________________ पुण्याढ्य चरित्र // 14 // सान्वय भाषांतर मयानुगम्यमानोऽयमेत्य नित्यप्रयाणकः / इह स्वगृहवत्तस्थौ यूथनाथोऽद्य सुस्थितः // 32 // युग्मं // अन्वयः-राजधानीनां उपकंठं अपि दूरतः त्यजन् , भूभृतां क्रयोत्कं संघ बलादपि लंघमानः // 31 // मया अनुगम्यमानः नित्यप्रयाणक: अयं यूथनाथः स्वगृहवत् इह एत्य अथ सुस्थितः तस्थौ. // 32 // युग्मं // अर्थ:-राजधानीओना सीमाडाने पण दूरथीज तजतो, तथा खरीद करवामाटे उत्सुक थयेला:एवा राजाओना समूहने (पण) पराणे उल्लंघी जतो ( कोइ पण रीते नही गणकारतो) // 31 // तथा हुँ जेनी पाछळ पाछळ चालुं छु एवो, तथा हमेशं प्रयाण करतो, एवो आ हस्तिराज पोताना आवासमा जेम, तेम अही आजे सुखेसमाधे आवी उभो छे. // 32 // युग्मं // रक्ता कोपामितप्तेव जज्ञे यान्येषु राजसु / प्रमोददुग्धधौतेव धवला त्वयि सास्य दृक् // 33 // .. अन्वयः-अस्य या दृक् अन्येषु राजसु. कोपाग्नितप्ता इव.रक्ता जज्ञे सा त्वयि प्रमोद दुग्धधौता इव. / 33 // अर्थ:-आ हाथीनी जे दृष्टि वीजा राजाओगते कोपरूषी अग्निथी जाणे तपेली होय नही ! एवी लाल थती हती, तेज (तेनी) SO0 MAHARI SSSSSSSSSSSSSSSSSESO MAN SHAYARSAATANJASTHAN SairatnasuTIM.S. Anuumaaranasi