________________ पुण्यातच चरित्र 00000000 धर्माख्यानेऽपि यो वक्ति विधिमन्यापदेशतः / सत्त्वी मृत्युभिया दत्तां स पापेऽनुमतिं कुतः॥ 423 // सान्वय भाषान्तर तन्नूनं मद्गुरु यमियं मायास्य मायिनः। इति ध्यात्वांथ मौनेन यशोधनसुतः स्थितः॥ ४२४॥युग्मम्॥ARom ___ अन्वयः-यः धर्मआख्याने अपि अन्यअपदेशतः विधि वक्ति, सः सत्त्वी मृत्युभिया पापे अनुमति कुतः दत्ता 1 / 423 // तत नूनं अयं मद्गुरुः न, इयं अस्य मायिनः माया, इति ध्यात्वा अथ यशोधनमुतः मौनेन स्थितः // 423 / / युग्मं // अर्थ:-जे मुनि धर्मकथामां पण बीजाना मिषथी विधिमार्गनी प्ररूपणा करे छे, एवा ते बहादूर मुनिराज मृत्युना डरथी पाप कार्यमा अनमति केम आपी शके 1 // 424 / माटे खरेखर आ मारा गुरु नथी, आ (सघळी) आ कपटी यक्षनी मायाजाळ छे. एम विचारी यशोधन शेठनो पुत्र ते केशव मौन रह्योः // 424 / / युग्मं // मुनो मुद्गरमुद्यम्य त्वदगुरुं हन्मि भुंक्ष्व वा / इति कोपकरालाक्षो जगौ यक्षोऽथ केशवम् // 425 // . अन्वयः-अथ कोपकरालाक्षः यक्षः मुनौ मुद्गरं उद्यम्य त्वद्गुरुं हन्मि, वा भुक्ष्व ? इति केशवं जगौ. // 425 // . 0000000000000000000 AlALA a disha anti...la........ garl.l ana