________________ पुण्यादच चरित्र भाषान्तर 136) करा अर्थ:-जे सत्य रीते देव, गुरु अने धर्मरूपी त्रणे तत्त्वोने जाणे छे, तेनी बुद्धि सत्त्वगुणमा रमे छे, अने तेज शत्रु अने मित्रना CA सान्षय तफावतने जाणी शके छ. // 86 // वीतरागप्रभुर्देवो गुरुस्तत्वोपदेशकः / धर्मश्च करुणारम्यस्त्रयीतत्वमिदं अन्वयः-वीतरागप्रभुः देवः, तत्त्वोपदेशकः गुरुः, च करुणारम्यः धर्मः, इदं त्रयीतत्त्वं विदुः // 87 / / अर्थः-रागरहितप्रभु देव, सत्य उपदेश देनारा गुरु, अने दयामय धर्म, एवी रीतना त्रण तत्वो कहेला छे. // 87 // तत्सत्वं यद्भवाम्भोधिः क्रममात्रेण लड्डयते / मिथ्या सत्वं पुनः कर्ममरिष्यन्मार्यमारणम् // 88 // : अन्वयः यत् भवांभोधिः क्रममात्रेण लंध्यते, तत् सत्त्वं, कर्ममरिष्यत् मार्यमारणं पुनः मिथ्या सत्त्वं. // 88 // अर्थ:-आ संसाररूपी समुद्रने एक पगला मात्रमाज जे उल्लंघी जबो, तेनुं नाम (खरं सत्त्व (कहेवाय छे), परंतु (पोताना) कर्मोथी मरनास शत्रभोने जे मारवा, ते तो मिथ्या सत्व छे. // 88 // KOSEEDOS Deel00000000000000000