________________ DODISODSDOE00000 PRAAT पूण्याढय चरित्र 1147 सान्वय भाषान्तर 1145 - अन्वयः--(हे) सुरमुख्य! इदानीं मम वपुषः पाटवेन किं ? ऐंयादि लाम लोमे अपि रजनि भोजनं न जन्यं. // 358 // अर्थः--हे उत्तम देव! हवे मारे शरीर सारं करवानुं शुं काम छे ? वळी इंद्रपणुं आदिक मेळववाना लोभथी पण रात्रिभोजन न करवू जोइये. // 358 // .... आहतं दुःखपराय विमुक्तं पुण्यपंक्तये / स्यान्निशाभोजनं हन्त हंसकेशवयोरिव // 359 // ___ अन्वयः--हंत हंसकेशवयोः इव आहतं निशाभोजनं दुःखपूराय, विमुक्तं पुण्यपंक्तये // 35 // अर्थ:--अरे ! हंस अने केशवनी पेठे करेलुं रात्रिभोजन दुःखोनो समूह देनारं, अने छोडेलु रात्रिभोजन पुण्योनी श्रेणि आपनारं थाय छे. // 359 // तद्यथा पृथिवीकान्ताकुण्डलं कुण्डिनं पुरम् / अस्ति मुक्तास्त्रगाकारप्राकारपरिवेषभृत् // 360 // अन्वयः-तत् यथा-पृथिवी कांता कुंडलं, मुक्का लगाकार प्राकार परिवेषभृव कुंडिनं पुरं अस्ति. // 36 // . 00000000 PISAC Gunratnasur MS. Jun Gun Aaradhake Trust