________________ O 000000000000000 पुण्यादय चरित्रं 186 // न्वय भाषान्तर / 186 // अन्वयः-पुण्यवतां रत्न, निःसपनगुणः भवान् एकः, भवाद्दशा प्रमूत्या एवं भूरेगी बभूव / / अर्थ:-पुण्यवानोमा रत्नसमान, तथा अनुपम गुणोवाळो तुं एकज छो, तथा तारा जेवाओनी हयातिथी (आ) पृथ्वी "रत्नगर्भा" (रलोने उत्पन्न करनारी) थयेली छे. // 451 // 'शणु सत्त्वभराधान्तस्वान्त वृत्तान्तमातरम् / मध्येसभ प्रोच्चैश्चके शकस्तव स्तवम् // 452 // अन्वयः-(है) सत्त्व भर अश्रांत स्वात! आंतरं वृत्तांतं शृणु? मध्येसभं शक्रः प्रोच्चैः तव स्तवं,चक्रे. // 452 // अर्थ:-पराक्रमना समहथी नथी थाकेलं हृदय जेनुं एवा हे केशव! तुं (मारा) हृदयनो वृत्तांत सांभळी सभानी अंदर दे घणीषणी रीते तारी प्रशंसा करी. // 452 // (D) अहो वरेण्यतारुण्यः पुण्यवान्सुखलालितः / यशोधनस्य वणिजस्तनुजो मनुजोत्तमः // 453 // (a) रजनीभोजनत्यागात्केशवः क्लेशकोटिभिः / अचलाचलचैतन्यश्चाल्यते नामरैरपि // 454 // युग्मम्॥ 00000000000000000000