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________________ 3-6-0 unar PC (सान्वय गीत Serving JinShasan 048894 gyanmandirkobatirth.org // श्री जिनाय नमः॥ तन- 2 (सान्वयं गूर्जरभाषांतरसहितंच) // श्री पुण्याढ्यचरित्रं // ( मूलकर्ता-श्रीवर्धमानसरिः) अन्वय सहित भाषांतर करनार तथा छपावी प्रसिद्ध करनार-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज (आ ग्रंथना अन्वय तथा भाषांतरना सर्व हक स्वाधिन राख्या ) विक्रम संवत् 1984 सने 1928 * वीर संवत् 2457 किमत रु. 6-4-0 हीबहावार नारायणकीया P er curatasun
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________________ पुण्याढ्य चरित्र सान्वय भाषांतर // 1 // // श्री जिनाय नमः // ॥श्री चारित्रविजयगुरुभ्यो नमः // (सान्वयं मूर्जरभाषांतरसहितं च) ॥श्री पुण्याढ्यनृपचरित्रं प्रारभ्यते // ( मूलकर्ता-श्रीवर्धमानहरि) __सान्वयभाषांतरकर्ता-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज-जामनगरवाळा शक्तौ दीनोऽकुलीनोऽङ्गहीनोऽपि नृपपुङ्गवैः / यत्पुण्याव्यनृपोऽसेवि पुण्यं तेन प्रमीयते // 1 // 940
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________________ SA पुण्याहय चरित्र // 2 // सान्वय भाषांतर // 2 // - अन्वयः-शक्ती दीनः, अकुलीनः, अंगहीनः अपि पुण्यात्यनृपः यत् नृपपुंगवैः असेवि, तेन पुण्यं प्रमीयते. // 1 // अर्थ:--अशक्त, हीन कुलमा जन्मेलो तथा हाथपग विनानो छतों पण पुण्यात्य नामनो राजा जे महान् राजाओवडे सेवायो, तेथी पुण्यनी हयाती साचीत थाय छे. // 1 // तथाहि विश्वहृद्वाहि महत्त्वद्योति विद्यते / माकेलिपद्म पद्मायाः सद्म पद्मपुरं पुरम् // 2 // अन्वयः-तथाहि-विश्वहृयाहि, महत्त्वद्योति, माकेलिपा, पद्मायाः सब पद्मपुरं पुरं विद्यते. // 2 // अर्थ:-जगतना हृदयमा (पोतामाटे) उमदो अभिमाय धरावनालं, विस्तारथी शोभीतुं थयेलु, पृथ्वीने क्रीडा करवा माटे कमल सरखं, अने लक्ष्मीदेवीना आवास सरखं पद्मपुर नामर्नु नगर छे. // 2 // तत्र क्षत्रियसंग्रामसत्त्रधाम भुवो विभुः। अभवदभुवनाम्भोजतपनस्तपनाभिधः॥३॥ अन्धयः-तत्र क्षत्रियसंग्रामसत्त्रधाम, भुवनांभोजतपनः, तपनाभिधः भुवः विभुः अभवत् // 3 //
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________________ AAAAAAAAAAAma पुण्याचे / चरित्र सान्वय भाषांतर अर्थी ते नगरमा क्षत्रिओना संग्रामनी दानशालासरखा, तथा जगतरूपी कमलने (विकस्वर करवामी) सूर्यसरखो तपन नामनो। राजा हतो. // 3 // . . हस्तिरत्नं गृहीत्वात्र व्यवहारी धनावहः / कदाचिदाययौ कृष्टो भूपभाग्यगुणैरिव // 4 // अन्वयः-अत्र कदाचित् धनावहः व्यवहारी हस्तिरत्नं गृहीत्वा भूपभाग्यगुणैः कृष्टः इव आययौ. // 4 // अर्थः-त्या कोइक दिवसे धनावह नामनो व्यापारी (एक) उत्तम हाथी लेइने जाणे ते राजाना भाग्यगुणोथी (दोरीथी) खेंचायों शेय नही! तेम आव्यो. // 4 // भाग्याभोगेन भूपानां रत्नमेतीदृशं भृशम् / इति दक्षैस्तदा पुम्भिः ख्याते तत्कुम्भिगौरवे // 5 // . असामान्यो गुणैर्मान्यो ममायमिति तस्य सः। ययो कुञ्जरराजस्य सम्मुखं राजकुंजरः॥६॥ युग्मम् // अन्वयः-भूपानां भृशं भाग्यामोगेन ईदृशं रत्नं एति, इति दक्षैः पुंभिः तदा तत्कुंभिगौरव ख्याते // 5 // गुणैः' असामान्य SUA Jun Gun Aaradhak This
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________________ EN पुण्याढ्य चरित्र // 4 // सान्वय भाषांतर // 4 // अयं मम मान्यः, इति स: राजकुंजरः तस्य कुंजरराजस्य सन्मुखं ययौ. / / 6 / / युग्मं // अर्थ:-राजाओना 'घणा भाग्ययोगे आq रत्न आवे छे, एम चतुर पुरुषोए ते वखते ते हाथीनी प्रशंसा करवाथी // 5 // असाधारण गुणोवाळा आहाथीनुं मारे सन्मान करवू जोइये, एम विचारीने ते महान् राजा ते हस्तिराजनी सन्मुख आव्यो.॥६॥ युग्म. ननादाम्बुदुनादेन प्रीतः प्रेक्ष्य नृपं द्विपः / नृपस्त्वपूरि सेमाञ्चैर्वैडूरी भूरिवाङ्कुरैः // 7 // . ... अन्वया-नृपं प्रेक्ष्य द्विपः अंबुदनादेन ननाद, अंकुरैः वैडूरी भूः इव नृपः तु रोमांचेः अपूरि. // 7 // अर्थ:-जाने जोइने ते हाथी मेघना गर्जारवसरखो नाद. करवा लाग्यो, तथा वरसादथी भींजायेली जमीन जेम अंकुराओथी।" तेम (ते) राजा पण रोमांचोवड़े प्रफुल्लित थयो. // 7 // वामं च दक्षिणं चाईं शिरःकम्पनकैतवात् / मुहरस्याद्भुतं पश्यन्निवेति ध्यायतिस्म सः॥८॥ अन्वयः-शिर:कंपनकैतवात् अस्य अद्भुतं वामं च दक्षिण च अंग मुहुः पश्यन् इव सः इति ध्यायतिस्म. // 8 //
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________________ 09020000000000000000 पुण्याढ्य चरित्र सान्वय भावांतर 0200000 अर्थ:-मस्तक कंपाववाना मिषथी जाणे ते हाथीना डावा अने जमणा अंगने वारंवार जोतो होय नहीं / तेम ते राजा एम विचारवा लाग्यो के, // 8 // द्रष्टुमैरावणमसी तद्गुणग्रहधीरिव / उच्चैस्त्वात्तु नभोगर्भगतोऽब्द इव गर्जति // 9 // इन्द्रेभस्पर्धया शङ्के यशोभिर्विशदीभवन् / इन्द्रतायोग्यभाग्यानामेवायं याति यानताम् // 10 // इति ध्यायन्धराजानिः सम्मान्य व्यवहारिणम् / विधातुं दन्तिनो मूल्यं तद्विदः स समादिशत् // 11 // * अन्वयः--असौ उच्चस्त्वात् तद्गुणग्रहधीः इव औरावणं दृष्टुं, तु नभोगर्भगतः अब्दः इव गर्जति, // 9 // अयं इंद्रेभस्पर्धया यशोभिः विशदीभवन इंद्रतायोग्यभाग्याना एव यानतां याति शंके, // 10 // इति ध्यायन् स धराजानिः व्यवहारिणं संमान्य तद्विदी दंतिनो मूल्यं विधातुं समादिशत् // 11 // त्रिभिर्विशेषकं / / codibieos Doccccceederaceaecseed PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ OC9DIOSSESSERIES पुण्याय चरित्र अर्थः-आ हाथी उंचो होवाथी जाणे अरावणना गुणो लेवानी इच्छावाळो होय नही ! तेम ते अरावणने मळवाने खरेखर आका- सान्वय भाषांतर शनी अंदर रहेला मेघनी पेठे गर्जना करे. // 9 // वळी आ हाथी इंद्रना हाथीनी स्पर्धाथी जशवडे उज्ज्वल थयोथको इंद्रपणाने लायक एवा भाग्यशालीओनाज वाहनरूप थाय छे एवी हुं शंका करूंछु, // 10 // एम विचारता एवा ते राजाए ते व्यापारीनुं सन्मान / कर्या बाद हाथीना परीक्षकोने तेनी किम्त आंकवामाटे हुकम कर्यो. // 11 // त्रिभिर्विशेषकं // निरीक्ष्य लक्षणान्यस्य द्विरदस्य विशारदाः। जगदीशंजगुलोलमौलयः पुलकाङ्किताः॥१२॥ ... . __ अन्वयः-अस्य द्विरदस्य लक्षणानि निरीक्ष्य लोलमोलयः पुलकोकिताः विशारदाः जगदीशं जगुः // 12 // KARAN अर्थः-आ हाथीना लक्षणो (शुभचिह्नो) जोइने मस्तक धुणावता अने रोमांचित थयेला (ते) परीक्षको राजाने कहेवा लाग्या के, / 12 / शास्त्रोक्तानामदोषाणां सर्वसल्लक्षणस्पृशाम् / हस्ती दृष्टोऽयमेवाद्य द्विरदानामुदाहृतिः॥१३॥ - अन्वयः-शास्त्रोक्तानां अदोषाणां, सर्वसवलक्षणस्पृशा द्विरदाना उदाहतिः अयं एच हस्ती अद्य दृष्टः // 13 // 0000000 GeecemeIECOGNIGGESIDEOS P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ PROMOTES पुण्याढ्य चरित्रं DOOD सान्वय भाषांतर // 7 // // 7 // अर्थ:-शास्त्रोमां व हेला गुणोवाळा, तथा सर्व प्रकारना उत्तम लक्षणोवाळा हाथीओना उदाहरणसरखो आज हाथी आजे (अमोए) जोयो छे. // 13 // भूपस्य यस्य कस्यापि स्यादसौ द्वारभूषणम् / संसाधयति दुःसाधानप्यरींल्लीलयैव सः॥ 14 // . अन्वयः-असौ यस्य कस्यापि भूपस्य द्वारभूषणं स्यात्, सः दुःसाधान् अपि अरीन् लीलया एव संसाधयति. // 14 // अर्थः-आ हाथी जे कोइ राजाना द्वारने शोभावे, ते राजा दुःसाध्य शत्रुओने पण फक्त क्रीडामात्रमाज जीती शके. // 1 पदं कृतयुगस्येव निरीतिः सुकृतकः / एतदन्तिभृतो भूमिभर्तुदेशोऽपि शोभते // 15 // ... अन्वयः-एतदंतिभृतः भूमिभर्तुः देशः अपि कृतयुगस्य पदं इव निरीतिः सुकृतकभूः शोभते. // 15 // . अर्थः-आ हाथीनी मालिकीवाला राजानो देश पण सतयुगना मारंभनी पेठे निर्भय तथा पुण्यनाज एक स्थान सरखो शोमे एम छे.।१५। स्वामिन्न स्यादमूल्यस्य मूल्यमस्य गजस्य तत् / याचते यदणिग्याग्देयं देव तदेव हि // 16 // Bloemenda Daceecxccccesresences Jun Gun Aaradhak Trust PPA Curcum MS
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________________ OSE fa 0909098001062009090990 NISHERS पुण्याय चरित्र // 8 // 4 सान्वय भाषांतर मा // 8 // अन्वयः-(हे) स्वामिन् ! अस्य अमूल्यस्य गजस्य मूल्यं न स्यात् , तत् (हे) देव! वणिक यारा यद् याचते, तदेव हि देयं.॥१६ अर्थ:-हे स्वामी ! आ अमूल्य हाथीनुं मूल्य थइ शके एम नथी, माटे हे देव! आ व्यापारी जेवू अने जे मूल्य मागे, तेज मूल्य खरेखर तमारे आप. // 16 // किं ते मूल्यं ददामीति राशि प्रीतेऽथ पृच्छति / व्याहारि व्यवहारैकहारिणा व्यवहारिणा // 17 // अन्वय:-अथ ते कि मूल्यं ददामि ? इति पीते राज्ञि पृच्छति व्यवहारकहारिणा व्यवहारिणा व्याहारि // 17 // अर्थः-हवे तमोने ( आ हाथीनुं ) शुं मूल्य आपु ? एम (ते ) खुशी थयेला राजाए पूछता व्यापारथी शोभता एखाते। व्यापारीए का के, // 17 // स्वामिन्विन्ध्याद्रिराजस्य युवराज इव द्विपः / अत्युत्तमोऽयं विख्यातः साम्प्रतं हस्तिबन्धिषु // 18 // अन्वयः-(हे स्वामिन् ! ) विध्याद्रिराजस्य युवराज इव अतिउत्तमः अयं द्विपः सांपतं हस्तिबंधिषु विख्यातः // 18 // GOOTAGIG0000000000c
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________________ पुण्याढ्य चरित्र // 9 // सान्धय भाषांतर // 9 // अर्थः-विंध्याचलरूपी राजानो जाणे युवराज होय नही! एवो आ अति मनोहर हाथी हालमा हाथी पकडनाराओमा प्रख्यात इथयेलो छे. // 18 // खदारिद्यदुमद्रोहकृतेऽसौ केन केन न / महोपायसहस्रेण धर्तुमारभ्यताभितः // 19 // अन्वयः-स्व दारि दुम द्रोह कृते केन केन महोपाय सहसूण असौ अभितः धतुं न आरभ्यती // 19 // अर्थः-पोताना निर्धनपणारूपी वृक्षने उखेडी नाखवा माटे कोणे कोणे हजारोगमे महान् उपायोवडे आ हाथीने चोतरफथी पकडवा नहोतो मांड्यो॥ 19 // वितन्वतीभिः साम्यं वा वैषम्यं वा किमप्ययम् / बधुं शेके न वारिभिर्नारीभिरिव संयमी // 20 // अन्वय:-किमपि साम्यं वा वैषम्यं वा वितन्वतीभिः नारीभिः संयमी इव वारीभिः अयं बधुं न शेके. // 20 // / अर्थ:-गमे ते पकारना अनुकूल अथवा प्रतिकूल उपायो अजमावती स्त्रीओथी जेम महामुनि, तेम मावतीथी आ हाथी बांधी a MANY RapeMalMBINE Jun Guns
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________________ 00000000000000000000 তু चरित्र / // 10 // सान्वय भाषांतर // 10 // एकड़ी) शकायो नही. // 20 // . . र सम्यग्मत्वैनमग्राह्यं गन्धेभं गन्धवाहवत् / अवल्यंत विलक्षण लक्षण करिबन्धिनाम् // 21 // * अन्वयः-एनं गंधेभं गंधवाहवत् सम्यग् अग्राह्यं मत्वा करिबंधिनां लक्षण विलक्षण अवल्यत. // 21 // .... अर्थः-आ हाथीने वायुनी पेठे सेहेलथी न पकडी शकाय एवो जाणीने लाखोगमे मावतो निराश थइ पाछा वल्या. // 21 // अथाहमधिकोत्साहः सुखप्नशकुनबजैः। अस्य बंधाय विन्ध्यादि गत्वा वासमदापयम् // 22 // . अन्वयः-अथ सुस्वप्नशकुनवजैः अधिकोत्साहः अहं अस्य बंधाय विध्याद्रिं गत्वा वासं अदापर्य. // 22 // अर्थः-पछी उत्तम स्वप्नो तथा शकुनोना समूहोथी अधिक उत्साहवाळाएवा में आहाथीने पकडवामाटे विंध्याचलमांजइ निवासकों. कथं ग्राह्यः सहस्तीति चिन्ताचकितचेतसः। मम प्रमोदरोमाञ्चप्रचयं रचयन्नथ॥२३॥ CN) मक्तिस्पृहमसम्यक्त्वमिव मामेतदर्थिनम् / सतां प्रहसतां चित्ते चमत्कारं प्रपञ्चयन् // 24 // 00000000 00000000000000000000
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________________ - - - - -- - 000000000000000000 पुण्याच चरित्र भाषांतर 00000000 CD मृदुगर्जितवायेन मदषट्पदगीतिभिः / श्रियमले निजक्रीडानर्तकीमिव नर्तयन् // 25 // वनदेवीभिरप्येष वीक्ष्यमाणः कुतहलात / शनैर्वनान्ममागारमागान्नागाधिपः खयम् // 26 // अन्वयः-अथ स हस्ती कथं ग्राह्यः / इति चिंताचकितचेतसः मम प्रमोदरोमांचपचयं रचयन् // // 23 असम्यक्त्वं मुक्तिस्पृह इव एतदथिनं मां प्रहसता सतां चित्ते चमत्कारं प्रपंचयन् // 24 // मृदुगर्जितवाद्येन, मदषट्पद गीतिभिः निजक्रीडानर्तकी / इव श्रियं अग्रे नर्तयन् // 25 // वनदेवीभिः अपि कुतूहलात् वीक्ष्यमाणः एषः नागाधिपः स्वयं शनैः वनात् मम आगारं आगात // 26 // चतुर्भिः कलापकं / / . 1 अर्थ:-हवे आ हाथीने केम पकडवो ? ए रीते चिंतातुर मनवाळा एवा मने हर्षना रामांचीनो समूह उपजावतो तथा.(पोते).समकीतरहित छतो मुक्तिनी इच्छा राखनारनी पेठे, आ हाथीनी इच्छा करनारो जे हुँ, तेनी हाँसीकरता का (80) सजनोना मनमा आश्रर्य उपजावतो, // 24 // मनोहर गर्जनारूपी वाजित्रसाथे, तथा (झरता) मदनी (आसपास भमना) DODOG OOOOOOOOOOOOOOOOOOOD Panchay a k
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________________ पुण्यादय चरित्र // 12 // सान्वय भाषांतर // 12 // भमराओना नादरूपी गायन साथे, पोतानी क्रीडारूपी नटीनीपेठे लक्ष्मीने ( शोभाने) अग्रभागमा नचावतोयको, // 25 // तथा वनदेवताओवडे पण आश्चर्यथी जोवातो एवो आ हस्तिराज पोतानीमेळे धीमे धीमें बनाथी मारा आवासे आव्यो. // 26 // आश्चयोन्मत्तचित्तेन मयोत्थाय रयादथ / असावप्रजि प्रत्यक्ष स्वभाग्यस्येव दैवतम् // 27 // अन्वय:-अथ आश्चर्यउन्मत्तचित्तेन मया रयात् उत्थाय स्वभाग्यस्य प्रत्यक्षं दैवतं इव असौ अपूजि. // 27 // अर्थ-पछी आश्चर्यथी अत्यंत उत्सुक मनवाळा एवा में एकदम उठीने मारा भाग्यना प्रत्यक्ष थयेला देवनी पेठे आहाथीने पूज्यो.१.२७ नमतो मम तोषेण सुप्रसन्नः करी करम् / सुस्वामीव दधावेष पृष्ठे कमलकोमलम् // 28 // अन्वयः-तोषेण सुप्रसन्नः एषः करी नमतो मम पृष्ठे सुस्वामी इव कमलकोमलं कर दधौ. // 28 // अर्थः-आनंदथी अति प्रसन्न थयेला आ हाथीए नमतो एवी जे हुँ, तेनी पीठपर उत्तम शेठ (सेवकनी पीठपर जेम पोतानो हाथ मूके) तेम ( पोतानी ) कमलसरखी कोमल सुंद स्थापन करी. // 28 //
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________________ occeESEICICICICIE S SES पुण्याच चरित्रं सम्वच भाषांतर भूभृद्वनीं विरागीव भूभृतामवनी प्रति / संचचालाथ संज्ञाप्य हस्ती हस्तेन मामसौ॥२९॥ अन्वयः-अथ असौ हस्ती मा हस्तेन संज्ञाप्य विरागी भूभृद्वनीं इव भूभृतां अवनींमति संचचाल. // 20 // अर्थः-पछी आ हाथी सुंढवडे मने इशारत करीने, वैराग्यवान मुनि जेम पर्वतवाळा अरण्यमा जाय, तेम राजाओनी भूमि (राजधानीओ) तरफ चालवा लाग्यो. // 13 // अथैनं पृथिवालीलाचारिणं वारणेश्वरम् / वयं प्रीत्यान्वगच्छामो विवेकमिव सदगुणाः // 30 // ... अन्वयः-अथ विवेकं सद्गुणाः इव, पृथिवीलीलाचारिणं एनं पारणेश्वरं वयं प्रीत्या अन्वगच्छामः // 10 // अर्थः-हवे विवेकनी पाछळ जेम सद्गुणो जाय, तेम पृथ्वीपर इच्छामुजच चालता एवा आ हस्तिराजनी पाछळ अमो आनंदथी चालीये छीये. // 30 // दूरतो राजधानीनामुपकण्ठमपि त्यजन् / क्रयोत्कं भूभृतां सङ्घ लङ्घमानो बलादपि // 31 // . Secrease katerneterrecreaseererectercreta Jun Gun Aaradhak Trust H P.A. Gunratnasun MS AIL
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________________ पुण्याढ्य चरित्र // 14 // सान्वय भाषांतर मयानुगम्यमानोऽयमेत्य नित्यप्रयाणकः / इह स्वगृहवत्तस्थौ यूथनाथोऽद्य सुस्थितः // 32 // युग्मं // अन्वयः-राजधानीनां उपकंठं अपि दूरतः त्यजन् , भूभृतां क्रयोत्कं संघ बलादपि लंघमानः // 31 // मया अनुगम्यमानः नित्यप्रयाणक: अयं यूथनाथः स्वगृहवत् इह एत्य अथ सुस्थितः तस्थौ. // 32 // युग्मं // अर्थ:-राजधानीओना सीमाडाने पण दूरथीज तजतो, तथा खरीद करवामाटे उत्सुक थयेला:एवा राजाओना समूहने (पण) पराणे उल्लंघी जतो ( कोइ पण रीते नही गणकारतो) // 31 // तथा हुँ जेनी पाछळ पाछळ चालुं छु एवो, तथा हमेशं प्रयाण करतो, एवो आ हस्तिराज पोताना आवासमा जेम, तेम अही आजे सुखेसमाधे आवी उभो छे. // 32 // युग्मं // रक्ता कोपामितप्तेव जज्ञे यान्येषु राजसु / प्रमोददुग्धधौतेव धवला त्वयि सास्य दृक् // 33 // .. अन्वयः-अस्य या दृक् अन्येषु राजसु. कोपाग्नितप्ता इव.रक्ता जज्ञे सा त्वयि प्रमोद दुग्धधौता इव. / 33 // अर्थ:-आ हाथीनी जे दृष्टि वीजा राजाओगते कोपरूषी अग्निथी जाणे तपेली होय नही ! एवी लाल थती हती, तेज (तेनी) SO0 MAHARI SSSSSSSSSSSSSSSSSESO MAN SHAYARSAATANJASTHAN SairatnasuTIM.S. Anuumaaranasi
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________________ POSERECTERISTICES . पुण्याय चरित्रं 6 साल्वच भाषांतर // 15 // दृष्टि तमारा प्रते जाणे आनंदरूपी दधयी धोयेली होय नही ! ( एम देखाय . ) // 13 // तन्ननमयमानिन्ये त्वद्भाग्यैरेव वारणः। ममैतदनुगामित्वान्मद्भाग्यैरसि दर्शितः॥३४॥ ___ अन्वयः-तत् नूनं त्वद्भाग्यैः एव अयं वारणः आनिन्ये, एतद्अनुगामित्वात् मद्भाग्यैः मम दर्शितः असि. // 34 // अर्थः-माटे खरेखर आपना सद्भाग्योज आ हाथीने ( अहीं) लाव्या छे, अने तेनी पाछळ पाछळ चालवाथी मारांसद्भाग्योए मने आपनु दर्शन कराव्यु छे. // 34 // ततः स्वसकृतक्रीतं गृहाणैनमिभं विभो / अहं कृतार्थ एवाद्य भवद्भालनिभालनात // 35 // . अन्वयः-ततः ( हे ) विभो ! स्वसुकृतक्रीतं एनं इभं गृहाण ? भवद्भालनिभालनात् अद्य अहं कृतार्थः एव. // 35 // अर्थ:-माटे हे स्वामी! आपना पुण्ये खरीदेला एवाआ हाथीने आप.स्वीकारो? आपना ललाटना दर्शनथी आजे हुं कृतार्थजथयोछु / 35 // एतद्वचःसुधाधारा-पूर्णकणेंद्रियद्वयः / प्रीतो महीन्दुमन्त्रीन्द्रमुखसंमुखदृग्जगौ // 36 // 000000000 QO@GOOOOOXXXXerox Jun Gun Aaradhik Trust PPAC Gunratnasuri MS robaigana-Shirst
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________________ DECEMeeeeeeeCERIES सान्वय पुण्याढ्य चरित्र भाषांतर PA // 16 // // 16 // अन्वय:-एतद्वचः सुधाधारा आपूर्णकर्णेद्रियन्या भीतः महींदुः मंत्रींद्रमुखसंमुखहम् जगौः // 36 // .. अर्थः-ते व्यापारीना वचनोरूपी अमृतनी धाराथी संपूर्ण भरायेला छे बन्ने कर्णो जेना एवो त राजा मंत्रीश्वरना मुखसामे दृष्टि राखीने कहेवा लाग्यो के, // 36 // .. ........... ..................... अमूल्यमेनमानिन्ये वन्येभमयमेकतः। अमूल्यमेकतोऽवोचद्वचनं वञ्चनोज्झितं // 37 // . .. अन्वयः-एकतः अयं एनं अमूल्यं वन्येभं आनिन्ये, एकतः वचनोज्झितं अमूल्यं वचनं अवोचत्. // 37 // अर्थ:-एक तो आ व्यापारी आ अमूल्य वनगजने लाग्यो छे, तेमज पार्छ (ते) कपटरहित अमूल्य वचन बोल्यो छे, // 27 // तदमल्यद्वयोदातुरूर्वीसर्वस्वमप्यहं / दत्वाप्यस्यानृणीभावं न गच्छामि करोमि किं // 38 // : अन्वयः-तत् अमूल्यद्वयीदातुः अस्य ऊर्वी सर्वस्वं अपि दत्वा अपि अहं अनृणीभाव न गच्छामि, किं करोमि.? // 38 // अर्थः-माटे वे अमूल्य वस्तु आपनारा एवा आ व्यापारीने पृथ्वीपरतुं सघळु आपता पण हुं तेना करजथी मुक्त थइ शकुं तेम CCIDEO GeEcICICICICICICICICICIGESDEO
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________________ O9000000000000 पुण्याढ्य चरित्रं सान्वये भाषान्तर // 17 // // 17 // नी, माटे हुं शुं करूं? // 38 // .. इति स्थिते नरेन्द्रेऽथ व्याहारि व्यवहारिणा / स्वामिन् गजस्तवैवोक्तो मूल्यं गृह्वेऽस्य न ध्रुवम् // 39 // अन्वयः-अथ इति नरेंद्रे स्थिते व्यवहारिणा व्याहारि, (हे) स्वामिन् ! गजः तव एवं उक्तः, ध्रुवं अस्य मूल्यं न गृहणे. // 3 // अर्थः-पछी एम कहीने राजा ज्यारे मौन रह्यो, त्यारे ते व्यापारी बोल्यो के, हे स्वामी ! हाथी आपनोज छे, एम में कही दीधुं छे, माटे खरेखर तेनुं मूल्य हुं लेवानो नथी // 39 // इत्यस्मै निश्चयवते सचिवानुमतो नृपः / दत्वा बलेन राज्याधं तं द्विपेन्द्रमुपाददे // 40 // अन्वयः- इति निश्चयवते अस्मै सचिवानुमतः नृपः बलेन राज्याधं दत्वा तं द्विपेंद्र उपाददे // 4 // अर्थः-एवी रीतना निश्चयवाळा एवा ते व्यापारीने मंत्रीनी अनुमतिथी राजाए पराणे अर्धं राज्य आपीने ते हाथी ग्रहण कर्यो. // 40 ततः कृतेभरत्नाप्तिमङ्गलोऽयं महीपतिः / चक्रे यात्रां जगत्कम्पहेतुं जेतुं दिशोऽखिलाः // 41 // 0000000 SS DGEGIOGISCICISIOSETOGGGIaGD P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ peeeeeeeeeeeeeTERIES पुण्याय चरित्र // 18 // सान्वय भाषान्तर __अन्वयः-ततः कृतइभरत्नआप्तिमंगलः अयं महीपतिः अखिलाः दिशः जेतुं जगत्कंपहेतुं यात्रा चक्रेः // 4 // अर्थः-पछी करेलछे हस्तिराजनी प्राप्तिमाटे मंगल जेणे एका आ सजाए सघळी दिशाओ जीता माटे जगत्ने कंपावनाएं (त्यांची प्रयाण कयु..।। 41 // . . .. ... ... ... .... . ... . .. . . निखानध्वानधूलीभिर्बधिरान्धारिविक्रमम् / संकटीभूतभूगोलं लोलं प्रास्थित तलम् // 42 // अन्वयः-निस्वानध्वान धूलीभिः बधिर अंधारिविक्रम संकटीभूतभूगोलं तरलं प्रास्थित. // 42 // अर्थः--ढोलडंकाना अवाजथी, तथा ( उडती ) धूलिथी बेहेरुं तथा अंधकारवाळू थयेलुं छे आकाश जेथी, अने सांकडी थयेल छे पृथ्वी जेथी, एवं ते राजानुं सैन्य चालवा लाग्यु.. // 42 // . स गन्धसिन्धुरो बद्धरत्नपट्टः पुरोऽचलत् / मू|र्वभ्रान्तकोपाग्निरिव लोपाय विद्विषाम् // 43 // ____अन्वयः-विद्विपा लोपाय मूर्धऊर्बभ्रांत कोपाग्निः इव बद्धरत्नपट्टः सः गंधसिंधुरः पुरः अचलत् // 43 // GGESCESSGEGEGGee
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________________ 09980000000000000000 पुण्याढ्य चरित्रं // 19 // अर्थः-शत्रओना विनाशमाटे मस्तकपर जाणे क्रोधरूपी अग्नि भमतो होय नही! एवीरीते बांधेला रत्नपट्टवाळो ते गंधहस्ति आगळ चालवा लाग्यो. // 43 // नं नेमुः सर्वतो गर्वकुशीभिः कीलिता इव / ये पुरा वैरिणस्तेषु स तत्याज कृपां नृपः॥४४॥ “अन्वयः-गर्वकुशीभिः सर्वतः कीलिताः इव ये वैरिणः पुरा न नेमुः, तेषु स नृपः कृपा तत्याज. // 44 // अर्थ -गर्वरूपी खीलीओथी सर्व बाजुए जडाइने जाणे अक्कड थया होय नहीं! एवा जे वैरीओ पूर्वे नमता नहोता, तेओमते ते राजाए दयानो त्याग कर्यो // 44 // रणेष वारणेन्द्रस्तु स वात्यावर्तवद् दुमान् / लोडयामास विद्वेषिचमूस्तृणसमूहवत // 45 // अन्वयः-रणेषु स वारणेद्रः तु दुमान वात्या वर्तवत् तृणसमूहवत् विद्वेषिचमः लोडयामास. It 45 // अर्थः-राणसंग्रापमा ते गजराज तो बंटोळीयो जेम वृक्षोने तथा घासना समूहने वीखेरी नाखे, तेम शत्रओनां सैन्योने विखेरी CCES सान्वय भाषान्तर // 12 // SODOC 000OOOOOOOO0000000 P. Ac Cunratnasuri,M.S. Jun Gun Aaradtak
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________________ पुण्यादय चरित्र // 20 भाषान्तर // 2 // नाखवा लाग्यो. // 45 // द्विपेन्द्रः प्रेक्षकीभूतसकलवबलोच्चयः / शत्रून् स त्रासयामास द्रुतमब्दानिवानिलः // 46 // ___ अन्वया-प्रेक्षकीभूतसकलस्वबलोच्चयः सः द्विपेंद्र अनिलः अब्दान् इव द्वतं शत्रुन् सयामास. // 46 // . अर्थः-पोताना सर्व लश्करनो समूह जेने जोइ रहेलो छे, एवो ते गजराज, वायु जेम वादळांओने, तेम तुरत शत्रुओने नसाडवा NO लाग्यो. // 46 // ... . .... ... .. .... दन्तघातदलद्वप्रकपाटः पाटयन्भटान् / अरीन्करीन्द्रश्चक्रेऽसो दुर्गस्थानपि दुर्णतान् // 47 // .. अन्वयः-दंतधातदलद्वप्रक.पाट, असौ करींद्रः भटान् पादयन् दुर्गस्थान् अपि अरीन् दुर्गतान् चक्रे.॥४७॥ अर्थ:-दांतोना प्रहारथी किल्लाओना कमाडोने तोडतो एवो आ हस्तिसज सुभटोने पाडतोथको किल्लामा संतायेला शत्रुओने से पण दुःखी करवा लाग्यो. // 47 // BaBabelsblaisia abbiale.2010
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________________ OOODegende0 पुण्यातच चरित्र समन्वय भाषान्तर |21|| इत्येष समरेऽजैषीदन्तलक्षीकृतान्द्विपः। लक्षीकृतं तदस्त्रैः स्वं गतिवेगादलक्षयन् // 48 // अन्वयः इति एषः तदस्तैः लक्षीकृतं-स्त्रं गतिवेगात् अलक्षयन् समरे दंतलक्षीकृतान् द्विषः अजैषीत् // 48 // अर्थ:--एवी रीते आ हाथी ते शत्रुओना शस्त्रोए चींधेला एवा. पोताने गतिवेगथी अदृश्य करतो थको रणसंग्राममा (पोताना) दांतोनी चींधणीमा आवेला शत्रुओने जीतवा लाग्यो. // 48 // . .. दिशामन्तेषु मिथ्यात्वख्यातान्प्रेक्ष्येव दिग्गजान् / जितकाशी स कुम्भीन्द्रो ववलेऽनुचलबलः // 49 // अन्वयः-मिथ्यात्वख्यातान् दिग्गजान् प्रेक्ष्य जितकाशी इव अनुचलबलः स कुंभींद्र: दिशा अंतेषु ववले. // 45 // अर्थ: जहीरीते प्रख्याति पामेला एवा दिगृहस्तीओने जोइने जाणे तेओने जीतवानी इच्छाथी होय नही ! तेम जेनी पाछळ पाछळ सैन्य चाली सयुं छे, एवो ते हस्तिराज दिशाओना छेडाओतरफ चालवा लाग्यो. // 49 // शक्तिसाधितदुःसाधे सिन्धुरे जयबन्धुरे / तस्मिन् सविस्मयनेम रेमे भूमीशमानसम् // 50 // काशी इव अन ओने जीतवाना॥ 42 // // 50 //
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________________ DOGSEREY90000000000000 * सान्वय भाषान्तर // 22 // पुण्याढ्य चरित्र // 22 // CM अन्वयः-शक्तिसाधितदुःसाधे जयचंधुरे तस्मिन् सिंधुरे भूमिईशमानसं सविस्मयप्रेम रेमे. // 50 // अर्थ:-( पोताना ) बळथी जेणे दुर्जय (शत्रुओने पण) जीतेल छे, अने जयशाली एवा ते हाथीमा (ते) राजानुं मन आश्चर्य अने प्रोतिसहित रमवा लाग्यु.॥५१॥ तमेवेभविभुं भूपैर्जयश्रीमङ्गलागतैः / पदे पदेऽर्चयन्नाप पुरं. नरपुरन्दरः // 52 // 'अन्वयात एव भविधं पदे पदे अर्चयन् नरपुरंदर: जयश्रीमंगलागतः भूपैः (सह) पुरं आप.॥५२॥... ... ... अर्थ:-नेज गजराजने पगले पगले पूजतो एवो ते सजा जयलक्ष्मीना मंगलमाटे आवेला राजाओ सहित (पोताना)नगरमांआध्यो. महोत्सवमयं भपप्रवेशावेशपेशलम् / सचिवैस्तत्पुरं चक्रे.शक्रेणापीप्सितास्पदम् // 53 // अन्वयः सचिवैः भूपप्रवेशावेशपेशलं शक्रेण अपि ईप्सितास्पद महोत्सवमयं तत्पुरं चक्रे. // 3 // अर्थ- ते वखते) मंत्रिओए राजाने प्रवेश कराववाना उत्साहथी मनोहर, तथा इंद्र पण जेमा रहेवानी इच्छा करे, एवं महान ISO900 000
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________________ 0000000000 सान्धय भाषान्तर // 23 // 9 पुण्यादय (0) उत्सवबालु ले नगर बनायू ( शणगायु.) 153 // .. चरित्रं आलोककामवामाक्षीजालमालितजालकम् / काश्मीरनोरनोरन्ध्रच्छटाछोटितभूतलम् // 54 // // 23 // व्योमापगां जयन्तीभिर्वैजयन्तीभिरद्भुतम् / उत्तुङ्गस्तोरणस्तम्भानद्धसंमदसिन्धुरम् // 55 // कृताकल्पमिवानल्पैरुच्चस्थानासनेर्जनैः / सहासमिव दन्ताभमुक्तातोरणकान्तिभिः // 56 // दुर्जयारिजयारोहप्ररोहन्मोहसंमदः। तत्पुरं प्रविवेशाथ नृपस्तद्विपसंगतः // 57 // चतुर्भिःकलापकम्॥ 10 अन्वय:-आलोककामवामाक्षीजालमालितजालक, काश्मीरनीरनीरंध्रच्छटाछोटित भूतलं // 54 // व्योमापगां जयंतीभिः वैजयंतीभिः अद्भुतं, उत्तमलोरण स्तंभ आनद्ध संमदसिंधुरं // 55 // उच्चस्थानासनः अनल्पैः जनैः कृताकल्प इव, दंताभमुक्तां तोरण कांतिभिः सहासं इच, // 16 // तत्पुरं दुर्जयअरिजय आरोह प्ररोहत् मोहसंमदः नृपः तद्विपसंगतः अथ प्रविवेश // 17 // अर्थः जोवानी इच्छावाळी स्त्रीओना समूहोथी शोभायुक्त झरुवाओवाळा, केसरना भरपूर छोरणांभोवडे छंटकाव करेल भूमित 0000000) DES00OOODSOGOOGOOOD
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________________ लाग्वय पुण्यादव चरित्र // 24 // // 24 // लवानो, // 14 // आकाशमाने पण जीतती एवी पताकाओवढे शणगारेला, ऊँचा तोरणोना थांभलाओमां बांधेला मदोन्मत्त हाथीओवाळा, "55 // उंचे चडीने बेठेला अनेक मनुग्योवड़े करीने जाणे अलंकारयुक्त थयेलो, दांतजेवा उज्ज्वल मोतीओनां (तोरणोनी कांतिथी जाणे हास्ययुक्त थयेला // 56 // एच ते नगरमा अजित शत्रुओने पण जीतवाना आवेशथी उछळता गर्वयुक्त हर्षवाला एवा ते राजाए ते. हाथीपर बैशीने प्रवेश करें. // 7 // चतुर्भिः कलापकं // * प्रीतिगौरैर्मुहुः पौरैः स्तूयमानः पदे पदे। लिखन्करी करेणोवीं सविलक्ष इवैक्ष्यत // 58 // अन्वयः-भीतिगौरैः परः पदे पदे स्तूयमानः सः करी विलक्षः इव करेण ऊवीं लिखन् अक्ष्यतः // 58 // अर्थ:--अत्यंत प्रेमवाळा नगरना लोकोबडे पगले पगले स्तुति करातो एवो ते हाथी गभरायेलानी पेठे सुंढथी जमीन खोतरतो जोवामां आव्यो." 58 // खेलन् सहेलममलं कराग्रेणायमग्रहीत् / कुतोऽप्यहात्खटीखण्डं बाजं धर्मतरोरिव // 59 // 00000000
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________________ OSHOC000000000000DD पुण्याढ्य चरित्र सान्वय भाषान्तर // 25 // . अन्वयः-सहेल खेछन् अयं कुतः अपि अट्टात् धर्मतरोः बीजं इव अमलं खटीखंड कराग्रेण अग्रहीत. // 59 // अर्थः-मोजथी चालता एवा आ हाथीए कोइक दुकानमाथी जाणे धर्मरूपी वृक्षतुं बीज लेतो होय नही! तेम श्वेत खडीनो टुकडो मुंढना अग्रभागवडे ग्रहण कयों. // 55 // करात्तखटिकाखण्डः शुण्डारः स व्यराजत / स्वर्गदण्डाग्रसंसर्गिसोमव्योमतलोपमः // 60 // ... . अन्वयः-करात्तखटिकाखंडः सः शुंडारः स्वर्गदंडअग्रसंसर्गिसोमव्योमतलोपसः व्यराजत // 60 // .... अर्थ:-शुंडा पकडेला खडीना टुकडावाळी ते हाथी, स्वर्गदंडना अग्रभागयो लटकता चंद्रवाळा आकाशतलसरखो शोमवा लाग्यो / 60 किं कर्तानेन करटी खटीखण्डेन संप्रति / इत्यसौ विस्मयस्मेरैः प्रेक्ष्यमाणः पुरीजनैः // 61 // आत्तनागरमङ्गल्या प्रतिस्थानं मतङ्गजः / लीलालसगतिः प्राप भूपालभवनाङ्गणम् // 62 // युग्मं // अन्वयः-संपति अनेन खटीखंडेन असौ करटी किं कर्ता ? इति विस्मयस्मेरैः पुरीजनैः प्रेक्ष्यमाणः, // 65 // प्रतिस्थान
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________________ TORIEISREERSEEEEEEEEEEEETC घुण्यादब चरित्र भाषान्तर आत्तनागरमंगल्यः, लीलालसगतिः मतंगजः भूपालभवन अंगणं प्राप. // 62 // युग्मं // ... ... ... ..... . अर्थ:-हवे आ खडोना टुकडावडे आ.हाथी.Y करशे.? एम आश्चर्यथी हसता एवा नगरना लोकोथी जोवातो,..॥ 61. // . जगोजगोए नगरजनोथी पूजन कगतो अने क्रीडाथी मंदगतिवाळो, ते मदोन्मत्त हाथी राजभुवनना आंगणामां आव्यो.॥३२॥ युग्म। मृग्यमाणो महाश्चर्यनिश्चलैः खेचरैरपि / स गुणी प्रगुणीकृत्य कृत्यवित्खटिकामिमाम् // 63 // चतुष्पंक्तिं भवचतुर्गतिनिगेतिमार्गवत् / श्लोकमतन्नृपागारद्वारभित्तौ द्विपोऽलिखत् // 64 // युग्मम् // ...अन्वयः-महाश्चर्यनिश्चलैः खैचरः अपि मृग्यमाणः, कृत्यवित, गुणी सः द्विपः इमा खटिको प्रगुणीकृत्य // 63 // नपागारभित्तौ भवचतुर्गति निर्गतिमार्गवत् चतुष्पंक्तिं एतत् श्लोकं अलिखत् // .64 / / युग्मं // अर्थ:-अति आश्चर्यथी स्थिर थइ गयेला एवा विद्याधरो पण (जेने मेळववानी) शोध करी रह्या छे एवो, तथा कार्यने जाणनारो. अने गुणवान एवो ते हाथी आ खडी पकडीने // 23 // राजमहेलनी भीतपर संसारनी चारे गतिभोमाथी निकळवाना मार्गसरखो DECESSIGD 00000000000000000
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________________ De3000000031210X20008 पुण्याढ्य चरित्र सान्वय भाषान्तर // 27 // चार लींटीनो नीचे मुजब श्लोक लखवा लाग्यो. // 64 // युग्मं // ..... अविज्ञातत्रयीतत्त्वो मिथ्यासत्त्वोल्लसदभुजः / हा मूढ शत्रुपोषेण मित्रप्लोषेण हृष्यसि // 65 // -- अन्वयः-हा मूढ ! अविज्ञातत्रयीतयः मिथ्यासचोल्लसद्भुजः (स्वं.) शत्रुपोषेण मित्रप्लोषेण हृष्यसि. // 15 // अर्थः-अरे मूर्ख! त्रण तत्वोने जाण्याविना निरर्थक भुजावलना गर्ववाळो एवो तुं शत्रुओने खुशी करीने, अने मित्रोनो विनाश करीने, आनंद पामे छे !! // 65 // .................. ................. श्लोकमालोकयन्नेनमनेनसमसौ नृपः। अजानन्नर्थमर्थज्ञानपृच्छन्मित्रमन्त्रिणः // 66 // . अन्वयः-एनं अनेनसं श्लोकं आलोकयन असौ नृपः अर्थ अजानन् अर्थज्ञान मित्रमंत्रिणः अपृच्छत् / / 66 / / अर्थः -आ निर्दोष श्लोकने जोता एवा आ राजाए (तेना) अर्थने नही जाणवाथी तेनो भावार्थ जाणनारा (पोताना) मित्र| सरखा मंत्रीओने ( तेनो अर्थ ) पूछयो. // 66 // .. .. 200909108
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________________ पुण्याढ्य चरित्र // 28 // सान्वय भाषान्तर // 28 // श्लोकः कथंचिबुबुधे बुधेशैरपि तैर्न सः। अतिदीर्घोऽपि न पुमान्पदाभ्यां लङ्घतेऽर्णवम् // 67 // - अन्धयः-तैः युधेशैः अपि सः श्लोकः कथंचिद् न बुबुधे. अतिदीर्घ अपि पुमान् पदाभ्यां अर्णवं न लंघते. // 67 // , ... अर्थ:-ते पंडितराजो पण ते श्लोकनो अर्थ कोइ पण रीते जाणी शक्या नही. केमके अतिलांबो पुरुष पण बे पगोथी महासागर ओळंगी शकतो नथी / / 67 // ...... . ... .. ... ... ... .. ............... ..... मुखाये तोरणीकुर्वन्नथ दन्तांशुधोरणीम् / न्यवीविशन्नृदेवोऽसौ वाग्देवीं रसनासने // 68 // अन्वयः-अथ मुखाने दंतांशुधोरणीं तोरणीकुर्वन् असौ नृदेवः वाग्देवीं रसनासने न्यबीविशत्. // 68 // . . 1 अर्थ:-पछी (पोताना ) मुखना अग्रभागमा दांतोना किरणोनी श्रेणिने तोरणरूप करता एवा ते राजाए सरस्वतीदेवीने पोतानी जीभरूपी आसनपर बेसाडी. ( अर्थात् ते सजा बोल्यो..).॥६८॥..... . मदिष्टदेवता कापि मयि दत्वा जगज्जयम् / श्लोकं शिक्षाविशेषाय लिलेख द्विपरूपभाक् // 69 //
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________________ OI0000000000000 पुण्याद सान्वय चरित्र 29/ भाषान्तर 129/ अन्वयः-कापि मदिष्टदेवता मयि जगज्जयं दत्वा शिक्षाविशेषाय द्विपरूपभाक् लोकं लिलेख. // 69 // अर्थ:-मारापर स्नेह राखती कोइक देवीए मने जगत्नी विजय अपावीने खास शिखामण आपवामाटे हाथीनुं रूप लेह आ श्लोक लख्यो छे. // 39 // तदस्यार्थमविज्ञाय न विशामि निवेशनम् / अमित्रमित्रसंदेहे कास्तु देहेऽपि निवृतिः // 70 // ..अन्वयः-तत् अस्य अर्थ अविज्ञाय निवेशनं न विशामि, अमित्रमित्रसंदेहे देहे अपि का निर्वृतिः अस्तु. // 70 // अर्थ:-माटे आ लोकनो अर्थ जाण्याविना (9) आवासमा दाखल थइश नही. केमके शत्रु कोण? अने मित्र कोण? ते संबंधि ज्यांमधी संशय होय, त्यांसुधी शरीरमा पण निवृत्ति क्याथी थाय ? ' 70 // .. तदित्युदीर्य काव्यार्थविज्ञानैकमनाः खलु / तत्रैवास्थानमास्थाय विभुर्निविविशे विशाम् // 71 // . - अन्वयः-इति उदीर्य खलु काच्यार्थविज्ञानएकमनाः विशां विभुः तदा तत्रैव आस्थानं आस्थाय निविविशे. // 71 //
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________________ 00000000000000000000 पुण्यात्य चरित्र ) सान्वय भाषान्तर // 30 // अर्थः-एम कहीने खरेखर ते श्लोकना अर्थने जाणवामाज एक चित्त छ जेनु एवो ते राजा ते वखते त्यांज पडाव नाखीने रह्यो. 1711 संहताः सूरयः प्रज्ञावज्ञातसुरसूरयः / तैरप्यभेदि न श्लोकष्टकैर्वज्रमणियथा // 72 // अन्वयः-प्रज्ञावज्ञातसुरसूरयः सरयः संहताः, यथा टकैः वज्रमणिः ( तथा ) तैरपि श्लोकः न अमेदि. // 72 // अर्थ:--बुद्धिवडे सुरगुरुनो पण तिरस्कार करनारा एवा पंडितो (त्या) एकठा थया, परंतु टांकणांओथी जेम वज्रमणि, तेम तेओथी पण आ श्लोक भेदायो नही. (अर्थात् तेइलोकनो अर्थ थई शक्यो नही. ) / / 72 // श्लोकार्थ लोकसार्थेषु समन्तान्मतिगर्वितान् / धर्माचार्यानथाकार्यापृच्छत्पृथ्वीपतिः क्रमात् // 73 // - अन्वयः-अथ पृथ्वीपतिः लोकसार्थेषु मतिगर्वितान् धर्माचार्यान् समंतात् क्रमात् आकार्य श्लोकार्थ अपृच्छत्. // 7 // अर्थः-पछी (ते) राजा लोकोना समूहमा बुद्धिना गर्बवाळा धर्माचार्योंने चोतरफथी अनुक्रमे बोलावीने ते श्लोकनो अर्थ पूछवा लाग्यो. // 73 // 000000000000000
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________________ सान्वय भाषान्तर Ca 000000000000000000 पुण्याढ्य (0 अर्थेष्वघटमानेषु तेषामप्युक्तियुक्तिभिः / विषादपात्रं धात्रीशः किंकर्तव्यजडो जगौ // 74 // चरित्र अन्वयः-तेषां उक्तियुक्तिभिः अपि अर्थेषु अघटमानेषु विषादपात्रं किंकर्तव्यजडः धात्रीशः जगौ. // 74 // अर्थ:-तेओनां वचनोनी युक्तिथी पण ते श्लोकनो अर्थ बंधबेसतो न थवाथी खेद पामतो, तथा हवे शुं करवू ? एम मूढ थयेलो) ते राजा कहेवा लाग्यो के, // 74 // श्लोकेनानेन कनकाचलेनेव प्रकम्पनाः। सर्वज्ञमानिनः सर्वे गर्वेण रहिताः कृताः // 75 // . अन्वयः-कनकाचलेन प्रकंपनाः इव अनेन श्लोकेन सर्वज्ञमानिनः सर्वे गर्वेण रहिताः कृताः // 7 // अर्थ:--मेरुपर्वते जेम वायुने, तेम आ श्लोके तो सर्वज्ञपणानो अहंकार राखनारा सर्व (पंडितोने ) गर्वरहित कर्या. // 75 // अद्यापि विद्यते क्वापि कोऽपि प्रष्टव्यतास्पदम् / न वेति बदति क्षमापे सचिवेन्दुरवोचत // 76 // अन्वया-अद्यापि क्यापि क; अपि प्रष्टव्यतास्पदं विद्यते ? नवा ? इति क्षमापे वदति सचिवेंदुः अवोचत. // 76 // B0000000000000000 uth Cun Aardak Trust
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________________ पुण्याञ्च चरित्रं // 32 सान्वय भाषान्तर // 32 // अर्थः-हजु क्याय कोइ पण पूछवा लायक छ ? के नही ? एम राजाए कहेवाथी मुख्यमंत्री पोल्पो के, // 76 // अद्याप्येको विवेकोर्मिसमुद्रो न समेति सः। आनन्दचन्द्रसूरीन्द्रो जिनशासनतत्त्ववित् // 77 // - अन्वयः-विवेकोर्मिसमुद्रः जिनशासनतत्त्ववित् एकः सः आनंदचंद्रसूरींद्रः अद्यापि न समेति. / 77 // अर्थ:-विवेकरूपी मोजाओना समुद्र सरखा, तथा जिनशासनना तत्वोने जाणनारा एक ते " आनंदचंद्र नामना सूरिराज" हजु आव्या नथी. // 77n ऊचेऽथ राज्ञा नाज्ञायि यदन्यैस्तत्कथं नु सः। तथाप्याहूयतां सोऽपि दीर्णशल्योऽस्तु संशयः // 78 // अन्वयः-अथ राज्ञा उचे, यत् अन्यैः न अज्ञायि, तत् नु सः कथं ? तथापि सः अपि आहूयतां 1 शल्यः दीर्ण शल्यः अस्तु. / 78 / अर्थ:-पछी राजाए कयु के, जे अर्थ बीजाओए न जाण्यो, तेने ते. शीरीने जाणशे? तोपण तेने पण बोलावो? के मेथी आपणो ) संशय दूर थायः // 78 // Mainik
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________________ FREYPRERNOR 098909090908921993199990 पुण्याढ्य चरित्र सान्धय भाषान्तर अथ मन्त्री खयं गत्वा नत्वा विनयवामनः / निवेद्य कार्यमाचार्यवर्यमावर्ण्य हृतवान् // 79 // अन्वयः-अथ मंत्री स्वयं गत्वा, आचार्यवर्य विनयवामनः नत्वा, कार्य निवेद्य आवर्ण्य हृतवान् // 79 // अर्थः-पछी (ते) मंत्रीपोते जइ, आचार्य महाराजने विनयथी वांदीने, तथा कार्य निवेदन करी खुशी करी बोलावी लाग्यो. 179 / ते कर्तुकामास्तीर्थेशशासनस्य प्रभावनाम् / राजमन्दिरमाजग्मुः सूरयोऽथ नयोज्ज्वलाः // 8 // - अन्वयः-अथ तीर्थेशशासनस्य प्रभावनां कर्तुकामाः, नयोज्ज्वलाः तं सूरयः राजमंदिरं आजग्मुः / / 80 / / अर्थ:-वळी तीर्थकरप्रभुना शासननी शोभा करवानी इच्छावाळा, तथा न्यायथी निर्मल थयेला ते आचार्यजी पण राज- दरबारमा पधार्या / / 80 // मूर्त शममिवायान्तं तमवेक्ष्य महामुनिम् / भून्यस्तदशनो हस्ती नमश्चक्रे मुदा नदन् // 81 // अन्वयः-मूर्त शमं इव तं महामुनि आयातं अवेक्ष्य भून्यस्तदशनः, मुदा नदन हस्ती नमश्चक्रे. // 81 // beacocee ) seeeeeeeeeeeeeeeeeed Ag W HAcidunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust ARMER
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________________ 00000000000000000000 सान्वय पुण्याच चरित्रं 34 भाषान्तर Lal |34| अर्थः-जाणे देहधारी शांतरसज होय नही ? एवा ते मुनिराजने आवता जोइने ( पोताना) बन्ने दांतो जमीनपर स्थापन करी हर्षनाद करताथका ते हाथीए ( तेमने ) नमस्कार कर्यो. // 81 // देवांशः कोऽप्यसौ कुम्भी मोहशुम्भी ननाम यम्।न किं मुनीन्द्रं निस्तन्द्रा नमामो वयमप्यमुम् // 8 // - अन्वयः-मोहगुंमी असौ कोऽपि देवांशः कुंभी ये ननाम, अघु मुनींद्रं वयं अपि निस्तंद्राः किं न नमामः // 82 // .... अर्थः-मोहरहित एवो आ कोइ देवांशी हाथी जेमने नम्यो, एवा आ मुनीश्वरने अमो पण प्रमाद तजीने केम न नमीये? // 2 // B) इति ध्यायन्समुत्थाय भद्रपीठाद्विभुर्भुवः। नमश्चकार सपरीवारः संसारतारणम् // 83 // .. ___ अन्वयः-इति ध्यायन् भुवः विभुः भद्रपीठात् समुत्था। सपरिवारः संसारतारणं नमश्रकार. // 8 // अर्थः-एम विचारता एवा ते सजाए सिंहासनपरथी उठीने परिवार सहित संसारथी तारनारा (एवा ते मुनिराजने) नमस्कार कर्यो..३। मूर्ति सिंहासानेऽध्यास्य निविश्याग्रेऽतिभक्तिभाक. तं श्लोकं दर्शयन्भित्त्यामर्थं पप्रच्छ पार्थिवः // 4 // 00000000000000000000
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________________ D0000000000000000 पुण्याढ्य चरित्र सान्वय भाषान्तर ART अन्वयः-अतिभक्तिभाक् पार्थिवः मूरि सिंहासने अध्यास्य अग्रे निविश्य भियां तं इलोकं दर्शयन् अर्थ पप्रच्छ. // 4 // LER अर्थः-अत्यंत भक्तिवाळा एवा (ते ) राजाए (ते ) आचार्य महाराजने सिंहासनपर बेसाडी, तथा (पोते) आगळ बेशी भीतमा लखेला ते श्लोकने देखाडी तेनो अर्थ पूछयो. // 84 // . दन्तच्छविच्छलान्मुक्तिशिलादीधितिवर्णिकाम् / दर्शयन्निव भक्तेभ्यो गुरुर्गिरमथाकिरत // 5 // . 'अन्वयः-अथ दंतच्छविच्छलात् भक्तेभ्यः मुक्तिशिलादीधितिवर्णिका दर्शयन्निव गुरुः गिरं अकिरत् . // 85 // अर्थ:-हवे दांतोनी कांतिना मिषथी भक्तोने जाणे सिद्धशिलाना किरणोनो नमुनो देखाडता होय नही? तेम ते गुरुमहाराज वाणी बोल्या. // 85 KEN यो देवगुरुधर्माणां त्रयीं जानाति तत्त्वतः / रमते तन्मतिः सत्त्वे स मित्रामित्रभेदविद् // 86 // * अन्वयः -यः तत्त्वतः देवगुरुधर्माणां त्रयीं जानाति, तन्मतिः सत्त्वे रमते, सः मित्रअमित्रभेदवित् / / 86 // . ... 00000000 OCO000000000 PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ पुण्यादच चरित्र भाषान्तर 136) करा अर्थ:-जे सत्य रीते देव, गुरु अने धर्मरूपी त्रणे तत्त्वोने जाणे छे, तेनी बुद्धि सत्त्वगुणमा रमे छे, अने तेज शत्रु अने मित्रना CA सान्षय तफावतने जाणी शके छ. // 86 // वीतरागप्रभुर्देवो गुरुस्तत्वोपदेशकः / धर्मश्च करुणारम्यस्त्रयीतत्वमिदं अन्वयः-वीतरागप्रभुः देवः, तत्त्वोपदेशकः गुरुः, च करुणारम्यः धर्मः, इदं त्रयीतत्त्वं विदुः // 87 / / अर्थः-रागरहितप्रभु देव, सत्य उपदेश देनारा गुरु, अने दयामय धर्म, एवी रीतना त्रण तत्वो कहेला छे. // 87 // तत्सत्वं यद्भवाम्भोधिः क्रममात्रेण लड्डयते / मिथ्या सत्वं पुनः कर्ममरिष्यन्मार्यमारणम् // 88 // : अन्वयः यत् भवांभोधिः क्रममात्रेण लंध्यते, तत् सत्त्वं, कर्ममरिष्यत् मार्यमारणं पुनः मिथ्या सत्त्वं. // 88 // अर्थ:-आ संसाररूपी समुद्रने एक पगला मात्रमाज जे उल्लंघी जबो, तेनुं नाम (खरं सत्त्व (कहेवाय छे), परंतु (पोताना) कर्मोथी मरनास शत्रभोने जे मारवा, ते तो मिथ्या सत्व छे. // 88 // KOSEEDOS Deel00000000000000000
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________________ peeeeeeeeeeeeeeeeee पुण्याढ्य चरित्र 37 सान्वय भाषान्तर 37 रिपवो रागरीषाद्या दहन्ति ये / मूलादुन्मुलनीयास्से समत्वास्त्रेण धीधनैः॥ 89 // अन्वय:-रागरोषायाः रिपवः, ये मुहुः द्वेहं दहति. धीधनैः समत्वअस्त्रेण ते मूलात् उन्मूलनीयाः // 89 / / अर्थः-राग अने देष आदिक शत्रुओ छे, के जेभी वारंवार शरीरने वाळ्या करे छे, माटे बुद्धिवानोए समतारूपी शस्त्रथी तेओने छेक मूळमाथीज उखेडी नाखवा जोइयें. // 89 // मित्राणि प्राणिवर्गस्तु यो द्विषन्नपि कर्महा / कामं क्षा(शा)मयितव्योऽस क्रुधा दीप्तः शमामृतैः // 9 // 'अन्वयः-पाणिवर्गःतु मिमाणि, यः द्विषन्नपि कर्मका. क्रुधा दीप्तः असौ काम शमअमृतैः शामयितव्यः // 9 // अर्थः-प्राणिमात्र खरेखर मित्रो छे, के जे शत्रुता बताये, तोपण ते (आपणां) कर्मोनो नाश करनारा छे. माटे क्रोधथी जाज्वल्यमान थयेला एवा पण ते माणीमात्रने शांतिरूपी अमृतथी खूब शांत करवा. / / 90 // कषायविषयान् शत्रून्परिपुष्यन्ति मित्रवत् / सुहृदोऽसुमतः शत्रूकृत्य निम्नन्ति धिग्जडाः // 91 // Gareciterate Decele20222222022ewao PP.AC.Gunratnasurt M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ DECEIGreeeeeeeeees पुण्याच चरित्र सान्वय भाषान्तर / 38 38 0000000 अन्वयः-जडाः कषायविषयान् शत्रून् मित्रवत् परिपुष्यंति, सुहृदः असुमत शत्रुकृत्य निति. धिक्. // 91 // अर्थः-मूर्ख माणसो कषाय अने विषयोरूपी शत्रुओ मित्रनीपेठे पोषण करे छे, अने मित्ररूप प्राणीओने शत्रु गणी, तेओनो घात करे छे, माटे तेओने धिक्कार छे! // 91 राजन्कोऽप्यवधिज्ञानी तव पूर्वसुहृत्करी। सूक्त्यानया ददौ शिक्षा भुक्तराज्यस्य संयमे // 92 // * अन्वयः-(हे) राजन् ! अवधिज्ञानी, कः अपि पूर्वमुहत करी अनया सूक्त्या भुक्तराजस्य तव संयमे शिक्षा ददौ. // 92 / / अर्थ:-माटे हे राजन्! अवधिज्ञानी, तथा तारा पूर्वभवना कोइक मित्र एवा आ हाथीए आ उत्तम श्लोक लखीने, राज्य भोगवी लीधेला एंवा तने (हवे) दीक्षा लेवामाटे शिखामण आपी छे. // 92 // इति विज्ञाय सूक्तार्थ चमत्कुर्वन्युरोगिरा / मेदिनीजानिरानन्दहृष्टरोमपदोऽवदत् // 93 // अन्वयः-इति गुरोः गिरा शूक्तअर्थ विज्ञाय चमत्कुर्वन् मेदिनीजानिः आनंदहष्टरोमपदः अवदत् // 93 // 000000169000000000000 ANA Jun Gun Aaradhakras
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________________ 001299900000000000000 सान्वय पुण्याढय चरित्रं // 39 अर्थः-एवीरीतनां गुरुमहाराजनां वचनथी श्लोकनो अर्थ जाणीने आश्चर्य पामतो एवो (ते) राजा हर्षथी प्रफुल्लित रोमांचवाळो थयोथको बोलवा लाग्यो के, // 93 // . अद्य मे फलवजन्म यद्भवान्भवपारदः। अलभ्यत गुरुगोरगुणगौरवभाजनम् // 9 // .. अन्वयः-अद्य मे जन्म फलवत्, यत् भवपारदः गौरगुणगौरवभाजनं भवान् गुरुः अलभ्यत. // 94 // अर्थ:-आजे मारो जन्म सफल थयो, केमके संसारसमुद्रथी पार पहोंचाइनारा, तथा उत्तम गुणोथी सन्मान करवालाय एवा आपसरखा गुरुमहाराज (मने ) प्राप्त थया. // 94 // त्वत्प्रसादेन संसारसारासारविचारवित् / जानेऽधुना धुनाम्युर्वीभोगान्योगानुरक्तधीः // 95 // अन्वय:-त्वत्मसादेन संसारसारअसारवित् योगअनुरक्तधीः जाने अधुना ऊर्वीभोगान् धुनामि. // 15 // अर्थ---(वळी) आपनी कुपाथी हुँ संसारना सार असार पदार्थोने जाणनारो, तथा योगा आसक्त बुद्धिवाळो (वैराग्यवान) BecoCCIOG Descesecaceecccceed R RASRANAPP.AC.GunratnasuriM.S. OPPAC.Gunnati Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ poe021989199091981818181920 पुण्यातच .. चरित्र / थयो छ, अने तेथी जाणे हमणाज आ संसारसंबंथि भोगोते हुँ छोडी आपुं. // 15 // प्रभो पीयूषसहशा दृशा मां वीक्ष्य दीक्षय / नेलीयन्तां भवोत्थाना देहदाहज्वरोर्मयः॥ 96 // अन्वय:-(है) प्रभो! पीयूपसदृशा दृशा मां वीक्ष्य दीक्षय? भवोत्थानाः देहदाहज्वरऊर्मयः विलीयंता // 9 // अर्थ:-हे प्रभो! (हवे) अमृतसरखी दृष्ठिथी मारातरफ जोइ मने दीक्षा अ.पो? (के जेथी) आ संसारसंबंधि शरीरमा व्यापेला दाहज्वरना मोजाओ विखराइ जाय. / / 96 // इत्युदीर्य पदद्वन्द्वमद्वन्द्वस्थिरमानसः / आनन्दचन्द्रसूरीणामग्रहीदाग्रही. नृपः॥ 97 // अन्वयः-इति उदीर्य अद्वंदस्थिरमानसः आग्रही नृपः आनंदद्रम्ररीणां पदद्वंद्व अग्रहीत्. / / 97 // अर्थ:-एम कहीने अनुपम स्थिर मनवाळा तथा आग्रहवाळा एवा ते राजाए ते श्रीआनंदचंद्रमुनीश्वरना बन्ने चरणो ग्रहण कर्या. श्लोकार्थज्ञानसंविनाः परेऽपि बहवो जनाः। दक्षा दीक्षामयाचन्त मुनिमानम्य तं तदा // 28 // GESSECSESEGISSIRECGod NSU R ANEURTM.S. Jun Gun Aaradhak
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________________ सान्वय पुण्यालय चरित्र भाषान्तर 4 अन्वयः-लदा श्लोकअर्थज्ञानसंविग्नी परे अपि बहवः दक्षाः जनाः तं मुनि आनन्य दीक्षा अयाचतः / / 98 // अर्थ:-ते बखते ते श्लोकना अर्थने जाणवाथी वैराग्य पामेला बीजा पण घणा चतुर माणसोए ते मुनिराजने नमीने दीक्षामाटे मागणी करी. // 98 // अयं करातकल्याणकलशः करिशेखरः / अभिषिञ्चति यं राज्ये स्थाप्यः कामं स मामके // 99 // अन्वयः-करात्तकल्याणकलशः अयं करिशेखरः ये अभिषिञ्चति, सः कामं मामके राज्ये स्थाप्यः, // 99 // अर्थः---मुंढमा सुवर्णनो कलश लेइने आ हस्तिराज जेनो अभिषेक करे, तेने खुशथी मारा राज्यपर स्थापन करवो, // 99 // इत्यादिश्य तदा मन्त्रिवृन्दं वृन्दारको नृणाम्।मुक्तिवीक्षाप्रतिभुवं दीक्षामादत्त संमदी॥ 10 // युग्मं // अन्वयः-इति तदा मंत्रिदं आदिश्य संमदी नृणां बूंदारकः मुक्तिवीक्षाप्रतिभुवं दीक्षा आदत्त. // 10 // जा-एवीरीते ते वखते (पोताना ) मंत्रीओना समूहने हुकम करीने हर्षित थयेला ते राजाए मुक्ति देखाडवाने खातरी
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________________ पुण्यालय चरित्र 142 // सान्वय भाषान्तर // 42 // 0912000000000000000 O आफ्नारी दीक्षा ग्रहण करी. // 10 // तेऽपि शुद्धधियो धीराः क्षीराब्धिस्फूर्तिकीर्तयः / कति नाददिरे दीक्षा भवक्षोदविनोदिनीम् // 101 // अन्वयः-शुद्धधियः क्षीराब्धिस्फूर्तिकीर्तयः ते अपि कति भवनोद विनोदिनी दीक्षा न आददिरे // 101 // अर्थ:-निर्बल बुद्धिवाळा, तथा क्षीरसमुद्रना विस्तारसरखी उज्ज्वल कीर्तिवाळा एवा तेओमाना पण केटलाओए संसारना नाशथी आनंद आपनारी दीक्षा न लीधी ? (अर्थात् घणाओए लीपी.)-॥१०१॥ ............. जिनप्रवचनप्रौढप्रभावपृथुभावनः / अथातः सपरीवारो विजहार महामुनिः॥१०२॥... -- अन्वय:---अथ जिनप्रवचनप्रौढप्रभावपृथुभावनः महामुनिः सपरीवारः अतः विजहार. // 12 // अर्थः-पछी जिनशासननो घणो प्रभाव करवानी विस्तीर्ण भावनावाळा ते मुनिमहाराज परिवारसहित त्यांथी विहार करी गया..१०. मङ्गल्यकलशं तस्य करे न्यस्य करीशितुः / पविता मन्त्रिणस्तत्र ततः प्राजलयो जगुः // 103 // 90000000000000000000
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________________ DoogeRO0000000000 पुण्याढय चरित्र साम्यय भाषान्तर 4 // अन्वयः-ततः तत्र पवित्राः मंत्रिणः तस्य करीशितुः करे मंगल्यकलशं न्यस्य प्रांजलयः जगुः // 103 // अर्थ:-पछी ते नगरमां निर्मल मनवाळा एवा (ते) मंत्रीओ ते हस्तीराजनी सुंढमा मंगलीक कलश आपीने हाथ जोडी कहवा लाग्या के, // 103 // .. मजैकराज राजत्वं विराजयति यो गुणैः। तस्मै कस्मैचिदैश्वर्यं वितीर्य विजयी भव // 104 // अन्वयः-(हे) गजैकराज ! यःगुणैः राजस्व विराजयति, तस्मै कस्मैचित् ऐश्वर्य वितीर्य विजयी भव // 104 // अर्थः हे हस्तिराज ! जे माणस गुणोवडे राजने शोभावी शके, एवा कोइकने आ राज्यलक्ष्मी आपीने तु विजयवंत था?॥१०॥ ततो मतङ्गजस्वामी चामीकरविभूषणः / मन्द्रगर्जितवाचालदिक्चका प्रचचाल सः // 105 // " अन्वयः-ततः चामीकरविभूषणः, मंद्रगर्जितवाचालदिक्चक्र, सः मतगजस्वामी प्रचचाल. // 105 // : अर्थ:--पछी सुवर्णना अभूषणोवाळो, अने गंभीर गर्जनाथी दिक्चक्रने गजावतो, एवो ते मदोन्मत्त हस्तिराज (त्यांथी)। OOOOOOOO DeOOOOOOOOOOOOGeor
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________________ IRRIGAR पुण्याढ्य चरित्र 44 // सान्वय जास्त 44) चालवा लाग्यो. // 10 // ...... रडुवराज्ञश्च राज्याय पुरोऽसौ परिपातिनः / सहशैव दृशा पश्यन्मार्गविघ्नानमन्यत // 106 // अन्वयः-राज्याय पुरः पातिनः रकान् राजश्व सदृशैव दृशा पश्यन् असौ मार्गविधान अमन्यतः // 106 // अर्थ:---राज्य माटे (पोतानी ) आगळ आवीने पढता एवा रंकोने अने राजाओने पण तुल्य दृष्टिथीज जोतो एवो ते हाथी (तेओने पोताना ) मार्गमा विनरूप मानवा लाग्यो. // 106 // .... ... . .. सरलं तरलं गच्छन्सदागतिरिव द्विपः / स तस्थौ नगरारामग्रामोर्षीष्वपि न कचित् // 107 // अन्वयः-सदागतिः इव सरलं तरल गच्छन् सः द्विपः क्वचित् नगरआरामग्रामऊर्वीषु अपि न तस्थौ. // 107 // अर्थ:-वायुनी पेठे सिद्धो तथा उतावळे चालतो एवो ते हाथी क्याय नगर, बगीचा, के गामडानी जमीनपर पण उभो नही..१०७ कानेन हन्त गन्तव्यमित्यन्तश्चिंतयातुराः। तं मन्त्रिणोऽन्वगुर्मन्त्रं प्रभावा इव साधितम् // 108 SARAL Gunn
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________________ पुण्याय चरित्र सान्वय भाषान्तर // 45 // 45 // NAAD TOTO - अन्वयः-हंत अनेन क्व गंतव्यं ? इति अंतः चिंतयातुराः मंत्रिणः प्रभावाः साधितं मंत्र इव तं अन्वगः // 108 // " अर्थ:-अरे ! आ हाथी ने क्या जq छे ? एम हृदयमां चिंतातुर थयेला मंत्रिओ, प्रभावो जेम साधेला मंत्र पाछळ जाय, तेष तेनी पाछळ जवा लाग्या. // 108 // रत्नार्थीव पुमानब्धि पुंरत्नार्थी स वारणः / दुःप्रवेशं विवेशाथ दूरदेशाटवीपथम् // 109 // अन्वयः-रत्नार्थी पुमान् अधि इव पुरत्नार्थी सः वारणः अथ दुःप्रवेशं दूरदेशाटपीपथं विवेश. // 10 // अर्थ:-रत्नो मेळववानी इच्छावाको मनुष्य जेम समुद्रमा जाय, तेम (राज्यने लायक) उत्तम पुरुष मेळघवानी इच्छावालो ते हाथी हवे दुर्गम एवा दूरदेशना अरण्यमार्गमा दाखल थयो. // 109 // .. सुतं तरुतले कंचिच्चीरच्छन्नशरीरकम् / तत्राभ्यषिश्चदम्भोभिः कुम्भी कल्याणकुम्भः // 110 // 1 अन्वय:-तत्र तरुतले सुप्त, चीरच्छन्नशरीरक कंचित् कुंभी कल्याणकुंभजे। अभोभिः अभ्यर्षिचत् // 110 // LIKinni
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________________ 000e8e009ee090098 पुण्यादय चरित्रं सान्वय भाषान्तर 146 // 46 // ( अर्थ:-त्या वृक्ष नीचे सुतेला, तथा वनथी ढोकेला शरीरवाला कोइक पुरुषपर ते हाथीए ते सुवर्णकलशमा रहेला जलवडे अभिषेक कर्यो. // 11 // र ततो बन्दिकदम्बेन कृते जयजयारवे / दूरमापूर्यमाणे च तूर्यकाणेन दिग्गणे // 111 // ... अयमुत्थापयांचके यावदाज्याय मंत्रिभिः। दृष्टस्तावद्विसंकोचिहस्ताद्यवयवः पुमान् // 112 // युग्मं॥ अन्वयः--ततः दिकदेवेन जयजयारवे कृते, च तूर्यकाणेन दर दिग्गणे आपूर्यमाणे // 111 // मंत्रिभिः यावत राज्याय अयं उत्थापयांचक्रे, तावत् विसंकोचि हस्ताद्यवयवः पुमान् दृष्टः // 112 // अर्थ:--पछी बंदिओना समूहे जयजय शब्द करते छते, अने वाजित्रोना नादथी छेक दूरसुधी दिशाओनो समूह पूराते छते, // 119 // मंत्रिओए जेटलामा राज्यमाटे तेने उठाड्यो, तेटलामा तो संकुचित थयेला हाथ आदिक अवयवोवाळो ते पुरुष (तेओना) जोवामा आभ्यो. // 112 // युग्मं // Deccianse Deeweltlage008182800
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________________ 00000000000000000 पुण्याइय सान्वय भाषान्तर 47 प्रत्यक्षलक्षितक्ष्मापलक्षणोऽपि हहा महान् / नैष षद्भ्यां गतौ शक्तो न पाणिभ्यां तृणग्रहे॥ 113 // चरित्र - अन्वयः-प्रत्यक्षलक्षितक्ष्मापलक्षणः एषः महान् अपि हहा! पद्भ्यां गतौ, पाणिभ्यां तृणग्रह शक्तान॥ 113 // 147 अर्थ:-जेना राजलक्षणो प्रत्यक्ष देखाय छे, एवो आ महान् पुरुष पण अरेरे! बे पगे चालवामा, तथा पन्ने हाथे तणखलं (C) उपाशमां पण अशक्त छे // 13 // किमीदृशोऽपि राज्ये स्यादिति ध्यायिषु मन्त्रिषु / करेणारोप्य तं पृष्ठे पुराय प्रययौ द्विपः // 114 // अन्वयः-कि ईदृशः अपि राज्ये स्यात् / इति मंत्रिषु ध्यायिषु द्विपः करेण तं पृष्ठे आरोप्य पुराय प्रययौ. // 114 // अर्थः-शुं आवाने राज्यपर बेसाडाय? एम मंत्रिओ विचारते छने ते हाथी सुंदवडे देने पोतानी पीठपर चडावी नगर तरफ जवा लाग्यो. // 114 // (E) नूनं ज्ञानी गजोऽनेन राज्यं वर्धिष्णु वीक्ष्यते / प्रवेशोत्सवमित्यस्य विचित्रं मन्त्रिणो व्यधुः // 115 // 201310232198 isdd Dieele28282828eee8820 GubilankTrust
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________________ पुण्यादय चरित्रं 48i . सान्वय भाषान्तर // 48 // अन्वय:-नूनं गजा ज्ञानी, अनेन राज्यं वर्धिष्णु वीक्ष्यते, इति मंत्रिणाः अस्य विचित्रं प्रवेशोत्सवं व्यधुः // 11 // , अर्थ:--खरेखर (आ) हाथी ज्ञानी छे, अने ते आ पुरुषवडे राज्यनी वृद्धि जोइ रहेलो छे, एम विचारी मंत्रिओए तेनो आश्चर्यकारक प्रवेशमहोत्सव को. // 116 // अज्ञातकुलशीलस्याप्युन्मीलद्भाग्यशालिनः / राज्याभिषेकमडल्यं तेनिरेऽस्य नरोत्तमाः॥ 117 // - अन्वयः-अज्ञातकुलशीलस्य अपि उन्मीलद्भाग्यशालिनः अस्य नरोत्तमाः राज्याभिषेकमंगल्यं तेनिरे. // 117 // अर्थ:-अजाण्या कुल शीलवाळो छतां पण उदय पामता भाग्योथी मनोहर थयेला एवा ते पुरुषनो ते उत्तम पुरुषोए मंगलकारी राज्याभिषेक कर्यो.।। 117 // . राज्यप्रधानबर्गस्तं ननाम च नाम च / पुण्यर्द्धिभावतस्तस्मिन्पुण्याढ्य इति निर्ममे // 118 // अन्वयः-च सज्यप्रधानपुंवर्गः तं नानाम, च पुण्यऋद्धिभावतः तस्मिन् “पुण्यात्यः" इति नाम निर्ममे.॥ 118 // filiastriM.S.
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________________ 099909090909099990X200 ) पुण्याढय चरित्र // 49 // स सान्वय भाषान्तर 149 Dainioraca अर्थ:-पछी राज्यना मुख्य मुख्य पुरुषोना समूहे तेने नमस्कार कयों, तथा पुण्यथी मळेली समृद्धिना प्रभावथी तेनुं "पुण्यात्य" एवं नाम पाडयु. // 118 // राज्यार्धस्वामितागर्वादखर्वस्तु धनावहः / पगुं नामुं नमामीति निर्ययौ नगराहहिः // 119 // . __ अन्वयः-राज्यास्वामितागर्वात् अखर्वः धनावहः तु अमु पंगुं न नमामि, इति नगरात् बहिः निर्ययो. // 119 // अर्थः-अर्ध राज्यनी मालिकीना गर्वथी अक्कड थयेलो धनावहशेठ तो, आ पांगळाने हुं नही नमुं, एम (कही.) नगरथी बहार निकळी गयो. // 119 // तद्वाज्याबलं तस्य मण्डलेशाः परेऽपि च / विधुराङ्गधराधीशवैराग्येण तमन्वगुः // 120 // अन्वयः-तद्राज्य अर्धबलं, च तस्य परे मंडलेशाः अपि विधुरांगधराधीशवैराग्येण तं अन्वगुः // 120 / अर्थ:-तेना राज्य अधु लश्कर, अने तेना बीजा मंडलीको पण आ पांगळा राजाथी विरक्त थइने ते धनावहशेठनी पाछळ गया.।१२०॥ Geeeeeeeeeeeeeeeeeed R.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सान्वय भाषान्तर aa00000000000 पुण्याढय सहस्तिकैर्हस्तिपकैः सतुरङ्गैस्तुरङ्गिभिः / नृपमूलबलाधीशैरप्यसावन्वगम्यत // 121 // चरित्रं अन्वयः-सहस्तिकैः हस्तिपः, सतुरंगैः तुरंगिभिः, नृपमूलबलाधीशैः अपि असौ अन्वगम्यत. // 121 // अर्थः-हाथीओसहित मावतो, घोडाओसहित स्वारो, तथा राजाना ( जूना ) मूल सेनापतिओ पण ते धनावहशेठनी पाछळ 10 चालता थया. // 121 // बलीयाञ्जयतीत्येष नियोगिभिरपि श्रितः। बहिर्बहुबलत्वेन नागरैरप्यगामि सः // 122 // अन्वयः-बलीयान् जयति, इति नियोगिभिः अपि एषः श्रितः, बहुबलत्वेन नागरैः अपि सः बहिः अगामि. / / 122 // अर्थ:-बलवान जय पामे छे, एम विचारि अमलदारोए पण ते धनावह शेठनो आश्रय लीधो, अने (ए रीते) पहुचल थवाथी नगरना लोको पण ( तेनी पाछळ ) बहार निकळ्या. // 122 // D अपि हस्तिपकेनोच्चैर्नुन्नो हस्तिपतिस्तु सः / एक एव बहिर्नागान्निर्भाग्येषु क तादृशः // 123 // H daeeeeeeeeICICISISTERISM Jun Gun'Aarda
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________________ 000X3990000000000 पुण्यालय चरित्र 5 सान्वय भाषान्तर // 51 // 0000000 अन्वयः-तु हस्तिपकेन उच्चैः नुन्नः अपि सः एकः हस्तिपतिः एव तु बहिः न अगात्, निर्भाग्येषु तादृशः क्व? // 123 // अर्थः-परंतु मावते बहु प्रेर्या छतां पण ते एक हस्तिराजज (नगरनी ) बहार गयो नही, (केमके) निर्णगीओने तेवू N) (अमूल्य रत्न ) क्याथी प्राप्त थाय ? // 123 // अभृत्पुण्याढ्यभूपस्य भूपसझैव केवलम् / ययौ राज्यं समस्तं तदर्धराज्यहरे नरे // 124 // अन्वयः-पुण्यात्यभूपस्य केवलं भूपसब एव अभूत, समस्तं राज्यं तत् अर्धराज्यहरे नरे ययौ. // 14 // E) अर्थ:-(ते) पुण्याढ्यराजानी मालीकीनो तो केवल राजमेहेलज बालासमा रह्यो, पाकी तेनुं सपळु राज्य तो अधु राज्य हर नारा ते धनावह शेठनेज वाधीन थयु. // 124 // भद्रासनैकभक्तात्ममध्येऽपि भुजभृद्गुणः / कोऽपि स्यादिति संनद्धबलजालश्चचाल सः॥ 125 // . अन्वयः-भद्रासनकभक्तआत्म मध्येऽपि कः अपि भुजभृद्गुणः स्यात् , इति संनद्धबलजालः सः चचाल // 125 // DSC0000000000000000 CRP.AC.Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ De8299000009999999999990 पुण्यालय चरित्रं 152 // सान्वय भाषान्तर 152 / अर्थ:-राजगादीना भक्तोमा पण कोइक सर्पसरखो दुर्गुणवाळो पण होय, एम (ते हाथीना संबंधा) विचारतो एवो ते धनावह शेठ सैन्यसमूह तैयार थयाबाद (त्यांथी) चालवा लाग्यो. // 125 / / 8. आधोरणाग्रणीस्तस्य वारणाधिपतेस्तदा। प्राञ्जलिर्जगतीजानि विजयाय व्यजिज्ञपत् // 126 // _ अन्वयः-तदा तस्य वारणाधिपतेः आधोरणाग्रणीः प्रांजलिः जगतीजानि विजयाय व्यजिज्ञपत् . // 126 // र अर्थ:-ते वखते ले हस्तिराजना मुख्य मावते हाथ जोडीने ते पुण्यात्यराजाने जयप्रयाण करवामाटे विनंति करी के, // 126 // जयत्येव रणोत्सङ्गसंगतोऽसाविभो विभो / अस्मिन्नारुह्यतामाशु मुह्यतां माऽसुहृद्गणैः // 127 // . __ अन्वयः-(हे ) विभो ! रणोत्संगसंगतः असौ इभः जयत्येव, अस्मिन् आशु आरुह्यता ? असुहृद्गणैः मा मुह्यतां 1 // 127 // अर्थ:-हे स्वामी ! रणसंग्राममा चडेलो आ हाथी जय मेळवधानोज छे, माटे (तमो) आ हाथीपर तुरत चहो ? अने शत्रुओना समूहथी डरो नही.॥ 127 // :. . DISIODOS 0000222882200220peleo
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________________ 0000000000120022910000 पुण्याढय चरित्र DOS सान्वय भाषान्तर 123 // 50 0000000 एवमस्त्विति जल्पन्तं गोपमारोपयद द्विपे। हस्तिपालस्तदा काल इव पूर्वावले रविम् // 128 // अन्वयः-एवं अस्तु, इति जल्पतं गोपं तदा कालः पूर्वाचले रवि इव हस्तिपालः द्विपे आरोपयत् // 128 // अर्थ:-भले एम थाओ? एम बोलता एवा ते पुण्याढ्यराजाने ते वखते, प्रभातकाळ पूर्वांचलपर जेम सूर्यने चडावे, तेम ते / हस्तिपाले हाथीपर चढाव्यो. // 128 // . . . अथायमचलद्योडुमचलश्रीरिभप्रभुः। अबेपिनो भटाः केऽपि पट्टभक्ताः पुरोऽभवन् // 129 // अन्वयः-अथ अचलश्रीः अयं इभ प्रभुः योध्धुं अचलत्, पट्टभक्ताः अचेपिनः के अपि भटाः पुरः अभवन् // 129 // अर्थः-हवे निश्चल शोभावाळो एवो ते हस्तिराज युद्ध करवामाटे चाल्यो, त्यारे राजगादीना भक्त, तथा शूरवीर एवा केटलाक सुभटो पण ( तेनी ) आंगळ चालवा लाग्या. // 129 // शौर्यलक्ष्मीनटीनाट्यारम्भसंभ्रमभृत्ततः। अमिलत्तुमुलोत्तालं तालवत्तद्दलद्वयम् // 130 // VE YounratnasianM. (URISURAaradhakTrust
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________________ पुण्यादय चरित्र सान्वय भाषान्सर 54 अन्वया-ततः शौर्यलक्ष्मीनटीनाट्य आरंभसंभ्रमभृत् तालवत् तुमुलोत्तालं तत् बलद्वयं अमिलत्. // 130 // अर्थः-पछी शूरवीरपणानी शोभारूपी नटीना नाटकना मारंभना भ्रमवाळु, तथा वागता तालनी पेठे कोलाहलवाळू एवं ते बने सैन्य (त्या) एक; मळयुं // 130 // विपक्षासिमहाराणां हाराणामिव पातिनाम् / सज्जीचक्रुः शरीराणि वीरश्रीलम्पटा भटाः॥१३१ // अन्वयः---वीरश्रीलंपटाः भटाः हाराणां इव पातिनां विपक्षासिमहाराणां शरीराणि सज्जीचक्रुः // 131 // अर्थः-शौर्यलक्ष्मीनी चाहनावाळा सुभटो माळाओनी पेठे पडनारा शत्रुओनी तलवारोना प्रहारो (झीलवामाटे ) पोताना शरीरो तैयार करवा लाग्या. // 131 / / गायत्कोदण्डदण्डज्यो नदद्विरदमर्दलः / नृत्यद्वीरकबन्धोऽयं बन्धुरोऽभूदणक्षणः // 132 // * अन्वयः-गायस्कोदंडदंडज्यः, नदद्विरदमर्दलः, नृत्यबीरकबंधः अयं बंधुरः रणक्षणः अभूत्. // 132 //
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________________ OCOOODCORRRRRRREEN पुण्याय सान्वय भाषान्तर चरित्र अर्थः-गायन करतीछे धनुषदंडनी दोरी जेमा, नाद करता हाथीओ रूपी छे मृदंगो जेमा, तथा नाच करता छे शरवीरोना घडो जेगा, एवं आ मनोहर रणसंग्रामरूपी नाटक थवा मांडयु. // 132 // भटान्पुण्याढ्यभूभर्तुः क्षणेनाथ द्रुमानिव / उन्मूलयद्भिः प्रसृतं द्विट्पूरैः सिन्धुपूरवत् // 133 // - अन्वय:-अथ पुण्यात्यभूभर्तुः भटान् दुमान् इव क्षणेन उन्मूलयद्भिः द्विट्पूरैः सिंधुपूरवत् प्रसृतं. // 133 // अर्थः-हवे( ते ) पुण्याढय राजाना सुभटोने वृक्षोनी पेठे क्षणवारमा मूळमाथीज उखेडी नाखता एवा शत्रुओना समूहो नदीना पूरनीपेठे धसी आववा लाग्या. // 13 // हस्ती न हन्त हन्तव्यः पंगुरेवेष हन्यताम् / इत्यूलपाणिरवदत्तदा धीरान्धनावहः // 134 // . अन्वयः तदा हंत हस्ती न हंतव्यः, एष: पंगुः एव हन्यतां ? इति ऊर्ध्वपाणिः धनावहः धीरान् अवदत् // 134 // अर्थ:-ते वखते, अरे! (तमारे) आ हाथीने मारवो नहीं, परंतु आ पांगळा पुण्याइयनेज मारवो, एम उंचो हाथ करीने ते Jun Guit Aaradhak Trust .
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________________ सान्वय भाषान्तर पुण्याढय चरित्रं 156 धनावहशेठ (पोताना.) सुभटोने कहेवा लाग्यो. // 134 // . .. क्षीणोपान्तस्वसैन्योऽपि दुर्धर्षोऽथ करीश्वरः / रिपुसैन्यं ममन्थासौ दधि मन्थानको यथा // 135 // अन्वय:--अथ क्षीण उपांतखसैन्यः अपि दुर्धर्षः असौ करीश्वरः, यथा मंधानको दधि, रिपुसैन्यं ममंथ. // 135 // CINE) अर्थ:-हवे (पोतानी) पासेन सैन्य नष्ट थया छतां पण (कोइथी) गांज्यो न जाय एवो आ हस्तिराज, जेम रवायो दहीने तेम शत्रुना सैन्यने तोडी पाडवा लाग्यो. // 135 // .. पण करी सर्वाभिसारेण ततोऽरोधि विरोधिभिः। रजनीसमयोद्धान्तैर्ध्वान्तैरिव वियत्पथः // 136 // * अन्वयः-ततः रजनीसमयोद्भातैः ध्वांतः वियत्पथः इव, विरोधिभिः सर्वाभिसारेण करी अरोधिः // 136 // अर्थः-पछी सत्रिसमये प्रसरेला अंधकारवडे जेम आकाशमार्ग घेराइ जाय तेम शत्रुओए सर्व तरफथी धसी आवीने ते हाथीने घेर्यो / 136 / इत्यस्मिन्संकटे तिष्ठन्पुण्याढ्यनृपतिर्जनैः। किमध्यासि करीशेन राज्येऽसावित्यशोच्यत // 137 // 0000000000000000000
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________________ पुण्यादय चरित्रं 157 / सान्वय भाषान्तर अन्वयः-इति असिन् संकटे तिष्ठन् पुण्याढत्यनृपतिः जनैः इति अशोच्यत, करीशेन असौ राज्ये किं अध्यासि 137 // अर्थ:-एवी रीते आवा प्रकारना संकटमा आवी पडेला ते पुण्याढयराजामाटे लोको एम शोच करवा लाग्या के, (आ) हरितराजे आवाने राजगादीपर केम बेसाड्यो !! // 137 / / तृणमध्यात्महस्तेन कुरु शस्त्रं रिपूञ्जय / तदेत्युवाच पुण्याढ्यमदृश्या भाग्यदेवता // 138 // अन्वयः-आत्महस्तेन तृणं अपि शस्त्रं कुरु ? रिपून जय ! इति अदृश्या भाग्यदेवता तदा पुण्याढयं उवाच. // 138 // अर्थ:-वारा हाथे तुं एक तणखलाने पण शस्त्रतरीके वापर? अने शत्रुओने जीत ? एम अदृश्य रहेली (तेनी) भाग्यदेवीए ते प्रखते (ते) पुण्याढय राजाने कछु. // 138 // तदैव दैवतस्तस्य मारुतप्रेरितं करे / आरोहच्च तृणं शत्रौ शस्त्रमित्यक्षिपच्च सः // 139 // अन्वयः-तदैव देवतः मारुतप्रेरित तृणं तस्य करे आरोहत, च शस्त्रं इति सः शत्रौ अक्षिपत् // 139 // ratnas
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________________ DISISISISTERSISTERIETIEveres साम्बया भाषान्तर 158 158 पुण्यादय (0अर्थः-तेज वखते दैवयोगे वायुथी उडेलु तणखलुं तेना हाथमा आव्यु, अने आ शस्त्र छे, एम मानी तेणे ते शत्रुपर फेंक्यु.॥१३९॥ चरित्र / अथाशु स्फूर्जदूर्जस्विस्फूर्जथुस्फोटिताम्बरम् / लोलकीलाकुलौद्धत्यधगदिग्मण्डलोदरम् // 140 // कम्पमानाचलचयं भयभुग्नजगत्त्रयम् / तृणमप्यभवद्वजं व्योन्नि पुण्याढ्यपुण्यतः // 141 // युग्मं // 'अन्वय:-अथ आशु स्फूर्जत उर्जस्विस्फूर्जथुस्फोटित अंबर, लोलकीलाकुल औद्धत्य धगदिग्मंडलउदरं॥ 140 // कंपमानअचलचयं, भय मुग्न जगत्त्रयं तृणं अपि पुण्याढयपुण्यतः व्योनि वजं अभवत् // 141 / / युग्मं / / 1 अर्थ:-हवे तुरतज विकस्वर तेजवाळु, तथा अवाजवी आकाशने पण फोडी नाखनारुं चपल ज्वालाओना समूहना फेलावाथी दिग्मंडलना मध्यभागने पण धगधगायमान करतुं, // 140 // पर्वतोना समूहने कंपावातुं, अने मयथी त्रणे जगत्ने धुजावतुं एवं ते तणखलं पण पुण्याढय राजाना पुण्यथी आकाशमा वज्ररूप थयु. 141 // युग्मं // . यो न स्यति पुण्याढयं तत्र बज्र पतिष्यति / इत्यभूच्च नभोवाणी भूपभाग्याधिदैवतात् // 142 // ceBlat083338el2013nele
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________________ 09090909090909090939 सान्यय भाषान्तर पुण्याढय चरित्र 159 // 29 'अन्वयः-च भूपभाग्याधिदेवता इति नभोवाणी अभूत, य: पुण्याढयं न नंस्पति तत्र वजं पतिष्यति. // 14 // अर्थः-वळी ते राजना भाग्यनी अधिष्ठाता देवी तरफथी एवी आकाशवाणी थइ के, जे माणस (आ) पुण्याढय राजाने नमशे नहीं, तेनापर (आ) वन पडशे. // 142 // KED इत्युदन्तेन दन्तेषु नृणामीशास्तृणान्यधुः / नृपं नेमुश्च पुण्याढयमहो पुण्यमहोदयः // 143 // ___अन्वयः-इति उदंतेन नृणां ईशाः दंतेषु तृणानि अधुः, च पुण्याढयं नृपं नेमुः, अहो ! पुण्यमहोदयः ! // 143 // AND अर्थः-एवीरीतना वृत्तांतथी राजाओ दांतोमा घास धारण करवा लाग्या, अने (ते) पुण्याढयराजाने नमवा लाग्या, अहो! र पुण्योनो (केवो) महान् प्रभाव छे ! // 153 // .......................... दासस्तेऽस्मीति जल्पन्तं कल्पयन्तं मुहुः स्तुतिम् / लुठन्तं भूतले भूपोऽनुजग्राह धनावहम् // 144 // -- अन्वयः-ते दासः अस्मि, इति जल्पतं, मुहुः स्तुति कल्पयंत, भूतले लुठंतं धनावहं भूप। अनुजग्राह. // 144 // omeOSDEO 20000000 0000GOOSEROSCORE Aaradhak Trust pie
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________________ पुण्याढय चरित्र सान्धय भाषान्तर अर्थः-(९) तारो दास छु, एम बोलता, तथा वारंवार स्तुति करता, अने पृथ्वीपीठपर लोहता, एका (ते) धनावहशेठपर राजाए रुपा करी.॥१४४॥ पुरं प्रविशतस्तस्य राज्ञोऽथ जितकाशिनः। प्रथीयानरिवारोऽपि परिवारोऽभवत्तदा // 145 // - अन्वयः-अथ तदा पुरं प्रविशतः, जितकाशिनः तस्य राज्ञः प्रथीयान् अरिवारः अपि परिवारः अभवत् // 14 // अर्थ:-पछी ते वखते नगरमा प्रवेश करता, तथा जीत मेळवनारा एवा ते राजानो महोटो एवो शत्रुसमूह पण परिवाररूपे थयो।१४०॥ पुण्याढयभूपतेराज्ञां राज्ञां मूर्धन्यतन्वताम् / प्राणनाशार्थमाशासु कुलिशं विलसत्यदः // 146 . // इत्यम्बरगिरा साकं साकम्पभुवनत्रयम् / दूरादसंख्यदेशेषु दिवि तद्वज्रमभ्रमत् // 147 // युग्मं // अन्वयः-पुण्याढय भूपतेः आज्ञा मुर्भि अतन्वतां राज्ञां प्राणनाशार्थ अदः कुलिशं आशाम विलसति, // 146 // इति अंबरगिरा साकं साकंपभुवनत्रयं तद्वजं दरात असंख्य देशेषु अभ्रमत्. / / 147 1 // युग्मं / /
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________________ 0000000000000000000 मान्वय भाषान्तर पुण्याढय चरित्रं 611 61 अर्थ:--(आ) पुण्यात्यराजानी आज्ञाने मस्तकपर नही धारण करनारा राजाओना माणोनो नाश करवामाटे आ वज्र दिशाओमां फरे छे, // 146 // एवीरीतनी आकाशवाणीसहित त्रणे जगन्ने कंपावनाएं ते वज्र दूर रहेला असंख्य देशोमा भमवा लाग्यु. // 147 // युग्मं // ... प्रदत्तासंख्यदेशान्तःपृथ्वीनाथाज्ञमित्यदः / अनिशं तासु सीमासु भीमार्विज्रमस्फुरत् // 148 // अन्वयः इति प्रदत्तअसंख्यदेशातः पृथ्वीनाथ आशं भीमार्चिः अदः वजं अनिशं तास सीमासु अस्फुरत् // 148 // अर्थ:-एवी रीते असंख्यदेशोमा राजानी आज्ञा मनावनालं, तथा भयंकर तेजवाडं आ वज्र हमेशा ते सीमाओमा दीपवा लाग्यु.॥१४॥ अन्यायवार्तामपि यश्चके दध्यौ च तद वि। तमेवाकम्पयद्वजमन्यायकरकायभित्॥१४९॥ अन्वयः-तद्भुवि यः अन्यायवाता अपि चक्रे, च दध्यौ, तं एव अन्य कर कायभित वजे अकंपयत् // 149 // अर्थ:-ते राजानी जमीनपर जे कोइ अनीतिनी बात पण करतो, के चिंतवतो, तेनेज अन्याय करनारना शरीरने भय पमाडनारूं un radhak Trust MAHARA . .
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________________ 0908819891sietaaldwidtodos | पुण्याढ्य चरित्रं सारवय भाषान्तर 62i ) ( ते ), बन कंपाचवा लाग्यं // 149 // तस्य बिभ्रद्भिरित्याशामाशङ्कां च प्रथीयसीम् / आज्ञा मूर्ध्नि दधे कामं तत्सीमावासिभिभिः // 15 // . अन्वयः-इति तस्य प्रथीयसी आश च आशंको बिभ्रद्भिः तत्सीमावासिभिः नृभिः काम आज्ञा मूनि दधे. / / 150 // अर्थः-एवी रीते तेना तरफनी विस्तीर्ण आशाने तथा भयनी शंकाने धारण करनारा, सीमाडामा बसनारा माणसोए खुशीथी। ते राजानी आज्ञाने मस्तकपर धारण करी. // 150 // . .. .. . .... वज्रसंचारनिश्चिन्तो बहुदेशमहीपतिः / श्रीपुण्याढयः सुखं तस्थावित्थं खर्गे हरिर्यथा // 151 // - अन्वयः-इत्थं वज्रसंचारनिश्चितः, बहुदेशमहीपतिः श्रीपुण्यात्यः यथा स्वर्गे हरिः, सुखं तस्थौ. // 151 // अर्थः- एकी रीते वज्रना फरवाथी चिंतारहित थयेलो, लथा घणा देशोनो स्वामी, एवो ते पुण्यात्यराजा स्वर्गमा इंद्रनीपेठे सुखे रहेवा लाग्यो. // 151 // :: : ... adiansisible 00000000000000000000
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________________ boecommOOOOOOOOOOO पुण्याढय .. सान्वय भाषान्तर चरित्र // 6 // 163 हृष्यन्नेत्यावनीपालं वनीपालः कदापि तम् / अवतंसीभवत्पाणिपङकजश्री~जिज्ञपत् // 152 // - अन्वया-कदापि हृष्यन् अवतंसीभवत्पाणिपंकजश्रीः वनीपालः एत्य तं अवनीपालं व्यजिज्ञपत्. // 152 / / अर्थः-एक दिवसे खुशी थता, तथा मुकुटरूप, थता हस्तकमलनी शोभावाला (मस्तकपर जोडेला हाथवाळा ) वनपाले आवीने ते राजाने वधामणी आपी के, // 152 // ... स्वामिन्नेतत्पुरखामी तपनस्तपसि स्थितः। आजगाम तवाराममवधिज्ञानभानुमान् // 153 // . अन्वयः-(हे ) स्वामिन् ! तपसि स्थितः, अवधिज्ञान भानुमान् एतत्पुरस्वामी तपनः तव आरामं आजगामः // 153 / / अर्थ:-हे स्वामी ! तपस्या करतो, तथा अवधिज्ञानरूपी किरणोवाळो, आ नगरनो स्वामी तपन आपना बगीचामां आव्योछे / 153 / इत्याकर्ण्य श्रियः कर्णाभरणं धरणीपतिः। मुदितो दन्तिराजं तमारुह्योद्यानमासदत् // 153 // अन्वयः-श्रियः कर्णाभरणं इति आकर्ण्य मुदितः घरणीपतिः तं दंतिराजं आरुह्य उघानं आसदत्. // 153 // पत् // 153 // OOOOOOOO dec2000000000000000 M archak Trust
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________________ पुण्यालय सान्वय चरित्रं भाषान्तर 64 // 164 अर्थ:- लक्ष्मीना कर्णना आभूषण सरखं एवीरीतनुं वचन सांभळीने खुशी थयेलो ते राजा ते हस्तिराजपर चडीने बगीचामां आव्यो. // 153 // . . . . . महामुनिमिहानम्य निविष्टो हृष्टहन्नृपः / कृतानतिः करीन्द्रोऽपि तस्थौ वचनगोचरे // 154 // : ___ अन्वयः-महामुनि आनम्य हृष्टहृत् नृपः इह निविष्टः, करींद्रः अपि कृतानतिः वचनगोचरे तस्थौः // 154 // अर्थ:--(ते) मुनिमहाराजने नमीने खुशी थयेला हृदयवाळो ते राजा त्यां बेठो, अने (ते) इस्तिराज पण नमस्कार करीने (मुनिराजनां.) वचनो सांभळवा उभो. // 154 // . पुरस्य पुरभर्तुश्च प्रधानपुरुषैः क्रमात् / दूरं मुनिसभापूरि भूरिभिद्योरिवोडुभिः // 155 // अस्वयः-क्रमान पुरस्य पुरभर्तुः च भूरिभिः प्रधानपुरुषैः उडुभिः यौः इव दूरं मुनि सभा अपूरिः // 155 // अर्थः-(पछी) अनुक्रमे नगरना पणा मुख्य लोकोए तथा राजाना प्रधानोए, ताराओवडे आकाशनी पेठे दूर सुधी तेल EDIEDEODOOD
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________________ पुण्यालय चरित्र सान्वय भाषान्तर धर्मदेशनां निर्ममे. // 28 मुनिनी सभा भरी. // 155 // ततः श्रुतसुधाम्भोधिविहरल्लहरीनिभाम् / निर्ममे निर्ममेशोऽयं निर्मलां धर्मदेशनाम् // 156 // अन्वयः-ततः अयं निर्ममेशः श्रुतसुधीभोधिविहरल्लहरी निभां निर्मलां धर्मदेशनां निर्ममे. // 156 // अर्थ:--पछी आ मुनिराजे सिद्धांतोरूपी अमृतसमुद्रनी बहेती छोळोसरखी निर्मल धर्मदेशना आपवा मांडी. // 156 // इहानादौ भवेऽनादिजीवोऽनादिखकर्मतः। अव्यवहारराशौ स्याद् दुःसहग्रहदुःखभाक् // 157 // अन्वयः-इह अनादौ भवे अनादिजीवः अनादिस्वकर्मतः अव्यवहारराशौ दुःसहग्रहदुःखभाक् स्यात् // 157 // अर्थः--आदिरहित एवा आ संसारमा आदिविनानो जीव पोताना अनादिकर्मोने योगे अव्यवहारराशिमा (निगोदना गोळामा) असह्य दुःखो भोगवनारो होय छे. // 157 // असंख्या ह्यत्र गोलाः स्युगोलोऽसंख्यनिगोदकः / एकैकस्मिन्निगोदे स्युरनन्ता जन्तवः स्थिराः // 158 // इहानादौ भवेनानिपा अमृतसमुद्रनी बहेती HARASupratnasapMS un Gun Aaradhaz Trus! thetation
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________________ 00000000000000000000 पुण्यादय चरित्र सान्वय भाषान्तर 66 00000000 ... अन्वयः-अत्र हि असंख्याः गोलाः स्युः, गोलः असंख्यनिगोंदकः, एकैकस्मिन् निगोदे स्थिराअनंता जंतवः स्युः॥१५८॥ अर्थ:-आ अन्यवहारराशिमा खरेखर असंख्य गोला होय छे, अने ते (एकेको) गोलो असंख्य निगोदोथी भरेलो होय, अने ते एकेका निगोदमा स्थिर एवा अनंता जीवो होय छे. // 159 // / ... ...... .... . अन्योन्यजन्तुसंवाससंमदोत्पीडपीडितः। जीवोऽनन्तान्भवानेकेन्द्रिय एवात्र संवसेत // 160 // . अन्वयः-अन्योन्यजतसंचाससंमर्दउत्पीडपीडित: जीवः अनंतान भवान् एकेंद्रियः एव अत्र संवसेत् // 160 // अर्थः-एकबीजा जीवोना नजीक निवासथी थयेला संघट्टनी पीडाथी दुःखी थयेलो ते जीव अनंता भवो सुधी एकेंद्रियपणामांण अहीं रहे छे.. // 160 // र उत्पत्तिनाशैस्तत्रैवाकामनिर्जरया चिरात् / स क्षिपेत्कानिचित्किंचित्कर्माणि कथमप्यथ // 161 // अन्वयः-अथ तत्रैव उत्पत्तिनाशैः चिरात् अकाम निर्जरया सः कथं अपि कानिचित् कर्माणि किंचित् क्षिपेत् // 11 // 000000000000000000
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________________ 0000000000000000000 पुण्याढय चरित्रं 67 सान्चय | भाषान्तर 167 / अर्थ:-पछी त्यांज जन्म मरणथी केटलेक काळे अकामनिर्जरावडे करीने ते जीव केटलेक प्रयासे केटलांक कर्मोने कइंक खपावेळे.१६१॥ एवं तेषु निगोदेषु सोऽनुभूय महाव्यथाम् / आयाति व्यवहाराख्यराशौ दैववशादिह // 162 // .. ___ अन्वयः-एवं तेषु निगोदेषु सः महाव्ययां अनुभूय दैववशात् इह व्यवहार आख्य राशौ आपाति. // 162 // अर्थः-एवी रीते ते निगोदोमा ते जीव अतिकष्ट भोगवीने दैवयोगे अहीं व्यवहारनामनी राशिमां आवे छे. // 162 // अत्यन्तस्थावरोऽप्यत्र कथंचित्कर्मलाघवात् / मानुष्यमुत्तमं प्राप्य भवे तत्रैव सिध्यति // 163 // __ अन्वयः-अत्र अत्यंतस्थावरः अपि कर्मलाघवात् कथंचित् उत्तम मानुष्य प्राप्य तत्र एव भवे सिध्यति. // 163 : ... अर्थः- अहीं अत्यंत स्थावर एवो पण ते जीव कर्मोनी लघुताथी केटलेक प्रयासे उत्तम मनुष्यपणुं पामीने तेज भवमां मोक्षजायछे१६।। प्रायेणान्यस्तु सवोऽपि संसारे स्वस्वकर्मभिः। चतुरशीतिलक्षासु जीवो भ्राम्यति योनिषु // 164 // .. अन्वय-प्रायेण अन्यः सर्वः अपि जीवः तु स्वस्व कर्मभिः संसारे चतुरशीतिलक्षासु योनिषु भ्राम्यतिः // 164 // 000000000000000 SROGurmusund . Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ पुण्यादय सान्वय भाषान्तर चरित्र अर्थः-पायें करीने बीजा सर्वे जीवो पण पोतपोताना कर्मोवडे (आ) संसारमा चोर्यासीलाख योनिओमां भभ्या करे छे. // 16 // तथाहि जन्मानि सप्त लक्षाः स्युः पृथ्वीकाये शरीरिणः।जले सप्तानले सप्तानिले सप्त स्वकर्मतः॥१६५॥ ___ अन्वय:-तथाहि-शरीरिणः स्वकर्मतः सप्त लक्षाः जन्मानि पृथ्वीकाये, सप्त जले, सप्त अनले, सप्त अनिले स्युः // 15 // अर्थ:-ते कहे -जीवनी पोताना कर्मयोगे सातलाख योनिओ पृथ्वीकायमां, सातलाख अपकाया, सातलाख तेजस्कायमां, अने सातलाख वायुकायमा थाय छे. // 165 // द्विधा वनस्पतिज्ञेयः प्रत्येकानन्तभेदतः। तत्राये दश लक्षाणि द्वितीये तु चतुर्दश // 166 // . अन्वयः-वनस्पतिः प्रत्येक अनंत भेदतः द्विधा ज्ञेयः, तत्र आधे दश लक्षणि, द्वितीये तु चतुर्दश // 16 // अर्थी-वनस्पतिकाय प्रत्येक अने अनंत एटले साधारणमा मेदथीचे प्रकारनो' जाणवो, तेमना पेहेलानी दशलाख, अने बीजानी चौदलाख योनिओ छे. // 166 // :
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________________ पुण्यादय चरित्रं 69 / सान्वय भाषान्तर द्वीन्द्रिये त्रीन्द्रिये द्वे वें वे लक्ष चतुरिन्द्रिये लक्षाश्चतस्त्री निरये चतस्त्रस्त्रिदेशालये // 167 // अन्वयः दींद्रिये द्वे, चतुरिद्रिये द्वे, धींद्रिये द्वे लखे, निरये चतस्र. लक्षाः, त्रिदशालये चतस्रः॥ 167 / / . . अर्थः-बैंद्रियमांचे लाख, द्रियमा बे लाख, चउरिद्रियमा बे लाख, नारकीमा चार लाख, अने देवोमा पण चार लाख योनिओ छे.॥ 167 // ......... . . .... .... लक्षाश्चतस्रस्तिर्यक्षु मनुष्येषु चतुर्दश / वर्णाद्यैः सममेकं तदुक्तं स्थानं तु बह्वपि // 168 // अन्वय:-तिर्यक्षु चतस्रः लक्षा, मनुष्येषु चतुर्दश, तत् एकं स्थानं तु वर्णाथैः समं बहु अपि उक्तं. 194 // चतुर्भिः कलापक अर्थ:-तिर्यंचोमा चार लाख, तथा मनुयोमा चौदलाख योनियो छे, वळी ते एकेकुं स्थान तेना रंगआदिकथी घणा भकारनं कई छे.॥ चतुभिः कलापकं // 18 // ...... . . इत्थं भ्राम्यन्भृशं भाग्यैरात्माभ्येति भवे नृणाम् / आर्यक्षेत्रसुगोलायुरङ्गाक्षपटुतान्विते // 169 //
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________________ 0010101010100101001000000000 पुण्यात्य | चरित्रं 1001 साम्य भाषान्तर 170 OODecsi अन्वयः-इत्थं भृशं भ्राम्यन् आत्मा आर्यक्षेत्र सुगोत्र आयु: अंग अक्ष पटुता अन्विते नृणां भवे भाग्यैः अभ्येति. // 169 // अर्थ:--एवीरीते घणुं ममतो एवो आ आत्मा आर्यक्षेत्र, उत्तम गोत्र, (लाबु) आयु, (निरोगी) शरीर, अने अखंडित इंद्रियोषाला आ मनुष्यभवमा भाग्ययोगे आवे छे. // 169 // न स्यात्तत्र गुरुप्राप्तिः स चेत्तन्नागमश्रुतिः / सापि चेत्तन्न जीवस्य हृदि श्रद्धा समुल्लसेत् // 17 // ___अन्वय:-तत्र गुरुमाप्तिः न स्यात्, चेत् सा आगमश्रुतिः न, चेत् सा अपि जीवस्य हृदि श्रद्धा न समुल्लसेत् // 17 // अर्थः-वळी ते मनुष्यभवमा मुगुरुनो मेलाप न थाय, कदाच ते थाय, पण सिद्धांतोतुं श्रवण न थाय, कदाच ते थाय, तोपण जीवने हृदयमा ते पर श्रद्धा न आवे. / / 170 // सत्यां तस्यामपि प्रायस्तुच्छपुण्यस्तु मानवः। कर्तुं न लभते धर्ममाधिव्याधिप्रमादतः॥१७१ // अन्वयः-तस्यां सत्यां अपि प्रायः तुच्छपुण्य: मानवः तु आधिव्याधिममादतः धर्म कर्तुं न लभते. // 11 // N
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________________ 00000000000000000000 पुण्याढय -चरित्रं - 71) ) सान्वय भाषान्तर .71 ) अर्थ:-कदाच श्रद्धा थाय, तोपण पायें करीने स्वल्प पुण्यवाळो ते मनुष्य मानसिक चिंता, रोग, तथा प्रमादने लीधे धर्म करी शकतो नथी. // 171 // निदानं सर्वसौख्यानां फलं मर्त्यत्वभूरुहः / विरलः कोऽपि शुद्धात्मा शश्वद्धर्म निषेवते // 172 // ___ अन्वयः-सर्व सौख्यानां निदान, मर्त्यत्वभूरुहः फलं धर्म कः अपि विरलः शुद्धात्मा शश्वत् निषेवते. // 172 // अर्थः सर्व सुखोना कारणरूप, तथा मनुष्यजन्मरूपी वृक्षना फलरूप एवा धर्मने कोइक विरलो निर्मळ जीव हमेशा आराधी शकेछ।१७२। विरुद्धाचरणैः केचिदधन्या धर्ममप्यहो। विराधयन्ति दुर्बुद्धिबाधिता ह्यात्मवैरिणः // 173 // अन्वया-अहो ! दुर्बुद्धिवाधिताः, हि आत्मवैरिणः केचित् अधन्याः विरुद्धआचरणैः धर्म अपि विराधयंति. // 173 // अर्थः-अरे! दुष्ट बुद्धिथी उद्धत थयेला, तथा खरेखर पोतानाज शत्रु बनेला, एवा केटलाक निर्मागी मनुष्यो उलटा आचरणोबडे ते धर्मने पण विराधे छे. // 173 // SSSSSSSSSS
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________________ पुण्याढ्य चरित्र 172 सान्वय भाषान्तर ( 172 "आराद्धाच विराद्धाच्च धर्मादेव शुभाशुभे / लभते जन्तुरन्यत्तु मुख्यं किंचिन्न कारणम् // 174 // 'अन्वयः-जंतुः आराद्धात् च विराद्धात् च धर्मात् एव शुभ अशुभ लभते, अन्यत् तु किंचित् मुख्य कारण न. // 174 // अर्थ:-पाणी आराधेला तथा विराधेला धर्मथीज सारंनरसु मेळवे छे, (शिवाय ) बीजं कई पण मुख्य कारण नथी. // 174 // इति निश्चित्य सत्कृत्यमावितत्य शुभात्मना / धर्मः संसेव्य एवैषोऽतुल्यकल्याणजन्मभूः // 175 // . 'अन्वया-इति निश्चित्य शुभआत्मना सत्कृत्यं आवितत्य अतुल्य कल्याण जन्म भूः एष: धर्मः एव संसेव्यः // 175 // अर्थ:-एवो निश्चिय करीने उत्तम माणसे सत्कार्य करीने अनुपम कल्यागनी जन्मभूमिसरखो आ धर्मज सेववो जोइये. // 17 // 'इत्थं तस्य मुनीशस्य तैः पपे वचनामृतम् / अतृप्तैरिव मूर्धानं धुनानैर्धर्मिभिभिः // 176 // अन्वयः-इत्थं अतृप्तः इव मूर्धानं धुनानैः तैः धर्मिमिः नृभिः तस्य मुनीशस्य वचनअमृतं पपे. / / 176 // *अर्थ:-पवी रीते जाणे हजु तृप्त न थया होय नहीं ? एम मस्तक धुणावता एवा ते धर्मी माणसोए ते मुनिराजना वच
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________________ DEI0000000000000 सान्वय भाषान्तर 73 // पुण्याढय ) अमृतने पीधु.॥ 176 // चरित्रं अथ पृथ्वीश्वरोऽत्यर्थ सव्यथो हृदये दधौ / किं मया युगपद्धर्माधर्मों पूर्वभवे कृतौ // 177 // 173 अन्वयः-अथ अत्यर्थ सव्ययः पृथ्वीश्वरः हृदये दधौ, पूर्वभवे मया कि युगपत् धर्मअधौं कृतौ // 17 // अर्थ:-हवे पणोज खेद पामतो एवो ते पुण्याढ्यराजा मनमा विचारचा लाग्यो के, पूर्वजन्ममा में शुं एकीहारे धर्म अने पाप कर्या छ ? // 177 // यदेवं देहवैधुर्यं राज्यं चाप्यत तत्क्षणं / इन्द्रवारणनारंगसमास्वादनसोदरम् // 178 // युग्मं // 'अन्वयः-यत् एवं तत्क्षणं इंद्रवारण नारंग समास्वादन सोदरं देहवैधुर्य राज्यं च आप्यत // 178 // युग्मं / / अर्थः-के जेथी आवी रीते एकी वेळाये कडवा इंद्रावण तथा मीठी नारंगीना स्वाद सरखां शरीरनी खोड अने राज्य (मने मळ्या . // 178 // युग्मं // DOOSEREST Getered P.P.AC.Gupratyasun M.S d hak Trust un HARE
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________________ occccc000000000 पुण्याय चरित्रं सान्वय भाषान्तर 174 / इति ध्यात्वाधिकं धात्रीधवः साधशिरोमणिम् / अपृच्छत्कायसंकोचभाग्यासंकोचकारणम् // 179 // "अन्वयः--इति अधिकं ध्यात्वा धात्रीधवः कायसंकोच भाग्य असंकोच कारणं साधु शिरोमणि अपृच्छत् // 179 // अर्थः--एम खूब-विचारीने ते राजाए (पोताना ) शरीरना संकोच, तथा भाग्योना असंकोचनु ( अर्थात् राज्यआदिक समृKET) द्धिनी प्राप्ति ) कारण ते मुनिराजने पूछयु. // 179 // ततो दन्तद्युतिच्छद्मदृश्यधर्मपुष्पया। आसन्नमुक्तिफलया गिराप्रीणाजनं मुनिः॥ 180 // अन्वयः--ततः दंतद्युतिच्छादृश्यधर्मद्रुपुष्पया, आसनमुक्तिफलया गिरा मुनिः जनं अपीणात. // 18 // अर्थः--पछी दांतोनी कातिना मिषथी धर्मरूपी वृक्षनां पुष्पो देखाडती, अने नजीक छे मुक्तिरूपी फल जेनु, एवी वाणीवडे करीने ते मुनिराज लोकोने आनंद पमाडवा लाग्या. / / 180 / / ENS पुरं लक्ष्मीपुरं नाम शोणश्यामाश्मवेश्मभिः / पदं धर्ममुनेरस्ति महस्तिमिरमेलकृत // 181 // Deccccc 000000000000000000
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________________ PRESENSESeacy पुण्याढय चरित्रं सान्वय भाषान्तर ---अन्वयः-शोणश्यामाश्मवेश्मभिः महातिमिरमेलकृत् धर्ममुने पदं लक्ष्मीपुरं नाम पुरं अस्ति. // 181 // अर्थ:--लाल अने श्याम रंगना पत्थरोथी (बांधेला) घरोवडे करीने उजास तथा अंधकारनो मेलाप करनारुं धर्मरूपी मुनिना स्थान सरव लक्ष्मीपुर नामर्नु नगर छे // 181 // ... जज्ञिरे तत्र मित्राणि त्रयः क्षत्रियगोत्रजाः। रामवामनसंग्रामनामानः प्रीतिभाजनम् // 182 // ___अन्वयः--तत्र क्षत्रियगोत्रजाः प्रीतिभाजनं राम वामन संग्रामनामानः त्रयः मित्राणि जज्ञिरे. // 182 // अर्थ:-ते. नगरमा क्षत्रिय कुलमा जन्मेला, तथा परस्पर प्रीतिवाळा राम, वामन अने संग्राम नामना त्रण मित्रो हता. // 182 चतुर्दशाब्ददेशीयाः कामं विरहकातराः। खेलन्तिस्म सहेलं ते पुरि पौरप्रियश्रियः // 183 // अन्वयः--चतुर्दशअब्ददेशीयाः, कामं विरहकातराः, पौरप्रियश्रियः ते सहेलं पुरि खेलंतिम. // 183 अर्थ:--चौद वर्षोनी उमरना तथा कोइपण रीते एक बीजानो विरह सहन नहीं करनारा, अने नगरना लोकोने प्रिय शोभावाळा painment 002000000000000000000 PP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ DetermeeeeeIETIERSERIESEEG तेस चरित्र 76 सान्त्रय भाषान्तर 176 पुण्याढय C) एवा ते त्रणे मित्रो मोजथी नगरमां क्रीडां करता हता. // 183 // ते सजनमनस्तोषकारितुल्यक्रियास्त्रयः। साधोर्मनोवचःकायप्रपञ्चा इव रेजिरे // 184 // अन्वयः-सअनमनःतोषकारितुल्यक्रियाः ते वयः साधो मन वचःकायप्रपंचाः इव रेजिरे. // 184 // ... अर्थ:--सज्जनोना मनने संतोष आपनारी सरखी क्रिया करनारा एवा ते त्रणे मित्रो मुनिना मन, वचन अने कायाना बंधारणोनी पेठे शोभता हता. // 184 // कदाप्युद्यानमेदिन्यां ते ययुः केलिलालसाः। ददृशुश्च कमप्युद्यत्कायोत्सर्गस्थितं यतिम् // 185 // अन्वयः-केलिलालसाः ते कदापि उद्यानमेदिन्यां ययुः, च उद्यत्कायोत्सर्गस्थितं कं अपि यतिं ददृशुः // 185 // अर्थः--क्रीडा करवानी इच्छावाला एवा ते त्रणे कोइक दिवसे बगीचामां गया, अने (यां ) तेओए कायोत्सर्ग ध्यानमा रहेल कोइक मुनिने जोया. // 185 / / OGOSSICCCISIONSIOSESSIOGGE
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________________ ---- yms D00000000000000000 पुण्याढय चरित्रं 177 सान्धय भाषान्तर 77 प्रीतिमन्तो नमन्ति स्म ते यतेः पदयोः पुरः। उन्नमन्ति स्म लोकायं यावत्पुण्येन वर्मणा // 186 // - अन्वयः-प्रीतिमंतः ते यतेः पदयोः पुरः वर्मणा नमंतिस्म, पुण्येन लोकाग्रं यावत् उनमंतिस्म. / / 186 // अर्थ:--प्रीतिवाला एवा तेओ ते मुनिना चरणोमां शरीरवडे नम्या एटले नमस्कार कर्यो, ( अने तेथी) पुण्यवडे तेओ छेक लोकना अग्रभागसुधी उंचा थया. // 186 // पयःकणोऽपतत्पृष्ठे वामनस्य नमस्यतः / मुक्तिसीमन्तिनीमुक्तलीलाकर्करकोपमः॥ 187 // अन्वयः-नमस्यतः वामनस्य पृष्ठे मुक्ति सीमंतिनी मुक्तलीलाकर्करकउपमः पयःकणः अपतत्. / / 187 // . . अर्थः-नमता एवा वामननी पीठपर मुक्तिरूपी स्त्रीए विलासमाटे फेंकेला इशारतना कांकरा सरखो जलबिंदु पडयो. // 187 स चातक इवोत्पश्यः पश्यन्वारिलवागमम् / गलदश्रुजलं साधोरेकमीक्षणमैक्षत // 188 // __अन्वयः-चातकः इव उत्पश्यः वारिलबागमं पश्यन् सः गलदश्रुजलं साधोः एक ईक्षणं ऐक्षत. // 188 // 000120000 00000000000000000000 RAT ARAC.Guhratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ D000000000000000000 पुण्याढय सान्वय भाषान्तर. 8) be000000 अर्थः-चातकपक्षीनी पेठे उंची नजर करीने तें जलबिंदु पडवानुं ( स्थान ) जोवा लाग्यो, एटले जेमाथी अश्रुजल टपके छे, एवी ते साधुनी एक आंख तेणे जोइ. // 188 / / निरीक्ष्य निपुणं दक्षः स्ववयस्यानुवाच सः। नेत्रं मुनेदुनोत्यस्य दृश्यतामेष कण्टकः // 189 // . . अन्वयः-दक्षः सः निपुणं निरीक्ष्य स्ववयस्यौ उवाच, दृश्यता ? एषः कंटकः अस्य मुनेः नेत्रं दुनोति. // 189 // अर्थ:-चतुर एवा ते वामने सारी रीते तपासीने पोताना बन्ने मित्रोने कयु के, जुओ! आ कांटो आ मुनिना चक्षुने कष्ट आपेछ / 189 मारुतोर्मिधुतो नूनमयमस्यापतद्दशि / नाकृष्येत शरीरेऽपि निरीहेणामुना पुनः॥ 19 // ___ अन्वयः-नूनं मारुतोर्मिधुतः अयं अस्य दृशि अपतत्, पुनः शरीरे अपि निरीहेण अमुना न आकृष्येत / / 190 // . अर्थः-खरेखर वायुना झपाटाथी उडीने आ कांटो आ मुनिनी आंखमां पडेलो लागे छे, परंतु शरीरनी पण ममता विनाना एवा आ मुनिए ते कांटो पाछो खेंची कहाड्यो नथी. // 190 // . 00000000000000000000 Jun Gun Aaradhak met AISA
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________________ एमा DESOS पुण्यालय चरित्र सान्वय भाषान्तर 179 00000000 अस्मत्करोऽल्पकायत्वान्नैतदम्बकचुम्बकः / तत्कथं कण्टकः ऋष्टुं शक्योऽरिष्टमिवात्मनः॥ 191 // अन्वयः-अल्पकायत्वात् अस्मत्करः एतत् अंचकचुंबकः न, तत् आत्मनः अरिष्टं इव कंटकः कथं ऋष्टुं शक्यः // 191 // अर्थः-आपणे नीचा होवाथी आपणो हाथ आ मुनिराजनी आंखने पहोंची शकशे नही, माटे आपणा विघ्ननी पेठे आ कांटाने आपणे खेंचीने केम कहाडी शकीशुं ? // 191 / / .. . रामो वामनमाचष्ट सखे मा खेदमुद्रह / चतुष्पदीभवाम्येष पाणिस्पृष्टमहीतलः॥१९२॥ अन्वयः-रामः वामनं आचष्ट, (हे ) सखे! खेदं मा उद्वह ? पाणिस्पृष्टमहीतलः एषः चतुष्पदीभवामि // 192 // अर्थः- (त्यारे) रामे वामनने कधु के, हे मित्र ! तुं निराश नही था? बन्ने हाथवडे पृथ्वीतलने अडकीने आ हुं चोपगो याउं छु. // 192 // मत्पृष्ठदत्तपादाग्रो वामनत्व मवामनः / भव हर्षगृहं कर्ष कण्टकं मुनिनेत्रतः // 193 // acticnised 00020000000000000000 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ ANGA 089999999200020090909 सान्बय भाषान्त पुण्याढय चरित्रं 180 11001 acc0000 अन्वयः-(हे) चामन ! मत्पृष्ठदत्तपादअग्रः त्वं अवामनः, हर्षगृहं भव ? मुनिनेत्रतः कंटकं कर्ष 1 // 193 // अर्थ:-(माटे हे वामन ! मारी पीठपर तारा पगना अग्र भाग मूकीने तुं उचो थइ खुशी था ? अने आ मुनिराजनी आंखमाथी कांटो कहाड ? 193 // अथ जग्राह संग्रामो व्यामोहद्रोहकृद्वचः। सखे निर्माहि कर्मेदमव्यग्रो मत्करग्रहात् // 194 // अन्वयः--अथ संग्रामः व्यामोहद्रोहकृत् वचः जग्राह, ( हे ) सखे! मत्करग्रहात् अध्यनः इदं कर्म निर्माहि? // 194 // अर्थ:-पछी संग्राम (पण) मोहनो नाश करनारुं वचन बोल्यो के, हे मित्र ! मारो हाथ पकडीने गभराटविना (निश्चितपणे) आ कार्य तुं कर 1 // 194 / / ततश्चतुष्पदीभूततनौ राम कृतक्रमः / संग्रामहस्तविन्यस्तवामहस्तः स वामनः // 195 // - अहो कियन्मलाद्रोऽयं संकुचन्निति शुकया। अवामपाणिनाकर्षन्महर्षेः कण्टकं दृशः // 196 // युग्मंग 000000000000000000000 SENTEN in e de s hwa .... . .......ALL SAPNath
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________________ 0009999999999999999998 सान्वय भाषान्तर 814 पुण्यादय अन्वयः ततः चतुष्पदीभूत तनौरामे कृत क्रमः, संग्राम हस्त विन्यस्त वाम हस्तः सः वामनः, // 195 // अहो! अयं कियत् चरित्र मलाईः / इति शूकया संकुचन अवाम पाणिना महर्षेः दृशः कंटकं अकर्षत् // 196 // युग्मं // EN आर्थ:-पछी चोपगारूप थयेल शरीरवाला समनी पीठ उपर पग राखीने तथा डावे हाथे संग्रामनो हाथ पकडीने ते वामने,॥१९५॥ अहो ! आ मुनि केवो गंदो छे! एम गथी संकोच पामताथका (पोताना) जमणा हाथथी ते मुनिराजनी आंखमाथी कांटो वंची कहाच्यो. // 196 // युग्मं / / . CD // सुखसंचरणार्थं ते मुक्तिमार्गमिवात्मनः / कृत्वा निष्कण्टकं नेत्रं मुनेर्मुमुदिरेतराम् // 197 // अन्वयः-ते सुखसंचरणार्थ आत्मनः मुक्तिमार्ग इव मुनेः नेत्रं निष्कंटकं कृत्वा मुमुदिरेतरां. // 197 // अर्थ: तेओ मुखे चालवामाटे जाणे पोताना मोक्षमार्गने काटारहित करता होय नही ? तेम ते मुनिनी आंखने काटारहित करीने बहु खुशी थवा लाग्या.॥ 197 // Descciend GOOSECCSCGOOOOOOOOD dun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ पुण्याढय चरित्र 42 // उपकारपरो न स्यात्को ऽप्यस्मान्क्षत्रियान्विना / इति गोत्रमदं दभ्यो मुग्धत्वाद्वामनस्तदा // 198 // सान्वय अन्वयः-अस्मान् क्षत्रियान् विना उपकारपरः कः अपि न स्यात् , इति मुग्धत्वात् वामनः तदा गोत्रमदं दथ्यौ. 198 // भाषान्तर अर्थः-अमो क्षत्रिओविना (बीजो) कोइ पण (आवो ) उपकार करनार होइ शके नही, एम भोळपणथी ते वामने ते वखते 182 गोत्रमद धारण कर्यो. // 198 // कृतिनः कृतकृत्यास्ते नमस्कृत्य यतिं ततः। पुराय प्राचलन्वाचमिति चोवाच वामनः // 199 // अन्वयः-कृतकृत्याः ते कृतिनः यतिं नमस्कृत्य ततः पुराय प्राचलन्, वामनः च इति वाचं उवाच. // 199 // अर्थ:-कृतार्थ थयेला ते त्रणे सज्जनो मुनिने नमस्कार करीने त्यांची नगर तरफ चाल्या, (त्यारे) वामन एबुंवचन बोल्यो के, 199 / निर्वतानामिवेहापि येनानन्दोऽजनिष्ट नः। अहो भविष्यति कियत्कर्मणोऽस्याग्रतः फलम् // 20 // ___ अन्वयः येन इह अपि निवृतानां इव नः आनंद: अजनिष्ट, अहो ! अस्य कर्मणः अग्रतः कियत् फलं भविष्यति ! // 20 // ERY ISESIG66600GG
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________________ DO900000000000000000 पुण्याढय चरित्रं सान्वय. भाषान्तर 1831 8 अर्थ:-जे कार्यथी अहीं पण सिद्धोनी पेठे आपणने आनंद थयेलो छे, त्यारे अहो! आ कार्यनुं आगळ हजु केटलु।। ( मोटुं) फळ मळशे ! / / 200 // आस्येन बहहास्येन तदा रामोऽकिरद्विरम् / इहाभूत्पशुरूपत्वं ममैतत्कर्मणः फलम् // 201 // अन्वयः तदा रामः बहुहास्येन आस्येन गिरं अकिरद, इह मम एतत्कर्मणः फलं पशुरूपत्वं अभूत. // 201 // अर्थ:-त्यारे राम घणा हास्ययुक्त मुखथी (एवं) वचन बोल्यो के, अहीं मने तो आ कार्यना फलरूपे पशुपणुं धारण कर, पडधु / 2013 गामग्रहीच्च संग्रामो राम मा मैवमुच्यताम् / हास्योक्त्यापि भवत्येव पुण्यकर्म गलत्फलम् // 202 // - अन्वया-च संग्रामः गां अग्रहीत्, ( हे ) राम! एवं मा मा उच्यता ? हास्य उक्त्या अपि पुण्यकर्म गलत्फलं भवति एव. // 20 // अर्थी-पछी संग्राम बोल्यो के, हे रामः (तुं) एबुं वचन नही बोल 1 (केमके ) हांसीयुक्त वचनथी पण पुण्यकार्य स्वल्प फलवाळु थायज छे. // 20 // GOOOOOOO RANAND BOGB0000000000 NPP.AC.GunratnasuriM.S.. Jun Gun Aarddhak Trust
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________________ 9999999999999999998 पुण्यालय चरित्र सान्धय भाषान्तर 8 // 184 यदस्य मुनिराजस्य नेत्रं निःकण्टकं कृतम् / राज्यं भवान्तरे भावि तदकण्टकमेव नः // 203 // अन्वय:-पत् अस्य मुनिराजय नेत्रं नि:कंटकी कृतं, तत् नः भवांतरे अकंटकं एव.राज्यं भावि. / / 203 // अर्थ:--(आपणे) जे आ मुनिराजनी आंख कंटकरहित करी छे, तेथी आपणने आवता भवमा नि:कंटक (शत्रुओ विनानु) राज्य प्राप्त थशे. // 203 // अथ प्रोन्मीलदुद्दामकामनो वामनोऽवदत् / कर्मामेयफलं ह्येतत्फलमानोऽस्य नोच्यते // 204 // अन्वयः-अथ. मोन्मीलउद्दामकामनः वामनः अवदत् , एतत् कर्म अमेयफलं, अस्य फलमानः न उच्यते // 204 // अर्थी-पछी उंची इच्छा धरावनारो वामन बोल्यो के, आ कार्य तो अनंत फलवालुं छे, आ कार्यना फलनुं प्रमाण कही शकायज नहीं. // 204 // इत्थं मिथः कथालापशालिनः प्रीतिमालिनः / अद्भुतं भावयन्तस्तत्कर्म हर्म्यमहीमगुः // 205 // @200000000000000G nratnasuriM.S Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 09891990elevelegbetetexeos पुण्याय चरित्र सान्वय भाषान्तर 85) X अन्वयः--इत्थं मिथः कथालापशालिनः प्रीतिमालिनः तत्कर्म अद्भुतं भावयतः हर्म्यमहीं अगुः // 205 // अर्थ:-एवी रीते परस्पर वातो करवाथी शोभता, तथा आनंद पामता (एवा तेओ) ते कार्यने आश्चर्यवाळु मानताथका घेर गया.।२०६॥ अजातपौरपीडाभिः क्रीडाभिस्ते निरन्तरम् / वयस्या गमयामासुवासरान्धर्मभासुरान् // 206 // अन्वयः-अजातपौरपीडाभिः निरंतरं क्रीडामिः ते वयस्याः धर्मभासुरान्-वासरान् गमयामासुः..॥ 206 // .. अर्थ:-जेथी नगरना लोकोने कंई दुःखन थाय, एवी हमेशनी क्रीडाथी ते त्रणे मित्रो धर्मकार्योथी तेजस्वी थयेला दिवसो गाळवा लाग्या. // 206 // तेऽथ पातकपूर पूरितायुषः। यथा यथा समुत्पन्नाः शृणु भूप तथा तथा // 207 // अन्वयः-अथ (हे) भूप! पातकपूरेण दुरिताः ते पूरितायुषः यथा यथा समुत्पन्नाः, तथा तथा शृणु // 207 // अर्था-पछी हे राजन् ! पापोना समूहथी रहित. एवा ते त्रणे. आयु संपूर्ण थयाबाद जेम जेम (पाछा) उत्पन्न थया, तेम तेम सांभळो OE000000 99609OOOOOSGESIGGES Jun Gun Aaradhak Trust ANWARP.A.GunratnasuriM.S. Dostomhalini
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________________ peeeeeeICITIERIES पुण्याढ्य सान्वय चरित्रं भाषान्तर 186 186) ) फलं मे पशुरूपत्वमिति हासोक्तिकर्मणः / स रामः सामजो जज्ञे तैः पुण्यैर्ज्ञानवानयम् // 208 // अन्वयः-मे पशुरूपत्वं फलं, इति हासोक्तिकर्मणः स रामः सामजः जज्ञे, तैः पुण्यैः अयं ज्ञानवान. // 208 // अर्थः-"मने तो आ पशुरूप धारण करवानुं फल मळ्युं," एम हांसीयुक्त वचनना कर्मथी ते रामनो जीव हाथी थयो, परंतु ते पुण्योवडे आ ज्ञानवालो थयो छे. / / 208 // मुनिहक्कण्टकाकर्षाद्राज्यं निष्कण्टकं भवेत् / इत्युक्त्या प्राप संग्रामजीवोऽहं तादृशं फलम् // 209 // ___ अन्वयः-मुनिहक्कंटकआकर्षात् निष्कंटकं राज्यं भवेत्, इति उक्त्या संग्रामजीवः अहं तादृशं फलं प्राप. // 20 // अर्थः-मुनिनी आंखमाथी कांटो कहाडवाथी निष्कंटक (शत्रुविनानु) राज्य मळे, एवां वचनथी संग्रामनो जीव एवो (आ) हुं ते, (राज्यरूप ) फल पाम्यो. // 209 // ) प्राग्मैवीरागतो नागवरोऽसौ मामुपागतः / बोधितोऽहमनेनेदं प्राकर्मफलमासदम् // 210 // Delseslede80100ppmeo Junoonkaradhakirust
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________________ 0000000000000000000 पुण्यात्य चरित्रं 187 सान्वय भाषान्तर 87) अन्वयः-पाकमैत्रीरागतः असौ नागवरः मां उपागतः, अनेन अहं बोधितः, इदं प्राक्कर्मफलं आसदं / / 210 // अर्थः-पूर्वभवनी मित्राइना रागथी आ हस्तिराज मारीपासे आव्यो, अने तेणे मने बोध आप्यो, एवी रीते में पूर्वना कर्मोन फल मेळव्यु. // 210 // . यस्त्वासीद्वामनः किंचिदगोत्रगर्वादवामनः। भूप स्वरूपमेतस्य श्रृणु शेषं विशेषतः॥ 211 // ___ अन्वयः-(हे) भूप! यः तु वामनः गोत्रगर्वात् किंचित् अवामनः आसीत्, एतस्य शेषं स्वरूप विशेषतः शृणु.? // 21 // अर्थः-वळी हे राजन्. वामन केजे गोत्रना गर्वथी कंइंक अक्कड रह्यो हतो, तेनुं चाकी रहेलुं वृत्तांत तमो विशेष प्रकारे सांभळो 1 / 219 अस्त्यवन्ती समस्तार्थानवन्ती नामतः पुरी / वाग्लक्ष्म्यौ क्रीडतोऽपीडं यस्यां जनमुखाम्बुजे॥ 21 // __अन्वयः-समस्त अर्थान् अवंती अवंती नामतः पुरी अस्ति, यस्यां वाग्लक्ष्म्यौ जन मुख अंबुजे अपीड क्रीडतः // 212 // Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ पुण्याढय चरित्रं 188 सान्षय भाषान्तर 188 लक्ष्मी लोकोना मुखकमलपर बाधारहित क्रीडा करे छे. // 2.12 // . . तस्यां शस्यांसशैलाग्रझरत्पौरुषनिर्झरः। विरोधिरोधकृबाहुः सुबाहुरिति भूपतिः // 213 // र अन्वयः-तस्यां शस्यांसशैल अग्र झरत्पौरुष निर्झरः, विरोधि रोधकत् बाहुः सुबाहुः इति भूपतिः // 213 // अर्थ:-ते नगरीमा मनोहर खभारूपी पर्वतना शिखरपरथी झरतुं छे पराक्रमरूपी झरणुं जेमाथी, तथा शत्रुओने अटकावनारी छे भुजा जेनी एवो " सुबाहु" नामे राजाछे. // 213 // तस्य धात्रीपतेश्छत्रधरः किन्नरसंज्ञकः। गृहिणी हरिणी तस्य हरिणीनयनाजनि // 214 // . अन्वयः-तस्य धात्रीपतेः किन्नरसंज्ञकः छत्रधरः, तस्य हरिणीनयना हरिणी गृहिणी अजनि. / / 214 // अर्थ:-ते राजानो किबरनामनो छत्रपर, हतो, अने तेनी हरिणीसरखी आंखोवाळी हरिणी नामनी स्त्री हती. // 214 / / सुकृती वामनस्यात्मा गभेऽस्याः समवातरत् / गर्भानुभावतोऽपश्यत्तदा सा स्वप्नमभुतम् // 215 // . . bideeBiNGEBIBlelaleleldisiebalo RelateAMIARimila r
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________________ 000000000000000000000 पुण्याहय चरित्रं सान्वय भाषान्तर 189 // 89/ अन्वयः-सुकृती कामनस्य आत्मा अस्याः गर्भे समवातरत्, तदा गर्भअनुभावतः सा अद्भुतं स्वप्नं अपश्यत् // 215 // अर्थ.-पुण्यशाली एवो वामननो जीव तेणीना गर्भमा उत्पन्न थयो. ते वखते ते गर्भना प्रभावथी तेणीए अद्भुत स्वप्न जोयु.२१५ तत्क्षणं हरिणी त्यक्तनिद्रा चन्द्रमुखी सुखम् / पल्यङ्कादुत्थिता पत्युः सुस्थितेति व्यजिज्ञपत् // 216 // अन्वयः-तत्क्षणं त्यक्तनिद्रा चंद्रमुखी हरिणी सुखं पल्यंकात् उत्थिता सुस्थिता पत्युः इति व्यजिज्ञपत्. // 215 / / / अर्थः-तेज क्षणे निद्रा तजीने चंद्रसरखा मुखवाळी एवी ते हरिणी सुखेथी पलंगपरथी उठीने सावधान थइ थकी ( पोताना ) स्वामीने आ प्रमाणे कहेवा लागी. // 216 // ममोदरे रुचां राशेरभिषेकं वितन्वती। मेरुश्रृंगे महालक्ष्मीः स्वप्नेऽद्य ददृशे मया // 217 // अन्वयः-अद्य मया स्वप्ने मम उदरे रुचां राशेः अभिषेकं वितन्वती मेरुशृंगे महालक्ष्मीः ददृशे // 217 // अर्थः-आजे में स्वप्नमा मारा उदरमा तेजना समूहनो अभिषेक करती, तथा मेरुपर्वतना शिखरपर रहेली एवी महालक्ष्मीने जोइ. C SECSSSSSSSSSCIENCIEISISISTER PR.AC.Guriratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सान्वय भाषान्तर 190 . | पुण्याढय (0) अथावदददो नारों किन्नरः शृणु सुन्दरि / सर्वोत्तमसुतोत्पत्तिसूचकः स्वप्न एष ते // 218 // चरित्रं ' 'अन्वयः-अथ किन्नरः नारी अदः अवदत् , (हे) सुंदरि ! शृणु ? एषः ते स्वप्नः सर्वउत्तमसुतउत्पत्तिसूचकः // 218 / / .. अर्थः-पछी ते किन्नरे ( पोतानी ते) स्त्रीने एम का के, हे सुंदरि! सांभळ? आ तारुं स्वप्न सर्व प्रकारे उत्तम एवा पुत्रनी उत्पत्तिने सूचवनारुं छे. // 218 // ततोऽवादीन्मुदा वाणी हरिणी हारिणीमसौ / खामिन्धुतसुधावस्तु सत्यमस्तु तवोदितम् // 219 // अन्वयः-ततः असौ हरिणी मुदा हारिणीं वाणी अवादीत्, (हे) स्वामिन् ! धुतसुधावस्तु तव उदितं सत्यं अस्तु ? // 21 // अर्थ:-पछी ते हरिणी हर्षथी मनोहर वाणी बोली के, हे स्वामी ! अमृतनो पण तिरस्कार करनारुं आपनुं वचन सत्य थाओ ? इत्थमन्योन्यमालापसुखस्वादनमेदुरौ / देवता दिसत्कृत्यं चक्रतुस्तौ प्रमोदतः॥ 220 // अन्वयः-इत्थं अन्योन्यं आलाप सुख स्वादन मेदुरौ तौ प्रमोदतः देवता दि सत्कृत्यं चक्रतुः / / 220 / Deel030800022elbegelo AamratnaSUPREM.S: MARATI
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________________ पुण्याढय चरित्रं 9 सान्वय भाषान्तर 11.1 अर्थः-एवीरीते परस्पर वचन मुखना स्वादथी पुष्ट थयेला एवा ते बन्ने दंपती हर्षथी देवपूजाआदिक उत्तम कार्य करवा लाग्या / / 220 // गर्भानुभावतः कान्तिकीर्तिसौख्यसमृद्धिभिः। तद्गृहेऽथ मुदा सार्धं ववृधे स्पर्धयाधिकम् // 221 // __अन्वयः-अथ गर्भअनुभावतः तद्गृहें कांति कीर्ति सौख्य समृद्धिभिः मुदा साध स्पर्धया अधिकं ववृधे. // 221 // / अर्थ:--पछी गर्भना प्रभावथी तेना घरमां कांति, कीर्ति, सुख अने समृद्धि हर्षनी साथे स्पर्धाथी अधिक अधिक वधवा लाग्यां. तृतीये मासि संपूर्णे हरिण्याः पुण्यगर्भभूः / रत्नाकरस्य पानेऽभूदोहदों हृदि दाहदः॥ 222 // - अन्वयः-तृतीये मासि संपूर्णे हरिण्याः रत्नाकरस्य पाने पुण्यगर्भभूः हृदि दाहदः दोहदः अभूत् / / 222 // अर्थः-त्रीजो मास संपूर्ण थतां ते हरिणीने समुद्रनुं पान करवानो ते पुण्यशाली गर्भथी उत्पन्न थयेलो, अने हृदयमां चिंता करनारो दोहलो उत्पन्न थयो. // 222 // DOOOOOOD DecemeCCISISISESEGIG PPAC.Gunratnasuri M.S: Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ peegelw901991199999999 पुण्यादय ) अस्मिन्नपूर्यमाणेऽस्याः शोषस्तोषहरोऽजनि / अविच्छेदस्य खेदस्य सत्रं छत्रधरोऽप्यभूत् // 223 // सान्वय चरित्र 5.192 / भाषान्तर 192 / .. अन्वयः-अस्मिन् अपूर्यमाणे अस्याः तोषहरः शोषः अजनि, छत्रधरः अपि अविच्छेदस्य खेदस्य सत्रं अभूत् // 223 // अर्थः-ते दोहलो नही पूरावाथी तेणीने आनंदनो नाश करनारो शोष थयो, ( अर्थात् ते दुबळी पडवा लागी.) अने तेथी ते छत्रधर किन्नर पण अत्यंत खेदना पात्ररूप-थयो. // 223 // ..... ते मन्त्रतन्त्रशास्त्रज्ञाः पृष्टास्तेन सहस्रशः। न दधार धियं कश्चिदीहग्दोहदपरणे // 224 // ___ अन्वय:-तेन सहस्रशः ते मंत्रतंत्र शास्त्रज्ञाः पृष्टाः, ईदृग्दोहदपूरणे कश्चित् धियं न धार. // 224 // अर्थः-तेणे हजारोगमे ते प्रसिद्ध एवा मंत्रतंत्रना शास्त्रोने जाणनाराओने पूछयुं, परंतु आवा प्रकारनो दोहलो संपूर्ण करवामां (कोइ पण (पोतानी) बुद्धि चलावी शक्यो नही. // 224 // HD कदापि मापतेरग्रे कुतूहलकलापकम् / दर्शयन्नमुनादर्शि दिष्ट्या कोऽपीन्द्रजालकृत् // 225 // SEEEEECICICISISESESEGISG Jun cine
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________________ 0999999999999999999 पुण्याय चरित्रं 191 सान्वय भाषान्तर १९श अन्वयः-दिष्ट्या कदापि मापतेः अग्रे कुतूहलकलापकं दर्शयन् कः अपि इंद्रजालकृत् अमुना अदर्शि. // 25 // . अर्थ:-सारं थयु के, (एवामा) एक दिवसे ते सुबाहुराजानी पासे आश्चर्योनो समूह देखाडता कोइक इंद्रजालीयाने तेणे दीठो.२२५ पृष्टस्तेनायमित्याह पूरयिष्यामि दोहदम् / किं च ते भविता सूनुः कोऽपि विश्वविलक्षणः // 226 // / अन्वयः तेन पृष्टः अयं इति आह, दोहदं पूरयिष्यामि, किं च ते कः अपि विश्वविलक्षणः सूनुः भविता. // 226 / / अर्थः-तेणे पूछवाथी ते इंद्रजालिके कयुं के, हुं ते दोहलो पूरो करीश, परंतु तने कोइक आ जगतथी विलक्षण पुत्र थवानो छ.।२२६॥ गृहस्याग्रे निवेश्याथ तत्र च्छत्रधरप्रियाम् / अदीदृशदसावैन्द्रजालिको जलधिं सुधीः॥ 227 // अन्वयः-अथ सुधीः असौ ऐंद्रजालिक; तत्र गृहस्य अग्रे छत्रधरपियां निवेश्य जलर्षि अदीदृशत् // 227 // अर्थः-पछी उत्तम बुद्धिवाळा एवा आ इंद्रजालिके त्यां घरना आंगणामां ते छत्रधरनी स्त्रीने बेसाडीने महासागर देखाड्यो.।२२७KAMAY उच्छलच्छोणरत्नांशुमालामनार्कमण्डलं / समुद्यबिन्दुसंदोहोपशान्तश्रान्तखेचरम् // 228 // . DeeeeeeeeeeeeeeeecBd Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasur M.S
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________________ पुण्याय चरित्र 194 ( सान्वय भाषान्तर |14| माधुर्यधुर्यदुग्धोर्मिरसप्रीतसुधाशनम् / ऐन्द्रजालिकनिर्देशात्पातुं सा तं समुद्यता // 229 // युग्मम् // अन्वयः-उच्छलत् शोणरत्न अंशुमाला मग्न अर्क मंडलं, समुद्यत् विंदुसंदोह उपशांत श्रांतरखेचरं // 228 // माधुर्य धुर्य दुग्धउमि रस पीत सुधा अशनं तं ऐंद्रजालिकनिर्देशात् सा पातुं समुद्यता. // 229 ।युग्म।। अर्थः--उछळता लाल रत्नोना किरणोनी श्रेणिमा बूडेलुं छे सूर्यमंडल जेमा, तथा उंचे उडता जलकणोना समूहथी शांत थयेल छ थाकेला खेचरो जेनाथी, // 228 // अने अतिमीठा दूधसरखा मोजाओना रसथी खुशी थयेल छे देवोजेनाथी एवा ते समुद्रने इन्द्रजालिकना कहेबाथी ते पीवा लागी. // 229 // युग्मं / ऐन्द्रजालिकविज्ञानप्रसादेन रसादसौ। एकेनैव तयापायि श्वासेन पयसां पतिः // 230 // . अन्वयः-ऐंद्रजालिक विज्ञान प्रसादेन तया एकेन एव श्वासेन असौ पयसां पतिः रसात् अपायि. // 230 // अर्थ-ते इंद्रजालिकनी कलाना प्रसादथी तेणीए एकज धुंटडामा आ महासागर रसथी (आनंदथी) पीधो. // 230 // ISISISISTED OESGRECEIGERGE096060 Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ Forseeeeeeeeeeeeeeers सान्वय भाषान्तर चरित्रं SAs पुण्याढय - सा पूर्णदोहदा तूर्णमन्तःसंतोषशालिनी / मुहुरानन्दसंदर्भाद्रपुः सपुलकं दधौ // 231 // . अन्वयः-पूर्णदोहदा तूर्णं अंतःसंतोषशालिनी सा मुहुः आनंदसंदर्भात् सपुलकं वपुः दधौ. // 231 / / 15 अर्थः-दोहलो संपूर्ण थवाथी तुरतज हृदयमा अत्यन्त खुशी थयेली ते हरिणी वारंवार आनंदना उभराथी रोमांचित शरीरने धारण करवा लागी. // 231 // अथैन्द्रजालिको हर्षहारिणा इछत्रधारिणा / कृतकृत्यः कृतः कृत्यविदा सर्वस्वदायिना // 232 // : अन्वयः-अथ हर्षहारिणा कृत्यविदा छत्रधारिणा ऐंद्रजालिक: सर्वस्वदायिना कृतकृत्यः कृतः // 232 / / अर्थः-पछी अति हर्षित थयेला, तथा करेला उपकारने जाणनारा एवा ते छत्रधरे ते इंद्रजालिकने सघळु धनआपी कृतार्थ कर्यो.।२३२ अंगसंगतनिःशेषामुद्रसामुद्रलक्षणम् / सुतं सुते स्म कालेन साथ पाथोधिपायिनी // 233 // अन्वयः-अथ पाथोधिपायिनी सा कालेन अंग संगत निःशेष अमुद्र सामुद्र लक्षणं सुतं सूतेस्मः // 233 // ROCESSOOGGES900 न Jun Gun Aaradhak Trust HHEPAC.Gunratnasuri M.S. MARATHI
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________________ Dete999999999999999999 पुण्याय चरित्र 91 सान्वय भाषान्तर 96 अर्थ-पछी समुद्रपान करनारी ते हरिणीए योग्य समये प्रगटरीते शरीरमा देखातांछे सामुद्रिक लक्षणो जेना एवा एक पुत्रने जन्म आप्यो पितृभ्यां निर्मितानेकमहाभ्यामहनि प्रिये / श्रीदत्त इति चक्रेऽस्य नाम स्वप्नानुमानतः // 234 // - अन्वयः-निर्मित अनेक महाभ्यां पितृभ्यां प्रिये अहनि स्वप्नानुमानतः अस्य " श्रीदत्तः" इति नाम चक्रे. // 234 // 00 अर्थः-करेल छे अनेक महोत्सवो जेणे एवा मावापोए शुभदिवसे स्वप्नने अनुसारे तेनुं "श्रीदत्त" एवं नाम पाड्यु. // 234 // विकासिरक्तराजीवराजीसमकरक्रमः। अतन्द्रचन्द्रमच्छायाचौरगौरमुखच्छविः // 235 // ... असावनन्यसामान्यसर्वावयववैभवः / बभौ मातृपितृ स्वान्तानन्दनो नन्दनोऽधिकम् // 236 ॥युग्मम्॥ 'अन्वयः-विकासि रक्त राजीव राजी सम कर क्रमः, अतंद्र चंद्रमश्छाया चौर गौर मुख. छविः / / 235 // अनन्य सामान्यस अवयववैभवः मातृपितृस्वांतानंदन: असौ नंदन: अधिकं बभौ. / / 230 / / युग्मं / / अर्थः-विकस्वर थयेला लाल कमलोनी श्रेणिसरखा छे हाथपग जेना, तथा निर्मल चंद्रनी कांतिने चोरनारी उज्ज्वल छे मुखनी OESGEECGC60606GEOGA EMEENERNN ains IS PoWALI
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________________ M / पुण्याढय चरित्रं सान्वय भाषान्तर 197 97/ कांति जेनी, // 235 // अने अनुपम एवा सर्व प्रकारना अवयवोना. वैभववाळो, तथा मातपिताना हृदयमा आनंद उपजावनारी आ पुत्र अधिक अधिक शोभवा लाग्यो. // 236 // युग्मं // स क्रमादक्रमारूढगूढागूढगुणोच्चयः / अवाप कामं वामधूनयनैकप्रियं वयः // 237 // . अन्वयः-अक्रमारूढ गूढ अगूढ गुण उच्चयः सःक्रमात् कामं वामधूनयन एक प्रियं वयः अवाप. // 237 / / अर्थः-एकीहारे उत्पन्न थयेल छे गुप्त तथा प्रगट गुणोनो समूह जेने एवो ते श्रीदत्त अनुक्रमे सुखेसमाधे स्त्रीओनी आंखोने प्रेम उपजाबनारुं यौवन वय पाम्यो. // 237 // ईदक्षलक्षणः क्षोणीपतिः स्यादिति लौकिकी। तत्कथा पृथिवीनाथश्रुतिगोचरतां गता॥२३८॥ अन्वयः-इदृक्षलक्षणः क्षोणीपतिः स्यात्, इति लौकिकी तत्कथा पृथिवीनाथ श्रुतिगोचरता.गता. // 238 // Sciencead ANARTAMANAVAMASYA COOOOOO .PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ ESTERESISTERIEEEEEEEEEERS पुण्याढय चरित्र 1981 सान्वय भाषान्तर 1981 LORD छन्नमेव निशामध्ये वध्यः स. इति भूपतिः। भटानाह भयात्कस्य न पापे रमते मतिः // 239 // अन्वयः-छन्नं एव निशामध्ये सः वध्यः, इति भुपतिः भटान्. आह, भयात् कस्य मतिः पापे न रमते? // 23 // अर्थः-गुप्तरीते रात्रिए आने ( तमारे) मारी नाखवो, एम राजाए. (पोताना) सुभटोने कही दीधुं. केमके भयथी कोनी बुद्धि अपाप.करवामां रमती नथी ? // 239 // .. . ज्ञात्वेति नृपवृत्तान्तं सुकृतैरेकतो. भटात् / श्रीदत्तश्छन्न एकाकी निरगानगरान्निशि // 240 // ___ अन्वयः-सुकृतैः एकतः भटात् इति नृपवृत्तांतं ज्ञात्वा श्रीदत्तः, छन्नः एकाकी निशि नगरात् निरगात्. // 240 // अर्थः-पुण्ययोगे कोइएक सुभटपासे थी. आवी रीतनो राजानो वृत्तांत जाणीने श्रीदत्त गुप्तरीते एकलो रात्रिए नगरमाथी (बहार) निकळी गयो. // 240 // .... अहर्निशं निराहारविहारः सप्तभिर्दिनैः / क्षुधाक्षामोदरः श्रान्तः कान्तारं किंचिदाप सः // 241 // REIGNESISSISTENSIBISCIEEECTRIES 'Jun Gun Aatadha Trust
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________________ 091891999999999999990 पुण्याढय चरित्रं 199 सान्धय भाषान्तर 1990 अन्वयः-अहर्निशं निराहारविहारः, क्षुधाक्षामोदरः श्रांतः सः सप्तभिः दिनैः किंचित् कांतारं आप. // 241 // अर्थः-रातदहाडो भोजनविना चालतो, तथा क्षुधाथी खाली उदरवाळो ते थाकेलो श्रीदत्त सात दिवसे कोइक वनमा आयो. अज्ञातद्रुमनामापि संकोचनतरोः फलान् / आस्वाद्य क्वापि सुष्वाप च्छायायां स पटीवृतः॥२४२॥ अन्वयः-अज्ञात द्रुमनामा अपि संकोचनतरोः फलान् आस्वाध स: पटीवृतः अपि छायायां सुष्वाप. // 242 // अर्थः-वृक्षन नाम जाण्याविनाज संकोचननामना वृक्षनां फलो खाइने ते श्रीदत्त शरीरपर वस्त्र ओढीने क्योक छायामां सूइ रह्यो. तवृक्षफलमाहात्म्यात्सद्यः संकुचितांगकः। द्विपेनानेन स भवान्भुवनाधिपतिः कृतः // 243 // अन्वयः-तवृक्षफलमाहात्म्यात् सद्यः संकुचितांगकः सः भवान् अनेन द्विपेन भुवनाधिपतिः कृतः // 243 // अर्थ:-ते वृक्षना फलना स्वभावथी तुरतज संकोचाइ गयेला शरीरवाळा एवा आ तने आ हाथीए राजा बनान्यो. // 243 // यदगोत्रगर्वतः साधोः पुरोऽल्पमपि चिन्तितम् / तदुत्पन्नोऽसि पुण्याढ्य किंचिन्नीचकुले कल // 244 // 3X3X3X330BBIGBl.exe PP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ D00000000000000000 पुण्याय चरित्र सान्वय भाषान्तर // 10 // 100 अन्वयः-यत् गोत्रगर्वतः साधोः पुरः अल्पं अपि चिंतितं, तत् (हे) पुण्याढ्य ! किल किंचित् नीचकुले उत्पन्नः असि.॥२४४॥ अर्थः--जे गोत्रना मदथी मुनिनी पासे तें जरा पण चिंतव्यु, तेथी हे पुण्याढ्य ! खरेखर कंइंक नीच कुलमा तुं उत्पन्न थयो छ. शूकसंकोचिनाकर्षि शल्यं यन्मुनिलोचनात् / सममेवांगसंकोचो राज्यं चाप्यत तत्त्वया // 245 // __अन्वयः--शूकसंकोचिना त्वया मुनिलोचनात् यत् शल्यं आकर्षि, तत् समं एव अंगसंकोचः राज्यं च आप्यत. // 245 // अर्थः--वळी शुगथी संकोच पामताथका ते ते मुनिराजनी आँखमाथी जे कांटो वंची कहाड्यो, तेथी एकीवेळाएज तने शरीरनो (संकोच तथा राज्य प्राप्त थयो. / / 245 // . तत्कामेयफलता भवता भाविता च यत् / तदमेयमहत्त्वं ते राज्यं राजन्नराजत // 246 // - अन्वयः-(हे) राजन् ! भवता यद तत्कर्म अमेय फलता भाविता, तत् अमेयमहत्त्वं ते राज्यं अराजत. // 246 // अर्थ-वळी हे राजन् ! तमोर ते कार्यन जे अमितफलपणुं चिंतव्यु, तेथी अमित महत्तावालुं तमारुं राज्य शोभवा लाग्यु. 1246 // OESMSSOCSO00
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________________ 090000000 पुण्याढय चरित्र 201 // कदापि क्वापि कस्यापि तवेवाभुतकर्मणः। पुण्यादेवेत्थमैश्वर्य नाभवन्न भविष्यति // 247 // सान्वय __ अन्वया अद्भुत कर्मणः तव इव पुण्यात् एव इत्थं ऐश्वर्य कदा अपि, क अपि, कस्य अपि न अभवत् , न भविष्यति. / 247 / भाषान्तर अर्थ:-आश्चर्यकारक कर्मवाळा एका तमारी पेठे फक्त पुण्यथीज आवी समृद्धि कोइ पण समये, क्यांये कोइने माप्त. यह नथी, अने (CTED यशे पण नहीं. // 247 // ... तदितः स्पष्टदृष्टान्तान्नित्यं कर्मणि निर्मले / स्थातव्यं भवभेदात्तपौरुषैः पुरुषोत्तमैः॥ 248 // अन्वयः-तत् इतः स्पष्टदृष्टांतात् भवभेद आत्तपौरुषैः- पुरुषोत्तमैः नित्यं निर्मले कर्मणि स्थातव्यं // 248 // अर्थ:-माटे आ प्रत्यक्ष उदाहरणथी संसारने तोडवामाटे बलवान ययेला उत्तम पुरुषोए हमेशं निर्मल कार्यमा तत्पर रहे. 248 अथ पृथ्वीपतिः प्राह प्रभो संयच्छ संयमम् / संसारवारिधेः सेतु केतुं धर्ममहीपतेः॥ 249 // अन्वयः--अथ पृथ्वीपतिः माह, (हे) प्रभो ! संसार वारिधेः सेतुं, धर्म महीपतेः केतुं, संयम संयच्छ! // 249 // accoCISCESSSSSSSESED Jun Gun Aaradhak Trust PPA Gunratrasur MS
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________________ peleeeeeDEOSROGeetee पुण्यालय चरित्रं 1102 / सान्षय भाषान्तर 1102 अर्थ:--पछी ते राजाए कह्यु के, हे प्रभु! आ संसारसमुद्रने ( उल्लंघवामाटे ) पूलसरखं, तथा धर्मरूपी राजानी जयपताकासरखं चारित्र मने आपो१॥ 249 // अथाचष्ट गुरुः स्पष्टं प्रतिले खादिकर्मसु / अक्षमोऽसि क्षमाभर्वितमस्तु कुतस्तव // 250 // . अन्वयर-अथ गुरुः स्पष्टं आचष्ट, ( है ) क्षमामतः! प्रतिलेखादिकर्मसु अक्षमः असि, तव कुतः व्रतं अस्तु.१ // 25 // अर्थः--त्यारे गुरुमहाराजे (तेने ) प्रगटरीते कयु के, हे राजन् ! पडिलेहणआदिक कार्योमाटे तमो असमर्थ छो माटे तमोने चारित्र केम होइ शके 1 // 250 // किं ते व्रतेन कष्टेन विशिष्टसुकृताश्रय / अस्मिन्नेव भवे भावी भवतो ह्यपुनर्भवः // 251 // .... ____ अन्वयः--(हे.) विशिष्टमुकुताश्रय ! कन्टेन व्रतेन ते कि ? हि भवतः अस्मिन् एव भवे अपुनर्भवः भावी. // 251 // अर्थ:-वळी हे उत्तम पुण्यशाली राजन्! कष्टकारी चारित्रनुं तमारे शुं प्रयोजन छे.१ केमके तमोने आ भवमांज मोक्ष मळनार छे. Gemic ORROOOOOOOOOOOOO
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________________ D 000000000000 सान्वय भाषान्तर Joi पुण्याढय इत्युक्तोऽप्यस्मयः स्मेरविस्मयः सस्मितं नृपः। गुरुनुवाच किं मे स्याद गृहिणोऽप्यपुनर्भवः॥२५२॥ चरित्रं अन्वयः-इति उक्तः अपि अस्पयः स्मेरविश्मयः नृपः सस्मितं गुरून् उवाच, किं मे गृहिणः अपि अपुनर्भवः स्यात् ? / 252 103 अर्थः--एम कडा छतां पण गवरहित, तथा आश्चर्य पामेला एवा ते राजाए जरा हसीने गुरुमहाराजने कयु के, शुं मने गृहस्थीने पण मोक्ष संभवी शके 1 // 252 // अजल्पत्तपनः साधुः शृणु पुण्याढ्यभूपते / ते पञ्चदशभिर्भेदैः सिद्धाः स्युरिह तद्यथा // 253 // अन्वयः--तरनः साधुः अजल्पत्, (हे) पुण्याय भूपते ! इह ते पंचदशभिः भेदैः सिद्धाः स्युः, तत् यथा-|| 253 // अर्थः-त्यारे ते तपन साधु बोल्या के, हे पुण्यात्यभूप ! अही ते पंदर भकारना सिद्धो होय छे, अने ते नीचे मुजच जाणवा. 253 / सिद्धस्तीर्थकरोऽतीर्थकरः प्रत्येकबुद्धकः। खलिंगः परलिंगश्च नरलिंगो नपुंसकः॥३१६॥ TER तीर्थसिद्धोऽतीर्थसिद्धः स्त्रीलिंगो बुद्धबोधितः / एकसिद्धोऽनेकसिद्धः स्वयम्बुद्धो गृहो तथा // 253 // baccaco be00000000000000000 PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 9999998919191910000000000 पुण्याय चरित्र (1104 // सान्वय भाषान्तर 11041 अन्वया:-तीर्थकरः, अतीर्थकरः, प्रत्येकबुद्धा, स्वलिंग:, परलिंगः, नरलिंगः, च नपुंसकः सिद्धना 253 / / तीर्थसिद्ध अ- तीर्थसिद्धा, स्त्रीलिंगः, बुधबोधितः, एकसिद्धः, अनेकसिद्धः, स्वयंबुद्धः, तथा गृही. / / 254 // युग्मं / ...... अर्थः-तीर्थकर, अतीर्थकर, प्रत्येकबुद्ध, स्वलिंगे सिद्ध, परलिंगे सिद्ध, पुरुषलिंगे सिद्ध, नपुंसकलिंगे सिद्ध // 253 / / तीर्थसिद्ध, अतीर्थसिद्ध, स्त्रीलिंगे सिद्ध, बुधबोधितसिद्ध, एकसिद्ध, अनेकसिद्ध, स्वयंबुद्ध, अने गृहीलिंगे सिद्ध. // 254 // युग्मं / / एकस्मिन्समये जीवाः सार्धद्वीपद्वयेऽपि तु / एकमारभ्य सिध्यन्ति यावदष्टोत्तरं शतम् // 255 // अन्वयः-सार्धद्वीपद्धये अपि तु एकस्मिन् समये एक आरभ्य यावत् अष्टोत्तर शतं जीवाः सिध्ध्यंति. // 25 // अर्थः-अढी द्वोपनी अंदरज एक समयमा एकथी मांडीने छेक एकसो आठसुधी जीवो सिद्ध थाय छे. // 255 // सिद्धत्वे केवलज्ञानं कारणं कीर्तितं जिनैः / तत्तु कर्मक्षयादेव ध्यानाकर्मक्षयो भवेत् // 256 // अन्वयः-सिद्धत्वे केवलज्ञानं कारणं जिनैः कीर्तितं, वत् तु कर्मक्षयात् एव, कर्मक्षयः ध्यानात् भवेत् . // 256 // SSO666666600000 HARI 3 .. na.daunalodawunlaina
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________________ RSSC000000000 - पुण्याय 2 चरित्र अर्थः--सिद्धपणामां केवलज्ञानने जिनेश्वरोए कारणभूत कहेलुं छे. अने ते केवलज्ञान पण कर्मोना क्षयथीज थाय छे, अने ते सान्वय कर्मोनो क्षय ध्यानथी थाय छे. // 256 // / भाषान्तर अन्तर्मुहूर्तमेकाग्रचिन्ता ध्यानमिदं पुनः / आर्त रौद्रं च धयं च शुक्लं चेति चतुर्विधम् // 257 // 105 / / अन्वयः-अंतर्मुहूर्त एकग्रचिंता ध्यान, इदं पुनः आत, च रौद्रं, च धयं, च शुक्लं इति चतुर्विधं // 257 / / अर्थः-अंतर्मुहूर्तमुधी एकाग्रपणे जे चिंतन करवं, ते ध्यान कहेवाय, वळी ते आर्त, रौद्र, धर्म्य अने शुक्ल एम चार प्रकारनु छ.।२५७ ऋतमित्युच्यते दुःखं तस्मादेतद्भवेदिति / आत विदुरिदं ध्यानं तदप्युक्तं चतुर्विधम् // 258 // 'अन्वया-ऋतं इति दुःख उच्यते, तस्मात् एतद् भवेत्, इति इदं आत्तं ध्यानं विदुः, तत् अपि चतुर्विधं उक्तं. / / 258 // अर्थ:-ऋत एटले दुःख कहेवाय छे, अने तेथी आ थाय छे, माटे तेने आध्यान कहेलुं छे, वळी ते आध्यान पण चारहराला SEER) : मकारखं कई छ. दुख कहेवाय छे, अने तेथी अभाव, इति इदं आर्त ध्यानं विदुः, SeeISCIENCIESICICIEEEeeeee Jun Gun Aaradhak Trust SRPR.AC.Gunratnasun M.S, Pawan
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________________ पुण्यादय 0 चरित्र सान्वय भाषान्तर / 106 / इन्द्रियाप्रियवस्तूनां प्राप्तौ या दुःखतो भवेत् / अतीवविरहातीवोच्छेदचिन्तेदमादिमम् // 259 // अन्वयः-इंद्रिय अप्रियवस्तूनां प्राप्तौ दुःखतः या अतीव विरह अतीव उच्छेद चिंता भवेत् इदं आदिम. // 259 / / अर्थः-इंद्रियोने न गमे एवा पदार्थों मळते छते, दु:खथी एम चितवद् के, हवे आ अनिष्ठ पदार्थों माराथी तुरत दूर थाय, अने ते पदार्थोनो अत्यंत विनाश थाय तो ठीक, एबी जे चिंता तेने पहेलं " आर्तध्यान " जाणवू. // 259 // द्वितीयं रुजि सत्यां तत्प्रतीकारैकचेतसः। तद्विप्रयोगतदसंप्रयोगातीवचिन्तनम् // 260 // ___अन्वयः-रुजि सत्यां तत्मतीकारकैचेतसः तद्विप्रयोग तत् असंप्रयोग अतीवचिंतनं द्वितीयं. // 26 // अर्थः-रोग थये छते तेने मटाडवाना उपायोमाज एकाग्रमनवाळा मनुष्यनुं ते रोगना अत्यंत वियोगमाटे तथा असंभयोग एटले फरीने पाछो न थवा माटे जे अत्यंत चिंतवन, तेने बीजुं आर्तध्यान जाणवू. // 260 // तृतीयं त्विष्टविषयप्राप्तौ संहृष्टचेतसः / चिन्ता तदवियोगे च तत्संगे च महास्पृहा // 261 // DEOS DESISEISEISISEISSENG
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________________ D00000000000 पुण्याढय चरित्रं 2070 सान्वय भाषान्तर 107 - अन्वयः-इष्ट विषय प्राप्तौ संहृष्ट चेतसः तदवियोगे चिंता, च तत्संगे च महास्पृहा, तु तृतीयं // 26.1 // अर्थः-वांछित पदार्थोनी प्राप्तिथी आनंदित थयेला मनवाळो एम चिंतवे के, हवे मने आ इष्ट पदार्थोनो वियोग न थाय तो ठीक, तेमज ते पदार्थोना मेलाप माटे अत्यंत इच्छा धरावे, तेने त्रीजं अर्तध्यान जाणवू. // 261 / / तुयं च चक्रिशक्रादिगुणद्धिप्रार्थनामयम / निदानमधर्म ज्ञानकणिकामप्यबिभ्रतः॥ 262 // अन्वयः-ज्ञानकणिका अपि अविभ्रतः चक्रि शक्रादि गुण ऋद्धि मार्थनामयं अधर्म निदान तुर्य. // 262 // अर्थ:-लेशमात्र पण ज्ञानविनाना मनुष्य चक्रवर्ति तथा इंद्रआदिकना गुणोनी तथा तेमनी समृद्धिनी इच्छावाळु जे अधम नियाण 'तेने चो) आर्तध्यान जाणवू // 262 / / हिंसादिक्रूरतायुक्तं रौद्रमाहुस्तदुद्भवम् / ध्यानमप्युच्यते रौद्रं चतुर्धा तदपीरितम् // 263 // . अन्वयः---हिंसा आदि करता युक्तं रौद्रं आहुः, तद् उद्भवं ध्यानं अपि रौद्रं उच्यते, तत् अपि चतुर्क ईरितं. // 263 // र, P EO P P.AC.Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ Deleteeeeelete98919019939 सान्वय भाषान्तर / 108 पुण्यादयCBM) अर्थ:-जीवहिंसाआदिकना क्रूरपणावालु रौद्र कहेवाय, अने तेथी उत्पन्न थयेखें ध्यान पण रौद्रध्यान कहेवाय, अने तेपण चार चरित्र प्रकारनु कयुं छे. // 263 // : 108 / ...वधबन्धननिर्दाहांकनमारणकर्मणाम् / जीवेषु प्रणिधानं यन्निर्दयस्य तदादिमम् // 264 // 3) अन्वयः-निर्दयस्य जीवेषु वध बंधन निर्दाह अंकन मारण कर्मणां यत् पणिधानं तत् आदिमं // 264 // . अर्थ:--निर्दय माणसन जीवो प्रते वध, बंधन, दाह, अंकन, तथा ताडनमाटे जे एकाग्र चितवन, तेने पेहेलु ( हिंसानु बंधी) "रौद्रध्यान" जाणवू. // 264 // .. द्वितीयं त्वतिसंधानसनिबंधस्य मायिनः। असदभूतभूतघातिकूटवाकूप्रणिधामयम् // 265 // ' अन्वयः-अतिसंधान सनिबंधस्य मायिनः असद्भूत भूत घाति कूटवाक् प्रणिधामयं तु द्वितीयं // 265 // KAR अर्थ:-जूठाणुं गोठववा माटेनाज आग्रहवाळा एवा कपटी माणसनुं नही बनेला तथा जेथी जीवहिंसा थाय एवा खोटा वचनोनी 188BISIRSIO DSEISSISSEISEDICICICISESEISED
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________________ पुण्याढय चरित्र सान्त्रय भाषान्तर प्रपंचजाळ रचवानुं जे चितवन, तेने चीजें (मृषानुबंधी) रौद्रध्यान जाणवू. // 265 // . तृतीयं त्वतिदुष्टस्य भूरिलोभक्रुधाहृदः। भूतघातपरद्रव्यापहारप्रणिधामयम् // 266 // (अन्वयः-अतिदुष्टस्य भूरिलोभधाहदः भूतघात परद्रव्य अपहार प्रणिधामयं तु तृतीयं. // 266 // . अर्थ:--अत्यंत क्रूर तथा अति लोभ अने क्रोधयुक्त मनवाला मनुष्यनुं जीवहिंसा करीने पण परधनने हरवाना विचारवाळू जेल चितवन तेने त्रीजु (चौरानुबंधि) रौद्रध्यान जाणवू. // 329 // . शब्दादिविषयापूर्तिहेतुषु द्रविणेषु यत् / लब्धिसंग्रहसंरक्षाप्रणिधा तत्तुरीयकम् // 267 // .. अन्वयः-शब्द आदि विषय आपूर्ति हेतुषु द्रविणेषु यत् लब्धि संग्रह संरक्षा प्रणिधा तत् तुरीयकं // 267 // अर्थ:-शब्दादिक इन्द्रियोना विषयोने पूरा पाडवाना कारणरुप एवा धनना संबधमां, तेने मेळववा माटे, तेनो संग्रह करवा माटे, तथा तेना रक्षण माटे जे चितव, तेने चो) (परिग्रह रक्षणानुबंधी रौद्रध्यान जाणवू. // 37 // Gun Aaradhak Trust
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________________ पुण्याढ्य चरित्र 1110 // सान्वय भाषान्तर उत्पद्यमानमप्येतद् द्वयं वार्य शुभाशयैः / उपेक्षितं प्रमादात्तु महादुःखाय जायते // 268 // अन्वयः-शुभाशयः एतद् द्वयं उत्पद्यमानं अपि वार्य, प्रमादार उपेक्षितं तु महादुःखाय जायते // 268 // अर्थः उत्तम विचारवाला मनुष्योए ते आर्त अने रौद्रनामना बन्ने ध्यानोने उत्पन्न थतांज अटकावा, कदाच प्रमादथी जो तेनी उपेक्षा करी, तो ते अति कष्ट आपनारा थाय छे. / / 331 // धर्माद्यदनपेतं तद्धयं तत्त चतुर्विधं / आद्यं तत्र जिनाज्ञायाः पालनं तत्त्वनिश्चयात // 269 // अन्वयः-धर्मात् यत् अनपेतं तत् धर्म्य, तत् तु चतुर्विध, तत्र तत्त्वनिश्चयात् जिनाज्ञायाः पालनं आयं // 26 // अर्थः-धर्मथी जे रहित न होय तेने धHध्यान (जाणq.) ते पण चार प्रकारनुं छे, तेमा तत्वोनो निश्चय करवा पूर्वक जिने. श्वरमभुनी आज्ञानुं जे पालवं, तेने पहेलुं धHध्यान जाणवू. / / 269 // कषायविषयापायत्राणचिन्ता द्वितीयकं / तृतीयं चिन्त्यतं कर्मविपाकश्च शुभाशुभः॥ 270 // 0000000 BEEEEEEEEEEEEEEEEE
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________________ 090099ESIRESISESIGEOG पुण्याहय चरित्र " सान्वय भाषान्तर अन्वयः कषाय विषय अपाय त्राण चिंता द्वितीयकं, च शुभअशुभः कर्मविपाकः चिंत्यते तृतीयं // 27 // अर्थ:-कषायो अने विषयोरूपी शत्रुओथी (आत्माना ) रक्षण माटेनुं जे चितवन, तेने बीजं धHध्यान जाणवू, तथा कर्मोना सारा नरसा विपाकने चिंतववारूप त्रीजु धर्म्यध्यान जाणवू. // 270 // उत्पत्तिविगमध्रौव्यस्वरूपस्य नराकृतेः। अनाद्यन्तस्य लोकस्य चिन्तनं तच्चतुर्थकम् // 271 // अन्वयः-उत्पत्ति विगम धौव्य स्वरूपस्य नराकृतेः अनाद्यतस्य लोकस्य चिंतन, तत् चतुर्थकं // 271 // अर्थः-उत्पत्ति, विनाश अने निश्चलताना स्वरूपवाळा, पुरुषसरखी आकृतिवाळा, तथा अनादि अनंत एवा लोकनु जे चितवन, C तेने चोथु वर्म्यध्यान कहेलुं छे. // 334 // अन्यथा वा चतुधोक्तं धर्म्यध्यानमिदं बुधैः / पिण्डस्थं च पदस्थं च रूपस्थं रूपवर्जितं // 272 // अन्वयः-चा अन्यथा बुधैः इदं धHध्यानं चतुर्धा उक्त, पिंडस्थ, पदस्थं, रूपस्थं च रूपवर्जितः // 335 // OOOOOOO
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________________ पुण्यादय चरित्र / 112 // सान्वय भाषान्तर 112 अर्थ:--अथवा चीजी रीते पण विद्वानोए आ धHध्यान चार प्रकारचें कयुं छे, पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ, अने रूपातीत. 336 देहस्थं ध्वस्तकर्माण चन्द्राभं ज्ञानिनं सुधीः / यत्रात्मानं परैश्वर्यं पश्येत्पिण्डस्थमत्र तत् // 273 // अन्वयः-यत्र सुधीः आत्मानं देहस्थं, ध्वस्तकर्माण, चंद्राभे, ज्ञानिनं परैश्वर्य पश्येत्, तत् अत्र पिंडस्थं // 273 // अर्थ:-ज्या उत्तम बुद्धिवाळो माणस आत्माने शरीरमा रहेलो, नष्ट थयेल कर्मोचालो, चंद्रसरखो (निर्मल ) ज्ञानयुक्त, - अने परम समृद्धिवाळो जुए छे, तेने अहीं पिंडस्य ध्यान (कहे छे ) // 273 // मन्त्राक्षरणि शारीरपद्मपत्रेषु चिन्तयेत् / गुर्वादेशेन यद्योगी पदस्थं तदिहोच्यते // 274 // अन्वया-योगी गुर्वादेशेन शारीरपद्यपत्रेषु यत् मंत्र अक्षराणि चिंतयेत् , तत् इह पदस्थं उच्यते. / / 274 // अर्थ:-योगी गुरुनी आज्ञाथी शरीरसंबंधि कमलपत्रोपर जे मंत्रसंबंधि अक्षरोने चिंतवे, ते अहीं पदस्थ ध्यान कहेवाय छे. // सप्रातिहार्य समवमृतिस्थं ज्ञानिनं जिनम् / तबिम्ब वा स्मरेद्योगी यत्तद्रुपस्थमिष्यते // 275 //
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________________ 00000000000000000000 पुण्याढय सान्वय भाषान्तर चरित्र अन्वयः-समातिहार्य, समवमृतिस्थ, ज्ञानिनं जिनं, वा तबिंब योगी यत् स्मरेत् , तन् रूपस्थं इष्यते. // 275 // अर्थ:-प्रतिहारसहित, समवसरणमां बेठेला अने ज्ञानी एवा जिनेश्वरने अथवा तेमनी प्रतिमाने योगी जे चिंतवे, ते रूपस्थ ध्यान कहेवाय छे. // 275 // यदमूर्त महानन्दमयं सिद्धं निरञ्जनम् / ध्यायेद्योगी परात्मानं रूपातीतं दिशन्ति तत् // 276 // . अन्वयः-अमूर्त, महानंदमयं, सिद्ध, निरंजनं परात्मानं योगी यत् ध्यायेत् , तत् रूपातीतं दिशंति. // 276 / / अर्थ:-निराकार, महा आनंदमय, सिद्ध, अने निरंजन एवा परमात्मानुं योगी जे ध्यान धरे, तेने रूपातीत ध्यान कहे छे.॥ एवं संक्षेपतः प्रोक्तं धर्मध्यानं धराधिपः / इह लोकेऽपि माहात्म्यमस्यानन्तं सतां भवेत् // 277 // . अन्वयः-(हे) धराधिप! एवं संक्षेपतः धर्मध्यानं प्रोक्तं, सतां इह लोके अपि अस्य माहात्म्य अनंतं भवेत् // 277 // अर्थ:-हे राजन् ! एवी रीते संक्षेपथी धर्मध्याननुं स्वरूप कबू, उत्तम माणसोने आ लोकमां पण (लब्धिआदिकरूपे ) तेनोन baccCOOOOOOcccccccc Jun Sun Aaradhak Trust OPP.AC.Gunratnasuri M.S..
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________________ सान्वय भाषान्तर / 114 // | पुण्याढय CHOD अनंतो प्रभाव जोवामां आवे छे. // 277 // चरित्र दुःकर्मनिर्मितामुच्चैः शुचं क्लमयतीत्यदः / शुक्लमादिश्यते ध्यानं तदपि स्याच्चतुर्विधम् // 278 // / 114 // : अन्वयः-दुःकर्मनिर्मितां शुचं उच्चैः क्लमयति, इति अदः शुक्लं ध्यानं आदिश्यते, तत् अपि चतुर्विधं स्यात्. / / 278 // अर्थः-दुष्कार्यथी थयेला शोकनो जे अत्यंत विनाश करे, तेने आ "शुक्लध्यान" कहेवामां आवे छे, अने तेपण चार प्रकारर्नु छे. पृथक्त्वेऽपि पदार्थानामनुमानविचारतः / श्रुते पदे पदार्थस्यादृष्टस्यापि स्वरूपधीः // 279 // दृष्टे पदार्थे विज्ञानं पदस्याप्यश्रुतस्य यत् / स्यात्पृथक्त्ववितर्केण सविचारं तदादिमं // 280 // युग्म॥ ___ अन्वयः-अनुमान विचारतः पदार्थानां पृथक्त्वे अपि पदे श्रुते अदृष्टस्य अपि पदार्थस्य स्वरूपधीः // 299 // पदार्थे दृष्टे / अश्रुतस्य पदस्य अपि यत् विज्ञान, तत् आदिम पृथक्त्व वितर्केण सविचारं स्यात् / / 280 / / युग्मं / / अर्थ:-अनुमानथी विचारता पद अने अर्थ भिन्न होवा छतां पण, पदने सांभळतांज नही जोयेला एवा पण ते पदना अर्थनं GREIGNGISCO @GO@GOOOOOOOOOOOOOO
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________________ De999999999999999999 सान्वय पुण्याय चरित्र 115/ भाषान्तर 115 Jio जे ज्ञान यवु, / 279 // तेमज पदना अर्थने देखतांज नही सांभळेला एवा पण पदनुं जे ज्ञान थ, तेने पहेलु " पृथक्त्ववितकै सविचार" नामर्नु शुक्लध्यान कहे छे. // 280 // युग्मं // ददच्छब्दार्थयोरैक्यपरिज्ञानं वितर्कतः। अपृथक्त्वविचारेण मनानैश्चल्यकारणं // 281 // पूर्वश्रुतानुसारोत्थं केवलज्ञानहेतुकं / तद् द्वैतीयीकमेकत्ववितर्कमविचारकं // 282 // युग्मं // अन्वयः-वितर्कतः शब्दअर्थयोः ऐक्यपरिज्ञानं ददत, अपृथत्वविचारेण मनोनैश्चल्य कारणं / / 281 / / पूर्वश्रुतानुसारोत्थं FD केवलज्ञानहेतुकं, तत् द्वैतीयीक एकत्व वितर्क अविचारकं // 282 // युग्मं // अर्थः-वितर्कथी शब्द तथा अर्थ बन्ने एकज छे, एवं ज्ञान आपनारं, एटले ते बन्नेना अभिन्नपणाना विचारथी मनने निश्चल करवाने कारणभूत // 281 // पूर्वोना ज्ञानने अनुसारे ( अर्थात् पूर्वधारीने ) उत्पन्न थयेलं, अने केवलज्ञानना हेतुरूप, एवं जे शुक्लध्यान, तेने बीजं " एक्त्ववितर्क अविचार" नामर्नु कहलुं छे. // 282 // युग्मं / / P. PAC Guntatnasur MS Jun Gun Aaradtak Trust
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________________ सान्वय भाषान्तर / 116 // permoOOOSDEODOETED) - पुण्याढय निरुद्ध वाङ्ममनोयोगयुगे केवलिनः प्रभोः / यद्भवत्यङ्गयोगेऽर्धनिरुद्धे मुक्तिकालतः॥ 283 // चरित्र श्वासोच्छवासक्रिया सूक्ष्मा यत्र यन्न निवर्तते / तृतीयं कथ्यते सूक्ष्मक्रियं तदनिवर्तकं // 284 // युग्मंग 1116 // अन्वय:-केवलिनः प्रमोः मुक्तिकालतः वाङ्मनः योग युगे निरुद्ध, अंगयोगे अर्धनिरुद्ध यत् भवति, // 283 / / यत्र श्वासोच्छ्वासक्रिया सूक्ष्मा, यत् न निवर्तते, तत् तृतीयं अनिवर्तकं मूक्ष्मक्रियं कथ्यते. // 284 // A अर्थः--केवली भगवानने मोक्ष समये वचन अने मनना, एम ते बन्नेना योगने रोध्यावाद, अने अर्को काययोग रोध्ये छते जे थाय छे, // 283 // तथा जेमा श्वासोश्वासनी क्रिया सूक्ष्म चालती होय, तथा जे पाछु निवृत्त यतुं नथी, एटले चाल्युं जतुं नथी तेने श्रीजु " अनिवर्तक सूक्ष्मक्रिय" शुक्लध्यान कहे छे. // 284 // युग्म // AS अङ्गत्यागेऽपि यत्रात्मा शैलेशीकरणस्थितः / ईशः शैल इवात्मीयमङ्गरूपं न मुंचति // 285 // 0 मुक्त्युत्पातक्षणे मुक्तश्वासोच्छ्वासादिकक्रियम् / अनिवर्ति च यत्तत्स्यात्तुर्य व्युपरतक्रियम्।२६८। युग्मा (0) QOQO0000000000000000 FLAC Gunnatasun MS Sidavidos
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________________ OME09009 सन्वय चरित्रे भाषान्तर पुण्याढय अन्वयः-अंगत्यागे अपि यत्र आत्मा शैलेशीकरणस्थितः, शैल इव ईशः आत्मीयं अंगरूपं न मुंचति // 285 // मुक्तश्वासो- च्छवासादिकक्रियं, च यत् अनिवार्त स्यात्, तत् तुर्य व्युपरतक्रियं // 286 / / युग्मं / / 117/MEAN अर्थ: मानो अर्थः-शरीरनो त्याग कर्या छता पण ज्यां आत्मा शैलेशीकरणमा रहेलो छे, एटले के पर्वतनी पेठे अचल (समर्थ) थइ पोताना अंगस्वरूपने छोडतो नथी, // 285 / / तथा जेमा श्वासोश्वासआदिकनी क्रिया छोडाइ गइ छे, अने जे पाछु चाल्युं जतुं नथी, तेने चोथु " व्युपरतक्रिय" नामनुं शुक्लध्यान कहे छे. // .286 // युग्मं // आत्मप्रकाशकैवल्यरूपं कर्मक्षयोदितम् / केवलज्ञानकाले स्याध्यानं शुक्लं तु योगिनः // 287 // अन्वयः-आत्मप्रकाशकैवल्यरूपं, कर्मक्षयउदित शुक्लं ध्यानं तु योगिनः केवलज्ञानकाले स्यात् // 287 // .. अर्थः केवल आत्मज्योतिमय, अने कर्मोना क्षयथी उत्पन्न थयेलुं शुक्ल ध्यान तो योगीने केवलज्ञान समये थाय छे. // 28 एतध्यानं स्वतो जातं सद्गुरोर्वोपदेशतः / वज्रऋषभनाराचदेहस्यैव स्थिरं भवेत् // 288 // 00000000 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ DECISISCIEDERIENDS पुण्यादय चरित्र सान्वय भाषान्तर 118 1118 856000 अन्वयः-स्वतः, वा सद्गुरोः उपदेशतः जातं एतत् ध्यानं वज्रऋषभनाराचदेहस्य एव स्थिरं भवेत. // 288 // अर्थः--पोतानी मेळे, अथवा सद्गुरुना उपदेशथी थयेलं एवं आ ध्यान वज्रऋषभनाराच संघयणवाळा मनुष्यनेज स्थिर थाय इदं स्थिरत्वमापन्नं कृत्वा कर्मक्षयं क्षणात् / जनयेत्केवलज्ञानं योगीन्द्रस्य शिवप्रदम् // 289 // अन्वयः-स्थिरत्वं आपनं शिवपदं इदं क्षणात कर्मक्षयं कृत्वा योगींद्रस्य केवलज्ञानं जनयेत. // 28 // अर्थः-स्थिरपणाने पामेलु, अने मोक्ष देनारुं आ शुक्लध्यान क्षणवारमा कर्मोनो क्षय करीने महान् योगीने केवलज्ञान उत्पन्न करेछे तत्पुण्याढ्य गृहस्थोऽपि ध्यानस्यामुष्य योगतः। केवलज्ञानमासाद्य सद्यः सिद्धो भविष्यसि // 29 // अन्वयः-तत् ( हे ) पुण्यात्य ! गृहस्थः अपि अमुष्य ध्यानस्य योगतः केवलज्ञानं आसाथ सथः सिद्धः भविष्यसि // 290| अर्थः--माटे हे पुण्यात्य ! (तुं ) गृहस्थ छतां पण आ ध्यानना योगथी केवलज्ञान पामीने तुरत सिद्ध थइश. // 290 // तत्रेदं शृण्वभिज्ञानमभिज्ञजनमण्डनम् / संकोचदूषणं तेऽङ्गादुत्तरिष्यति सर्वथा // 291 // Getermiersite 002800XXXX0000000000000 unratnaSIGM
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________________ 0000 00000 पुण्याढय चरित्र // 11 // सम्बय भाषान्तर 1119 OGGIESIGeo अन्वयः-तत्र अभिज्ञजनमंडनं इदं अभिज्ञानं शृणु ? ते अंगात् संकोचषणं सर्वथा उत्तरिष्यति. // 291 // अर्थः-वळी ते संबंधमां डाह्या माणसोने शोभावनारु (तने) जे एंधाण मळशे, ते सांभळ 1 तारा शरीरपरथी (हाथ पगोना) संकोचनुं दूषण बिलकुल दूर थशे. // 291 // तर्हि देहि गृहस्थानामेव धर्म मम प्रभो / इत्युक्तो भूभुजा सूरिः श्रद्धापूरितचेतसा // 292 // तस्मिंस्तदैव सम्यक्त्वं द्वादशवतभूषितम् / विधिनारोपयामास प्रकाशितमहोत्सवे // 293 // युग्मम् // अन्वयः-तर्हि (हे) प्रभो ! मम गृहस्थानां एव धर्म देहि ? इति श्रद्धापुरितचेतसा भूभुजा उक्तः परिः // 292 // तदा एव प्रकाशितमहोत्सवे तस्मिन् द्वादशवतभूषितं सम्यक्त्वं विधिना आरोपयामास. // 293 / / युग्मं / / अर्थ:--त्यारे हे स्वामी ! मने गृहस्थोनोज धर्म आपो? एवी रीते श्रद्धायुक्त मनवाळा (ते) राजाए कहे वाथी (ते) मुनिराजे // 292 // तेज वखते करेल छे महोत्सव जेणे एवा ते राजाने बार ब्रतोथी अलंकृत थयेलुं सम्यक्त्व विधिपूर्वक समर्पण कर्य, 293 REGIO666600 Jun Gun Aaradhak Trust RP.AC.GunratnasunMS.
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________________ peeIOSEDICICICICIES - व्रतानां सेवने शिक्षा दक्षायास्मै प्रदाय सः / सद्गुरुपियामास विशेषादिति तं नृपम् // 294 // 0 सान्वय पुण्याढय चरित्र 120 // भाषान्तर 120 - अन्वयः--सः सद्गुरुः अस्मै दक्षाय व्रतानां सेवने शिक्षा प्रदाय, तं नृपं विशेषात् इति ज्ञापयामास. // 294 // . अर्थः--(पछी ) ते उत्तम गुरुमहाराजे ते चतुर राजाने (बारे ) व्रतोना पालन पाटे शिखामण आपीने विशेष प्रकारे एम . जणाव्यु के, // 294 // 2 अयं सम्यक्त्वतत्त्वज्ञोऽवधिज्ञाननिधिर्गजः / अबन्धनीयो धर्मात्मा धर्मबान्धवतां गतः॥ 295 // ____ अन्वयः--सम्यक्त्वतत्त्वज्ञः, अवधिज्ञाननिधिः, धर्मात्मा, धर्मबांधवां गतः अयं गजः अबंधनीयः // 295 // अर्थ:--सम्यक्त्वना तत्वने जाणनारो, अवधिज्ञाननो भंडार, धर्मात्मा, तथा (तारा) धर्मबंधुपणाने प्राप्त थयेलो आ हाथी 'तारे बांधबो नहीं. // 295 // 0 सिन्धुरोऽयमबद्धोऽपि न किंचित्पीडयिष्यति / यद् द्वितीये भवे स्वर्गी सप्तमे सिद्धिसौख्यभाक् // 296 // DeleaseEECISISISEXEEccited
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________________ DeeC00000000000000 पुण्याढय चरित्रं / 121 // (a अन्वयः-अबद्धः अपि अयं सिंधुरः किंचित् न पीडयिष्यति, यत् द्वितीये भवे स्वर्गी, सप्तमे सिद्धिसौख्यभाक् / / 296 // RAN सन्वय अर्थः-बंधनरहित छतां पण आ हाथी कई पीडा उपजावशे नही, केमके ते (अहींथी) बीजे भवे देव, तथा सातमे भवे मोक्षसुख पामशे. भाषान्तर अतः सुकृतकार्येषु निःशेषनिजदोषहृत् / न शोच्यः पशुरूपोऽपि भूप चिद्रूपचेतनः // 297 // अन्वया-अतः (हे) भूप! सुकृतकार्येषु निःशेषनिजदोषहृत् पशुरूपः अपि विद्रपचेतनः ( अयं ) न शोच्यः // 297 // अर्थः-माटे हे राजन् ! पुण्यना कार्योमा पोताना सर्व दोषोने दूर करनारा, अने पशुरूप होवा छतां पण ज्ञानी एवा आ हाथीमाटे तमारे ( जरा पण नुकशान संबंधी) फिकरचिंता करवी नही. // 217 // तथेति प्रतिपद्याथ कर्मोन्माथकथामिमाम् / गुरुं नत्वा नृपो धर्मवासः स्वावासमासदत् // 298 // . 'अन्वयः-अथ धर्मवासः नृपः कर्मोन्मायकथां इमां तथा इति प्रतिपद्य गुरुं नत्वा स्वआवास आसदद. // 298 // अर्थ:-पछी धर्मनी वासनावाळो (ते ) राजा कोनो नाश करनारी आ कथाने सत्यरूपे स्वीकारीने, गुरुमहाराजने वंदन करी 00000000 000000000000000000 Huk P P.AC.Gunratnasuri M.S. dun Gun Aaradhak Trust
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________________ OOOOOOOOOOOOOOO पुण्याढय सान्वय भाषान्तर चरित्र // 122 // 1122 / Loremeced पोताना-मेहेलमा आन्यो. // 259 // ...... .. ... ... . .. ... ... .... राजा कुञ्जरराजस्य गुर्वाज्ञाराजितस्ततः। बन्धारोहणयुद्धादिबाधावारमवारयत् // 30 // . ... ____ अन्वयः-गुर्वाज्ञाराजितः राजा ततः कुंजरराजस्य बंध आरोहण युद्धआदि बाधावारं अवारयत्. / / 300 / / अर्थः-गुरुमहाराजनी आज्ञाथी शोभता एवा ते राजाए त्यारथी ते गजराज माटे बंधन, स्वारी, तथा लडाइ आदिकनी पीडानो समूह निवारण कयों, ( अर्थात् तेने ते सर्व क्रियाओथी मुक्त कर्यो.) // 300 // . .... नृपतिर्द्विपनाथस्य स्वस्येवास्य व्यधापयत् / नित्यं भोगभृतस्य त्रीन्वारानारात्रिकक्रियाः // 301 // ___ अन्वयः-स्वस्य इव नित्यं भोगभृतस्य अस्यद्विपनाथस्य नृपतिः त्रीन् वारान आरात्रिकक्रियाः व्यधापयत् // 301 // अर्थ:-पोतानीपेठे हमेशा खवराबी पीवरावीने ते हस्तिराजनी राजा त्रण वखत आरती उतारवानी क्रिया कराववा लाग्यो.३०१ चलन्पदात्पदान्मन्दं स जन्तुकृषयाः द्विपः / तन्मन्दगतयोऽद्यापि तत्क्रमेणैव वारणाः // 302 // OLOG 00000000000000000000 NSAREA4
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________________ pecieeeeeeeeee पुण्याय सन्वय भाषान्तर 'अन्वयः-सः द्विपः जंतुकृपया पदात् पदात् मंदं चलन्, तत् अद्य अपि तत्क्रमेण एव वारणा: मंदगतयः // 302 // चरित्रं अर्थः-ते हाथी पण जीवदया माटे धीमा धीमा पगलाथी चालतो हतो, अने तेथी आजे पण तेने अनुसारीनेज हाथीओ धीमी -12300 गतिवाळा ( देखाय छे.) / / 302 / / . मर्यादायन्त्रिताहारविहारो विदधेऽन्वहम् / शमजातमनःशैत्यः स चैत्यपरिपाटिकाम् // 303 // . अन्वय:--पर्यादा यंत्रित आहार विहारः, शम जात मनः शैत्यः सः अन्वहं चैत्यपरिपाटिको विदधे. // 303 // अर्थः-मर्यादावडे नियमित करेल छे भोजन अने हरवु फरवू जेणे, तथा शांतिथी जेना हृदयमा शीतलता थयेली छे, एवो ते हाथी हमेशा जिनमंदिरोनी यात्रा करतो हतो. // 303 / / ............... . ... द्विपः स पर्वसूद्गर्वधर्मकर्मा विनिर्ममे / साधुश्राध्धौघमध्यस्थो जिनयात्रोत्सवादिकम् // 304 // अन्वयः-उद्गर्वधर्मकर्मा सः द्विपः साधुश्राद्धोधमध्यस्थः पर्वसु जिनयात्रा उत्सवआदिकं विनिर्ममे. // 304 // 00000000 00000000000000000000 Jun Gun Aaradhak Trust IPP.AC.GunratnasuriM.S.
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________________ 00029209000000000000 पुण्यादय / चरित्रं 124 // सान्वय भाषान्तर 1124 अर्थ:-होंसेहोंसे धर्मकार्य करनारो ते हाथी साधुओ तथा श्रावकोना समूहमा रहीने पर्वोने दिवसे जिनेश्वर प्रभुनी यात्रा तथा उत्सवआदिक करवा लाग्यो, // 304 // इत्येष करिणामिन्द्रः करुणामुद्रिताशयः। समयान्गमयामास बहून्राज्ञा बहूकृतः // 305 // - अन्वयः-करुणामुद्रिताशयः, राज्ञा बहूकृतः एषः करिणां इंद्रः इति बहून् समयान् गमयामास. // 305 / / अर्थ:-दयायुक्त छे (मननो) अभिप्राय जेनो, तथा राजाथी बहु सन्मान पामेलो आ हस्तिराज घणो समय व्यतीत करवा लाग्यो. अन्येार्गजवैद्यस्तं गजमस्तंगतोद्यमम् / वीक्ष्य ज्वरभराक्रांतं राज्ञे व्यज्ञपयद्भुतं // 306 // अन्वयः--अन्येयुः गजवैधः अस्तंगत उद्यम तं ज्वर भराक्रांतं वीक्ष्य द्रुतं राज्ञे व्यज्ञपयत् // 306 // अर्थः-(पछी) एक दिवसे गजवैद्ये उद्यमरहित थयेला ते हाथीने ताव चडवाथी पीडातो जोइ तुरत राजाने ते हकीकत जाहेर करी. राजन् राजति यो युष्मजीवितस्यापि जीवितम् / कुम्भी रिपुयशःशुम्भी सोऽभवज्ज्वरजर्जरः॥ 307 // SCIC0000 DOSSESSOCICIDEOSEDGISM
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________________ 000000000000000000000 पुण्याय चरित्र 125 सन्वय भाषान्तर 125) अन्वयः-(हे) राजन् ! युष्मत् जीवितस्य अपि जीवितं, रिपुयशःशुंभी यः कुंभी राजति, सः ज्वरजर्जरः अभवत् // 307 // अर्थ:-हे राजन् ! आपना जीवितना पण जीवित सरखो, (अर्थात् जीवथी पण वहालो) तथा शत्रुओना यशनो नाश करनारो, जे हाथी शोमे छे, ते तावथी पीडित श्रयेलो छे. // 307 / / . . ततः पितुरिव भ्रातुरिव मातुरिव ज्वरम् / आकर्ण्य व्याकुलोऽभ्यणे गजस्य स ययौ नृपः॥ 308 // अन्वयः-ततः पितुः इब, भ्रातुः इच, मातुः इव गजस्य ज्वरं आकर्ण्य व्याकुलः सः नृपः अभ्यणे ययौ. // 308 // अर्थ:-पछी पिताने जेम, भाइने जेम, तथा माताने जेम, तेम ते हाथीने ताव आवेलो सांभळोने गभरायेलो ते राजा(तेनी)पासेगयो. अथाह पृथिवीजानिर्यः कुर्यान्नीरुजं गजम् / दद्यामद्यात्मनस्तस्मै राज्याधं राज्यमेव वा // 309 // अन्वयः-अथ पृथिवीजानिः आह, यः गज नीरुजं कुर्यात, तस्मै अध आत्मनः राज्य अर्ध वा राज्यं एव दद्या. // 309 // अर्थः-पछी राजाए कयु के, जे कोद (आ) हाथीने रोगरहित करे, तेने आजे मारुं अर्धं राज्य अथवा आर राज्यज आपी देउं. Crococc 00000000000000000000 Jun Gun Aaradhak Trust AAP P .P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ OCOCISISTEIDIEOSC000 | पुण्याढय चरित्रं 1126 सान्वय भाषान्तर / 126 // अर्थः-राज्यनु / भयोजन प्रसादात् नः किं अल्पं. 1 इति जानकछेदे वैद्याश्चकुरुपक्रमम् किं राज्यस्त्वत्प्रसादान्नः किमल्पमिति जल्पिनः / गजराजरुजश्छेदे वैद्याश्चकुरुपक्रमम् // 310 // . 'अन्वयः-राज्यैः किं ? त्वत्प्रसादात् न कि अल्पं. 1 इति जल्पिनः वैद्याः गजराजरुजः छेदे उपक्रम चक्रुः॥३१॥ अर्थ:-राज्यनु शु प्रयोजन छे ? आपनी कृपाथी अमोने शुं ओर्छ छे ? एम बोलता वैद्यो ते हस्तिराजनो रोग मटाडवामाटे उपायो करवा लाग्या. // 310 // स रिप्रन्परिपर्णायुजेतुं कर्माभिधान्पुनः / सान्नं रोगपरीतोऽयं करी तोयं विमुक्तवान् // 311 // अन्वयः-परिपूर्णायुः रोगपरीतः सः अयं करी पुनः कर्माभिधान् रिपून जेतुं स अन तोयं विमुक्तवान् // 311 // अर्थ:-संपूर्ण आयुवाळा तथा रोगथी घेरायेला एवा ते आ हाथीए तो कर्मों नामना शत्रुओने जीतवामाटे अन्नसहित जलनो त्याग कर्यो. // 311 // D अस्यां रुजि न जीवामि जगृहेऽनशनं मया / इति च मापतेराख्यक्षितिन्यस्ताक्षरः करी // 312 // SMS SEEEEEEEEEEEEEEEEEEM Jun Gun Aaradita USC
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________________ Poe00000000000000000 पुण्याढय चरित्र 1127 सन्वय या भाषान्तर 127 Screenasa अन्वयः-च अस्यां रुजिन जीवामि, मया अनशनं जगृहे, इति क्षितिन्यस्ताक्षरः करी क्षमापतेः आख्यत् // 312 // अर्थ:-वळी, आ रोगमाथी हुँ उगरी शकुं तेम नथी, माटे में अनशन लीधुं छे, एम जमीनपर अक्षर लखीने ते हाथीए राजाने (पोतानी हकिकत ) जणावी. // 312 // मध्ये पुरस्य न श्रेयो मरणं करिणामिति / जगाम सामजन्मायं शनैरुपवनावनीम् // 313 // अन्वयः-पुरस्य मध्ये करिणां मरणं श्रेयः न, इति अयं सामजन्मा शनैः उपवन अवनी जगाम. // 313 / / अर्थः-नगरनी अंदर हाथीनु मृत्यु कल्याणकारी नही, एम विचारी ते हाथी धीमेधीमे बनभूमिमा गयो. // 313 // अधः क्षिप्त्वेव कर्माणि प्रपेष्टुं प्रतिमल्लवत् / उपाविक्षदसौ वक्षःस्पृष्टदृक्पूतभूतलः॥ 314 // __ अन्वयः-प्रतिमल्लवत् कर्माणि अधः क्षिप्त्वा प्रपेष्टुं इव, वक्षः स्पृष्ट दृक् पूत भूतलः असौ उपाविक्षत्. // 314 // अर्थ:-सामे लडनारा मल्लनी पेठे कर्मोने नीचे नाखीने जाणे तेओने चूरवा माटे होय नही ! तेम दृष्टिथी जोयेली (निर्जीव) amaccica 6666666000000 Jun Gun Aaradhak Trust PPA C MS
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________________ peaceCCCCORDIESID0000000 यादय | पुण्यादय चरित्र | 124 भूमिपर कटाक्षाभस्तस्यापरि स्वर्ग लक्ष्मी कटान कटाक्षी सरखो, सान्वय भाषान्तर / 128 भूमिपर पोतानी छाती राखीने ते हाथी ( त्यां ) बेठो. // 314 // . स्वर्गलक्ष्मीकष्टाक्षाभस्तस्योपरि करिप्रभोः / पुष्पालम्बप्रभाशुभ्रो नृपेणाकारि मण्डपः॥ 314 // - अन्वयः-नृपेण तस्य करिप्रभोः उपरि स्वर्ग लक्ष्मी कटाक्षाभः पुष्पालंच प्रभाशुभ्रः मंडपः अकारि. // 314 // अर्थ:-( पछी) राजाए ते हस्तिराजनी उपर स्वर्गनी लक्ष्मीना कटाक्षी सरखो, तथा ( अंदर ) लटकावेला पुष्पोना (गुच्छाओनी ) कांतिथी श्वेत थयेलो मंडप कराव्यो. // 314 // तस्याशुभविपक्षस्य पार्श्वपक्षेषु पार्थिवः / दापयामास सुरभिद्रव्यद्वघटाछटाः // 315 // अन्वय:--अशुभविपक्षस्य तस्य पार्श्वपक्षेषु पार्थिवः सुरभि द्रव्य द्रव घटा छटाः दापयामास. // 315 // अर्थ:--अशुभ एटले मृत्युने (सूचवनारो छे ताव रूपी ) शत्रु जेनो, एवा ते हाथीनी आसपास जमीनपर, ( अथवा अशुभ एटले सूर्यना तापआदिकने अटकावनारी ते मंडपनी चारे बाजुए बांधेली कनातपर) ते राजाए सुगंधी पदार्थोना जलसम्हनो 00000000 00000000000000000000 समri ant arni ti. irala
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________________ 0000000000000000000 पुण्याढय। चरित्रं / 129/ भाषान्तर 129 00000000 छटकाव देवसव्यो. // 315 // श्राविका भावसाराश्च बन्दिनो गाथकास्तथा। इतश्चेतश्च तस्योच्चैर्जगुर्धर्मोल्बणान्गुणान् // 316 // अन्वयः-- तस्य इत:च इत: च भावसाराः श्राविकाः, बंदिनः, तथा गाथकाः उच्चैः धर्म उल्बणान् गुणान् जगुः // 316 // अर्थ-बळी ते हाथीनी आसपास भाविक श्राविकाओ, माटलोको, तथा कथाकारो उंचा स्वरथी धार्मिक स्तवनो बोलावा लाग्या. 316 भूरयः सूरयस्त्वस्य पुरस्तथ्यगिरः कथाः / कथयन्ति स्म पूर्वर्षिकीर्तिपीयूषवर्षिणीः // 317 // “अन्वयः-"तु भरया सूरयः अस्य पुरः पूर्व ऋषि कीर्ति पीयूष वर्षिणीः तथ्यगिरः कथाः कथयतिस. // 317 // अर्थ:-वळी घणा आचार्यो ते हाथीनी आगळ पूर्वे थइ गयेला ऋषिओनी कीर्तिरूपी अमृतने वरसावनारी सत्य वचनोवाळी कथाओ कहेवा लाग्या. // 317 // इत्थं शमसुखाम्भोधिमग्नो बोधिसुधां पिबन् / शकादपि द्विपोत्तंसः स्वं स धन्यममन्यत // 318 // // Jun Gun Aaradhak Trust MP.P.AC.Gunratoasuri M.S.
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________________ / oe0000000OMExeeeeees - पुण्याढय चरित्रं सान्वय भाषान्तर // 13 // ...अन्वयः-इत्थं शम सुखांभोधि मग्नः सः द्विपोत्तंस बोधि सुधां पिबन स्वं शक्रात् अपि धन्यं अमन्यत. // 18 // अर्थः-एवीरीते शांतिसुखना महासागरमा मग्न थयेलो ते हस्तिराज ज्ञानरूपी अमृतने पीतो थको पोताने इंद्रथी पण भाग्यशाली मानवा लाग्यो. // 318 // तद् वृंदं करिणः पावें निशीथे सुप्तमन्यदा। प्रदीप इव भूमीपः स्नेहादेकस्त्वजागरीत // 319 // . अन्वय:-एकदा करिणः पार्श्व तत् वृंद निशीथे सुप्तं, एकः भूमीपः तु स्नेहात्. प्रदीपः इव अजागरीत. // 319 // अर्थः-एक दिवसे ते हाथीनी आसपास रहेलो (लोकोनो) ते समूह मध्यरात्रीए निद्रावश थयो, अने फक्त एक राजाज स्नेहथी (तैलथी) दीपकनी पेठे जागतो हतो. // 319 // रोगाभोगव्यथावीर्यश्लथधैर्यस्तदा गजः / परिमीलितहग्देहभङ्गं दीनस्वरोऽकरोत् // 320 // __अन्वया-तदा रोग आभोग व्यथा अवीर्यश्लथ धैर्यः गजः परिमीलित दृग् दीन स्वरः देहभंग अकरोत् // 320 // 02002000 000000000000000000 PAAGuna MS Jun Gun Aaraamat .. .. ... ..
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________________ OX000000000000000 सन्वय भाषान्तर 1131 // पुण्यात्य अर्थ:-ते वखते रोगना घेराइ जवाथी थयेली व्याधिवडे, अने निर्बलताथी धैर्य तजीने ते हाथी आंखो वींचीने दीनस्वरे गात्रचरि भंग करवा लाग्यो. // 320 // १३श अथाह पृथिवीन्दुस्तं बन्धो रोगबलाकुलः। मा धैर्यतः पत स्तम्भ इव धर्मोऽवलम्ब्यताम् // 321 // _ अन्वयः-अथ पृथिवींदुः तं आह. (हे ) बंधो ! रोग बलाकुलः धैर्यतः मापत ? स्तंभः इव धर्मः अवलंब्यता.॥ 321 // अर्थ:-त्यारे राजाए तेने कह्यु के, हे बंधु रोगनी प्रबलताथी व्याकुल थइ तुं धीरज छोड नही, स्तंभनीपेठे धर्मर्नु अवलंबन कर.१३२१ अङ्गात्क्लेशावली रङ्गादुदस्य न्यस्यतां मनः।नमस्कारपरावर्ते तदर्तेरुद्भवः कुतः॥ 322 // अन्वयः-अंगात् क्लेशावलीः उदस्य रंगात् नमस्कार परावर्ते मनः न्यस्यता, तत् अर्तेः उद्भवः कुतः / / 322 / / अर्थः-(वळी तुं ) शरीरमाथी दुःखनी श्रेणिने दूर करीने आनंदयी नवकार गणवामा मन परोव ? अने तेथी तने व्याधिनी, CENT) उत्पतिज क्या रही ? ( अर्थात् तने व्याधि नही थाय. ) // 322 // . .. Selain06 00000000 000000000OOOOXXXX0000 P. Ac Gunratnasuri MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 132 // पुण्यात्य 5 इत्यवस्थाप्य नृपतिर्द्वपस्यार्तिचलं मनः। प्रापञ्चयस्कृती पंचपरमेष्ठिनमस्कृतीः॥ 323 // सान्वय चरित्रं ..अन्वयः इति द्विपस्य आर्तिचलं मनः अवस्थाप्य कृती नृपतिः पंचपरमेष्ठिनमस्कृतीः प्रापंचयत् // 323 // भाषान्तर / 132 / अर्थः एबी रीते ते हाथीना व्याधिथी व्याकुल थयेला मनने स्थिर करावी, ते कृतज्ञ राजा पंचपरमेष्टिना नमस्कार बोलवा लाग्यो.. दृशौ बाष्पस्पृशौ बिभ्रद्वपुः सपुलकं पुनः। हृष्यन्करी नमस्कारान्भावनाममृणोऽशृणोत् // 324 // . अन्वयः-बाष्पस्पृशौ दशौ, पुनः वपुः सपुलकं विभ्रद् भावनाममृणः करी हष्यन् नमस्कारान् अभृणोत्. // 324 // अर्थ:--आंसुओवाळी आंखोने, तथा रोमांचित थयेलो शरीरने धारण करतो थको, शुभभावना भावतो ते हाथी खुशी थइने नवकारमंत्री समिळवा लाग्यो, // 324 // .. .. सुखेन प्राप्तया दीर्घनिद्रया स्वप्नभागिव / इभप्रभुरसौ धर्मदिव्यः सौधर्मदिव्यगात् // 325 // अन्वयः--धर्मदिव्यः असौ इभ प्रभुः स्वमभाक् इव सुखेन प्राप्तया दीर्घनिद्रया सौधर्म दिवि अगात. // 325 // COLORGESTIONS OSHO
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________________ 0000000000RRY SE पुण्याढय चरित्रं सान्वय भाषान्तर 1133 // का अर्थ:--धर्मयी तेजस्वी थयेलो आ हाथी जाणे स्वप्नावस्था भोगवतो होय नही? तेम सुखे समाधे प्राप्त थयेली लांबी निद्रावडे ( मृत्यु पामीने ) सौधर्मदेवलोकमा गयो. // 325 / / AU चन्दनागुरुकर्पूरकस्तूरीणां भरैरिभम् / आ चके शोकाश्रुप्लुतदृग्नृपः // 326 // अन्वयः-शोक अश्रु प्लुत दृग् नृपः अद्वि चंदन अगुरु कपूर कस्तूरीणां भरैः इभं वहि हुतं चक्रे. // 326 // अर्थः ( पछी ) शोकना अश्रुओथी मीनी थयेली आंखोवाळा राजाए दिवस उग्ये चंदन, अगुरू, कपूर तथा कस्तूरीना समूहोथी। ते हाथीना शबनो अग्निसंस्कार कराव्यो. // 32 // . तस्य कालोचितां धर्मबद्धो बन्धोरिव क्रियाम् / विधाय दुःखदीनात्मा ययौ धाम धराधिपः // 327 // अन्वयः-बंधोः इव तस्य कालोचितां धर्मचद्धा क्रिया विधाय दुःख दीन आत्मा धराधिपः धाम ययौ. // 327 // अर्थ:-(पछी)भाइनी पेठे ते हाथीनी समयोचित धार्मिक क्विया करीने दुःखथी खेद पामतो थको ते राजा(पोताना)स्थाने गयो.३२७ 00000 SECSIGGESoccecomcaceD PP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सान्वय भाषान्तर / 134 // पुण्याढय दुःखदीर्घ दिनमयं गमयित्वा कथंचन / नृचन्द्रश्चन्द्रशालायां निशि शय्यामशिश्रियत् // 328 // चरित्रं अन्वयः--अयं नृचंद्रः दुःखदीर्घ दिनं कथंचन गमयित्वा निशि चंद्रशालायां शय्या अशिश्रियत्. / / 328 // 134 // अर्थः-पछी ते राजा दुःखथी लांबा थइ पडेला ते दिवसने मुंशीबते निर्गमनं करीने रात्रिए चंद्रशालामा शय्यापर जई सतो. * श्वासोच्छवासोल्लसच्छोकशंकुसंकुल्यमानहृत् / निद्रामलभमानोऽयमित्यन्तः समचिन्तयत्॥३२९ // अन्वयः-श्वास उच्छवास उल्लसत् शोक शंकु संकुल्यमान हृत्, अयं निद्रा अलभमानः अंतः इति समचिंतयत् / / 329 / / अर्थः-श्वासोश्वासथी उछळता एवा शोकरूपी खीलाथी वींधाइ जतुं छे हृदय जेनु, एवो आ राजा निद्रा न आववाथी (पोताना) हृदयमा एको विचार करवा लाग्यो के, // 329 // बहुदेशमहैश्वर्यश्रियापि मम किं तया / मृतेऽस्मिन्सिन्धुरे कृत्तधम्मिल्लेव बभूव या // 330 // अन्वयः-तया बहु देश महा ऐश्वर्य श्रिया अपि मम किंी असिन् सिंधुरे मृते या कृत्वधमिल्ला इव बभूव. // 330 // SSSSSS 000000 M.in AGE ta eatuut.chandaknitialithpot.
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________________ POSE S SIONSIDEO500 पुण्याय चरित्रं 135 // साम्बय भाषान्तर 1135 अर्थ:-तें घणा देशाना महान वैभववाळी (आ) लक्ष्मीवडे पण हवे मने शो ( आनंद ) थवानो छे? केमके ते हस्तिराजना मृत्युथी जे लक्ष्मी कपाइ गयेला चोटलावाळी (स्त्रीनी) पेठे (कंटाळो आपनारी) थइ पडी छे. // 330 // तारयेव विना दृष्टिरात्मनेव विना तनुः। कीदृशी भाति मे भूमिस्तेनेभविभुना विना // 331 // ___ अन्वयः-तारया विना दृष्टिः इव, आत्मना विना तनुः इव, तेनं इभ विभुना विना में भूमिः कीदशी भाति? // 331 // अर्थ:-कीकी विनानी जेम आंख, तथा जीव विनानुं जेम शरीर, तेम ते हस्तिराज विना मारी पृथ्वी ते केवीक शोभी निकळे? दृगिन्द्रियेण किं मेऽद्य किमु कर्णेन्द्रियेण वा / येन दृश्यं न तद्रूपं येनाकण्यों न तद्ध्वनिः॥ 332 // अन्वयः-येन तद्रुपं न दृश्यं, हग्इंद्रियेण अद्य मे किंी वा येन तद्ध्वनिः न आकर्ण्यः, कर्णेद्रियेण किमु , 332 // अर्थ:-जे वडे ते हाथीनुं स्वरूप न जोइ शकाय, ते चक्षु इंद्रिय हवे मारे शुं प्रयोजन छे? अथवा जे वडे ते हाथीनो नाद न संभळाय, ते कणेंद्रियर्नु पण मारे शुं प्रयोजन के // 332 " .... . ... . .. Daceeeeeecreccamceed Jun Gun Aaradhak Trus PA Gunratasun MS
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________________ OGSSSCDCCCIENCIENCESS सान्धय पान्तर पुण्याय चरित्र भ्रमन्ती यत्न तत्रापि खिन्नेयं नयनद्वयी। तद्विलोकसुधापानं विना तप्ता व शाम्यतु // 333 // अन्वयः-यत्र तत्र भ्रमंती अपि खिन्ना तप्ता इयं नयनद्वयी तद्विलोकसुधापानं विना कशाम्यतु? // 33 // अर्थ:-ज्या त्या भमवाथी पण थाकीने तप्त थयेली आ (मारी) बन्ने आंखो ते हाथीना दर्शनरूपी अमृतपान विना हवे क्याथी शांत थाय! // 23 // पुरातनानि मे सन्ति यदि पुण्यानि कानिचित् / तैरध्वनि दृशोरेकवारमेतु स वारणः॥ 334 // अन्वयः यदि मे कानिचित् पुरातनानि पुण्यानि संति, तैः स वारणः एकवारं दृशोः अध्वनि एतु. // 334 // KEY) अर्थ:-जो (हजु पण) मारा कइंक पूर्वे करेला पुण्यो होय, तो ते पुण्योवडे ते हाथी एकवार (मारी) दृष्टिमार्गमां आवे, अर्थात् मने तेनु दर्शन थाय) // 334 // इति क्षितिपतिया॑यन्नेत्राग्रे गजमैक्षत / अल्पकल्पद्रुनैपुण्यं पुण्यं पुण्यवतां यतः // 335 // Dece08810 00000000000000000000
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________________ 000000000000000OORDAR पुण्याच चरित्र 1137 सान्वय भाषान्तर 1137 अन्वयः - इति ध्यायन् क्षिविपतिः नेत्राये गज ऐक्षत, यतः पुण्यवतां पुण्यं अल्प कल्पद्रु नैपुण्यं. // 335 / / अर्थः-एम विचारतांज (ते ) राजाए (ते ) हाथीने पासे (उमेलो ) दीठो, केमके पुण्यवंतोनुं पुण्य कल्पवृक्षना महिमाने पण हठावनारुहे. // 335 // शोकाश्रूण्यथ हर्षाश्रूकुर्वन्नुर्वीन्दुरुत्थितः / आलिङ्गद्धस्तिनस्तस्य हस्तं हस्तोरसा रसात् // 336 // "अन्वया-अथ शोकाश्रुणि हर्षाणि कुर्वन् उवींदु: उत्थितः, तस्य हस्तिनः हस्तं रसात् हस्तोरसा आलिंगतः / / 330 // अर्थ:-पछी ते शोकना बांसुओने हर्षना आंसुरूप करतो. एवो ते राजा उभोथयो, अने ते हाथीनी सुंढने आनंदरसथी हाथमा पकडी (पोतानी) छाती साथे दाखवा लाग्यो.) // 336. // .. ... ... दध्यौ च किं मयादर्शि स्वप्ने व्यसुरसौ गजः।मृत एवाथवा जीवन्नेष स्वभान्निरीक्षितः॥ 337 // अन्वयः-च दध्यौ, किमया असौ गजा स्वप्ने व्यसुः अदशि ? अथवा मृत एव एषः स्वप्नात् जीवन् निरीक्षितः // 337 //
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________________ Dec00000000000000000 पुण्याढ्य चरित्र 1138 भाषान्तर अर्थ:-“वळी ते विचारता लाग्यो के, शं में आ हाथीने स्वप्नमा मृत्यु पामेलो जोयो ! अथवा आमरण पामेलाज हाथीने ई स्वप्नमा जीवतो जोर्ड कुं! // 337 // मृतो न जीवतीत्युक्तिर्जिनशासनशास्त्रगा। कथंचिदन्यथापि स्यात्किं वा कालेन केनचित // 338 // अन्वयः-या मृतः न जीवति, इति जिनशासन शास्त्रगा उक्तिः केनचित् कालेन कथंचित् किं अन्यथा अपि स्यात् // 338 // अर्थः-अथवा "मरेलो जीवतो न थाय" ए जिनशासनना शास्त्रोनुं वचन कोइ काळे कोइ रीते शुं जुटु होइ होय शके १३५वार इत्यनल्पविकल्पालिं जजल्पालिडनोन्मदम् / नृपं द्विपवरः स्मेरविस्मयं दिव्यया गिरा // 339 // -अन्वय:--इति अनल्प विकल्पालिं, आलिंगनोन्मदं, स्मेरविस्मयं नृपं द्विपवरः दिव्यया गिरा जजल्प. // 339 / / अर्थः-एवीरीते अनेक विकल्पोनी श्रेणिवाळा, तथा ( ते हाथीने) भेटवामा अत्यंत उत्सुक थयेला, अने धणें आश्चर्य पामता एवा (ते) राजाने (ते) इस्तिराजे देववाणीवडे कधु के, // 339 //
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________________ 00000000000000000000 पुण्याव्य चरित्रं / 139 सान्वय भाषान्तर 1139 // हहा हात्मन्मोहस्त्वां किं ध्वान्तोऽर्कमिवाविशत् / यदन्यथा जिनमतग्रन्थोक्तमपि शङ्कसे // 340 // अन्वयः-हहा! महात्मन् ! अकं ध्वांत इच त्वां मोहः किं अविशत् / यत् जिन मत ग्रंथउक्त अपि अन्यथा शंकसे ! // 30 // अर्थ:--अरे ! महात्मा ! सुर्यमा अंधकारनी पेठे तारामा पण शुं मूढपणुं पेसी गयुं ? के जेथी जिनशासनमां कहेला वचन माटे पण तुं असत्यपणानी शंका करे छे१॥३४०॥ ममृत एवास्मि नाजीवमहं राजीवलोचन / विचार्या चन्द्रशालान्तर्दन्तिनामागतिः कुतः॥३४१ // ' अन्वया-(हे) राजीवलोचन ! अहं मृतः एव अस्मि, न अजीवं, चंद्र शालाअंत: दंतिना आगतिः कृतः ? विचार्या // 34 // अर्थ:-है कमल सरखा नयनवाळा राजन् / हुमरी गयोज छु, जीवतो नथी, वळी तारे विचारवू जोइतुं हतुं के, आ चंद्रशालानी अंदर हाथीनुं आगमन केम संभवी शके 1 // 341 // . दृष्टोऽस्मि यन्मृतो यन्मे रूपमेतच्च पश्यसि / अवनतुल्यं न स्वप्नाविमी स्वप्नः क्व जामतः // 342 // DESIS906 SE000000000000000000
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________________ पुण्याढ्य चरित्रं AN सान्वय भाषान्तर 140 / 140 a अन्वय- यत् मृतः दृष्टः अस्मि, च मे अस्वन्न तुल्यं एतत् रूपं पश्यासि इमौ स्वप्नौ न, जाग्रतः स्वतः क्व // 342 // -अर्थः-वळी जे (मने )मरेलो तें जोयो छे, तेमज मारुं स्वप्न जेवू नही, एवं आ स्वरूप तुं (प्रत्यक्ष) जुए छे. माटे ए पन्ने स्वप्नो नथी, केमके जागता मनुष्यने स्वप्न ते क्याथी होय. ? // 342 // , : तदनल्पयशाशिल्प तल्पमेतलंकुरु / कथयामि यथा भूप खरूपमहमात्मनः॥ 343 // अन्वयः--तत् (हे) अनल्पयशः शिल्प ! एतत् तल्पं (स्वं) अलंकूरु ? यथा (हे) भूप! अहं आत्मनः स्वरूपं कथयामि. // 34 // अर्थ:-माटे हे अतिशय यशनी छापवाळा राजन् ! तुं आ (तारी) शय्याने शोभाव? (अर्थात् शय्या पर बेस के जेथी हे राजन् हु (मारु) पोतानुं वृत्तांत तने कही संभळाबु.॥ 343 // अथोदारचमत्कारस्तच्चकार धराधवः / श्रोतुं तच्चरितं कण्डप्रवणश्रवणद्वयः॥ 344 // अन्वयः--अथ उदार: चमत्कार धरा धवः तत् चरित्रं श्रोतुं कडूक प्रवण श्रवण द्वयः तत् चकार. // 344 // 00000000000000
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________________ D000000000000000000 पूयाय सान्वय भाषान्तरे // 41 // चरित्र 000001010 अर्थ:--पछी अति आश्चर्य पामेला ते राजाए तेनुं वृत्तांत सांभळवाने ( पोताना ) बन्ने कानोने खजवाळी सावधान करी तेम कयु, ( अर्थात् ते शय्यापर बेठो.) // 34.4 / / स्वान्तस्थसुकृताम्भोधिसुधोमिनिभवागिभः। अवदन्मदमत्तालिकण्ठतालान्कठोरयन् // 345 // ... अन्वयः-- स्वातस्थ सुकृत अंभोधि सुधा उमि निभ वाक् इभः मदमत्त अलि कंठ तालान कठोरयन् अवदत् / / 345 // अर्थः-हृदयमा रहेला पुण्यरूपी अमृतना महासागरना मोजांओ सरखी वाणीवाळो ते हाथी, मदोन्मत्त भमराओना कंठना अवाजनी पण कठोरता जणावतो थको बोलवा लाग्यो के. // 345 / / राजन्नाजन्मनिर्व्याजध्यातधर्मपिधायिना / मृत्युक्षणे व्यथौधेन मोहितोऽहमचिन्तयम् // 346 // अन्वयः-(हे) राजन्! मृत्युक्षणे आ जन्म निर्व्याज ध्यात धर्म पिधायिना व्यथा ओघेन मोहितः अहं अचिंतयं / / 346 // अर्थ:-हे राजन्! मृत्युसमये छेक जन्मथी मांडीने निष्कपटपणे पाळेला धर्मने (पण) आच्छादित करनारा एवा व्याधिना DOGGGeeccccxerciseased HRP-AR GuaratnasuriM.S. Jun Gun AD
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________________ पुण्याढय चरित्रं सान्वय भाषान्तर / 142 // 142 // 000000000000X समूहथी मूढ थयेलो हुं (ए) चिंतवया लाग्यो के, 346 // नित्याहृतनृपद्रव्या न व्याधिं ये हरन्ति मे / तान्वैद्यान्यदि पश्यामि तन्नयामि यमालयम् // 347 // __ अन्वयः-नित्याहृतनृपद्रव्याः ये मे व्याधि न हरंति, तान वैद्यान् यदि पश्यामि, तत् यमालयं नयामि. // 347 // अर्थ:-हमेशा राजानु (हरामर्नु) द्रव्य खानारा, एवा जे यो मारी व्याधिने मटाडता नथी, तेओने जो हुं (आ समये) जोर्ड तो यमने घेर मोकलावं, (अर्थात् मारी ना.) / / 347 / / ... BY इति रौद्रतरथ्यानरधोऽधःपातिनं तदा। मामुद्दधार श्रीधर्मस्त्वगिरा जातजागरः॥ 348 // GENR अन्वय:--तदा इति रौद्रतरध्यानः अधः अध: पातिनं मां त्वगिरा जातजागरः श्रीधर्मः उद्दधार. // 348 // . अर्थ:--ते वखते एवी रीते वधारे वधारे रौद्र ध्यानथी नीचे नीचे पडता एवा मने, तारा वचनथी जागृत थयेला श्रीजैनधर्मे औषर्यो, (अर्थात् नरकमा जतो बचाव्यो.) // 348 // Geeeeeeeeeeeeee SIGunratnasura MS. dun Gun Aaradhak Trus! SAdounlod
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________________ peeeeeeeeeCREDIENDS सान्वय भाषान्तर पूण्यालय चरित्र 1143 // 143 // परमेष्ठिनमस्कारसुधाब्धिलहरीभरैः / क्षिप्तः सौधर्मकल्पेऽहं त्वन्मुखेन्दूदितैस्तदा // 349 // अन्वयः--तदा त्वत् मुख इंदु उदितैः परमेष्ठि नमस्कार सुधाब्धि लहरी भरै. अहं सौधर्म कल्पे क्षिप्तः // 349 // . अर्थः--ते वखते तारा मुखरूपी चंद्रथी उछळता पंचपरमेष्ठिना नमस्काररूपी अमृतना समुद्रनां मोजाओनां समूहोए मने सौधर्मदेवलोकमां हडसेली दीधो. 342 // प्राप्य सौधर्मदेवत्वं ममेहग्वैभवं कुतः। इत्याशु ध्यायतादर्श तन्निमित्तं मया भवान् // 35 // ___ अन्वयः--सौधर्मदेवत्वं प्राप्य " मम ईडग् वैभवं कुतः इति आशु ध्यायता मया तत् निमित्तं भवान् अदर्शि. // 350 // अर्थः--(ए रीते) सौधर्मदेवलोकमां देवपणु पामीने "मने आवी, समृद्धि केम मळी?" एम तुरत. विचारतों में तेना कारणरूप तमोने जोया // 50 // सन्नागविरहार्तस्य सद्यः प्रीतिकृते तव / मुक्तोरुदिव्यरूपश्रीस्त्वामागां नागरूपभाक् // 351 // 0000000000000000000 P.P.AC. Gunratnasun M.S. Jun-Gun Aaradhak Trust
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________________ DOX9X91009999999999998198 पुण्याइय चरित्र 144 // सान्वय भाषान्तर / 144 // ___अन्वयः-तत् नागविरह आर्तस्य तव सद्यः प्रीतिकृते मुक्त उरु दिव्य रूपश्रीः नाग रूप भाक् स्वां आगां. // 351 // अर्थः-(पछी) ते हाथीना विरहथी पीडाता एवा जे तमो, तेने तुरत खुशी करवा माटे देवसंबंधि मनोहर रूपनी शोभाने तजी हाथीनुं स्वरूप लेइ हुं तमारी पासे आव्यों छु. // 351 // प्रभुत्वं स्वप्रसादस्य मयि पश्येति स द्विपः। तदिव्यं दर्शयामास स्वं वप्पू रविपररुक // 352 // ___अन्वयः-मयि स्वप्रसादस्य प्रभुत्वं पश्यः इति सः द्विपः रविपूररुक् स्वं तत् दिव्यं वपुः दर्शयामास. // 352 / / अर्थः-मारा उपर तमोए करेली मेहेरबानीनो वैभव तो जुओ? एम कही ते हाथीए सर्योना समूह सरखी कांतिवाळं पोतान ते दिव्य शरीर (तेने) देखाड्यु. // 352 // जीवतो भोगदस्त्वं मे नियमाणस्य धर्मदः / तत्प्रभुश्च गुरुश्चासि शून्यहस्तेन नेक्ष्यसे // 353 // ..अन्वयः-जीवतः में त्वं भोगदा, म्रियमाणस्य धर्मदः, तत् प्रभुः च गुरुः च असि, शून्यहस्तेन न ईक्ष्यसे. // 353 // 0000000000000000000 Jurn. Gun Aaradhakig
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________________ Demoneysey पूण्याय चरित्रं सान्वय भाषान्तर अर्थ:-मने जीवतां छतां तमोए भोजन आदिक भोगो पूरा पाड्या छे, तथा मृत्युसमये तमोए मने धर्मदान कयु छे, तेथी। तमो मारा शेठ अने.गुरु छो, माटे खाली हाथे तमारां दर्शन कराय नही. / / 353 / / पारिजाततरोः वर्गलक्ष्मीलक्षणलक्ष्मणः। गृहाणेदं फलं राजन्नसैराजिमितामृतम् // 354 // अन्वयः-(हे) राजन्! स्वर्ग लक्ष्मी लक्षण लक्ष्मणः पारिजाततरोः रस आजिमितामृत इदं फलं गृहाण ? // 354 / / NEL अर्थ:-(माटे). हे राजन्! स्वर्ग लक्ष्मीने जाणवाना चिन्ह सरखा कल्पवृक्षनु, रसवडे अमृतनो पण तिरस्कार करनारु आ फल तमो ग्रहण करो // 364 // - सद्य एवेदमाखाद्यं क्षाल्योऽस्य रसनिरैः / भवद्भाग्यविधोः पङ्को वपुःसंकोचविप्लवः // 355 // अन्वया-सद्यः एव इदं आस्वाय, अस्य रस निझरैः भवद्भाग्य विधोः वपुः संकोच विप्लवः पंकः क्षाल्यः // 35 // अर्थः-(वळी) तुरतज आ फल तमारे खावं, अने आ फलना रसनी धाराबडे तमारा भाग्यरूपी चंद्रनो शरीर संकोचननी Q0000000 00000000 GeecccccccIGGEOGoocco A PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ peleREMEMEERRORIENDRISMENTS पुण्यादय चरित्र 1466. सान्वय भाषान्तर 1146 खोडरूप मेल घोइ नाखवो. // 355 // . .. इदं निगदता तेन तद्दत्तं घुसदा फलम् / आदाय नृपतिः प्रीत्या प्रत्याह स हसन्वचः // 356 // अन्वयः-इदं निगदता तेन धुसदा तत् फल दत्तं, सः नृपतिः प्रीत्या आदाय हसन् वचः प्रत्याह. // 356 // अर्थः-एम कहेता एवा ते देवे ते फल (तेने) आप्यु. (त्यारे) ते राजा प्रीतिथी ते लेइने हसतो थको वचन बोल्यो के, // 356 // आसन्नमुक्तपशुतासुलभं मोहमुद्वहन् / किं विवेकिन्फलखादं निशायां दिशसि स्वयम्॥३५७॥ अन्वयः-(हे) विवेकिन् ! आसन्न मुक्त पशुता सुलभ मोहं उद्वहन स्वयं निशायां फलखादं किंदिशसि? // 357 // अर्थ:-हे विवेकी! तरतमांज छोडेला पशुपणाने लायक एवी मूढताने धारण करतो थको (तुं) पोते रात्रिए फल खावानो उपदेश केम आपे छे? // 357 // . सुरमुख्य ममेदानी वपुषः पाटबेन किं / नैन्यादिलाभलोमेऽपि जन्यं रजनिभोजनमः // 35 // .. QU00300 - 000000000000000000 MisshuhRAA NAVA
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________________ DODISODSDOE00000 PRAAT पूण्याढय चरित्र 1147 सान्वय भाषान्तर 1145 - अन्वयः--(हे) सुरमुख्य! इदानीं मम वपुषः पाटवेन किं ? ऐंयादि लाम लोमे अपि रजनि भोजनं न जन्यं. // 358 // अर्थः--हे उत्तम देव! हवे मारे शरीर सारं करवानुं शुं काम छे ? वळी इंद्रपणुं आदिक मेळववाना लोभथी पण रात्रिभोजन न करवू जोइये. // 358 // .... आहतं दुःखपराय विमुक्तं पुण्यपंक्तये / स्यान्निशाभोजनं हन्त हंसकेशवयोरिव // 359 // ___ अन्वयः--हंत हंसकेशवयोः इव आहतं निशाभोजनं दुःखपूराय, विमुक्तं पुण्यपंक्तये // 35 // अर्थ:--अरे ! हंस अने केशवनी पेठे करेलुं रात्रिभोजन दुःखोनो समूह देनारं, अने छोडेलु रात्रिभोजन पुण्योनी श्रेणि आपनारं थाय छे. // 359 // तद्यथा पृथिवीकान्ताकुण्डलं कुण्डिनं पुरम् / अस्ति मुक्तास्त्रगाकारप्राकारपरिवेषभृत् // 360 // अन्वयः-तत् यथा-पृथिवी कांता कुंडलं, मुक्का लगाकार प्राकार परिवेषभृव कुंडिनं पुरं अस्ति. // 36 // . 00000000 PISAC Gunratnasur MS. Jun Gun Aaradhake Trust
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________________ 023X2000990099900000 पुण्याढ्य चरित्र / 1480 सान्वय . भाषान्तर 1148 अर्थः-ते आवी रीते-पृथ्वीरूपी बीना कुंडल सरल, अने मोतीनी माळा सरखा गढथी घेरायेलु कुंडिनपुर नामे नगर छे. 360. तस्मिन्यशोधनो नाम यशोधवलितावनिः / बभूव नवद्रव्योपार्जकचूडामणिर्वणिक् // 361 // अन्वयः--तस्मिन् यशोधवलितावनिः, नव द्रव्योपार्जक चूडामणिः यशोधनः नाम वणिक् बभूव // 361 // अर्थ:-ते नगरमां यशवडे श्वेत करेल छे पृथ्वी जेणे, तथा नवु द्रव्य उपार्जन करनाराओमा मुकुट सरखो यशोधन नामे वणिक ( रहेतो) हतो. // 361 / / अभूतां भुवनानन्दचन्दनौ तस्य नन्दनौ / रम्भाकुक्षिसरोम्भोजश्रोहंसौ हंसकेशवी // 362 // EN) अन्वयः-तस्य भुवनानंद चंदनौ, रंभा कुक्षि सरः अंभोज श्रीहंसौ हंसकेशवौ नंदनौ अभूतां. // 362 // - अर्थ:-ते शेठने जगतने आनंद करवामां चंदन सरखा, तथा रंभानी कुक्षीरूपी तळावमा रहेला कमळने शोभावनारा हंससरखा GD) हंस अने केशव नामना चे पुत्रो हता. // 362 // 00000000 08233000000000000000
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________________ सान्वय भाषान्तर 149) 0000000000000000000 पुण्यादयः / ये दोषाभोजने दोषा धर्मघोषाभिधाद्गुरोः / वनं गताभ्यां ते ताभ्यां देशनासु निशामिताः // 363 // चरित्रं अन्वयः-वनं गताभ्यां ताभ्यां धर्मघोषाभिधात् गुरो देशनासु दोषा भोजने ये दोषाः, ते निशामिताः॥ 363 // 1149/ - अर्थः-वनमा गयेला एवा ते बन्ने भाइओए धर्मघोष नामना गुरु पासेथी उपदेशमारफते रात्रिभोजन करवामां जे दोषो रहेला ) छे, ते सांभळ्या . / / 363 / / . तो बोधात्तं गुरुं साक्षीकृत्य कृत्यविवेकनौ। रजनीभोजनत्यागं मुदितौ चक्रतुस्ततः॥३६४ // - अन्वयः-ततः बोधात् तं गुरुं साक्षीकृत्य कृत्य विवेकिनौ तौ मुदिती रजनी भोजन त्यागं चक्रतुः / / 364 // ... | अर्थः-त्यारथी बोध पामीने, तेज गुरुने साक्षीरूप करीने कार्यनो विवेक धरनारा एवा तेओ बन्नेए खुशी थइने रात्रिभोजननो त्याग को. // 364 // . अथ धाम्नि गतौ मध्यंदिने जनितभोजनौ / भागेऽष्टमेऽहस्तौ मातुर्वैकालिकमयाचताम् // 365 // 0000000 OOOOOOOOOOOOOOOOO000 Jun Gun Aaradhak Trust POP.P.AC.Guriratnasun M.S.
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________________ peeDEREDESIGIReema सान्वय भाषान्तर 150 पुण्याढय - अन्वयः--अथ मध्यंदिने जनित भोजनौ तौ धाम्नि गतौ अन्हः अष्टमे भागे मातुः वैकालिकं अयाचतां // 365 // . चरित्रं अर्थः-हवे मध्यान्हकाळे करेलुं छे भोजन जेओए, एवा तेओ पन्ने घेर गया, तथा दिवसनो आठमो भाग ज्यारे वाकी 150 रह्यो, त्यारे तेओए (पोतानी) माता पासे वाळु करवामाटे भोजन माग्यु. // 365 // . ................... (D) किं भोज्यमधुना वत्सौ यतो दुग्धप्रियौ युवाम् / तत्पुनः स्थितवेलायां निशि स्यात्तत्किमुत्सुकौ // 366 // इति मातुर्वचः श्रुत्वा तौ सत्यमिदमूचतुः। आवाभ्यां नियमान्मातस्तत्यजे रात्रिभोजनम् ॥३६७॥युग्मम्॥ अन्वयः-(हे) वत्सौ! अधुना कि भोज्यं यतः युवां दुग्धमियो, तत्पुनः स्थितवेलायां निशि स्यात्, तत् किं उत्सुकौ? 366 / इति मातुः वचः श्रुत्वा तौ इदं सत्यं ऊचतुः, (हे) मातः! आवाम्या नियमात् रात्रिभोजनं तत्यजे. // 367 // युग्म। अर्थः-) पुत्रो आ बखते तमो शुं जमशो? केमके (वाळ करवामा) तमोने दूध जोइशे, अने ते तो नियमित वखते रात्रिएज मळी शकशे, माटे तमो शमाटे उतावळ करो छो? // 365 // एदी रीतनुं मातानुं वचन सांभळीने तेओए आ प्रमाणे सत्य का QQQQ0000000000OOONOG
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________________ 0999999999999999 पुण्यादय चरित्र सान्वय भाषान्तर 1151 के, (हे) मातजी! अमोए नियम लेइ रात्रिए भोजन करवानो त्याग कर्यो छे. // 367 // युग्मं / / इदं गर्भगृहस्थेन निशम्य वचनं तयोः / यशोधनेन सक्रोधं दध्ये मध्ये हृदस्तदा // 368 // . अन्वयः-तदा तयोः इदं वचनं निशम्य गर्भगृहस्थेन यशोधनेन सक्रोधं हृदः मध्ये दध्ये. // 368 // अर्थः–ते वखते तेओर्नु आ वचन सांभळीने ओरडामा रहेला यशोधने क्रोध सहित मनमा विचार्यु के, // 368 // ध्रुवं धूर्तेन केनापि सुतौ मे विप्रतारितौ। ततः कुलकमायातं त्यजतो रात्रिभोजनम् // 369 // __ अन्वयः-ध्रुवं केन अपि धृतेन मे मुतो विप्रतारितो, ततः कुल क्रमायातं रात्रिभोजनं त्यजतः // 369 // अर्थ:-खरेखर कोइक पण धूताराए मारा पुत्रोने ठग्या छे, अने तेथी कुलपरंपराथी चाल्या आवता रात्रिभोजननो तेओ त्याग करे छे. // 369 // तदवश्यं बुभुक्षातौं कृत्वा द्वित्रैर्दिनैः सुतौ / त्याजयिष्यामि तं रात्रिभोज्यत्यागकदाग्रहम् // 370 // 00000000 DECECeleccccccccccced P PP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 0000000000000000000 पुण्याय चरित्रं सान्षय भाषान्तर 1152 // 1152 // 00000000 अन्वय:-तत् अवश्यं सुतौ द्वित्रः दिनः बुभुक्षातों कृत्वा तं रात्रिभोज्य त्यागः कदाग्रहं त्याजयिष्यामिः // 370 // , अर्थः-माटे खरेखर आ पुत्रोने बे त्रण दिवसोमुधी भुख्या राखीने ते रात्रिभोजनना त्यागना दुराग्रहने छोडावीश. // 370 // एवं चिन्तयता-तेन सभा स्थालार्थमागता / सुतयोर्भोजनं देयं नेति च्छन्नं न्यवार्थत // 371 // अन्वयः-एवं चिंतयता तेन स्थालार्थ आगता रंभा सुतयो भोजनं न देयं, इति छन न्यवार्यत. // 371 // अर्थ:--एम विचारता एवा ते यशोधने स्थाला लेवामाटे (ओरडामा) आवेली रंभाने "तारे पुत्रोने भोजन आपq नही" शम गुप्तरीते निवारण कयु. // 71 // भर्तुसज्ञावशादेषा तावेल्यावददित्यथ / अन्नपाकोऽधुना भावी पक्वान्नाद्यस्ति वस्तु न // 372 // ...अन्वया-अथ अर्तुः आज्ञावशात् एषा एत्य तौ इति अवदत् / अधुना अन्नपाका भावी, पक्वान्न आदिवस्तु न अस्ति. // 37 // अर्थः- हवे स्वामिनी आहाने वश थवाथी तेणीए (बहार )आवी ते पुत्रोने एम कथु के, रसोइ हजु हवे थशे, अने पक्वान्नाआदि 00000000000000000000 SEP.AC.Sunratnasuri M.S. Vaishakickasini n diawaatementionedaalanilwsni.lion.imaadamian NishalGAANK
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________________ N DO000000 सान्वय भाषान्तर 153 // 13 // पुण्याय 59 कई वस्तु हाजर नथी. // 372 // चरित्रं किं च रात्रौं सम पित्रा युवाभ्यां भोज्यमेव यत् / कुलीनास्ते सुता ये स्युः पितृमार्गानुगामिनः // 373 // अन्वयः-किच रात्रौ युवाभ्यां पित्रा सम एव भोज्यं, यत् कुलीनाः ते सुताः स्युः, ये पितृमार्ग अनुगामिनः // 373 // अर्थ:-वळी रात्रिए तमारे (तमारा) पितानी साथेज भोजन करवू, केमके कुलीन ते पुत्रोज कहेवाय, के जेओ पिताने मार्गेचाले. स्मित्वा तावूचतुर्मातः सन्मार्गः सेव्यते पितुः / सुपुत्रैरपि किं कूपे पतस्तातोऽनुगम्यते // 374 // अन्वय:-स्मित्वा तौ ऊचतुः, (हे ) मातः सुपुत्रैः अपि पितुः सन्मार्ग: सेव्यते, कूपे पतन् वातः किं अनुगम्य ? // 374 // अर्थ:--(त्यारे ) तेओए जरा हसीने को के, (हे ) माताजी सुपुत्रो पण पिताना उत्तम मार्गने अनुसरे, परंतु कुवामां पडता पितानु पण शु तेओ'अनुगमन करें। // 374 // ... D) तहि सम्प्रति लप्स्येथे न युवा भोजन सुतौ / भत्रित्युक्ती ततो भौनं कृत्वा ती जग्मतुहिः॥ 375 // accordina O000000000000000 P.PAC Gunanasun MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ DO0000000000000000 पुण्याढय चरित्रं प्र सान्वय भाषान्तर / 154 // 154 // 00000000 ) ___ अन्वयः-( है ) मुतौ ! तर्हि संपति युवां भोजनं न लप्स्येथे, इति मात्रा उक्तौ तौ मौनं कृत्वा ततः बहिः जग्मतुः // 375 // अर्थ:-हे पुत्रो त्यारे तो हमणां तमोने भोजन मळशे नही, एम माताए कहेवाथी तेओ मौन रही त्यांथी बहार चाल्या गया.३७॥ . श्रेष्ठिनः सुतयोर्वाक्यं मिथ्यादृष्टेर्जगत्प्रियम् / विशेषादोषकृजज्ञे ज्वरार्तस्य हविर्यथा // 376 // अन्वयः-यथा ज्वरातस्य हविः, सुतयोः जगत्प्रियं वाक्यं मिथ्यादृष्टेः श्रेष्ठिन: विशेषात् दोष कृत् जज्ञे. // 376 // अर्थ:-जेम ताववाळाने खवराबेलुं घी, तेम ते पुत्रोनुं जगतने गमतुं एवं पण ते वाक्य मिथ्यादृष्टि एवा ते यशोधन शेठने विशेष प्रकारे दोष उत्पन्न करनारुं थयु. // 376 // भवत्या भोजनं देयं रजन्यामेव पुत्रयोः / इत्थंमत्यर्थशपथैः श्रेष्ठी रम्भामवारयत् // 377 // ____ अन्वयां-भवत्या पुत्रयोः रजन्यो एव भोजनं देयं, इत्थं अत्यर्थशपथैः श्रेष्ठी रंभा अवारयत्. / / 377 // अर्थ:-तारे (आ) पुत्रोने फक्त रात्रिएज भोजन आप, एम आकरा सोगनो आपीने ते यशोधन शेठे रंभाने निवारण कर्य. 1377 // 00000000000000000000 Marathi M aithikatunts..MALDaiMailnalo.indidian....
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________________ सान्धय भाषान्तर 000000000000000000000 पुण्यादय जनन्याथ रजन्यां तावागतावर्थितावपि / न भोजनं महासत्त्वचक्रिणौ चक्रतुस्तदा // 378 // चरित्र - अन्वयः-अथ रजन्यां आगतौ जनन्या अर्थितौ अपि महासत्त्वचक्रिणौ तौ तदा भोजनं न चक्रतुः // 378 // 1155 अर्थः-पछी रात्रिए आवेला एवा तेओने माताए समजाव्या छतां पण धैर्यवंतीमां शिरोमणि एवा तेओए ते वखते भोजन कर्युनही.३७८ : द्वितीयेऽह्निशठश्रेष्ठः श्रेष्ठी तो विशदाशयौ / क्रयविक्रयलीलासु न्ययुक्त महतीष्वसौ॥३७९॥ ' अन्वयः-द्वितीये अति असौ शठश्रेष्ठः श्रेष्ठी विशदाशयौ तौ महतीषु क्रयविक्रयलीलासु न्ययुक्त. // 379 // अर्थ:-बीजे दिवसे आ अत्यंत लुचा एवा यशोधन शेठे निर्मल विचारवाळा एवा ते बम्ने पुत्रोने महोटा लेवढदेवडना (CT) म्यापारमा जोडी दीघा. // 379 // तथा लाभरसाभोगभङ्गीभिस्तो विलेसतुः / तदेव कुर्वतोः कर्म यथागान्निधनं दिनम् // 380 // 'अन्वयः-लामरसाभोगभंगीभिः तौ तथा विलेसतुः, यथा तत् एव कर्म कुर्वतोः दिनं निधनं अगात्. // 38 // Deveaucceed 000000000000000000 Sun Gunarak P.P.AC.Gunratnasur-M.S.
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________________ peec000000MTIODICTION सान्धय पुण्याढय चरित्रं भाषान्तर 1156 अर्थः (ते व्यापारमा ) केटाव थवाना रसना स्वादनी युक्तिओवडे तैऔ बन्ने एटला तो मशगुल थया, के जेथी ते कार्य करतोज तेओनी आखो दिवस व्यतीत थयो. // 380 // ती धाम यामिनीयामसमये समुपागतो। अभुक्त्वैवापतुः स्वापं तदभिग्रहसाग्रही // 381 // अन्वयः-यामिनी याम समये घाम समुपागतौ तदभिग्रह साग्रही तो अभुक्त्वा एव स्वापं आपतुः // 38 // अर्थ:-रात्रिने पहले पहोरे घेर आन्याबाद पोताना नियममा निश्चल एवा तेओ बन्ने भोजन कर्या विनाज उघी गया. // 38 // इति व्यवहति पित्रा कार्यमाणो रसैन तौ / अजातभोजनावेव प्रसुती पश्च शर्वरीः // 382 // अन्वयः-इति पित्रा व्यवहति कार्यमाणौ तौ रसैन अजातभोजनौ एवं पंच शरी: प्रसुप्तौ. // 342 // अर्थः-एवी रीते पिताए व्यापारमा जीडेंला एका तेओं बने (तेना) रसथी भोजन कर्याविनाज पांच रात्रिसुधी सुइ रहा. षष्ठऽहनि निशारम्भे सभेजतुस्मिी गृहम् / आचष्ट च वचः श्लक्ष्णं विनयेन यशोधनः // 383 // 00000000000000000000 PRASWERS HD SERIES CERA CAMERA MAIRMANANTRA ...... . KantieRNIMAR
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________________ 999999999999999999 पुण्याय चरित्रं सान्वय भाषान्तर / 157) अन्वयः-पष्ठे अहनि निशा आरंभे इमौ गृहं संमेजतुः, च यशोधनः विनयेन श्लक्ष्णं वचः आचष्ट. // 383 / / अर्थः-छठे दिवसे रात्रिना प्रारंभ वखते ते बन्ने भाइओ (ज्यारे) घेर आव्या, (त्यारे) यशोधन शेठ (तेओने) विनयथी स्नेहना डोळवाळु वचन कहे वा लाग्यो के, // 383 // वत्सौ यत्सौख्यदं मे स्यादिष्टं स्पष्टं तदेव वाम् / इति प्रत्ययतः किंचिद्वच्मि तच्च विरच्यताम् // 384 // ____ अन्वयः-(हे) वत्सौ! मे यत् सौख्यदं स्यात्, तत् एव वा इष्टं स्पष्टं, इति प्रत्ययतः किंचित् वच्मि, तत् च विरच्यता. // 38 // अर्थ:-हे पुत्रो ! मने जे सुखकारी थाय, तेज तमोने मिय छे, एम स्पष्ट जणाय छे, एवी (मने) खातरी थवाथी (हुँ) तमोने कंइंक कहुं छु, ते मुजब करो ? // 384 // निशाहारपरीहारं न वेद्मि युवयोव॒वम् / तदीशि भृशक्लेशे युवां कार्य नियोजितौ // 385 // . अन्वयः-ध्रुवं युवयोः निशा आहार परिहारं न वेभि, तत् ईशि भृशक्लेशे कार्ये युवां नियोजितो. // 385 // stolice Dececcccccsaceaseenceta Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.GunratnasuriM.S
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________________ पुण्याय C) अर्थः-खरेखर तमारा रात्रिभोजन त्यागना नियमने हुं जाणतो नथी, अने तेथीज आवां अतिकष्ट आपनास कार्यमा ( में सान्वय चरित्रं - तमो बन्नेने जोड्या. // 385 // भाषान्तर 158) 158 यदभुक्तवतो क्ते युवयोर्न जनन्यपि / अद्यास्यास्तदभूषष्ठ उपवासः प्रयासकृत् // 386 // ' अन्वयः-युवयोः अभुक्तवतोः जननी अपि यत् न भुक्ते, तत् अद्य अस्याः प्रयासकृत षष्ठः उपवासः अभूतः // 386 // अर्थः-(वळी) तमो बन्नेना नही जमवाथी(तमारी)माता पंण जे जमती नथी, तेथी आजे तेणीने पण कष्टदायी छटो उपवासथयोछे. तद्वां षण्मासजन्मासौं स्वसा कुसुमकोमला / स्तन्यान्यलभमानाद्य कियन्म्लाना विलोक्यतां // 38 // ... अन्वयः-तत् षण्मासजन्मा कुसुमकोमला वां असौ वसा स्तन्यानि अलभमाना विलोक्यता ? अद्य कियन्म्लाना ! // 387 // अर्थः-अने तेथी (फक्त) छ मासनीज उमरनी, अने पुष्पसरखी कोमल तमारी आ बेहेन धावण नही मळवाथी जुओ के, आजे केटली. दुबळी पडी गइ छे! / / 387 // . GELSO SCIETECEISINESSISE SEEEE
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________________ peseeeeeeISTERIERIESED पुण्याय चरित्रं सान्वय / भाषान्तर म्लानिमस्याः शिशोर्वीक्ष्य कारणं मम पृच्छतः। आख्यद्भवदनाहारपूर्व सर्वमयं जनः॥ 388 // . : अन्वयः-अस्याः शिशोः म्लानि वीक्ष्य कारणं पृच्छतः मम भवत् अनाहारपूर्व सर्व अयं जनः आख्यत्. / / 388 // / अर्थ:-(वळी) आ बाळकीनु दुबळापणुं जोइने (तेनु) कारण पूछतां मने तमाग नही जमवा आदिक सर्व वृत्तांत तेणीए कह्यो.. तद् भुज्यतां यथा भुंक्ते भवन्मातापि संप्रति / कृपासारौ शिशोरस्या मा भूत्पित्तादिभूर्व्यथा॥३८९॥ ____ अन्वयः-तत भुज्यतां, यथा भवन्माता अपि संपति भुक्ते, कृपासारौ (युवां), अस्याः शिशोः पित्तादिभूः व्यथामाभूद.३८५ अर्थः-माटे तमो बन्ने हवे जमीलीयो, के जेथी हवे तमारी माता पण भोजन करे, (वळी तमो तो) महा दयालु छो, वळी आमा (विचारी) बाळकीने पण पित्तआदिकना उछाळाथी कष्ट थर्बु न जोईये. / / 389 // पूर्व निशाया यामार्धं प्रदोषः कोय॑ते बुधैः / प्रत्यूषं पश्चिमं तेन सा त्रियामेति विश्रुता // 390 // अन्वयः-निशायाः पूर्व यामा बुधैः प्रदोषः कीर्त्यते, पश्चिमं प्रत्यूषं, तेन सा त्रियामा इति विश्रुता. // 390 // SOCIGARERCREACKED DIA P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ peeeeeeGEERIESEISISTEIN पुण्याढय चरित्रं 116017 सान्वय भाषान्सर 1160 अर्थ:-- साविना आगला अर्धा पहोरने पंडितो " पदोप" कहे छे, अने पाछला ( अर्धा पहोरने ) "प्रत्यूष"कहे छे, अनेक तेथी ते रात्रि " त्रियामा " (त्रण पहोरनी.) प्रसिद्ध छे. // 390 // इदानी भोजनं तद्वां न निशाभोजनं भवेत् / यामिनीघटिकायुग्ममपि नाद्यापि याति यत् // 391 // अन्वयः-तत इदानी वां भोजनं निशाभोजनं न भवेत् , यत् अथ अपि यामिनीघटिकायुग्मं अपि न याति. // 391 // अर्थ:-माटे आ वखते तमारुं भोजन ( कई ) रात्रिभोजन संभवीशके नही, केमके हजु वे घड़ी रात्रि पण गइ नथी. // 391 // इति तातगिरा भिन्नः क्षुधा च विधुरीकृतः। हंसः क्लेशहतावेशः केशवाननमैक्षत // 392 // . ____ अन्वयः-इति तातः गिरा भिन्नः, च क्षुधा विधुरीकृतः, क्लेश हतावेशः हंसः केशव आननं ऐक्षत. // 392 / / अर्थ:-एवीरीतना पितानों वचनथी नरम पडेलो, तथा क्षुधाए व्याकुल करेलो अने कष्टथी नाहिम्मत थयेलो हंस केशवना मुख तरफ जोवा लाग्यो. / / 392 // .. DESEEIGISISISIGISSIBIGISCISION Jan Gun Aaradhak te KAMANAROO
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________________ 000000000000000000 पुण्याढय चरित्र इति ज्यायांसमुद्भाव्य भ्रातरं कृत्यकातरम् / व्याचष्ट केशवः कष्टजनकं जनकं प्रति // 392 // अन्वयः इति ज्यायांस भ्रातरं कृत्य कातरं उद्भाव्य केशवः कष्टजनक जनकपति व्याचष्ट. // 392 / / / अर्थः-एवीरीते (पोताना) म्होटा भाइ हंसने क्षुधाथी कायर थयेलो जाणीने केशव (पोताने) कष्ट आपनारा पिताने सान्वयन भाषान्तर 116 // शवः कष्टजनक जनकपति व्या B) कहेवा लाग्यो के, // ३९ताना ) म्होटा भाइ हंसने यस्ते सुखकरो भावः करोमि तमहं पितः / न ते सुखायते तत्किं यन्मे पातकघातकम् // 393 // ___ अन्वयः-(हे ) पितः ! यः भावः ते सुखकरः, तं अहं कसेमि, मे यत् पातकपातकं तत् ते किं न सुखायते ? // 393 // अर्थः-हे पिताजी! जे कार्य आपने सुखकारी छे, ते हुं करुं छु. तथा मारु ( रात्रिभोजनना त्यागरूप ) जे कार्य पापोनो। विनाश करनारुं छे, ते आपने केम रुचतुं नथी ? // 39 // . यजनन्यादिवात्सल्यं तच्छल्यं धर्मकर्मणः / स्वकर्मफलभुक्सर्वः कः कस्यार्थे करोत्वधम् // 394 // Germaneeta D 00000000000000000000 Jun Gun Aaradhak Trust SYNOPP.AC.GunratnasuriM.S.
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________________ . ima ARTANYASANS MEENARIYAANESH A सान्वय पुण्याढय चरित्रं // 16 // भाषान्तर 162 ) अन्वयः-यत् जननी आदि वात्सल्यं तत् धर्म कर्मणः शल्यं, सर्वः स्वकर्मभुक, कस्य अर्थे कः अघं करोतु.। / / 394 // अर्थः-(वळी) माता आदिक प्रते जे वत्सलपणुं बतावq, ते धर्मकार्यमा (विनकारक) शल्य सरखं छे. सर्व जीयो पोताना कर्मों भोगवी रह्या छे, माटे कोइने माटे कोण पाप करे ? // 394 // महतोऽहो मखेऽन्ते च निशासन्नो निशासमः। तत्तत्रापि न भोक्तव्यं निशैवास्त्यधुना पुनः॥३९५॥ र अन्वयः-अहः मुखे च अंते मुहूर्तः निशासनः निशासमः, तत् तत्र अपि न भोक्तव्यं, अधुना पुनः निशा एव अस्ति..॥३९॥ अर्थ:-दिवसना प्रारंभमां, अने दिवसना अंत पहेलांनो बेघडी जेटलो समय रात्रिने नजदीक होवाथी रात्रि समानजछे. माटे ते वखते पण भोजन कराय नही, अने आ वखते तो रात्रिज छे. // 395 // तद्वारं वारमेवं न वाच्योऽहं भवता पितः। कार्येऽस्मिन्विहिते शान्ति कलमे भवतापितः॥ 396 // OM. अन्वयः तत् (हे) पितः! भवता वारंवारं अहं एवं न वाच्यः, भवतापितः अस्मिन् कार्ये विहीते शांति क लभे? // 396 // 00000000 न N OOOOOOOOOOOOOOOL PUMARA..n ihindi
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________________ AYANAKAPKNAMAymYANPAPARSAAPPSAns पुण्याढय सान्वय भाषान्तर / 163 OKSARALEKAR अर्थः–माटे हे पिताजी! आपे वारवार भने ओ मार्ट कहे नही. कमकै संसारथी तपैलो एवो हुआ रात्रिभोजनन कार्य कसने क्यां शांति मेळवी शकुं? // 396 // अथैनमेनसां धाता तत्पिता कुपितोऽवदत् / लडसे यदि मद्वाचं मुश्च लोचनवर्त्म तत् // 397 // अन्वयः-अथ एनसां धाता तत्पिता कुपितः एनं अवदव, यदि महाचं लंघसे, तत् लोचनवर्त्म मुंच? // 397 // अर्थः--पछी पापिष्ट एवा तेना पिताए क्रोध पामीने तेने कह्यु के, ज्यारे मारा वचननो तुं अनादर करे छे, त्यारे मारी आंखोथी तुं वेगळो जा' // 397 // ततोऽथ विषभृवृन्दकन्दरादिव मन्दिरात / स निःससार संसारकारणं ममतां त्यजन // 398 // अन्वयः-अथ संसार कारणं ममता त्यजन् सः विषभृत्वृंदकन्दराव इव ततः मंदिरात निःससार. // 398 // अर्थः-पछी संसारना कारणरूप ममताने तजतो एवो ते केशव सोना समूहथी भरेली गुफामांथी जेम, तेम ते घरमाथी DotcoDO00 00000000000000000000 स P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ 0000000000000000000 पुण्यादय में निकली गयो. 1 398 // चरित्रं 1164 / सान्वय भाषान्तर 164 // हंसं तमनुगच्छन्तं कृच्छाधृत्वा यशोधनः। प्रलोभ्य बहुभिर्वाग्भिभोजनाय न्यवीविशत् // 399 // * अन्वयः-तं अनुगच्छंत हंसं कुच्छात् धृत्वा बहुभिः वाभिः प्रलोभ्य यशोधनः भोजनाय न्यकी विशत् // 399 // . . अर्थः-तेनी पाछळ जता हंसने बलात्कारे पकडी राखीने, तथा घणां घणां वचनोथी ललचावीने यशोधने भोजन करवामाटे बेसाड्यो. // 399 // ... पुरग्रामनयारामविलङ्कनघनक्रमः। स ययौ सप्तमेऽप्यहि तथैबावेशवान्पथि॥४०॥ ___ अन्वयः-पुर ग्राम नग आराम विलंघन घनक्रमः सः सप्तमे अपि अह्नि तथा एवं आवेशवान् पथि ययौ // 40 // अर्थ:--नगर, गाम, पर्वत, तथा बगीचाओने उल्लंघवामा उतावळी चालवाळो एवो ते केशव सातमे दिवसे पण तेवीजीते पोताना नियममा निश्चल थयो. थको मार्गे चालवा लाग्यो. // 400 // Scieramanced olele0010101010101010012180202 in Gum Ararak
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________________ DOOO0000000000000 पुण्याच चरित्रं सान्वय भाषान्तर / 165/ अटन्नऽव्यां कुलापि निशीथसमयेऽथ सघनयात्राजनं यक्षायतनं किंचिदैक्षत // 401 // .. अन्वयः-अथ अटव्यां अदन् स: निशीथसमये कुत्र अपि घनयात्राजनं किंचित् यक्ष आयतनं ऐक्षत. // 401 // -- ::: अर्थः-पछी अरण्यमा भमतां थकां तेणे मध्यरात्रिए क्यांक ज्यां यात्रा माटे घणा लोको एकठा थया छे, ए, कोइक यक्षन मंदिर जोयु. // 401 // . . तत्र यात्राजना यक्षगृहे सजितभोजनाः / हृष्यन्तः समभाषन्त तमागच्छन्तमुत्सुकाः॥ 402 // * अन्वयः-तत्र यक्षगृहे सज्जित भोजनाः यात्राजनाः तं आमच्छंत (वीक्ष्य) हृष्यंत उत्सुकाः समभाषत / 402 // ...अर्थः-ते यक्षना मंदिरमा तैयार करेल छे भोजन जेओए एवा ते यात्रालुओ ते केशवने आवतो (जोइने) हर्षित तथा उत्सुक थया थका कहेवा लाग्या के, / / 402 // .. एहि भोज्यमादेहि देहि पुण्यानि पान्थ नः / पश्यामः काममतिथिं वयमारब्धपारणाः // 403 // Gocierain 000000000000 PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ Mee MERO पुण्याय चरित्र सान्वय भाषान्तर // 16 // Kaleckersiac अन्वयः-(हे) पाथ! एहि? एहि भोज्यं आदेहि नः पुण्यानि देहि? आरब्धपारणाः वयं क मं अतिथिं पश्यामः ||403 // अर्थ:-हे पथिक! तुं आव आव? अने भोजन ग्रहण कर तथा अमोने पुण्य आप? पारणाभाटे तैयारी करता एवा अमो (को अतिथिनी बहु राह जोइए छीये. // 403 // . कीहरबत व्रतं यस्य निशि पारणमित्यथ / केशवो विकसत्पुण्यसन्तानस्तानभाषत // 404 // . अन्वयः-अथ विकसत्पुण्यसंतानः केशवः तान् इति अभाषत, बत यस्य निशि पारणं, कीडग व्रतं / / 404 // . . अर्थः-त्यारे विकस्वर थयेल छे पुण्यपरंपरा जेनी एवा ते केशवे तेओने एम कयु के, अरे! जेनुं रात्रिए पारj थाय, ए ते (आ तमारु) कयुं व्रत छे. // 404 // ... तेऽवदन्माणवाख्योऽयं यक्षो दक्षो जगन्मुदे / स्यादस्याद्य महायात्रा पुण्यपात्रायितस्थितिः // 405 // अन्वयः-ते अवदन् जगन्मुदे दक्षः अयं माणवाख्यः यक्षः, अस्य अद्य पुण्यपात्रायितस्थितिः महा यात्रा स्यात.॥४०५॥ 0000000 पाई Dec0000000DECE00000 MAYahate. pinternant
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________________ पुण्यातच चरित्रं 11674 000121800210 O0000000ODESEDIEDO9000 अर्थः-(त्यारे) तेओए कयुं के, जगत्ने खुशी करवामां चतुर, एवो आ माणव नामनो यक्ष छे, अने तेनी आजे पुण्योना ) सान्वय पात्ररूप थयेला आचारवाळी महोटी यात्रा छे. // 405 // . भाषान्तर कृत्वोपवासं दिवसे निशीथेऽतिथिमादरात / भोजयित्वा विधातव्यं पारणं पुण्यकारणम् // 406 // 167 / __अन्वयः-दिवसे उपवासं कृत्वा निशीथे आदरात् अतिथि भोजयित्वा पुण्यकारणं पारणं विधातव्यं. // 406 // अर्थ:-दिवसे उपवास करीने मध्यरात्रिए आदरपूर्वक अतिथिने जमाडी पुण्यना कारणरूप पारणुं कर. // 406 // .. तदीक्षोपवासानां पारणायोद्यमस्पृशाम् / त्वं भवातिथिरस्माकमाकस्मिकसमागमः // 407 // . अन्वयः-तत् ईदृक्षोपवासानां पारणाय उद्यमस्पृशां अस्माकं आकसिक समागमः त्वं अतिथिः भव? // 407 // अर्थः-माटे आवी रीतना उपवासवाला अने पारणामाटे तैयार थयेला एवा जे अमो, तेओनो अकस्मात आवी पहोंचेलोतं अतिथि था? / / 407 / / aoisteneral DeceEIGGEccememesed Ac Gunratnasuri MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ Dolce00000000000000000 पुण्यादथ 0 स जगौ नेह भुंजेऽहमंहःकारिणि पारणे ।रजन्यां भोजनं न स्याद्युक्तमुक्तमिदं यतः // 408 // चरित्र सान्वय 16 | 11681 rpretenee अन्वयः-स:जगौ अंहः कारिणि इह पारणे अहं न भुंजे, यतः रजन्या भोजनं न स्यात्, इदं युक्तं उक्त.॥४०८ // अर्थ:--(त्यारे) तेथे कडयु के, पापाचरणवानां आ पारणामा हुं जमवानो नथी, केपके रात्रिए भोजन कसय नही, एवा ते (शास्त्रोमां) सत्य कहेली छे. // 408 / / . . ...... उपवासेऽत्र जायेत गुणो गुञ्जासमो न वा / ध्रुवं दोषस्तु दोषायां भोजने भूधराधिकः // 409 // अन्वयः अत्र उपकासे गुंजासमः गुणः जायेत वा न, दोषायां भोजने दोषः तु ध्रुव भूधर अधिकः // 409 // अर्थ:-आ उपवासथी-चणोठी जेटलो गुण तो थाय अथवा न पण वाय, परंतु रात्रिभोजनथी दोपतो खरेखर पर्वतथी पण अधिकछे. ..उपवासोऽप्यसौ न स्याद्यत्रैवं निशि भुज्यते / धर्मशास्त्रेष्वहोरात्राभोजने स हि कीर्त्यते // 410 // - अन्वया-पत्र एवं निशि भुज्यते, असौ उपचासः अपि न स्यात्, हि धर्मशास्त्रेषु अहोरात्रभोजने सः कीर्त्य ते. // 10 // 000000000000000X
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________________ 0999999999999999999 पुण्याव्य चरित्रं सान्वय भाषान्तर 1169 / अर्थः-ज्या आवीरीते रात्रिए भोजन कराय, ते उपवास पण न होइ शके, केमके धर्मशास्त्रोमा दिवसे अने रात्रिए भोजन न करवाथीज उपवास कहेलो छे. // 410 // धर्मशास्त्रविरुद्धं ये तपः कुर्वन्ति दुर्धियः / ते यान्ति दुर्गतिं धूर्ताः कूटद्रव्यकृतो यथा // 411 // अन्वयः--ये धर्मशास्त्रविरुद्धं तपः कुर्वति, ते दुर्धियः, यथा कूटद्रव्य कृतः धूर्ताः दुर्गतिं यांति. // 411 // अर्थ:-जेओ धर्मशास्त्रथी विपरीत तप करे छे. ते दुर्बुदिओ खोटा सिक्का पाडनारा धूर्वोनी पेठे दुर्गतिमा जाय छे. // 411 // तेऽप्यशंसन्नसावेव देवस्यास्य व्रते विधिः। युक्तैरपि न शास्त्रोक्तर्विरच्यास्य विचारणा // 412 // -अन्वयः-ते अपि अशंसन्, अस्य देवस्य व्रते असौ एव विधिः, युक्तः अपि शास्त्र उक्तैः अस्य विचारणा न विरच्या. 41 अर्थः-ते यात्रालुओए पण कधु के, आ देवना व्रतमा एज विधि छे. माटे सस्य एवा पण शास्त्रोनां वचनो वडे आ संबंधि विचार करवानो होयज नहीं // 412 // ... sterenterteretenerciseeeeeemented Jun Gun Aaradhak Trust A P P.AC.Gunratnasun M.S.
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________________ pacememorreCRDESTROTICI0 सान्वय पुण्याढ्य चरित्रं 170 Decca अवश्यमतिथि कंचिद्भोजयित्वाद्य भुज्यते / इति तद्दर्शनेऽस्माकं रजनिर्विपुलाऽजनि // 413 // अन्वयः-अद्य अवश्यं कंचित् अतिथि भोजयित्वा भुज्यते, इति तत् दर्शने अस्माकं विपुला रजनिः अजनि, // 413 // अर्थः-आजे अवश्य कोइक अतिथिने जमाडीने (अमारे) जमवानुं छे, माटे तेनी राह जोवामां अमोने घणी रात्रि व्यतीत थइ . तत्तूर्णं पारणेऽस्माकमस्मिन्भव पुरःसरः / इत्युत्क्वोत्थाय ते सर्वे तस्य पाणिपदेऽलगन् // 414 // CO) अन्वयः-तत् अस्माकं अस्मिन् पारणे (त्वं) पुरःसरः भव? इति उक्त्वा ते सर्वे उत्थाय तस्य पाणिपदे अलगन्. // 41 // अर्थ:-माटे अमारा आ पारणामा तुं अग्रेपर था ? एम कही ते सघळा यात्राओ उठीने तेने हाथे पगे लाग्या. // 414 // पुण्येशः केशवश्चैनमप्यवाजीगणद्गणम् / एकस्तदैव यक्षाङ्गाद् भीष्माङ्गो निर्ययौ नरः॥ 415 // अन्वयः-पुण्येशः केशवः च एनं गणं अपि अवाजीगणत्, तदा एव एकः भीष्मांगः नरः यक्ष अंगात् निययौ. // 415 // अर्थ:-(परंतु) ते पुण्यशाली केशवे तो ते समुदायनी पण अवगणना करी, तेज वखते एक भयंकर शरीरवाळो पुरुष ते यक्षना 02000200000000000000
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________________ सान्वय भाषान्तर 17 // PA D00000000000000000 पुण्याढ्य शरीरमाथी (पहार निकळ्यो.) // 416 // , चरित्र रे दूषयसि मे धर्म मद्भक्तानवमन्यसे / भुक्ष्व शीघ्रं न चेन्मुण्डं शतखण्डं करोमि ते // 416 // 171 / ___अन्वयः-रे! मे धर्म दूषयसि मद्भक्तान् अवमन्यसे, शीघ्र भुक्ष न चेत् ते मुंडं शतखंडं करोमि. / / 416 // अर्थ:-अरे! (तुं) मारा धर्मने दृषित करे छे! तथा (आ) मारा भक्तोनी अवगणना करे छे! तुरत भोजन कर नहितर तारा मस्तकना सेंकडो गमे टुकडा करी नाखं छु. // 416 // इत्याक्षिप्य गिरा तीक्ष्णरूक्षया मंच केशवम् / सोऽयमुद्गमयामास मुद्गरं विकरालदृक् // 417 // अन्वयः-इति तीक्ष्णरूक्षया गिरा मंच केशवं आक्षिप्य विकरालदृक् सः अयं मुद्गरं उद्गमयामास / / 417 // अर्थः-एवी रीते आकरां अने निर्दय वचनथी तुरत (ते) केशवने धमकावीने भयंकर आंखोवाळो ते पुरुष मुद्गर उगामवा लाग्यो. 2) हसन्हंसानुजोऽथाह किं क्षोभयसि यक्षमाम् / भवान्तरोद्भवद्भरिभाग्यद्धैर्मृत्युभीः क्व मे // 418 // Docience 000GXOOOOOOOOOOO00000 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ पुण्याय चरित्र / / 172 / सान्वय भाषान्तर / 172 / अन्वयः-अथ हंसानुजः हसन् आह, (हे) यक्षा मां कि क्षोभयसि ? भवांतर उद्भवत् भाग्य ऋद्धेः मे मृत्युभीः क्व 4.18 // अर्थ:-त्यारे हंसनो न्हानो भाइ ते केशव हसतो थको बोलवा लाग्यो के, भवांतरमा उत्पन्न यती छे, सौभाग्यनी समृद्धि जेने एवा मने ते मरणनो भय क्याथी होय? // 418 // आचचक्षेऽन्तरिक्षेऽथ यक्षः स्वान्किरानिति / एतद्धर्मगुरुधुत्वानीय वध्योऽस्य पश्यतः // 419 // अन्वयः-अथ यक्षः अंतरिक्ष स्वान् किंकरान् इति आचचक्षे, एतत् धर्मगुरुः धृत्वा आनीय अस्य पश्यतः वध्यः. // 48 // अर्थः-पछी ते यक्षे आकाशमा रहेला पोताना नोकरोने एम कर्दा के, आ केशवना धर्मगुरुने अहीं पकडी लावी, तेना देखतांज (तमारे) तेने मारी नाखवो. // 419 // अथाकाशे कशापाशभृद्भिस्तत्किकरैर्धतम् / आर्तघोषमृर्षि धर्मघोषमैक्षत केशवः॥ 420 // अन्वयः-अथ आकाशे कशापाशभृद्भिः तकिकरैः धृतं आत घोषं धर्म घोष ऋषि केशवः ऐक्षत. // 420 // SEGEScal Mee0000000000000000 MountanasunMS Jun curs Aaradhak baitana Madhukadhalibition
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________________ " ure ST POS0000000000 पुण्याढच चरित्र सान्वय भाषान्तर / 17 / / 1173 / अर्थ:-पछी आकाशमा चाबुक तथा पशिवाळा एवा ते यक्षना. नोकरोए पकडेला, अने दुःखथी पोकार करता एवा ते र मुनिराजने केशवे जोया. // 420 / / स्वं शिष्यं भोजयेदानीं त्वां वा हन्मि शठं हठात् / इत्युक्तस्तेन यक्षेण मुनीशः केशवं जगौ // 421 // अन्वयः-स्वं शिष्यं इदानी भोजय ? वा स्वां शठं हन्मि, इति तेन यक्षेण उक्तः मुनीशः केशवं जगौ. // 421 // ... अर्थ:-तारा शिष्यने आ वखते जमाडी नहितर तने लुच्चाने मारुं छु, एवी रीते ते यक्षे कहेवाथी ते मुनिराज केशवने फहेवालाग्या के, अध्यकृत्यं सृजेद्देवगुरुसङ्घकृते कृती। मामी मामीदृशा नन्तु त्वद्गुरुं कुरु भोजनम् // 422 // अन्वयः-कृती देव गुरु संघकृते अकृत्यं अपि सृजेत, ईदृशाः अमी त्वद्गुरुं मां मा गंतु, भोजनं कुरु // 422 // अर्थ:-डायो माणस देव, गुरु तथा संघने अर्थे अकार्य पण करे, (वळी)-आवा आ-यक्षना नोकरो तारा गुरु एवा-पने नाम मारे तो ठीक, माटे तुं भोजन कर // 422 // .... මැෂිමමල්ලී P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ पुण्यातच चरित्र 00000000 धर्माख्यानेऽपि यो वक्ति विधिमन्यापदेशतः / सत्त्वी मृत्युभिया दत्तां स पापेऽनुमतिं कुतः॥ 423 // सान्वय भाषान्तर तन्नूनं मद्गुरु यमियं मायास्य मायिनः। इति ध्यात्वांथ मौनेन यशोधनसुतः स्थितः॥ ४२४॥युग्मम्॥ARom ___ अन्वयः-यः धर्मआख्याने अपि अन्यअपदेशतः विधि वक्ति, सः सत्त्वी मृत्युभिया पापे अनुमति कुतः दत्ता 1 / 423 // तत नूनं अयं मद्गुरुः न, इयं अस्य मायिनः माया, इति ध्यात्वा अथ यशोधनमुतः मौनेन स्थितः // 423 / / युग्मं // अर्थ:-जे मुनि धर्मकथामां पण बीजाना मिषथी विधिमार्गनी प्ररूपणा करे छे, एवा ते बहादूर मुनिराज मृत्युना डरथी पाप कार्यमा अनमति केम आपी शके 1 // 424 / माटे खरेखर आ मारा गुरु नथी, आ (सघळी) आ कपटी यक्षनी मायाजाळ छे. एम विचारी यशोधन शेठनो पुत्र ते केशव मौन रह्योः // 424 / / युग्मं // मुनो मुद्गरमुद्यम्य त्वदगुरुं हन्मि भुंक्ष्व वा / इति कोपकरालाक्षो जगौ यक्षोऽथ केशवम् // 425 // . अन्वयः-अथ कोपकरालाक्षः यक्षः मुनौ मुद्गरं उद्यम्य त्वद्गुरुं हन्मि, वा भुक्ष्व ? इति केशवं जगौ. // 425 // . 0000000000000000000 AlALA a disha anti...la........ garl.l ana
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________________ 0 सान्वय भाषान्तर 175/ Pos पुण्याय अर्थः-पछी क्रोधथी भयंकर आंखवाळी (ते ) यक्ष (ते ) मुनिमते मुद्गर उगामीने, तारा ( आ ) गुरुने मारूं छु, नहितर तुं चरित्रं भोजन कर ? एम केशवने कहेवा लाग्यो. // 425 // . -175 सोऽपि व्याचष्ट रे मायन्ममायं न गुरुः स हि / तादृक्षचारुचारित्रपात्रं न त्वादृशां वशः // 426 // अन्वयः-सः अपि व्याचष्ट, रे मायिन् ! अयं मम गुरुः न, हि तादृक्ष चारु चारित्र पात्रं सः त्वादृशां वशः न. // 426 / / अर्थः-(त्यारे) ते केशवे पण कयुं के, अरे! कपटी आ मारा गुरु नथी, केमके तेवा उत्कृष्ट चारित्रवाळा ते तारा जेवाने वश न थाय. त्वद्गुरुस्त्वद्गुरुः सोऽस्मि कृपाब्धे भुक्ष्व रक्ष माम् / इत्यारटन्नथ मुनिस्तन्मुद्गरहतोऽपतत् // 427 // अन्वयः-अथ सः खद्गुरुः त्वद्गुरुः अस्मि, हे कृपाब्धे! भुक्ष्वी मां रक्षा इति आरटन् मुनिः तन्मुद्गरहतः अपततः // 427 // अर्थ:--पछी ते (हुं) तारो गुरु, तारो गुरु छु, एम बूमो मारता ते मुनि ते मुद्गरथी घायेल थइ (नीचे) पड्या. // 427 // : तं व्यसुं वीक्षमाणस्य केशवस्याग्रतस्ततः। एत्यादत्त गिरं यक्षो मुद्गरभ्रमिभीषणः // 428 // Secreocccccceeeeeeed Jun Gun Aaradinak Trust P.P.Ac Gunratnasuri MS
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________________ पुण्याढथ चरित्र 1176 / सान्वय भाषान्तर 276 / " अन्वयः-ततः व्यसुं तं वीक्षमाणस्य केशवस्य अग्रतः एत्य मुद्गरभ्रमिभीषणः यक्षः गिरं आदत्त. // 428 / अर्थः-पछी पाणरहित थयेला ते गुरुने जोता एवा (ते) केशवनी आगळ आवीने मुद्गरना भ्रमणथी भयंकर थयेलो (ते) यक्ष बोलवा लाग्यो के, // 428 // सम्प्रत्यनासि चेत्तत्ते जीवयामि गुरुं जवात् / वितरामितरामृद्धि प्राज्यं राज्यं च किंचन // 429 // * अन्वयः-चेत संपति अश्नासि, तत् ते गुरुं जवात जीवयामि, च ऋदि किंचन माज्यं राज्यं वितरामितरां // 129 // .. अर्थः-जो आ वखते तुं भोजन करे, तो तारा (आ) गुरुने तुरत (9) जीवता करुं, तथा (तने) समृद्धि अने केटकंक संदर राज्य पण आपु.॥ 429 / / एतन्मुद्गरनिर्घातनिर्विघ्नगगनक्रमः। पथि कीनाशहर्म्यस्य पथिकीक्रियसेऽन्यथा // 430 // अन्वयः-अन्यथा एतत् मुद्गर निर्घात निर्विन गगन क्रमः कीनाश हर्म्यस्य पथि पथिकी क्रियसे. // 430 / / ... premeteraneers NOOOOOGGC
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________________ पुण्याढ्य चरित्र सान्वय सि भाषान्तर 177 00000000 09999999990000000029900 अर्थः-नहितर आ मुद्गरना महारथी सुगम थनारु छ आकाशगमन जेनुं (एवा तने) यमना घरने मार्गे रबानो कसैश.॥४३०॥ ततः पुण्यसुधासिन्धुहंसो हंसानुजो हसन् / दशनांशुमिषप्रेक्ष्यमाणसत्त्वगुणो जगौ // 431 // अन्वयः-ततः पुण्य सुधा सिंधु हंसः दशनांशु मिष प्रेक्ष्यमाण सत्त्वगुणः हंसानुजः हसन् जगौ. // 431 // अर्थ:-पछी पुण्यरूपी अमृतनी नदीमां हंससरखो, तथा दांतोना किरणोना मिषथी देखातो छ सत्वगुण जेनो एवो। न्हानो भाइ केशव हसतो थको कहेवा लाग्यो के, // 431 / / नैबायं मद्गुरुः किंच त्वया जीवन्ति चैन्मृताः। तदमीषां स्वभक्तानां सर्वाञ्जीवय अन्वय:-अयं मद्गुरुः न एव, किं च त्वया चेत् मृताः जीवंति, तत् अमीषां स्वभक्तानां सर्वान् पूर्वजान जीवय? // 43 // अर्थः-आ मारा गुरुज नथी, वळी तुं जो मृत्यु पामेलाओने जीवाडी शकतो हो, तो आ तारा भक्तोना (मृत्यु पामेला)सघना ) पूर्वजोने जीवता कर ? // 432 // Germcieos 00000000000000000000 | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 09900999000000000000 पुण्यादच चरित्र 1158 सान्वय भाषान्तर 178 किं राज्यदानशक्तेन नामी राज्यभृतः कृताः। किं भापयसि मां मृत्योः का भीनियतभाविनः // 433 // * . अन्वयः-राज्यदान शक्तेन (त्वया)अमी राज्यभृतः किं न कृताः ? मां किं भापयसि ? नियतभाविनः मृत्योः का भी१४३३ अर्थः-(वळी ) राज्य आपवानी शक्तिवाळा एवा तें आ (तारा भक्तोने ) राज्यना मालीक केम न कर्या ? मने शामाटे - डरावे छे ? निश्चयें यनारा मृत्युथी शु डरवार्नु छ ? // 433 // .. . एवं नियमवाग्दक्षं यक्षोऽयं क्षान्तिमानिव / प्रहृष्टो दृष्टरोमालिः समालिंग्य जगाद तम् // 434 // ___अन्वयः-एवं नियमधाग्दक्षं तं शांतिमान् इव प्रहृष्टः हृष्टरोमालिः अयं यक्षः समालिंग्य जगाद. // 434 // अर्थः-एवी रीते (पोताना) नियम तथा वचनमा चतुर एवा ते केशवने क्षमावाननी पेठे खुशी थयेला, तथा रोमांचित थयेला ते यक्षे भेटीने कर्यु के, // 434 // साधु मित्र धियां पात्र न स्यादेष गुरुस्तव / मृता मया न जीवन्ति नैव राज्यं च दीयते // 435 // PAN 00000000000000000
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________________ 000000000000000SES पुण्यातच सान्वय भाषान्तर चरित्र 179 // poODES अन्वयः--(हे) मित्र ! (हे) धियां पात्र साधु, एषः तव गुरुः न स्यात्, च मृताः न जीवति, मया राज्यं न एव दीयते. अर्थ:-हे मित्र ! हे बुद्धिना भंडार ! (तारूं कहेवू ) सत्य छे, आ तारा गुरु न संभवी शके, वळी मरेला जीवता थता नथी, तेम माराथी कोइने पण राज्य आपी शकायज नही. // 435 // इत्थमुक्तेऽथ यक्षेन्द्रे सहासं सहसोत्थितः। मुनिरूपं परित्यज्य खं ययौ यक्षकिंकरः॥॥ 436 // अन्वयः-अथ याद्रे इत्थं उके यक्षकिंकरः सहासं सहसा उत्थितः मुनिरूपं परित्यज्य खं ययौ // 436 // अर्थः--हवे ते यर्वांद्रे एवी रीते कह्याबाद यक्षनो ते नोकर हास्यसहित एकदम उभो थयो, तथ। मुनि स्वरूप तजीने आकाशमा उडी गयो. // 436 // ... .. विस्मयस्मेरवक्त्राक्षमनया चित्रमायया / उवाचाचलचित्तेशं केशवं यक्षपुङ्गवः // 437 // अन्वयः-अनया चित्र मायया विस्मय स्मेर वक्राक्षं अचलचित्तेशं केशवं यक्षपुंगवः उवाच // 437 // . . Docrace GOSCOO90000000000 Jun Gunaradaku A PP.AC.Gunratnasuri M.S
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________________ 0010010000000000000000 पुण्याच चरित्र 180 सान्वय भाषान्तर 1180 OOOOOOO अर्थ-आ विचित्र प्रकारनी मायांथी आश्चर्य सहित विकस्वर मुख तथा आंखोवाळा, अने निश्चल मनवाळाओमा अग्रेसर एवा तें केशवने ते यक्षराज कहेचा लाग्यो के, // 437 // खिन्नः सप्तोपवासैस्त्वं क्लिन्नश्चाध्वविहारतः। विश्रम्येह निशामहि सहेभिः कुरु पारणम् // 438 // . अन्वय:-त्वं समीपवासै खिन्ना, च अध्वविहारतः क्लिनः, इह निशा विश्रम्य अनि एभिः सह पारणं कुरु / / 434 // अर्थः-तुं सात उपवासोथी श्रीण थयो छ, तथा मुसाफरीथी पण थाकी गयो छु, माटे अहीं रात्रि रहीने दिवस उग्ये आ यात्रालुओनी साथै पारणु करजे.. // 468 // . . .. ........ इत्युक्त्वादर्शयत्तस्मै स तल्पं शक्तिकल्पितम् / केशवोऽस्मिन्विशश्राम श्रेयसीव यशश्चयः // 439 // अन्वयः-इति उक्त्वा सः तस्मै शक्तिकरिषतं तल्पं अदर्शयत, श्रेयसि यशश्चयः इव केशवः अस्मिन् विशश्रामः // 439 // अर्थः---एम कहीने ते. यक्षे ते केशवने पोताबी शक्तिथी बनावली शय्या देखाडी. (त्यारे.) कल्याणमा जेम यशनो समूह oddelee 00000000000000000000
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________________ पुण्याढ्य चरित्र सान्वय भाषान्तर ।।१८श 181 (विश्राम पामे) तेम ते केशवे ते शय्यापर विश्राम लीधो. // 439 // यक्षयात्राजनैयक्षादिष्टः संवाहितक्रमः / केशवोऽकलयन्निद्रामुन्निद्रसुकृतक्रमः॥४४॥ अन्वयः-यक्षादिष्टः यक्ष यात्रा जनैः संवाहित क्रमः उन्निद्र सुकृत क्रमः केशवः निद्रा अकलयतः // 440 // अर्थः-यक्षे आज्ञा करेला ते यात्रालुओबड़े दबाता पगोवाळो, (अर्थात् ते यात्राळुओ तेना पगनी चंपी करवा लाग्या) तया उदयं पामेली पुण्यपरंपरा जेनी, एवो ते केशव (त्या) निद्रा करवा लाग्यो. // 440 // विभावरी विभातेयं निद्रा विद्राव्यतामिति / तं प्रत्यक्षो जगौ यक्षो निद्रातन्द्राललोचनम् // 441 // अन्वयः-इयं विभावरी विभाता, निद्रा विद्राव्यता, इति निद्रा तंद्रालु लोचनं तं प्रत्यक्षा यक्षः जगौ. // 441 // अर्थः आरात्रि खलास थइ छे, माटे (तु) निद्रा उडाडी एवी रीते (हजु) निद्राथी घेराती आंखवाळा ते केशवने ते यक्षे प्रत्यक्षथइनेकह्यु.. अथ निद्रादरिद्राक्षो विश्व वीक्ष्य दिनोज्ज्वलम् / नभोऽर्कभूषितं चेति चिन्तयामास केशवः // 442 //
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________________ PoetreenETEISEMETEREDESIRISISED पुण्याढ्य चरित्रं सान्वय भाषान्तर 1182 28 अन्वयः--अथ निद्रा दरिद्राक्ष केशवः विश्व दिनोज्ज्वलं, च नभः अर्क भूषितं वीक्ष्य इति चिंतयामास. // 442 // अर्थः-ल्यारे निद्राथी घेराती आँखचाळा (ते) केशवे जगतने दिवसथी उज्ज्वल थयेलं, तथा आकाशने सूर्यबड़े शोभितुं थयेलु जोइने एम विचायु के, // 442 // . . . . . ब्राह्म एव मुहर्तेऽहमन्वहं कृत्यनिष्ठधीः / स्वयं यामि त्रियामान्तयामसुतोऽप्यनिद्रताम् // 443 // अन्वयः कृत्यनिष्ठधीः अहं त्रियामा अंतयाम सुप्तः अपि अन्वहं ब्राझे एव मुहर्ते स्वयं अनिद्रता यामि // 443 // अर्थ:-नित्यकर्ममा निश्चल बुद्धिवालो हुँ रात्रिने छल्ले पहोरे सूवा छतां पण हमेशा बेघडी रात्रि बाकी होय त्यारे पोतानी मेळेज निद्रारहित थाउं हूं. // 443 // अहि यामार्धमात्रेऽपि त्रियामार्धशयोऽप्यहम् / स्वयं नाय विनिद्रत्वमासदं किमिदं किल // 444 // अन्वयः त्रियामा अर्धशयः अपि, यामार्धमात्रे अपि अति अद्य अहं स्वयं विनिद्रत्वं न आसद, किल इदं कि॥४४॥ Deceased DESEEEEEEEEEEEEEEED
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________________ 0908088088eeeeeee पुण्यादय चरित्र 1183 // अर्थ:-अर्धी रात्रिए तां छतो पण, तेमज अर्को पद्दोर दिवस चड्या छतां पण आजे हुँ मारी पोतानी मेळे जाग्यो नही, माटे 60 सान्वय खरेखर आ ते शं (कहेवाय) // 444 // भाषान्तर 1183 / दिवसेऽष्यद्य किं निद्राविवशे मे दृशौ भृशम् / किं नान्तः पद्मवीकाशसुरभिः श्वासमारुतः॥४४५॥ अन्वयः-अद्य दिवसे अपि मे दृशी भूश निद्राविवशे किी अतः श्वासमारुतः पदवीकाश सुरमिः किन? // 445 // - अर्थः--(वळी) आजे दिवसे पण मारी आंखो निद्राथी वधारे केम घेराय छे? तथा अंदरना श्वासनो वायु विकस्वर थयेला कमल सरखो सुगंधी केम नथी? // 445 // इति शङ्काजुषं यक्षस्तमूचे मुश्च जिह्मताम् / प्रातःकृत्यानि कृत्वाशु भूहार कुरु पाणम् // 446 // अन्वयः-इति शंकाजुषं तं यक्षः ऊचे, (हे) भूहाजिसवां मुंच ! आशु माता कृत्यानि कृत्वा पारणं कुरु // 446 // अर्थः-एवीरीते शंकाशील थयेला वे केशवने यक्षे-कणु के, (है) पृथ्वीने शोभावनारा केशव ! (हवे) आळस तजी दे? तथा
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________________ सान्वय SAKot. in पुण्याढय चरित्र 1184 // भाषान्तर 1184 तुस्त प्रभात नित्यकर्म करीने पारणु करी // 446 // सोऽप्युवाच न वञ्च्योऽहं यक्ष दक्षतया तव / विशालेव निशाद्यापि त्वन्मायोत्थमहमेंहः // 447 // 7 अन्वयः सः अपि उवाच, (है) यक्षा तव दक्षतया ! अहं बंच्यः न, अद्य अपि निशा विशाला एव, अहर्महा वन्मायोत्यं // 44 // अर्थः-(त्यारे) ते केशवे पण क के, (हे) यक्ष ! तारी कपटजाळथी हु ठगाउं तेम नथी, हजु पण रात्रि षणीज छे, (आ) दिवस तेज तो तारी (आ बनावटी) मायाथी थयेलं छे. // 447 // इत्यस्य जल्पतो मुनि पुष्पवृष्टिर्दिवोऽपतत् / स त्वं धीमञ्जय जयेत्यभून्नभसि भारती // 448 अन्वयः इति जल्पतः अस्य मूर्टिन दिवः पुष्पवृष्टिः अपतत् (है) घीमन् / सः त्वं जय जय ? इति नभसि भारती अभूत. अर्थः --एम बोलता एवा आ केशवना मस्तकपर आकाशमाथी पुष्पोनी पुष्टि थइ, तथा (हे) बुद्धिवान् केशव ! ते तुं जय पाम जय पाम एम आकाशवाणी थइ. 448 //
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________________ सान्वय भाषान्तर 1185 09999999999999999999 पुण्याढ्य पुरः सुरससौ कंचिच्चञ्चदर्चिषमैक्षत / न यक्षं न च यक्षौको न च यक्षार्चकान्वने // 449 // ... चरित्रं "अन्वयः-असौ पुरः चंचन आषि कंचित् सुरं ऐक्षत, च धने न यक्षं च न यक्षओका, यक्षअचुकान्. // 449 // 11851 अर्थ:-(बळी तेणे (पोतानी आगळ चळकता तेजवाळा कोइक देवने दीठो, परंतु वना न यक्षने, के न यक्षना मंदिरने, के यक्षना पूजारी एवा ते यात्रालुओने पण न जोया. // 449 // स्मिांशुकुसुमश्रेणिशृङ्गारसुरभीकृतम् / मुखश्रीलक्षितप्रीतिरित्यादत्त वचः स च // 450 // अन्वयः च मुख श्री लक्षित भीतिः सः स्मित अंशु कुसुम श्रेणि श्रृंगार सुरभीकत इति वचः आदत्त, // 450 // अर्थः-वळी मुखनी शोभाथी देखाडेली छे प्रीति जेणे एवो ते देव हास्यना किरणोरूपी पुष्पोनी माळाथी अलंकृत तथा मुगंधि थयेलु वचन बोल्यो के, // 450 // एकः पुण्यवतां रत्नं निःसपत्नगुणो भवान् / भवादृशां प्रसूत्यैव रत्नगर्भा बभूव भूः // 451 // . PAC Gupratnasuri MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ O 000000000000000 पुण्यादय चरित्रं 186 // न्वय भाषान्तर / 186 // अन्वयः-पुण्यवतां रत्न, निःसपनगुणः भवान् एकः, भवाद्दशा प्रमूत्या एवं भूरेगी बभूव / / अर्थ:-पुण्यवानोमा रत्नसमान, तथा अनुपम गुणोवाळो तुं एकज छो, तथा तारा जेवाओनी हयातिथी (आ) पृथ्वी "रत्नगर्भा" (रलोने उत्पन्न करनारी) थयेली छे. // 451 // 'शणु सत्त्वभराधान्तस्वान्त वृत्तान्तमातरम् / मध्येसभ प्रोच्चैश्चके शकस्तव स्तवम् // 452 // अन्वयः-(है) सत्त्व भर अश्रांत स्वात! आंतरं वृत्तांतं शृणु? मध्येसभं शक्रः प्रोच्चैः तव स्तवं,चक्रे. // 452 // अर्थ:-पराक्रमना समहथी नथी थाकेलं हृदय जेनुं एवा हे केशव! तुं (मारा) हृदयनो वृत्तांत सांभळी सभानी अंदर दे घणीषणी रीते तारी प्रशंसा करी. // 452 // (D) अहो वरेण्यतारुण्यः पुण्यवान्सुखलालितः / यशोधनस्य वणिजस्तनुजो मनुजोत्तमः // 453 // (a) रजनीभोजनत्यागात्केशवः क्लेशकोटिभिः / अचलाचलचैतन्यश्चाल्यते नामरैरपि // 454 // युग्मम्॥ 00000000000000000000
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________________ पुण्याढ्य / चरित्रं 1187 सान्वय भाषान्तर 1987) O900000ROSARORANG अन्वयः-अहो। वरण्य तारुण्यः, पुण्यवान, सुख लोलिता, मनुजोत्तमा, अचल अचल पन्या यशायनस पनि चानुन केशवः अमरैः क्लेशकोंटिमिः अपि रजनी भोजन त्यागात् न चाल्यते, // 453 // 454 // युग्मं / अर्थः-अहो! मनोहर युवावस्थावाळो, पुण्यशाली, सुखमा उछरेलो, मनुष्योमा श्रेष्ठ, अने पृथ्वीनी पेठे निश्चल मनवाळो यशोधन शेठनो पुत्र केशव देवोथी कोडोगमे दुःखो अपाया छतां पण (तेना) रात्रिभोजन त्याग नामना व्रतथी चलायमान थइ शके तेम नथी. // 453 // 454 // युग्मं // तदाकर्ण्य तदा कर्णतप्तत्रपुसमं वचः। स्वभावादाभवादेव देवत्वेऽपि सुखोचिते // 455 // दःखितोऽन्यप्रशंसाभिर्देवः सर्वाभिसारवान् / महर्द्धिर्वहिनामाहमिहागां त्वां परीक्षितुम् ॥४५६॥युग्मम्॥ अन्वयः तदा कर्ण तप्त पुसमं वचः आकर्ण्य सुखोचिते देवत्वे अपि आभवात् एव स्वभावात्।। 455 / / अन्य पशंसामिः दुःखितः महर्दिः वहिनामा अहं देवः सर्वामिसारवान त्वां परीक्षितुं इह आगां / / 456 / / युग्मं / / 00000000 DeceOOOOOOOOOOOOOOD P.P.AC.Gunratnasuri.M.S.
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________________ 0989088318319191919191919191910 ड साम्यय पुण्यादय चरित्रं 188 भाषान्तर हनामनो देव (मास) 188 ... अर्थ:-ते वखते कानमा (रेडेला) तपाबेला सीसासरखं (इंद्र) ते वचन सांभळीने, मुखने लायक एवा देवपणागां पण छेक . जन्मथी स्वभावेज़ // 45 // बीजानी प्रशंसाथी दुःख पामतो (ईर्षालु थयेलो) महोटी समृद्धिवाको हुं वह्नि नाप्नो देव (मास) मधळा सेवको सहित तारी परीक्षा करवाने अहीं आव्यो छु. // 456 // युग्मं / / . त्रैलोक्यचालनोत्तालशक्तिनापि न ते मया / रोमाप्यचालि नियमाद्वीरः कोऽस्तु भवानिव // 457 // अन्वयः-त्रैलोक्य चालन उत्ताल शक्तिना अपि मया ते रोम अपि नियपात् न अचालि, भवान् इव कः वीरः अस्तु // 457 / / अर्थः-त्रणे लोकने उथलावी पाडवानी महान शक्तिवाळो एवो पण हुं तारा रेवाडाने पण नियमथी चलावी शक्यो नहीं, माटे खरेखर तारा समान (बीजो) कोण वीरपुरुष होइ शके ? // 457 // वहिना परितप्तोऽपि मूलोत्तरगुणाग्रणीः / सुवर्ण इव सद्वर्णभूमिश्रोतभवानभूत् // 458 // अन्वयः- हे) प्रातः भवानू सुवर्णः इव वह्निना परितः अपि मूलोजरणागणीः सद्धर्णमूमिः अभूत् // 458 // ... ) 00000000000000000000 P AC Gunnanasuri M.S
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________________ ARY पुण्यावर चरित्र सान्वय भाषान्तर 189 // 18 // DOOOOOOOOOOOOT अर्थ:-(वळी) हे भाइ ! तुं तो सुवर्णनी पेठे अग्निवडे (मारावडे) बहु तपाच्या छतां प्रण स्वाभाविक उत्तम गुणोवडे अग्रेसर थयोथको (लीधेल नियममा निश्चल रह्योथको) उत्तम रंगना स्थान सरखो (उत्तम जातिना स्थानरूपज) रह्यो. // 458 // . यक्षादिक्षोभसंरम्भो यः कश्चिद्विदधे मया / तं मयि प्रणयं तन्वन् त्वं सहस्व सहस्व भोः // 459 // अन्वयः-यः कश्चित् यक्षादिक्षोभसंरंभः मया विदधे, तं मयि प्रणयं तन्वन भो त्वं सहस्व सहस्व // 459 // अर्थ:-जे कई यक्षनी विकुर्बणा आदिकथी (तने)डराववाने में धांधल करी, ते माटे मारापर कृपा करी, तारे क्षमा करवी.' किं च याचस्व किंचिन्मांक वा याचा भवादृशाम् / स्वदडस्पृक्पयसिक्तो रोगी नीरुग्भविष्यति / 460 अन्वयः-किच मा किंचित याचस्व' वा भवाहशा यांचा को त्वदंगस्पृक् पयः सिक्तः रोगी नीरुग् भविष्यति. // 40 // अर्थ:-वळी (तुं) मारीपासे कंइंक मागी अथवा तारा जेवाने याचना क्याथी संभवे तारा शरीरना स्पर्शवाला जलथी स्नान, करेलो रोगी माणस रोगरहित थशे. // 460 // Guntatnasur MS AkadhakTrust.
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________________ peopeNOODSOSO900 पुण्याच चरित्र यच्च किंचित्कदाचित्त्वमातुरश्चिन्तयिष्यसि / भविष्यत्याशु तत्पुण्यशुभानां किमु दुर्लभम् // 461 // “अन्वयः-च आतरः त्वं कदाचित् यत् किंचित् चितयिष्यसि, तत् आशु भविष्यति, पुण्यशुभाना कि दुर्लभः // 461 अर्थः-वळी अणीने समये तुं कोइक बखते जे कई चितवीश, ते (कार्य) तुरत थशे, केमके पुण्यशालिओने | दुर्लभ छे! // 461 // सान्वय भाषान्तर / 190 / 190 अन्वयः-अधुना पुनः त्वां कस्य अपि नगरस्य अंते मुंचामि, वाहशा तुच्छा अपि अहि चारिका क्लैशावेशाय. // 462 / / अर्थ:-हवे तो तने कोइक नगरनी नजदीक मूकुं, केमके तारा जेवाना चरणोनी स्वल्प सेवा पण (अथवा तारा जेवाना स्वल्प पगला पण) दुःखनो नाश करनारा छे. // 462 // इत्युक्त्वा द्युतिदीप्ताशस्तिरोधत्त सुरोत्तमः। प्रान्ते पुरस्य कस्यापि स्वमपश्यच्च केशवः॥ 463 // " अन्वयः इति उक्त्वा धुति दीव आशः सुरोचमः तिरोधत्त, च केशवः स्वं कस अपि पुरस्य माते अपश्यतः // 46 // 000000000000
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________________ पुण्याढ्य चरित्रं सान्वय भाषान्तर 11.1 // 19 // 90000000000 * अर्थ:-एम कहीने (पोतानी) कांतिथी तेजस्वी करेल के दिशाओं जेणे, एवो उत्तम देव अदृश्य थइ गयो. अने ते केशव पोताने कोइक नगरनी पासे (उमेलो) जोवा लाग्यो / 463 // चतुर्भिः कलापक // प्राचीनाचलचूलाग्रचुम्बिन्यम्बुजबान्धवे / कृतप्रातःक्रियोऽथायं प्राचलत्पुरमीक्षितुम् // 464 // - अन्वयः-अथ अंबुज बांधवे प्राचीन अचल चूला अन चुंबिनि कृत मातः क्रियः अयं पुर ईक्षितुं माचलत् // 464 // अर्थ:-पछी सूर्य ज्यारे पूर्वांचलना शिखरना अग्र भागपर आव्यो, (अर्थात् सर्योदय थयो) त्यारे प्रभातनी नित्यक्रिया करीने ते केशव ते नगर जोवामाटे (आगळ) चालवा लाग्यो. / / 464 / / धर्माख्यानगिराहूतः स जीमूतरवश्रिया / आरामे वामतः सूरि सूरनामानमानमत् // 465 // अन्वयः--वामतः आरामे जीमूतवश्रिया धर्माख्यानगिरा आहूतः सः सरनामानं सूरि आनमः // 465 // अर्थ:-(एकामा) डावी बाजुए (आवेला) बगीचामा मेघनी गर्जनासरखी शोमती धर्मसंबंधी व्याख्याननी वाणीथी बोलावायेला
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________________ moseD00000SION पुण्याय चरित्र / 192 सान्वय भाषान्तर 1192 // अन्वया चार्य महारजना जगाए जेठीयः / देशमा पुनि सामने हर्षयी बखितः // 450 एवा ते केशवे त्या जइ)-पूरनामना आचार्य ने वाया.॥४६ना..... .. देशनारसपीयूषरसनप्रसृतश्रुतिः / स व्यक्तवासनस्तत्र युक्तमासनमासदत् // 466 // / अन्वयः- देशना रस पीयूष रसन प्रसृत श्रुतिः, व्यक्त वासना सा तत्र युक्तं आसनं आसदः // 466 / / अर्थः-(ते आचार्य महारजना) उपदेशना रसरूपी अमृतना स्वादथी विकस्वर थया छे कर्णो जेना, तथा मगढरीते (धर्मनी) वासनावाळो ते केशव त्या योग्य जगाए चेठो. // 466 // पुरस्य तस्य साकेतनाम्नः स्वामी धनञ्जयः / देशनान्ते मुनीशं तं मुदा नत्वा व्यजिज्ञपत् // 467 // "अन्वयासाँकेत नाम्नः तस्य पुरस्य स्वामी धनंजयः देशनाते तं मुनि मुदा नत्वा व्यजिज्ञपनः // 467 / / अर्थः-(पछी) साकेतपुरनामना ते नगरनो स्वामी धनंजय देशनाने अंते ते मुनिराजने हर्षथी बांदीने कहेवा लाग्यो के, 467 प्रभो जरापराभूतो व्रतग्रहचिरस्पृहः / अपुनः कुत्र राज्यं स्वं न्यस्यामीत्यस्मि दुःखितः॥ 468 //
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________________ OOOOOOOOOOOOOOOOOO पुण्यादय चरित्र सान्वय भाषान्तर 119 // *अन्वयः-(है) प्रभो जसपराभूता, व्रत ग्रह चिर स्पृहा, अपुत्रः स्वं राज्यं कुत्र न्यस्यामि ? इति दुःखितः अस्मि.॥४६८॥ अर्थ:-हे प्रभु! जरावस्थाए पहोचेलो, तथा घणा काळथी चारित्र लेवानी इच्छाचाळो (हुं) पुत्ररहित होवाथी मारूं (आ) राज्य कोने सौंपु १ए विचारथी हुं चिंतातुर थयेलो छु. // 438 // . . ......... मत्पुण्येनेव मूतेन पुंसा दिव्येन केनचित् / स्वप्ने ममेति शान्तेन निशान्तेऽद्य न्यवेद्यत // 469 // अन्वयः अद्य निशांते स्वप्ने मूर्तेन मत्पुण्येन इच केनचित् शांतेन दिव्येन पुंसा मम इति न्यवेयत. // 469 // अर्थः-आजे परोढीये स्वप्नमा जाणे देहधारी मारा पुण्येज होय नही ? तेम कोडक शांत प्रकृतिवाळा दिव्य पुरुषे मने स्वप्नमा एम जणान्युं के, // 469 // प्रातर्देशान्तरादेति यस्ते गुरुपुरः स्थिते / योग्ये तस्मिन्भुवं न्यस्य भव पूर्णमनोरथः // 170 // अन्वया-यामातदेशांतरात् एति, ते गुरुपुरः स्थिते तस्मिन् योग्ये भुवं न्यस्य पूर्णमनोरथा भव // 470 //
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________________ DOOOOOOOOOOOK HE पुण्याच चरित्र 194 // सान्वय भाषान्तर / 194 // अर्थ:-जे प्रभातमा देशांतरथी आके, तथा जे तारा गुरुपासे आवीने बेशे, एवा ते योग्य पुरुषने पृथ्वी (राज्य) सौंपीने संपूर्ण मनोरथवाळो था ? (अर्थात् तारो चारित्र लेवानो मनोस्थ पूर्ण कर ? / / 470 // :अथास्तनिद्रो निर्माय प्रातःकृत्यमिहागमम् / अपश्यं चैनमायातमाकारख्यातसत्कुलम् // 471 // 'अन्वयः-अथ अस्तनिद्रः पात: कृत्यं निर्माय इह आगम, च आकार ख्यात सत्कुलं एनं आयात अपश्यं // 7 // - अर्थः-पछी निद्रा उड्यानाद पात:काळर्नु नित्यकर्म करीने (1) अहीं आव्यो, (त्यां तो) जेनो आकारज उत्तम कुल जणावे. एवा आ पुरुषने (केशवने अही) आवेलों में जोयो. // 471 // अथादिशद्गुरुर्ज्ञानी केशवस्य शुभात्मनः / वृत्तं निशाशनत्यागनिश्चयामोदसुन्दरम् // 472 // अन्धयः-अथ ज्ञानी गुरुः शुभ आरमनः केशवस्य निशा अशन त्याग निश्चय आमोद सुंदरं वृत्त आदिशत. // 472 / अर्थ:-पछी ज्ञानी एवा ते गुरुमहाराजे निर्मल आत्मावाका एवा ते केशवर्नु रात्रिभोजनत्यागनानिश्चयरूपी सुगंधिथी मनोहर BOSSROOOOOOOOOOOR NO Whati
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________________ OOO00000000000000000 पुण्यादच चरित्रं भाषान्तर थयेलु वृत्तांत (ते राजाने) कही संभळाव्यु. // 472 // ... मम केनोपदिष्टोऽयमिति पृष्टेऽथ भूभुजा / वह्निनामुष्य सत्कर्मदृष्टेनेति गुरुर्जगो॥ 473 // अन्वयः-अथ मम अयं केन उपदिष्टः 1 इति भूभुजा पृष्टे अमुष्य सत्कर्महृष्टेन वह्निना इति गुरु: जगौ. // 473 // अर्थ:-हवे मने आ केशवने कोणे चींध्यो ? एम राजाए पूछवाथी, आना सुकृतथी खुशी थयेला बहि नामना देवे (चींध्यो छे) एम गुरुमहाराजे (राजाने) कयु.॥ 473 // इति श्रुत्वा गुरुं नत्वा सत्त्वाधिकगुरुः पुरम् / केशवेन सम प्रीतः प्रविवेश विशां विभुः॥४७॥ अन्वयः इति श्रुत्वा गुरुं नत्वा सत्त्वाधिकगुरुः विशां विभुः पीतः केशवेन समं पुरं प्रविवेश // 474 // अर्थ:-एम सांभळीने गुरुमहाराजने वांदी पराक्रमथी अधिक भारी थयेलो ते राजा आनंदयी (A) केशवने साथे लेइ नगरमा आव्यो. स्वराज्ये केशवं भूमानभ्यषिश्चन्महोत्सवैः / स्वयं सूरगुरोः पावे तदैव व्रतन ग्रहीत् // 475 // SO DE A Gunratnasuri MS Jun Gun Aaradnak Trus
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________________ पुण्यादय चरित्रं 196 // सान्वय भाषान्तर 1961 अन्वयः तदा एवं भूमान् स्वराज्ये महोत्सवः केशवं अभ्यर्षिचत् स्वयं मूरगुरोः पार्थे ते अग्रहीत. // 17 अर्थ:-(पछी) तेज बखते राजाए पोताना राज्यपर महोत्सवपूर्वक ते केशवनो राज्याभिषेक कर्यो, अने पोते (ते) सराचार्यपासे दीक्षा लीधी. // 175 // ..... . ......... ..... ययी श्रीकेशवो राजा नन्तुं देवान्विवेकवान् / सामात्यस्तत्र चैत्येषु पताकाभासुरे पुरे // 476 // 6 अन्वयः-विवेकवान् श्रीकेशकः राजा स अमात्यः पताकामामुरे तत्र पुरे चैत्येषु देवान् नंतुं ययौ. // 47 // अर्थ:-पछी विवेकी एवो ते श्रीकेशवराजा मंत्री सहित पताकाओ बडे शोभिता एवा ते नगरमा रहेल देवमंदिरोमां देवीने वांदवा माटे गयो / 476 : ... ... ..... . ..... ..................... . विहितातुल्यमङ्गल्यः स्वसीधे शुद्धधीय॑धात् / दुःस्थितानां स दानेन तारणः पारणस्थितिम् // 477 // अन्वयः-विहित अतुल्य मंगल्या, सुधीः, दानेन दुरस्थितानां तारणः सा स्वसौघे पारण स्थिति व्यधात्. // 477 //
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________________ 0909919999999999999999 पुण्यालय चरित्रं 1971 सान्वय भाषान्तर 197 अर्थः-करेला छे अनुपम मंगलकार्यो जेणे, तथा निर्मल बुद्धिवाळा, अने दानवडे दीन जनोने तारनारा, एवा ते केशव रांजाए पोताना मेहेलमा (आवीने) पारणुं कर्यु. // 477 // . .: प्रतापाकान्तसीमालभूपालः पालयन्प्रजाम् / स राज्यं न्यायनैपुण्यहृष्यन्मन्त्रिजनोऽतनोत्॥४७८॥ अन्वयः-प्रताप आक्रांत सीमाल भूपालः, न्याय नैपुण्य हृष्यत् मंत्रिजनः सः प्रजां पालयन् राज्यं अतनोत्. / / 478 // अर्थः-पराक्रमी जीतेला छे सीमाडाना राजाओने जेणे, तथा न्यायनी चतुराइथी खुशी थता छे मंत्रिलोको जेनाथी, एवो ते केशवराजा प्रजार्नु पालन करतो थको राज्य करवा लाग्यो. // 478 // . कदाचित्पितुरुत्कण्ठामाप भपो गवाक्षगः / ददर्श च पथि श्रान्तं भुवि यान्तं यशोधनम् // 479 // अन्वयः-कदाचित् गवाक्षगः भूपः पितुः उत्कंठा आप, च पथि श्रांतं भुवि यांतं यशोधनं ददर्श. // 479 // अर्थः-(पछी) एक दिवसे झरुखामा बेठेलो ते केशवराजा (पोताना) पिताने (मळवानी) उत्कंठा करवा लाग्यो. (एवामा) 01318Islalalalalalalalalalalalalalalala Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ Eeeeeeeeeeeeeeeee पुण्याढय কান্তি 1981 सान्वय भाषान्तर 1981 मुसाफरीथी थाकी गयेला, तथा जमीनपर चालता एवा यशोधनने (तेणे) जोयो. // 479 // : अनुधावत्परिजनप्रकरः सत्वरस्ततः / सौधादुत्तीर्य नृपतिः पितुः पदयुगेऽपतत् // 480 // .... ___ अन्वयः-अनुधावत्परिजन प्रकरः नृपतिः सत्वरः ततः सौधात् उत्तीर्य पितुः पदयुगे अपतत् // 480 // ... / अर्थ:-(पछी) पाछळ दोडतो छ परिवारनो समूह जेनो, एवो ते राजा उतावळ यी ते मेहेलमाथी उतरीने (पोताना) पिताना चरणोमां पड्यो. // 480 // तादृग्विभूतिपर्यकोऽप्यद्य रङ्कोपमाश्रयः / कुतः पितरितोऽसीति प्राह च प्रीतिदुःखितः // 481 // अन्वयः-च प्रीतिदुःखितः माह, हे पितः तादृविभूतिपयकः अपि अद्य रंक उपमा आश्रयः इतः कुतः असि // 481 // अर्थ:-पछी प्रेमथी पीडित थयेलो ते केशव राजा एम कहेवा लाग्यो के, हे पिताजी! तेवा प्रकारनी समृद्धिना तमो पलंग सरखा होवा छता पण आज रंक सरखा थइने अहीं क्याथी आव्या // 481 // SID00 OBECEESCECOSSESEGIES
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________________ पुण्याढ्य चरित्र 1994 सान्वयन भाषान्तर / 199 . नन्दनस्य नरेन्द्रत्वपदेन मुदितोऽपि संन् / दुःखाश्रूणि दधद् गेहवार्तामाह यशोधनः // 482 // - अन्वयः-नंदनस्य नरेंद्रत्व पदेन मुदितः अपि सन् दुःख अश्रूणि दधत् यशोधनः गेहवाता आह. // 482 // अर्थः-पुत्रनी राजानी पदवीथी खुशी थया छतां पण दुःखना आंसुओ धारण करतो ते यशोधन शेठ घरनी बात कहेव लाग्यो के, // 482 // धीमन्गते त्वयि तदा हंसो भोक्तुं निवेशितः / भूमौ पपात संजातभ्रमिभुक्तार्धभोजनः // 483 // अन्वयः-(हे) धीमन् ! त्वयि गते तदा भोक्तुं निवेशितः हंसः भुक्त अर्ध भोजनः संजातभ्रमिः भूमी पपात. / / 483 / / अर्थः-हे बुद्धिमान् केशव! तारा गयाबाद तेज बखते भोजन करवा माटे बेसाडेलो हंस अर्धं भोजन कर्या बाद चक्री आववाथी जमीनपर पडी गयो. // 483 // एतत्किमिति तन्मात्रा दीपे दूरादुपाहृते / तदन्नेऽदार्श गरलं तुलापट्टे च पन्नगः॥ 484 // Germenicate oecomesesaecseeeeeeo PP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ पुण्याच चरित्र 1200 सान्वय भाषान्तर 1200 अन्वयः-एतत् कि? इति तन्मात्रा दुरात् दीपे उपाहृते तत् अन्ने गरलं, च तुलापट्टे पन्नगः प्रदर्शि. // 484 // अर्थः-आ ते शुं थयु? एम (बोलती) तेनी माताए दूरथी दीवो (त्या)लाच्याबाद तेने पीरसेला अन्नमां झेर, तथा भारवटीयामा (लटकतो) सर्प जीवामां आव्यो. // 484 // धर्मशं मन्यमानेन त्वां तदा तदुदाहृतेः / कुटुम्बेन महाक्रन्दश्चक्रे दिक्चक्रविक्रमी // 485 // अन्वय:-तत उदाहृतेः तदा त्वां धर्मशं मन्यमानेन कुटुंबेन दिक्चक्रविक्रमी महादः चके. // 485 // .... अर्थः-ते उदाहरणथी ते वखते तने धर्मनो रहस्य जाणनार मानता एवा कुटुंचे दिशाओना समूहमा ब्यापे एवी महोटी रडा. पीट करवा मांडी. // 4 // 5 // तदाक्रन्दमिलल्लोकवर्ती विषभिषग्वरः। एको हि मान्त्रिकाह्वानकृतोद्यममुवाच माम् // 486 // * अन्वयः-तत् आक्रद मिलत् लोकवर्ती एका वरः विषभिषक् हि मांत्रिक आहान कृतोद्यमं मां उवाच // 485 // 0000000000000000 Gurtasun
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________________ P000000000000000000 पुण्याढ्य * चरित्रं इ. 1201 सान्वय भाषान्तर -201 // अर्थः-ते रडापीटथी(त्यां)एकठा थयेला लोकोमा उभेला कोइ एक झेर संबंधी वैद्यविद्या जाणनारा उत्तम वैद्ये खरेखर मंत्रवादीओने बोलाववा माटे उद्यम करता एवा मने कg के, // 486 . न कार्यः क्लेशलेशोऽपि सर्पस्यास्य विषक्तमैः। सटटद्गलत्कायो मासमेवेष जीवति // 487 // अन्वय:-क्लेशलेशः अपि न कार्यः, अस्य सर्पस्य विपक्लमैः सटत् त्रुटत् गलत कायः एषः मासं एवं जीवति / / 487 // अर्थ:-(हवे तमो) नाहक जराए महेनत न करो? आ सपनुं झेर चडवाथी (आ हंसनु) शरीर सडवा, त्रुटवा तथा क्षीण थवा लागशे, तथा (ए रीते) ते फक्त एक मास सुधीज हवे जीवी शकशे // 487 // . .. जनं विसृज्य शय्यायां शायितोऽथ त्वग्रजः / स्थितोऽस्मि तत्स्वरूपं च ज्ञातुं पञ्चदिनी गृहे // 488 // अन्वयः-अथ जनं विसृज्य त्वग्रजः शय्यायां शायितः, च-तत्वरूपं ज्ञातुं पंचदिनीं गृहे स्थितः असि. // 488 // अर्थ:-पछी लोकोने विसर्जन करीने त्हारा ते म्होटा भाइ हंसने शय्यामा सुवाड्यो, तथा तेनी तबीयतनी स्थिति जोवामाटे SoSOOOOOOOOOOOOOOO ER P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ पुण्याचं चरित्र सान्वय भाषान्तर 202 // 12021 ESSA पांच दिवसो सुधी हुँ घरमांज रह्यो. // 488 // .. .. रोमरोमपतच्छिद्रं मत्वाथ मृतमेव तम् / त्वां दृष्टुं निरगां गेहात्सुकृतैदर्शितोऽसि // 489 // अन्वयः-अथ रोम रोम पतन छिद्रं तं मृतं एव मत्वा त्वां द्रष्टुं गेहाद निरगां, च सुकृतैः दतिः असि.॥४८९॥..... अर्थः-पछी रुंबाडे रुंवाडे जेने छिद्रो पडेला छे, एवा ते हंसने मरेलोज मानीने तने मळवामाटे हु घेरथी निकळयो छु, तथा पुण्ययोगे (आ).तने मळ्यो छु. // 489 // . विषग्रासदिनान्मासः पूर्णः मामटतो मम / त्वज्ज्येष्ठोऽद्य मृतो वास्तु म्रियतां वा हतोऽस्मि हा 190 अन्वयः-क्ष्मा अटतः मम अद्य विषग्रास दिनात मासः पूर्णः, त्वत् ज्येष्ठः मृतः अस्तु, वा म्रियता वा हा हतः अस्मि. 490 अर्थ:-पृथ्वीपर भमता मने आजे तेना मेरी अनाज खावाना दिवसथी एक मास पूरो थयो छे, माटे (आजे तो) ते तारो म्होटो भाइ मरी गयो हशे, अथवा मरण पामशे अरे! हुं तो (हवे) मुबोज पड्यो छु! // 49 // 290099928 D@@0000000000000000
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________________ 00000000000000000000 - पुण्याढ्य (6) योजनानां शतमितस्तत्पुरं मत्पुराद्भवेत् / कथं याम्यद्य तत्राशु जीवबन्धुमुखोत्सुकः // 491 // चरित्रं तद्वार्तात इति ध्यायन्नेव हंसस्य पार्श्वगम् / स्वमैक्षत ततः क्षमापः सतातं सपरिच्छदम् ॥४९॥युग्मम् 12031 अन्वय:-ततः तत् वार्तिःक्ष्माप इत: मत्पुरात् तत् पुरं योजनानां शतं भवेत्, जीवत् बंधु मुख उत्सुकः अद्य तत्र आशु कथं यामि' इति ध्यायन् एव स्वं सतातं सपरिच्छदं हंसस्य पार्श्वगं ऐक्षत. // 491 // 492 // युग्मं / / अर्थः-पछी ते वृत्तांतथी पीडित थयेलो ते राजा आम्हारा नगरथी ते नगर एकसो जोजन दूर छे, तो (म्हारा ते) जीवता भाइनु मुख जोवाने उत्सुक थयेलो एवो हुँ, आजे त्या तुरत केम पहोंची शकुं? एम विचारतांज ते पोताने (पोताना) पिता तथा परिवारसहित हंसनी पासे बेठेलो जोवा लाग्यो. // 491 // 492 // युग्मं // कुथितांगातिदुर्गन्धवस्तबन्धुकदम्बकम् / एकयैवाम्बयायुक्तं रोदनोच्छूननेत्रया // 493 // अतिभिर्नरकार्तीनां सारोद्धारिवार्दितं / आसन्नमृत्युं भूक्षिप्तं दुःखी हंस ददर्श सः॥ युग्मं॥ // 494 // GOOGGC ocomreatescecaecocccecrea Jun Gun Aaradhak Trust PRAC Gunnatasuri MS
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________________ preeeeeeeeeeeeeeeeeees 0 पुण्याढ्य चरित्र 204) सान्वय भाषान्तर 204 // ..अन्वयः-कृथित अंग अति. दुर्गध त्रस्त बंधु कदंबकं, रोदन उच्छ्न नेत्रया एकया अंबया एव युक्तं, // 493 // नरकातीनां सासेद्धारैः इव अतिमिः अदितं, आसन्नमृत्यु, भूक्षिप्तं इस दुःखी सः ददर्श // 494 // युग्मं / अर्थः-सडी गयेला शरीरमाथी (निकळता) घणा दुर्गधथी (कंटाळीने) दूर बेठो छे कुटुंचनो समूह जेनाथी, तथा रुदन कर. बाथी सूजीगयेल के नेत्रो जेणीना, एवी फक्त एक माताथीज युक्त थयेला, (अर्थात जेनी नजदीक फक्त एक माताज बेठेली छे एवा) // 493 / / तथा नरकनी पीडाओनो जाणे सार खेंची कहाड्यो होय नही? एवी वेदनाओथी पीडित थयेला, नजदीक छे मृत्यु जेने एवा, तथा भोंये लीधेला एवा ते हंसने ते दुःखी केशवे जोयो. / / 454 // युग्मं // तद्व्यथाव्यथितोऽपीहग्दूरमार्गद्रुतागतो / कुतः शक्तिरिति भ्यायन्सोऽपश्यद्वह्निदेवतम् // 195 // : अन्वयातचथाव्यथितः अपि सः ईग दूर मार्ग द्रुत आगतौ कुतः शक्तिः इति ध्यायन वद्विदैवतं अपश्यतः // 495 / / अर्थ:-ते हंसनी वेदनाथी पीडीत थयेला एषा पण ते केशवे, आटले बधे दूर मार्गे एकदम आववामा (मने) क्याथी शक्ति आवी? DSSSSSSSC 0999000
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________________ peteeeeeeeeeeeeeeERIEND भाषान्तर पुण्याढ्य चरित्रं 5 (205/ एम विचारता थका (त्या) तेणे वह्निदेवने जोयो. // 495 // मा कार्षीविस्मयं मत्वावधिज्ञानात्तव व्यथाम् / आगां कर्तु वरं सत्यमित्युक्त्वागादिवं सुरः // 496 // अन्वयः-विस्मयं मा कार्षी, अवधिज्ञानात् तव व्यथा मत्वा वरं सत्यं कर्तुं आगा, इति उक्त्वा सुरः दिवं अगाव. // 49 // CHOTI अर्थः-(तुं) आश्चर्य नही पाम ? अवधिज्ञानथी तारं कष्ट जोइने (आपेला) वरदानने सत्य करवा माटे हु आव्यो छु, एम कही (ते) देव देवलोकमा गयो. // 496 // हृष्टेन केशवेनाथ पाणिस्पृष्टेन पाथसा / हंसः सिक्तश्च रोगौघमुक्तश्च द्रुतमुत्थितः // 497 // - अन्वयः अथ हृष्टेन केशवेन पाणिस्पृष्टेन पाथसा हंसः सिक्तः, च रोग ओष मुक्तः, च द्रुतं उत्थितः // 497 // अर्थः-पछी खुशी थयेला ते केशवे (पोताना) हाथे स्पर्श करेला जलवडे ते इंसने न्हवराव्यों, (तेथी ते) रोगना समूहथी। मुक्त थयो, तथा तुरतज बेठो थयो. // 497 // Jun cu aradnak PP.AC.GunratnasuriM.S.
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________________ Shree BECORDISO9000000000 पुण्यढिय चरित्र 206 // सान्वय भाषान्तर 1206 / पूर्वस्मादुत्तरेणैव वपुषा विपूलद्युतो / जातेऽस्मिन्बन्धुवर्गस्य प्रावर्तन्त महोत्सवाः // 498 // अन्वयः- पूर्वस्मात उत्तरेण एव वपुषा विपुलद्युतौ अस्मिन् जाते बंधुवर्गस्य महोत्सवाः पावर्तत. // 498 // अर्थः-पहेलाथी पण वधारे सारां थयेला शरीरवडे करीने घणा तेजवाळो ते केशव थये छते (तेना) कुटुंबवर्गमा महोत्सवी थवा लाग्या. // 498 // एवं प्रभावमुद्भाव्य केशवस्य नरेशितुः। दधौ व्याधिवधाय स्वे मूर्ध्नि पादोदकं न कः // 499 // अन्वयः-एवं केशवस्य नरेशितुः प्रभावं उद्भाव्य व्याधिवधाय स्वे मूनि कः पादोदकं न दधौ? // 499 // .... अर्थः-पवीरीते ते केशवराजानो प्रभाव जोइने (पोताना) रोगनो नाश करवा माटे पोताना मस्तकपर कोणे (तेनं) चरणोदक धारण न कयु? (अर्थात् सर्व रोगीओए तेम कयु.) // 499 // किं वर्ण्यः केशवोर्वीशः सिषेवे यत्पदोदकम् / भृतभाविरुजो भेत्तुमासमुद्रं नृपैरपि // 500 // , 0000000000000000000
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________________ COOOOOOOOS पुण्याढ्य चरित्रं सान्वय भाषान्तर 207 / 1287 / अन्वयः-केशवः ऊर्वीशः किं वर्ण्यः? यत्पदोदकं भूतभाविरुजः मेत्तुं आ समुद्रं नृपैरपि सिषेवे. // 50 // अर्थः-आ केशवराजानी केटली प्रशंसा करीयें? जेना चरणोदकने, थयेला तथा थनारा रोगोनो नाश करवाम समुद्रकिनारा सुधीना (सघळा) राजाओए पण अंगीकार कयु. // 500 // भाविरोगभिया स्वर्णकलशे क्षिप्तमोकसि / न जीवितमिवारक्षि केनोयाँ तत्पदोदकम् // 501 // अन्वयः-ऊया भाविरोगमिया तत्पदोदकं स्वर्णकलशे क्षिप्तं जीवितं इव ओकसि केन न अरक्षि? // 501 // अर्थ:--(वळी) आ पृथ्वीपर थनारा रोगना डरथी ते केशव राजानु चरणोदक सुवर्णना कळशमा राखीने (पोताना) जीवनी पेठे घरमा कोणे न साचवी राख्यु? (अर्थात सर्व लोकोए संघरी राख्यु) // 501 // .. सद्यः प्रभावमासाद्यं भूपतेरिति धर्मजम् / राम्याहारपरीहारपरा जज्ञे धरा स्वयम् // 502 // * अन्वयः-इति भूपतेः धर्मजं सद्या प्रभावं आसाथ धरा वयं रात्रि आहार परीहार परा जज्ञे. // 502 // 00000000 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradnak Trust
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________________ DeeeeeeeeeeeISISTERS पुण्यादथ चरित्र सान्वय भाषान्तर 208) 1208 अर्थ:-एचीरीते ते केशवराजानो धर्म संबंधी तुरत थयेली चमत्कार जोइने पृथ्वी एटले पृथ्वीपर वंसता लोको पोतानी मेळेज ररात्रिभोजनना त्यागमा तप्तर थया. // 502 // अथायं दिग्जयं कृत्वा स्थित्वा साकेतपत्तने / पात्वा चिरं धरामत्रामुत्राभूत्परमः सुखी // 503 // .. // इति रजनीभोजनत्यागे हंस केशवकथा // अन्वयः-अथ अयं दिग्जयं कृत्वा, साकेतपत्तने स्थित्वा, चिरं धरा पात्वा, अत्र अमुत्र परमः सुखी अभूतं. // 503 // अर्थ:-पछी ते केशवराजा दिग्विजय करीने, तथा सांकेतनगरमा रहीने, अने घणा काळमुधी पृथ्वीन रक्षण करीने आलोक अने परलोकमा अत्यंत सुखी थयो. // 503 // // इति रजनीभोजनत्यागे हंस केशवकथा. // .. इत्थं हंसस्य विपदं संपदं केशवस्य च / श्रुत्वा मुखाद् गुरोः स्वर्गिन्कथमद्मि फलं निशि // 504 // DetestSISTERIENCICIETEISerecte
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________________ commomsome पुण्याय चरित्र सान्चय भाषान्तर / 209 0000000 * अन्वयः-इत्थं इंसस्य विपदं, च केशवस्य संपदं गुरोः मुखात् श्रुत्वा (हे) स्वर्गिन् ! निशि फलं कथं अधिः // 504 // अर्थ:---एवीरीते हंसनी आपदानुं अने केशवनी समृद्धिनुं वृत्तांत गुरुना मुखथी सांभळीने (पण) हे देव! रात्रिए (हुं) फल केम खाउं? / / 504 // सरा ह्यविरता नित्यं श्रावका विरतिस्पृशः। तदेवमावयो दो जज्ञे पुण्याढ्यपार्थिव // 505 // अन्वया-(हे) पुण्यायपार्थिव ! मुराः नित्यं अविरताः, श्रावकाः विरतिस्पृशः, तत् एवं आवयोः भेदः जज्ञे // 505 // अर्थः-(हे) पुण्याढ्यराजा ! देवो हमेशा विरतिरहित होय छे, अने श्रीवको विरतिवाला होय छे, माटे एवीरीते आपण बन्नेवच्चे तफावत छे. // 505 // . .. ... .... . तदभ्यर्च्य जिनं धर्मिन् घाशावुदयस्पृशि / अडरोगविभङ्गाय तदिदं फलमाहरेः॥ 506 // अन्वयः-तत् (हे) धर्मिन्! धर्माशौ उदयस्पृशि जिनं अभ्यर्च्य अंगरोगविभंगाय तत् इदं फलं आहरेः // 50 // ... 0000000 00X90X00000000000000 P.P.AC. Gunratnasuri MS Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सान्वय पुण्यादध चरित्र 1210 // भाषान्तर 210 Bellella - अर्थ-पाटे (है) धर्मामा सूर्य उग्याचांद जिनेश्वरप्रभुनी पूजा करीने (तारा) शरीरेना रोगना नाशमाटे (d) ते आ फलनो आहोर कर. / / 506 // इत्युदित्वा तिरोभूते सुरे दध्यौ नरेश्वरः। अहो जीवन्मृतोऽपीभः कियन्मय्युपकारकः // 507 // अन्वयः इति उदित्त्वा मरे तिरोभूते नरेश्वरः दध्यौ, अहो इभः जीवन्मृतः अपि मर्यि किया उपकारक // 207 // विभिर्विशेषकी अर्थः-एम कही (त) देव अदृश्य थयाबाद (ते) राजाए विचायु के. अहो ! (आ) हाथीए जीवाथका तथा मृत्युवाद पण माफिर केटलों बंधों उपकार कर्यो / 507 / / विभिविशेषक तदस्य नागनाथस्य नाम्ना धाम जिनेशितुः। कारयिष्याम्यनशनस्थाने कैलासशैलवत्॥ 508 // * अन्वय:-तत् अस्य नागनाथस्य नाम्ना अनशन स्थाने कैलासशैलवत् जिनेशितु धाम कारयिष्यामि // 4 // अर्थ-माटे ओ हस्तिराजनां नामथी तेना अनशननी जगोए कैलास पर्वत जैh (उचुं) जिनमंदिर (है) करीबीच.५४॥ SECTONENEIGO 0000000000000 PAINManasalaman
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________________ peel en992192elegegeeeee पुण्यादय चरित्रं 211 इत्यादिमधुरध्वानो गमयित्वा तमीमिमाम् / जिनपूजनपूतात्मा भूपस्तत्फलमाहरत् // 509 // ... सान्वय भाषान्तर - अन्वयः-इत्यादिमधुरध्वानः भूपः इमा ती गमयित्वा जिनपूजनपूतात्मा तत् फलं आहरत् // 509 // 2111 अर्थ:-इत्यादि मधुरवाणी चोलता(ते)राजाए ते रात्रि निर्गमन कर्यावाद जिनपूजनथी आत्माने पवित्र करी ते फलनों आहारकों तदैव फलतस्तस्मादकस्माद् भूपतेर्वपुः। सरोजमिव संकोचमुन्मुमोच विरोचनात् // 510 // अन्वया-तदा एव तस्मात् फलतः विरोचनात् सरोज इव अकस्मात् भूपतेः वपुः संकोच उन्मुमोच. // 510 // अर्थ:-तेज बखते ते फलना (प्रभावथी) पूर्वी कमलनी पेठे अकस्मात् राजाना शरीरे संकोचपणानों त्याग कयौं वरना भूपः स्वभावसुभगो धूतसंकोचविक्रियः। विश्वदृक्पेयता प्राप दिनमुक्तेन्दुधामवत् // 511 // अन्वया स्वभावसुभगर, धृतसकोचविक्रियः भूपः दिन मुक्त इंदु धामवत् विश्वक्पेयता प्राप..॥५११ / / . अर्थ:-स्वभावथीज मनोहर, तथा दूर थयेल'छे संकोचनो विकार जेनो, एवो ते राजा दिवसथी मुक्त भयेला चंद्रना तेजनी CS Seeleeas DESIGGESCEIGreececreteeee Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ पुण्यादय चरित्रं सान्वय भाषान्तर 21 1212 / accecrorea पेठे जगतनी आंखोने आनंद आपवा लाग्यो. // 511 // अङ्गपाटवमङ्गल्यगर्जन्नागरगौरवः / व्रजन्त्यहानि भूजानिर्जानीते स्म न कानिचित् // 512 // - अन्वयः-अंगपाटव मंगल्य गर्जत् नागरगौरवः भूजानिः व्रजंति कानिचित् अहानि न जानी तेस्म. // 512 // अर्थ:-शरीरना सुधारारूपी मंगलीकथी (हर्षना) पोकार करता नागरिकोवडे सन्मानित थयेलो ते राजा चाल्याजता एवा केटलाक दिवसोने जाणवा पण न लाग्यो. // 512 // क्रीडदन्तःपुरीलोकस्तोकीभूतत्रपाभरः / निनाय नायकः क्षमायाः प्रीत्या कत्यपि वासरान् // 513 // अन्वय-क्रीडत अंत:पुरी लोक स्तोकीभूत अपाभरः क्षमाया: नायकः पीत्या कत्यपि वासरान् निनाय. // 513 // अर्थ:-क्रीडा करती राणीओ बडे करीने स्वल्प थयेल छे लजानो समूह जेनो, एवो ते पृथ्वीपति आनंद पूर्वक केटलाक दिवसो व्यतीत करवा लाग्यो. // 513 // 0000000000000000
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________________ Domes पुण्याय चरित्रं 21 सान्वय भाषान्तर 1213 उत्पन्ननन्दनानन्दसुधास्नानवशेन्द्रियः॥ स मेने कत्यपि समाः स्वसमान्नाकिनोऽपि न // 514 // "अन्वया-उत्पन्न नंदन आनंद सुधा स्नान वश इंद्रियः सः कत्यपि समाः नाकिनः अपि स्वसमान् न मेंने. // 14 // अर्थ:-उत्पन्न ययेला पुत्रोना आनंदरूपी अमृतना स्नानमां वश थयेल छे इंद्रियो जेनी, एवो ते पुण्यात्य राजा केटलाक वर्षामधी तो देवीने पण पोतानी तुल्य न मानवा लाग्यो. // 514 // वनक्रीडारसाधीनो रसाधीशः कदाप्ययम् / तद्विपानशनस्थानं वीक्ष्य दुःखादचिन्तयत् // 515 // - अन्वयः-कदापि वन क्रीडा रसाधीन: अयं रसाधीशः तद् द्विप अनशन स्थानं वीक्ष्य दुःखात् अचिंतयत् // 515 // अर्थ.-कोइक दिवसे वनक्रीडाना रसमा आसक्त थयेलो आ राजा ते हाथीनुं अनशनर्नु स्थान जोइने खेद पामी विचारखा लाग्योके, हा मां कामान्धहृदयं भवभावा व्यलोभयन् / स्वभङ्गभीरवो यन्मे कृत्यनाशं वितेनिरे // 516 // अन्वयः-हा! स्व भंग भीरवः भव भावाः कामांध हृदयं मां व्यलोभयन्, यत् मे कृत्यनाशं वितेनिरे // 515 / / SAEONE PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ D00000000000DRODE पुण्याढ्य चरित्र सान्वय भाषान्तर 214 // 1214 00000000 अर्थः-अरे ! पोताना विनाशथी डरता एवा संसारना (इंद्रियोना) विषयोए कामथी अंध थयेला मनवाळा एवा मने लालचमा नाखी दीघो छे, केमके (ओए) मारा सत्कार्योनों नाश कर्यो के. // 516 // नानोपकारिणस्तस्य करिणः कर्तुमीहितः / मोहोल्लासादिह हहा प्रासादोऽपि न कारितः॥५१७॥ अन्वयः तस्य उपकारिणः करिणः नाना कर्तु ईहितःप्रासादः अपि इह हहा मोहोल्लासात् न कारितः // 517 // अर्थः-ते उपकारी हाथीना नामथी करवाने इच्छेलो जिनमासाद पण अहीं अरेरे! में मोहने वश थइ कराव्यो नहीः // 517 // एवं ध्यानपतच्चित्तोऽमात्यानित्यादिशन्नपः। विपुलं द्विपनाम्नान कार्यतां जिनमन्दिरम् // 518 // अन्वयः-एवं ध्यानपतत् चित्तः नृपः अमात्यान् इति आदिशत्, अत्र द्विपनाम्ना विपुलं जिनमंदिरं कार्यता? // 518 // अर्थ:-एवीरीतना विचारथी खिन्न हृदयवाळो राजा मंत्रिओने एम कहेवा लाग्यो के, आ जगोए ते हाथीना नामथी एक विशाल जिनमंदिर करावो? // 518 // Dieet3.8lelo GO00000000000000
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________________ 099999999999999X9X9938 पुण्याख्या 1215 // सान्वय भाषान्तर / 215i / अह्वा मासेन वर्षेण दशवापि भोजनम् / करिष्यामि जिनं प्रेक्ष्य प्रासादेऽत्र प्रतिष्ठितम् // 519 // अन्वयः-अहा, मासेन, वर्षेण, दशवर्ध्या अपि अत्र प्रासादे प्रतिष्ठितं जिनं प्रेक्ष्य भोजनं करिष्यामि // 519 // अर्थ:-एक दिअसे, एक मासे, एक वर्षे, अथवा दश वर्षे पण आ जिनमंदिरमा प्रतिष्ठित थयेली जिनपतिमाना दर्शन करीनेज हुँ भोजन करीश. // 519 // नृमाणिक्य न शक्योऽयं तरीतुं निश्चयार्णवः / इत्येष लपतोऽमात्यानवमत्याविशत्पुरम् // 520 // अन्वया-(हे) नृमाणिक्य! अयं निश्चयार्णवः तरीतुं शक्यः न, इति लपतः अमात्यान् अवमत्य एषः पुरं अविशत् // 520 // अर्थः-पुरुषोमा माणिक्यरत्नसरखा हे राजन! आवा भकारना नियमरूपी महासागरने तरी शकायज नही, एम बोलता मंत्रिओनी पण दरकार कर्याविना (एटले तेओना कहेवापर ध्यान न देता) ते राजा नगरमा दाखल थयो. // 520 / / .. जिनधामद्रुताधानबद्धारम्भास्तदैव ते। पुण्याहमङ्गलं तत्र मन्त्रिमुख्या व्यधापयन् // 521 // MOBOXXOXOXOXOX080000 P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ पुण्याढ्य चरित्रं सान्वय भाषान्तर 211 X80300 आन्वयानजिन धाम दूत आधान बद्धारंभाः ते मंत्रिमुख्या: तदा एव तत्र पुण्याहिमगलं पधापयन // 5 // अर्थ:-जिनमंदिस्ना तुरत बांधकाममाटे करेली छे तैयारीओ जेओए, एवा ते मुख्यमंत्रिओए तेज वखते त्या उत्तम मंगलीक करान्यू, (खात मुहूर्त कराव्यु.)॥५२१॥' ... ... .. . . हृदुत्तारितसंसारव्यापारः सारधर्मधीः / अकृताहार एवाष्टौ नृपो निन्ये दिनानि सः // 522 // अन्वयः इद् उत्तारित संसार व्यापार: सारधर्मधीः सः नृपः अकृत आहारः एव अष्टौ दिनानि निन्येः // 522 // अर्थ:-हृदयमाथी पण कहाडी नाखेल छे सांसारिक कार्योर्नु चितवन जेणे, तथा उत्तम प्रकारनी धर्मबुद्धिवाळा ते राजाए peleeISISISTS ततः प्रत्यूषशेषायां रजन्यां जातजागरम् / देवः स एव प्रत्यक्षीभूय भूपमभाषत // 523 // "अन्वयः-ततः प्रत्यूषशेषायां रजन्यां जातजागरं भूपं सः एव देवः प्रत्यक्षीभूय अभाषत / 523 // --- SESEGOSSESSIGGESEG 20......madhan
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________________ 0000000000000 - पुण्याच चरित्रं 217 सान्वय भाषान्तर / 217 // 00000G अर्थः-पछी रात्रिनो परोढीयानो भाग बाकी स्हेते जागी उठेला ते राजापासे तेज देवे प्रत्यक्ष थइ कयु के, // 523 // जय त्वं कीर्तिविस्तीर्ण निस्तीर्णभवसागर / प्रतिपन्नमनोदाढर्थ श्रीपुण्याढ्य महीपते // 524 // अन्वयः-कीर्ति विस्तीर्ण ! निस्तीर्णभवसागर! प्रतिपत्रमनोदाढर्य ! (हे) श्रीपुण्याढ्य महीपते ! त्वं जय! / / 524 // अर्थ:-कीर्तिथी प्रसिद्ध थयेला, तथा तरेलो छे संसारसमुद्र जेणे एवा, अने स्वीकारेल छे मननु निश्चलपणुं जेणे एवा, हे पुण्याय महीपाल ! तुं जय पाम ? // 524 // अवधिज्ञानतो ज्ञात्वा नृदुःपूरं तवाग्रहम् / लोकोत्तरं स्वरूपं च किंचिदथैव भावि ते // 525 // शुभापुयाँ तत्तपनानिश्चित्य ज्ञानभास्करात् / बिम्बं निर्माय जैनेन्द्रं पतिष्ठाप्य यथाविधि // 526 // अस्थापयं वने तस्मिंश्चैत्ये पूर्णीकृते क्षणात् / अहं तवैव भाग्यानां सम्प्रति प्रतिहस्तकः // 527 // तत्कल्याणनिधे तूर्णमेहि पूर्णमनोरथः / जिनं चन्द्राननं नत्वा नमस्यो जगतां भव // 528 // 00000000 SeeGOOGOSOCICIC00000 PP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ पुण्याढ्य चरित्रं 1218 सान्वय भाषान्तर R18 00000000 एवं देवस्य तस्योक्तं श्रुत्वा दध्यो धराधिपः / अहो कियानयं मेऽभूदुपकारी द्विपामरः // 529 // अन्वयः--नृदुःपूरं तव आग्रह, च अद्य एव भावि ते किचिव लोकोत्तरं खरूपं अवधिज्ञानतः ज्ञात्वा // 525 // शुभापुर्या ज्ञान भास्करात् तपनात् तत् निश्चित्य, जैनेंद्र घिचं निर्माय, यथाविधि प्रतिष्ठाप्य // 526 // तव एव भाग्याना प्रतिहस्तकः अहं तमिन् वने क्षणात् पूर्णीकृते चैत्ये संमति अस्थापयं, // 527 // तत् (हे) कल्याणनिधे! तूर्ण एहि? चंद्राननं जिनं नत्वा पूर्णमनोरथः जगतां नमस्यः भव // 528 / / एवं तस्य देवस्य उक्तं श्रुत्वा धराधिपः दध्यो, अहो! अयं द्विपामरः मे कियान् उपकारी अभूत् // 529 // पंचमिः कुलकं / / अर्थ:-मनुष्योबडे संपूर्ण न थइ शके एवा तारा आग्रहने, तथा आजेज थनारा तारा कंइंक लोकोत्तर स्वरूपने (मोक्षने) अवधिज्ञानथी जाणीने, // 525 / / तथा शुभापुरीमा (विराजता) ज्ञानथी सूर्यसरखा एवा (ते) तपननामना मुनिराजपासेथी ते (तारी हकीकतनो) निश्चय करीने, अने जिनप्रतिमा बनावीने, तथा तेनी विधिपूर्वक प्रतिष्ठा करावीने, / / 526 // ताराज 24 DS0000000000ECISIODISED PA CUMS H a ridiovisthuntinuonally . ..
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________________ DOST990900CTOD पुण्याढ्य चरित्रं R19 // सान्वय भाषान्तर 1219 ) भाग्योनो जामीन एवो जे हुं, तेणे ते वनमा एक क्षणमांज संपूर्ण करेला जिनमंदिरमा स्थापन करी छे. // 527 // माटे कल्याणना भंडारसरखा एवा हे राजन! तुं तुरत चाल तथा त्यां चंद्रसरखा मुखवाळा (अथवा चंद्रानननामना) प्रभुने नमीने तारों मनोरथ पूरो करीने जगतने नमवा लायक था। 528 / / एवी रीतनुं ते देवनुं वचन सांभळीने राजाए विचार्यु के, अहो! आ हस्तिदेव मारो केटलो उपकारी ययो! // 529 // पंचभिः कुलकं // नवप्रासादतीर्थेशदर्शनोत्कण्ठितस्ततः। पुरःकृतसुरः पृथ्वीपतिः प्रतिवनं ययौ // 530 // 'अन्वयः-ततः नव प्रासाद तीर्थ ईश दर्शन उत्कंठितः, पुरः कृत सुरः पृथ्वीपतिः वनपति ययो. // 530 // अर्थः-पछी ते नवा बनावेला जिनमंदिरमा प्रतिष्ठित थयेला श्रीतीर्थकरमभुनां दर्शनमाटे उत्सुक ययेलो, तथा आगळ करेल छे ते देवने जेणे, एवो ते पुण्याढ्यराजा वनमा गयो. // 530 / / / प्रासादमौलिमारुह्य नृत्यन्त्याः सुकृतश्रियः / लोलं हस्तमिव प्रेक्ष्य पताकां मुमुदे नृपः // 531 // Do00000ECISCCEEDOSED Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.GunratnasuriM.S.
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________________ DOICE00000000000000 पुण्याय चरित्रं सान्वय भाषान्तर 220 1220 // DO90090 'अन्वयः-मासादमौलिं आरुह्य नृत्यंत्याः सुकृतश्रियः लोलं हस्तं इव पताका प्रेक्ष्य नृपः मुमुदे // 531 / / अर्थ:-ते जिनमंदिरना शिखरपर चडीने नाचतीएवी पुण्यलक्ष्मीनो जाणे चपल हाथ होय नहीं? एवी पताकाने जोइने ते राजा खुशी थवा लाग्यो. // 531 / / ... ............. .. .... कल्याणकलशं पश्यन्मौलौ जिनगृहश्रियः / मुक्तिप्रस्थानकृभूपः शकुनेनान्वमोदत / 532 // 'अन्वय:-जिनगृहश्रियः मौलौ कल्याणकलशं पश्यन् मुक्तिसंस्थानकच भूपः शकुनेन अन्वमौदत, // 532 // अर्थः-जिनमंदिरनी लक्ष्मीना मस्तकपर रहेला सुवर्णना कलशने जोतो, तथा मोक्षमाटे प्रयाण करतो एवो ते राजा तेने शुभ शकुन मानी लेनी अनुमोदना करवा लाग्यो. // 532 // ... चान्द्रीः कलाः शिलाभावं गमयित्वेव निर्मितः। जिनालयोऽसौ भूपस्य निन्येऽक्षिकुमुदं मुदम् / 533 // अन्वयः-चांद्री; फलाः शिलाभावं गमयित्वा निर्मितः इव असौं जिनालयः भूपस्य अक्षिकुमुद मुदं निन्ये / / 533 // Seemacad SWAPN Jun Gun Aaradhak imalkhabRY Poslmsnileakeelipadhana n daus.desi.
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________________ pe00000000000OSEEDS S पुण्याढ्य चरित्रं --- 1221 // GeeeeDEO अर्थः-चंद्रनी (सघळी) कलाओने पत्थररूप बनावीने जाणे बनान्यो होय नहीं। एवो आ जिनप्रासाद राजनां चक्षुरूपी कुमुदने (चंद्रविकासी कमलने) आनंद पमाडवा लाग्यो. // 533 // ............... ततो न्यरूपयत्तत्र भूवरस्तोरणं पुरः / पुण्यश्रीदूरविधृतस्वयंवरणमाल्यवत् // 534 // अन्वयः-ततः भूवर पुरः पुण्य श्री दूर विधृत स्वयंवरण माल्यवत् तत्र तोरणं न्यरूपयत् / / 534 // अर्थ:-पछी सजाए अगाडीना भागमा पुण्यलक्ष्मीए दूरथी पकडी राखेली स्वयंवर माला सरखं त्या तोरण जोयुं. // 534 // चैत्यद्वारं ददर्शासौ सद्धर्मपुरगोपुरम् / सतां यत्र स्थितानां स्याजिनः सुलभदर्शनः॥५३५॥ * अन्वयः-असौ सद्धर्म पुर गोपुरं चैत्यद्वारं ददर्श, यत्र स्थिताना सतां जिन मुलभदर्शन: स्यात् // 535 // अर्थ-(पछी) ते राजाए उत्तम धर्मरूपी नगरना दरवाजासर ते जिनमंदिस्तुं द्वार जोयु, के ज्या उमेला सज्जनोने जिनेश्वस्प्रभु मुलभ दर्शनवाला थाय. // 535 // - 00000CCESGOOOOOOOOO PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ peeeeeeeeeeeeISOD पुण्यातच चरित्र 1222 // सान्धय भाषान्तर / 232 // नित्योद्यतस्य निर्जेतुमधर्म सङ्घभूपतेः / गुप्यद्गुरुमिवापश्यत्स तुङ्गं रङ्गमण्डम् // 536 // अन्वयः-अधर्म निर्जेतुं नित्योद्यतस्य संघ भूपते: गुण्यद्गुरुं इव तुंग रंगमंडपं सः अपश्यत् // 536 // अर्थः-(पछी) पापने जीतवा माटे हमेशा उद्यमवंत थयेला एवा संघरूपी राजाना गंभीर गुरुसरखा उंचा रंगमंडपने तेणे जोयो. गुर्वीरुर्वीश्वरोऽद्राक्षीदम्यास्त्रिकचतुष्किकाः / धर्मस्य श्रद्धया साधं विवाहे वेदिका इव // 537 // अन्वय:-श्रद्धया सार्घ धर्मस्य विवाहे वेदिकाः इव, उर्वीश्वरः गुवीः रम्याः त्रिकचतुष्किकाः अद्राक्षीत् // 37 // .. अर्थः-(पछी) श्रद्धानी साथे धर्मनां लग्न करवा माटेनी जाणे वेदीओ होय नही ! एवी (ते) राजाए (त्या) म्होटी अने मनोहर त्रिको तथा चोकठो दीठी. // 537 // . असंख्यसुखसंप्राप्तिनित्यानन्दात्मसेवितः / साक्षान्मोक्ष इव प्रीत्यै राज्ञाऽभूद्गूढमण्डप // 538 // अन्वयः-असंख्य सुख संपाप्ति नित्यानंद आत्म सेवितः गूढमंडपः साक्षात् मोक्ष इव राज्ञः प्रीत्यै अभूत. // 538 / / 0000000000000000000
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________________ मान्वय भाषान्तर 0000000000000000001 पुण्याढय अर्थः-असंख्याता सुखोनी प्राप्तिवाळा, तथा हमेशा आनंयमांज रहेनारा एवा परमात्माथी सेवायेलो मूळगंभार साक्षात चरित्रं मोशनी पेठे राजाना हर्षमाटे ययो. / / 538 / / // 22 // अथाहत्प्रतिमामर्ककोटिकान्तिकृतामिव / पश्यन्स भूपश्चिक्षेप भवकोटिभवं तमः // 539 // अन्वयः-अथ अर्क कोटि कांति कृता इव अहमतिमां पश्यन् सः भूपः भवकोटिभवं तमः चिक्षेप. // 539 // अर्थः-पछी जाणे कोडोगमे सूर्योनी कांतिथी बनावी होय नही! एवी श्रीअरिहंतप्रभुनी प्रतिमाने जोता एवा ते राजाए क्रोडोगमे भवोमां बांधेला पापोने (अंधकारने-अज्ञानने) दूर फेंकी दीधा.॥५३९ / .. . रूपातिशयविस्फूतों विभोर्मूतों नरेशितुः / स्पर्धयेवाक्षियुग्मस्य जगाम स्थिरतां मनः॥ 540 // - अन्वयः-रूपातिशयविस्फूतौं विभोः मृतौ अक्षियुग्मस्य स्पर्धया इव नरेशितः मनः स्थिरता जगाम // 540 // अर्थ:--अत्यंत तेजथी विकखर थयेली एवी ते प्रभुनी प्रतिमामा जाणे बन्ने आंखोनी सर्वाथी होय नही! तेम ते राजानुं मन GOG.com P.PLAC,Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ geeeeeeeeeeeeeMISEDIO पुण्याच चरित्र सान्वय भाषान्तर / 224 // स्थिर थइ गयु. 540 // आनन्दामृतमनस्य लीनं तस्य मनस्तथा / यथा जिनं च विश्वं च स्वं च नो बुबुधे तदा // 541 // *अन्वयः-आनंद अमृत मनस्य तस्य मनः तदा तथा लीनं, यथा जिनं च विश्वं च स्वं च नो बुबुधे.॥५४१॥" अर्थ :--अनंदरूपी अमृतमा मन थयेला एवा ते राजार्नु मन ते वखते एई लीन थइ मायुं के, जेथी तेणे जिनने, जगतने, तथा पोताने पण जाण्या नही. // 541 // समत्वमसृणीभूतः प्रभूताद्भुतशक्तिभृत् / आरूढः क्षपकश्रेण्यां शुक्लध्यानामलो नृपः // 542 // अन्वयः-समस्वमसणीभूतः, प्रभूताद्भुत शक्तिभृत, शुक्ल ध्यान अमलः नृपः पकश्रेण्या आरूढः / / 542 / / अर्थः-समभावथी कोमळ ययेलो, तथा घणीज अद्भुत शक्तिवालो, अने शुक्लध्यानवडे निर्मल ययेलो ते राजा क्षपकरेणिपर चड्यो. // 54 // DOGSamme 000000000000000000
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________________ पुण्यादय 1225/ ODe0000OOOOOOOOOOO तस्य घातीनि कर्माणि दग्धानि ध्यानवह्निना / तद्वियोगादिव भवोपग्राहीण्यप्यगुः क्षणात् // 543 // / अन्वयः-तस्य घातीनि कर्माणि ध्यान वहिना दग्धानि, तद्वियोगात् इव भवोपग्राहीणि अपि क्षणात् अगुः.॥५४॥ अर्थः- ते राजानां घातिकमों ध्यानरूपी अनिवडे बळी गयां, अने जाणे तेओना वियोगथीज होय नही! तेम तेनां भवोपग्राही कर्मों पण क्षणवारमा चाल्यो गयो / / 543 // . तस्यामिव सहाय्यायां घटिते घनमेलतः / नृपेऽस्मिन्कृतसंकेते ज्ञानमोक्षश्रियौ समम् // 544 // अन्वयः-तस्यां सहाय्यायां कृत संकेते इव ज्ञानमोक्षश्रियो धनमेलत: अस्मिन् नृपे समं घटिते. // 544 // अर्थः ते क्षपकश्रेणिनी मदद होते छते, जाणे बन्नेए संकेत करी राख्यो होय नहीं ! तेम केवलज्ञाननी अने मोक्षनी लक्ष्मीओ (परस्परना) घाटा संबंधथी ते राजाने एकीवेळाएज प्राप्त थइ (अर्थात् ते अंतकर केवली थइ मोक्षे गया.) // 544 // अथ विज्ञाय तज्माननिर्वाणमवनीविभोः / मूढत्वेनैव मन्वानान्वज्रपातमिवोत्सबम् // 545 // 000000 GOOOOOGOOOOOOOOOOOK and Jun Gun As r ust
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________________ सान्वय पिान्तर पुण्याढ्य चरित्र 1226) 226 // SE हा तातेति हहा भर्तरिति हा त्रायकेति च / नन्दनान्तःपुरीलोकान्क्रन्दतः प्रतिबाध्य सः॥ 546 // मतदा मुदागतैः सम्यग्दृष्टिभिस्त्रिदशैः सह / कृत्वौर्ध्वदेहिकं कृत्यं स्वमित्रस्य शुभात्मनः॥ 547 // पुण्यसाराभिधं न्यस्य पुत्रं राज्येऽत्र भूपतेः। अनुशास्य जिनार्चायां द्विपदेवो दिवं ययौ। 548 // // इति हंसकेशवनिदर्शनान्विता पुण्यप्रामाण्ये पुण्याढ्यभूपतिकथा // अन्वयः-अथ अवनीं विभोः तदु ज्ञाननिर्वाण विज्ञाय मूढत्वेन एव उन्सर्व वज्रपात इव मन्वानान् // 545 // च हा तात ! रहा! भर्तः हा त्रायक! इति कंदतः नंदन अंत:पुरी लोकान् प्रतिबोध्य सः॥५४६।। तदा मुदा आगतैः सम्यग्दृष्टिभिः त्रिदशैः सह शुभात्मनः स्वमित्रस्य औचं देहिक कृत्यं कृत्वा // 547 / / अत्र राज्ये भूपतेः पुण्यसाराभिधं पुत्रं न्यस्य, जिना यां अनुशास्य द्विपदेवः दिवं यया // 548 // चतुर्षिः कलाक अर्थः हवे ते पुण्यादय राजानां केवलज्ञानसहित मोक्षगमनने जाणीने मूर्खाइथीज (ते) महोत्सवने (पण) वज्रना आघात
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________________ सारखो जाणता, // 545 // (अने तेथी) हा पिताजी ! हा स्वामी! हा रक्षक ? एम (पोकार करी) रडता एवा (तेना) पुत्रोने, (नी) राणीओने, तथा (नगरना लोकोने (सत्य हकीकत) समजावीने ते देव / / 546 // ते बखते (त्या) खुशीयी आवेला बीजा समकीती देवोनी साथे पोताना ते पुण्यशाली मित्रनु उत्तक्रियारूप कार्य करीने, // 547 // तथा ते राज्यपर ते पुण्यात्य राजाना पुण्यसार नामना पुत्रने स्थापन करीने, (तथा तेने पश) श्री जिनेश्वर प्रभुती पूजा करणा माटे शिखामण / आपीने ते इस्तिदेव (त्यांथी) देवलोकमा गयो // 548 // चतुर्भिः कलापकं // एची रीते हंसाकेशचना दष्टांतसहित पुण्यनी स्वातरी माटे पुण्याढय राजानी कथा संपूर्ण थइ. // इति पुण्यप्रामाण्ये श्रीपुण्याढ्यचरित्रं समाप्तं. आ चरित्र श्रीवर्धमानसूरिविरचित श्रीवासु त्रनामना महाकाव्यमांथी स्वपरना श्रेय माटे ओधरीने तेना अन्वय तथा गुजरातीभाषांतर सहित पंडित श्रावक हीरलाल हंसराजे पोताना श्रीजैनभास्करोदय छापखानामां छापी प्रसिद्ध कयुं छे. // Jun Gun Aaradhak Trust P PAC Gunnan MS
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________________ // इति श्रीपुण्याढ्य चरित्रं समाप्तं // DESIECESSSSSSSSSSS S.Gunratnasuri M.S.1 un Gun Adam