________________ peeeeeeeeeeeeeeeeee पुण्याढ्य चरित्र 37 सान्वय भाषान्तर 37 रिपवो रागरीषाद्या दहन्ति ये / मूलादुन्मुलनीयास्से समत्वास्त्रेण धीधनैः॥ 89 // अन्वय:-रागरोषायाः रिपवः, ये मुहुः द्वेहं दहति. धीधनैः समत्वअस्त्रेण ते मूलात् उन्मूलनीयाः // 89 / / अर्थः-राग अने देष आदिक शत्रुओ छे, के जेभी वारंवार शरीरने वाळ्या करे छे, माटे बुद्धिवानोए समतारूपी शस्त्रथी तेओने छेक मूळमाथीज उखेडी नाखवा जोइयें. // 89 // मित्राणि प्राणिवर्गस्तु यो द्विषन्नपि कर्महा / कामं क्षा(शा)मयितव्योऽस क्रुधा दीप्तः शमामृतैः // 9 // 'अन्वयः-पाणिवर्गःतु मिमाणि, यः द्विषन्नपि कर्मका. क्रुधा दीप्तः असौ काम शमअमृतैः शामयितव्यः // 9 // अर्थः-प्राणिमात्र खरेखर मित्रो छे, के जे शत्रुता बताये, तोपण ते (आपणां) कर्मोनो नाश करनारा छे. माटे क्रोधथी जाज्वल्यमान थयेला एवा पण ते माणीमात्रने शांतिरूपी अमृतथी खूब शांत करवा. / / 90 // कषायविषयान् शत्रून्परिपुष्यन्ति मित्रवत् / सुहृदोऽसुमतः शत्रूकृत्य निम्नन्ति धिग्जडाः // 91 // Gareciterate Decele20222222022ewao PP.AC.Gunratnasurt M.S. Jun Gun Aaradhak Trust