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________________ २१४ की गई थी। [ चरित्र एवं काव्य विशेष—पुर नगर में श्री चंद्रप्रमचैत्यालय में प० परसराम जी के शिष्य आनन्दराम के पटना प्रतिलिपि २६५. भद्रबाहुचरित्र - रत्ननंदि । पत्र संख्या- ३० | साइज - ११४५ ३ | भाषा-संस्कृत | विषय - चरित्र । रचनाकाल--X | लेखन काल-२० १६५२ कार्तिक सुदी १४१ पूर्णं । वेष्टन नं० २६७ । विशेष - प्रशस्ति श्रपूर्ण है प्र ६० श्लोक संख्या प्रमाण है । २६६. भद्रबाहुचरित भाषा - चंपाराम पत्र संख्या -३८ । साइज - १६५७१ ख | भात्रीहिन्दी गद्य | विषय - चरित्र । रचना काल-खं० १५०० सावन सुदी १५ लेखन काल -x | पूरी । श्रेष्टन नं० २०१ विशेष – प्रम १३२५ श्लोक प्रमाण है । प्रारम्भ-जैवंती वरती सदा, चौबीलू जिनराज । तिन वंदन मंदक लहै, निश्चय भल सुखदाय || चौपई-रिव अजित संभव अभिनंदन | भूमति पद्म सुपारिस चंद ॥ पुष्पदंत शीतक जिन राय । जिन श्रीहास नम्र सिर नाय ॥ पत्र संख्या - २३ पर—प्रथानंतर जे जीव तिस मव विषैस्त्री कूळ मोक्ष गमन कहे है, ते जीत्र श्राय रूप ग्रह करि अस्य है श्रमश्रा तिनकू वाय सगी है ॥८३॥ कदाचि स्त्री परयाय धारि घर दुद्धरे घोर वीर तप करें | तथाक स्त्री व मोल नाहीं ॥८४॥ श्रन्त चरित्र गुर गम्य लखि रत्ननंदि पुनिराय | रच्यौ पंत श्लोक मय मूख महा सुख दाग ||१|| लैव तिस अनुसार कछु रथ्यौ वचनका रूप । जात नाम कुल तास श्रव कद्दू छनौ गुन भूप || २ || देश डुबाहक मध्यपुर माधव सुवस्थान । जगतसंघ वा नगरपति पातल राज महान ॥३॥ तहाँ बसे इक वैश्य शुभ हीरालाल सु जान । वाति श्राषण न्याति में खंडेलवाल शुभ जानि ॥४॥ गोतमसा फुनि धेरै परम गुनी गुन धाम । तिनकें अति मति दीन सुत उपनों चंपाराम ॥२॥
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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