________________ DeeC00000000000000 पुण्याढय चरित्रं / 121 // (a अन्वयः-अबद्धः अपि अयं सिंधुरः किंचित् न पीडयिष्यति, यत् द्वितीये भवे स्वर्गी, सप्तमे सिद्धिसौख्यभाक् / / 296 // RAN सन्वय अर्थः-बंधनरहित छतां पण आ हाथी कई पीडा उपजावशे नही, केमके ते (अहींथी) बीजे भवे देव, तथा सातमे भवे मोक्षसुख पामशे. भाषान्तर अतः सुकृतकार्येषु निःशेषनिजदोषहृत् / न शोच्यः पशुरूपोऽपि भूप चिद्रूपचेतनः // 297 // अन्वया-अतः (हे) भूप! सुकृतकार्येषु निःशेषनिजदोषहृत् पशुरूपः अपि विद्रपचेतनः ( अयं ) न शोच्यः // 297 // अर्थः-माटे हे राजन् ! पुण्यना कार्योमा पोताना सर्व दोषोने दूर करनारा, अने पशुरूप होवा छतां पण ज्ञानी एवा आ हाथीमाटे तमारे ( जरा पण नुकशान संबंधी) फिकरचिंता करवी नही. // 217 // तथेति प्रतिपद्याथ कर्मोन्माथकथामिमाम् / गुरुं नत्वा नृपो धर्मवासः स्वावासमासदत् // 298 // . 'अन्वयः-अथ धर्मवासः नृपः कर्मोन्मायकथां इमां तथा इति प्रतिपद्य गुरुं नत्वा स्वआवास आसदद. // 298 // अर्थ:-पछी धर्मनी वासनावाळो (ते ) राजा कोनो नाश करनारी आ कथाने सत्यरूपे स्वीकारीने, गुरुमहाराजने वंदन करी 00000000 000000000000000000 Huk P P.AC.Gunratnasuri M.S. dun Gun Aaradhak Trust