________________ 000e8e009ee090098 पुण्यादय चरित्रं सान्वय भाषान्तर 146 // 46 // ( अर्थ:-त्या वृक्ष नीचे सुतेला, तथा वनथी ढोकेला शरीरवाला कोइक पुरुषपर ते हाथीए ते सुवर्णकलशमा रहेला जलवडे अभिषेक कर्यो. // 11 // र ततो बन्दिकदम्बेन कृते जयजयारवे / दूरमापूर्यमाणे च तूर्यकाणेन दिग्गणे // 111 // ... अयमुत्थापयांचके यावदाज्याय मंत्रिभिः। दृष्टस्तावद्विसंकोचिहस्ताद्यवयवः पुमान् // 112 // युग्मं॥ अन्वयः--ततः दिकदेवेन जयजयारवे कृते, च तूर्यकाणेन दर दिग्गणे आपूर्यमाणे // 111 // मंत्रिभिः यावत राज्याय अयं उत्थापयांचक्रे, तावत् विसंकोचि हस्ताद्यवयवः पुमान् दृष्टः // 112 // अर्थ:--पछी बंदिओना समूहे जयजय शब्द करते छते, अने वाजित्रोना नादथी छेक दूरसुधी दिशाओनो समूह पूराते छते, // 119 // मंत्रिओए जेटलामा राज्यमाटे तेने उठाड्यो, तेटलामा तो संकुचित थयेला हाथ आदिक अवयवोवाळो ते पुरुष (तेओना) जोवामा आभ्यो. // 112 // युग्मं // Deccianse Deeweltlage008182800