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रस एवं अलंकार शास्त्र]
[२५१ ४७३. रसिकप्रिया-केशवदास । पत्र संख्या-५ । साइज-१२:४३ इश्च । भाषा-हिन्दी पथ । विषय- गार । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १७३३ । पूर्ण । वेष्टन नं ० ३६८ |
विशेष-पद्य संख्या-५६४ है 1 मिआ थाभानेरी वाले ने मसबा में प्रतिलिपि की थी । स्वामी गोविंददास की पोथी से प्रतिलिपि हुई थी। सं० १८१८ माह सुदी १ को छोटेलाल गेतिया मारोठ वाले ने सवाई जयपुर में श) रू० निछरावलि देकर यह प्रति खरीदी थी।
४७४. श्रृंगारतिलक-कालिदास । पत्र संख्या-४ । साइज-१०४४३ शृगार । (चना काल-x लेखन काल-x। पूर्या । वेष्टन नं. १०।
। माषा-संस्कृत | विषय
विशेष–२३ पथ हैं।
४७५. श्रृंगारपच्चीसी-छविनाथ । पत्र संख्या-4 | साइज-०३४४ इश्न | भाषा-हिन्दी । विषयभृगर। रचना काल-x| लेखन काल-x| पूर्ण । वेष्टन नं. ४७ ।
भारम्भ-कोकिल न हो हिये मतंग महा मस्तक के ।
बात मान मंघ को क्ताई मली पस्त है ।। प्र शासन और जाल फैलि गये ।
जग चहुधा राखिवे को बको दस्त है ॥ मेरी समझाई हिल मिल प्यारी पौसम सों। कानि काम भूपति की मान वो प्ररत है ।। कहै अविनाप बाज भकसीष संत लेखि ।
भाम गड परत फरिवे की करी करत है ॥१॥ अन्तिम-छोखि मकरंद कमलन के मरंद भई पार के।
सुगंध जाकौ हस्त न टार है। खंजन चकोर मृग मीन सेदखत जाहि । चौक्त से जहां तहां छपत निचार है । कहै छविनाथ अपि अंगन की देखि । जासों हारि गई तिलोत्तमा जाने जग बारे है । प्यारे नंद नंदन तिहारे मुख चंद पर |
धारि बारि हारे वहि नैनन के तारे हैं ॥१॥ दोहा-माधव नूप की रीझ को कवि छविनाथ विसाल ।
कीन्हे रस शृगार के कवित्त पच्चीस साल ||२६॥