________________ पुण्याढथ चरित्र 1176 / सान्वय भाषान्तर 276 / " अन्वयः-ततः व्यसुं तं वीक्षमाणस्य केशवस्य अग्रतः एत्य मुद्गरभ्रमिभीषणः यक्षः गिरं आदत्त. // 428 / अर्थः-पछी पाणरहित थयेला ते गुरुने जोता एवा (ते) केशवनी आगळ आवीने मुद्गरना भ्रमणथी भयंकर थयेलो (ते) यक्ष बोलवा लाग्यो के, // 428 // सम्प्रत्यनासि चेत्तत्ते जीवयामि गुरुं जवात् / वितरामितरामृद्धि प्राज्यं राज्यं च किंचन // 429 // * अन्वयः-चेत संपति अश्नासि, तत् ते गुरुं जवात जीवयामि, च ऋदि किंचन माज्यं राज्यं वितरामितरां // 129 // .. अर्थः-जो आ वखते तुं भोजन करे, तो तारा (आ) गुरुने तुरत (9) जीवता करुं, तथा (तने) समृद्धि अने केटकंक संदर राज्य पण आपु.॥ 429 / / एतन्मुद्गरनिर्घातनिर्विघ्नगगनक्रमः। पथि कीनाशहर्म्यस्य पथिकीक्रियसेऽन्यथा // 430 // अन्वयः-अन्यथा एतत् मुद्गर निर्घात निर्विन गगन क्रमः कीनाश हर्म्यस्य पथि पथिकी क्रियसे. // 430 / / ... premeteraneers NOOOOOGGC