १७४४ | पूर्ण | वेष्टन
नं० ८६ ।
विशेष- प्रति संस्कृत टीका सहित हैं। प्रथ की २ प्रतियाँ और हैं ।
२८२.
समयसार कलशा - अमृतचन्द्राचार्य पत्र संख्या- ४५६ साइज - ११३८ च । माषासंस्कृत] | विषय - अध्यात्म | रचना काल -X | लेखन काल सं० १६०२ श्रावण बुदी ३ । पूर्ण । वेष्टन नं. ४३ ।
विशेष- संस्कृत में कहीं २ संकेत दिये हुए हैं। यम की दो प्रतियां और हैं।
२८३. समयसार टीका - अमृतचन्द्राचार्य । पत्र संख्या ६४ | साइज - १२४६ हश्च । भाषा-संस्कृत | विषय- श्रध्यात्म 1 रचना काल -x | लेखन काल-सं० १७८ भादवा सुदी १४ । पू । बेष्टन नं. ४१ ।
विशेष – लेखक प्रशस्ति निन्न प्रकार है
प्रशस्ति-संवत्सरे बसुन |गमुनदुमिते १८ मापद मासे शुक्ल पते चतुदशी तियों ईसरदा नगरे राज्ये श्री श्रजितसिंहजी राज्य प्रवर्तमाने श्री चन्द्रप्रभुचैत्यालये श्रीमूलसंघे बलात्कार गयो सरस्वती गच्छे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्मये मंगावत्या: भट्टारकजित श्री सुरेन्द्र कीर्तिस्तरपट्टे म० श्रीजित् श्रीजगतकीर्ति तत्पदृपः स्मर्यसमाया निर्जितसागरेसादि पदार्थ स्वपंडातरितागम बोधे म० शिरोमणि भट्टारक जित श्री १०८ श्रीमद्देवेन्द्र कीर्तिस्तेनेयं समयसारयैका रवशिष्य मनोहर कथानार्थ पठनाथ