________________ पुण्यालय चरित्र सान्वय भाषान्तर धर्मदेशनां निर्ममे. // 28 मुनिनी सभा भरी. // 155 // ततः श्रुतसुधाम्भोधिविहरल्लहरीनिभाम् / निर्ममे निर्ममेशोऽयं निर्मलां धर्मदेशनाम् // 156 // अन्वयः-ततः अयं निर्ममेशः श्रुतसुधीभोधिविहरल्लहरी निभां निर्मलां धर्मदेशनां निर्ममे. // 156 // अर्थ:--पछी आ मुनिराजे सिद्धांतोरूपी अमृतसमुद्रनी बहेती छोळोसरखी निर्मल धर्मदेशना आपवा मांडी. // 156 // इहानादौ भवेऽनादिजीवोऽनादिखकर्मतः। अव्यवहारराशौ स्याद् दुःसहग्रहदुःखभाक् // 157 // अन्वयः-इह अनादौ भवे अनादिजीवः अनादिस्वकर्मतः अव्यवहारराशौ दुःसहग्रहदुःखभाक् स्यात् // 157 // अर्थः--आदिरहित एवा आ संसारमा आदिविनानो जीव पोताना अनादिकर्मोने योगे अव्यवहारराशिमा (निगोदना गोळामा) असह्य दुःखो भोगवनारो होय छे. // 157 // असंख्या ह्यत्र गोलाः स्युगोलोऽसंख्यनिगोदकः / एकैकस्मिन्निगोदे स्युरनन्ता जन्तवः स्थिराः // 158 // इहानादौ भवेनानिपा अमृतसमुद्रनी बहेती HARASupratnasapMS un Gun Aaradhaz Trus! thetation