________________ ANGA 089999999200020090909 सान्बय भाषान्त पुण्याढय चरित्रं 180 11001 acc0000 अन्वयः-(हे) चामन ! मत्पृष्ठदत्तपादअग्रः त्वं अवामनः, हर्षगृहं भव ? मुनिनेत्रतः कंटकं कर्ष 1 // 193 // अर्थ:-(माटे हे वामन ! मारी पीठपर तारा पगना अग्र भाग मूकीने तुं उचो थइ खुशी था ? अने आ मुनिराजनी आंखमाथी कांटो कहाड ? 193 // अथ जग्राह संग्रामो व्यामोहद्रोहकृद्वचः। सखे निर्माहि कर्मेदमव्यग्रो मत्करग्रहात् // 194 // अन्वयः--अथ संग्रामः व्यामोहद्रोहकृत् वचः जग्राह, ( हे ) सखे! मत्करग्रहात् अध्यनः इदं कर्म निर्माहि? // 194 // अर्थ:-पछी संग्राम (पण) मोहनो नाश करनारुं वचन बोल्यो के, हे मित्र ! मारो हाथ पकडीने गभराटविना (निश्चितपणे) आ कार्य तुं कर 1 // 194 / / ततश्चतुष्पदीभूततनौ राम कृतक्रमः / संग्रामहस्तविन्यस्तवामहस्तः स वामनः // 195 // - अहो कियन्मलाद्रोऽयं संकुचन्निति शुकया। अवामपाणिनाकर्षन्महर्षेः कण्टकं दृशः // 196 // युग्मंग 000000000000000000000 SENTEN in e de s hwa .... . .......ALL SAPNath