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________________ छोष विज्ञान ] २६७. त्रिलोकसार भाषा विषय-लोक विज्ञान | चमक लेखन ४६८. त्रिलोकसार भाषा विज्ञान रचनाकाल १८४१ बुदी १२ पूर्व बेननं० ७८१ [ ६३ पत्र संख्या २ से १२x भाषा हिन्दी -X पूर्व नं० - उत्तमचन्द १२२५१४६ भाषा हिन्दी विशेष -- दीवान श्योजीरामजी की प्रेखा से अंथ रचना की गयी थी जैसा कि ग्रन्थकर्ता ने लिखा है— अंतिम दोहा-सब प्रष्टादश सत इतालीस अधिकानि | ज्येष्ठ पत्र द्वाद्वशी रविवारे परमानि ॥ त्रिलोकसार भाषा लिख्यो उतिमचन्द विचारि । मूल्यो होऊं तो कछु लीन्यो कवि सुधारि ॥ दीवा श्योजीराम यह कियो हृदय में ज्ञान । पुन्तर लिखाय श्रवणा सुग्गु राम्रो निस दिन ध्यान || ॥ इति ॥ ६००. लोक विज्ञान | रचनाकाल गद्य- प्रथम पत्र ---"तहा कहिए है । मेरा शान स्वभाव है सो शानावर के निमित्त ते हीन होय मति स वय रूप गया हैं तहा मति ज्ञान करि शास्त्र के अक्षरनि का जानना भया। बहुरि श्रुतज्ञान की अक्षर अर्थ के त्राम्य वाचक सम्बन्ध हैं | ताका स्मरणतै तिनके अर्थ का जानना भया । बहुरि मोह के उदयतें मेरे उपाधिक भाव रागादिक वाइये हैं ***| ५६६ प्रेलोक्यदर्पण पत्र संख्या २१-११६५६ भाषा-संर पूर्ण वेष्टनं ६७८ ॥ विषय- लोक विज्ञान | रचनाकाल -X लेखन काल-X विशेष मीच २ में पित्रों के छोटी हुई है। त्रैलोक्यदीपक - बामदेव | पत्र संख्या-8 साइन- ११४५ इथ । साषा-संस्कृत | विषय - लेखन का सं० ११२ माघ खुदी ५ पूर्ण वेष्टन १०० विशेष-१० खुशालचन्द्र ने लालसोट में प्रतिलिपि को ६०१. प्रत न० २ पत्र संख्या ६५ सहज १९४५ च लेखन काल- १०६ वाट दी | पूर्ण वेष्टन नं. १०१। विशेष - पत्र [सं० २७ तक नवीन पत्र है इससे आगे प्राचीन पत्र है । प्रशस्ति निम्न प्रकार है I स्वस्ति [सं०] १५१६ वर्षे घाषाद खुदी भौमवासरे ॐ शुभ स्थाने शाकभूपति प्रजाप्रतिपालक सम सान विजय राज्ये ॥ श्रमूलान्वये बलात्कार सरस्वती गच्धे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये म० पद्मनंद देवास्तपट्टम० श्री शुभ
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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