________________ peegelw901991199999999 पुण्यादय ) अस्मिन्नपूर्यमाणेऽस्याः शोषस्तोषहरोऽजनि / अविच्छेदस्य खेदस्य सत्रं छत्रधरोऽप्यभूत् // 223 // सान्वय चरित्र 5.192 / भाषान्तर 192 / .. अन्वयः-अस्मिन् अपूर्यमाणे अस्याः तोषहरः शोषः अजनि, छत्रधरः अपि अविच्छेदस्य खेदस्य सत्रं अभूत् // 223 // अर्थः-ते दोहलो नही पूरावाथी तेणीने आनंदनो नाश करनारो शोष थयो, ( अर्थात् ते दुबळी पडवा लागी.) अने तेथी ते छत्रधर किन्नर पण अत्यंत खेदना पात्ररूप-थयो. // 223 // ..... ते मन्त्रतन्त्रशास्त्रज्ञाः पृष्टास्तेन सहस्रशः। न दधार धियं कश्चिदीहग्दोहदपरणे // 224 // ___ अन्वय:-तेन सहस्रशः ते मंत्रतंत्र शास्त्रज्ञाः पृष्टाः, ईदृग्दोहदपूरणे कश्चित् धियं न धार. // 224 // अर्थः-तेणे हजारोगमे ते प्रसिद्ध एवा मंत्रतंत्रना शास्त्रोने जाणनाराओने पूछयुं, परंतु आवा प्रकारनो दोहलो संपूर्ण करवामां (कोइ पण (पोतानी) बुद्धि चलावी शक्यो नही. // 224 // HD कदापि मापतेरग्रे कुतूहलकलापकम् / दर्शयन्नमुनादर्शि दिष्ट्या कोऽपीन्द्रजालकृत् // 225 // SEEEEECICICISISESESEGISG Jun cine