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________________ ११६ घन वनोदधि तमु आधार । वाते वेधै त्रिणि प्रकार ।। छाल वैयौ तर थर जेम । लोककास कहैं , जेम ||३|| मतिम---श्री मूलसंध गुरु लक्ष्मीचन्द । सास टिबीरनन्द मुदि ।। ज्ञानभूषण तस पाटि चंग। प्रसाद बादी मनरंग ॥७॥ समतिकारि माहेशार : विलोमा ध ना || जे मर गुणे ते मुखिय याय । अण्ण भुषण परि मुमप्ति जाई ॥५॥ वीर वदन विनि गत वाक । गुणता पायि संसारा नाक || भावक जन मात्र ज्यौ जोय । सुमतिकीर्ति स्त्र सागर होय ॥१४॥ सिंहपुरी बंसी गार 1 बान सील तप मात्रन अपार ।। साहता माई सिंघा वपसार । कुवरजी कुवेर अर दातार ।।६.] संवत सोमनि सशात्रीस । माघ शुक्ल नै बासि दिस || कोदादी रचिये हसार । ममि भगत यावो भासार १॥ इति श्री त्रिलोकसार धर्मभ्यान विचार चउपई वद्ध रासा समाता । मनोहर हिन्दी १३ पथ हैं। जिपदास ४. पप हैं। प्राकृत हिन्दी जिग्यदास लीहत भान बावनी लघु मावनी जोगी रासो द्वादशानुप्रेक्षा निर्वाण कार गाथा द्वादशानुप्रेक्षा चेतन गीत उदर गीत यी गीत चाय बेलि मिरचर बबडी गुण गाथ। गीत जखमी परमार्थ गीत जखडी दोहा शतक ५ पय हैं। ४ पर हैं। ६ पथ हैं। चना काल सं० १५६५ कार्तिक सुदी १३ ठकुरसी जियादास मी वर्तमान रूपचन्द दागह रूपचन्द १०१ पत्र हैं।
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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