________________ 00000000000000000 पुण्याइय सान्वय भाषान्तर 47 प्रत्यक्षलक्षितक्ष्मापलक्षणोऽपि हहा महान् / नैष षद्भ्यां गतौ शक्तो न पाणिभ्यां तृणग्रहे॥ 113 // चरित्र - अन्वयः-प्रत्यक्षलक्षितक्ष्मापलक्षणः एषः महान् अपि हहा! पद्भ्यां गतौ, पाणिभ्यां तृणग्रह शक्तान॥ 113 // 147 अर्थ:-जेना राजलक्षणो प्रत्यक्ष देखाय छे, एवो आ महान् पुरुष पण अरेरे! बे पगे चालवामा, तथा पन्ने हाथे तणखलं (C) उपाशमां पण अशक्त छे // 13 // किमीदृशोऽपि राज्ये स्यादिति ध्यायिषु मन्त्रिषु / करेणारोप्य तं पृष्ठे पुराय प्रययौ द्विपः // 114 // अन्वयः-कि ईदृशः अपि राज्ये स्यात् / इति मंत्रिषु ध्यायिषु द्विपः करेण तं पृष्ठे आरोप्य पुराय प्रययौ. // 114 // अर्थः-शुं आवाने राज्यपर बेसाडाय? एम मंत्रिओ विचारते छने ते हाथी सुंदवडे देने पोतानी पीठपर चडावी नगर तरफ जवा लाग्यो. // 114 // (E) नूनं ज्ञानी गजोऽनेन राज्यं वर्धिष्णु वीक्ष्यते / प्रवेशोत्सवमित्यस्य विचित्रं मन्त्रिणो व्यधुः // 115 // 201310232198 isdd Dieele28282828eee8820 GubilankTrust