________________ पुण्यालय सान्वय चरित्रं भाषान्तर 64 // 164 अर्थ:- लक्ष्मीना कर्णना आभूषण सरखं एवीरीतनुं वचन सांभळीने खुशी थयेलो ते राजा ते हस्तिराजपर चडीने बगीचामां आव्यो. // 153 // . . . . . महामुनिमिहानम्य निविष्टो हृष्टहन्नृपः / कृतानतिः करीन्द्रोऽपि तस्थौ वचनगोचरे // 154 // : ___ अन्वयः-महामुनि आनम्य हृष्टहृत् नृपः इह निविष्टः, करींद्रः अपि कृतानतिः वचनगोचरे तस्थौः // 154 // अर्थ:--(ते) मुनिमहाराजने नमीने खुशी थयेला हृदयवाळो ते राजा त्यां बेठो, अने (ते) इस्तिराज पण नमस्कार करीने (मुनिराजनां.) वचनो सांभळवा उभो. // 154 // . पुरस्य पुरभर्तुश्च प्रधानपुरुषैः क्रमात् / दूरं मुनिसभापूरि भूरिभिद्योरिवोडुभिः // 155 // अस्वयः-क्रमान पुरस्य पुरभर्तुः च भूरिभिः प्रधानपुरुषैः उडुभिः यौः इव दूरं मुनि सभा अपूरिः // 155 // अर्थः-(पछी) अनुक्रमे नगरना पणा मुख्य लोकोए तथा राजाना प्रधानोए, ताराओवडे आकाशनी पेठे दूर सुधी तेल EDIEDEODOOD