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: [काव्य एवं चरित्र
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जीवण करण उठी तस्निग्मी, सुइरी मय श्री यमीणी । नाज न पुरन चूदि धुधार, वाह भूखउ २ चिललाइ ॥३८॥
अंतिम-मदसामी कउ काय वखाण, तुम पचन पायउ निरवाण ।
अगावाल की मेरी जात, पुर अगरो ए मुहि उतपाति ॥६७५।। सवणु जग्गणी गुणवह उर धरिउ सा महाराज घरह श्रवतरिउ । एरठ नगर बसते जानि, म यिाउ चरित मा रचिउ पुराया ॥६७६॥ सावय लोय असहि पुर माहि, दह लहरा ते धर्म काइ। दस रिस मानइ दुतीया भेउ झावहिं गितहं जीणेसर देउ ॥६७|| एहु चरितु जो बाचद कोह, सो नर स्वर्ग देवता हो । हलु वइ र सो दे, मुलगाए | जो कृषिमुणइ मनह धरि माउ, अमुभ कर्म ते रिहि जाद । झो र नखाणइ माणुसु क्यणु, ताहि बहु तू सइ देव परदमणु ॥६७४।। अलिखि जो रि खियामह साथ, सो सुर होइ महा गुपरम् । जो र पढाव मुग्ण किउ निलउ, सो बर पावइ कंचण भलउ ||६|| पहु चस्तुि पुन भडारू, जो बरु पदर सु नर महत्वाम् । तहि परदमणु तुही फल देइ, संपति पुत्र श्रवर जसु होइ ॥६८१॥ हउ नुधि ही न आणी केम्वु, प्रक्षर मातह गाड न भेउ । पंडित जन्यद न कर जोडि हो। अधिक जरा लावहु खोरि ॥६८२॥
इति परदमश चरित सभाप्तः ॥
४३८, पार्श्वपुराण-भूधरदास । पथ संख्या-१०६ । साइज-१०:४५ इन्च | भाषा-हिन्दी (पथ) । विषय-काव्य । रचना काल-सं० १७८६ । लेखन काल-सं० १८६३ । पूर्ण । वेष्टन २०६४ ।
विशेष-- १६ प्रतियां और है।
४. प्रीतिकरचरित्र-० नेमिदत्त । पत्र संख्या-२४ । साइज-१०६x५ इव । माषा-संस्कृत । विषय-चरित्र । रचना काल-X । खेखन काल-x1 अपूर्म । केटन न. २१०।
विशेष – अन्ध प्रशस्ति अपूर्ण है।
५.०. बाहुबलिदेव चरिए (बाहुबलि देव धरित्र)-पं० धनपाल । पत्र संख्या-२६५ | साज११६x४३ इ । भाषा-अपनश | विषय-चरित्र | रचना काल-सं० १४५४ बैसाच सुदी १३ । लेखन काल-सं० १६०६ भाषाद सुदी ५ । पूर्थे । वेष्टन नं. २५२ ।