________________ 0908819891sietaaldwidtodos | पुण्याढ्य चरित्रं सारवय भाषान्तर 62i ) ( ते ), बन कंपाचवा लाग्यं // 149 // तस्य बिभ्रद्भिरित्याशामाशङ्कां च प्रथीयसीम् / आज्ञा मूर्ध्नि दधे कामं तत्सीमावासिभिभिः // 15 // . अन्वयः-इति तस्य प्रथीयसी आश च आशंको बिभ्रद्भिः तत्सीमावासिभिः नृभिः काम आज्ञा मूनि दधे. / / 150 // अर्थः-एवी रीते तेना तरफनी विस्तीर्ण आशाने तथा भयनी शंकाने धारण करनारा, सीमाडामा बसनारा माणसोए खुशीथी। ते राजानी आज्ञाने मस्तकपर धारण करी. // 150 // . .. .. . .... वज्रसंचारनिश्चिन्तो बहुदेशमहीपतिः / श्रीपुण्याढयः सुखं तस्थावित्थं खर्गे हरिर्यथा // 151 // - अन्वयः-इत्थं वज्रसंचारनिश्चितः, बहुदेशमहीपतिः श्रीपुण्यात्यः यथा स्वर्गे हरिः, सुखं तस्थौ. // 151 // अर्थः- एकी रीते वज्रना फरवाथी चिंतारहित थयेलो, लथा घणा देशोनो स्वामी, एवो ते पुण्यात्यराजा स्वर्गमा इंद्रनीपेठे सुखे रहेवा लाग्यो. // 151 // :: : ... adiansisible 00000000000000000000