________________ D00000000000000000 पुण्याय चरित्र सान्वय भाषान्तर // 10 // 100 अन्वयः-यत् गोत्रगर्वतः साधोः पुरः अल्पं अपि चिंतितं, तत् (हे) पुण्याढ्य ! किल किंचित् नीचकुले उत्पन्नः असि.॥२४४॥ अर्थः--जे गोत्रना मदथी मुनिनी पासे तें जरा पण चिंतव्यु, तेथी हे पुण्याढ्य ! खरेखर कंइंक नीच कुलमा तुं उत्पन्न थयो छ. शूकसंकोचिनाकर्षि शल्यं यन्मुनिलोचनात् / सममेवांगसंकोचो राज्यं चाप्यत तत्त्वया // 245 // __अन्वयः--शूकसंकोचिना त्वया मुनिलोचनात् यत् शल्यं आकर्षि, तत् समं एव अंगसंकोचः राज्यं च आप्यत. // 245 // अर्थः--वळी शुगथी संकोच पामताथका ते ते मुनिराजनी आँखमाथी जे कांटो वंची कहाड्यो, तेथी एकीवेळाएज तने शरीरनो (संकोच तथा राज्य प्राप्त थयो. / / 245 // . तत्कामेयफलता भवता भाविता च यत् / तदमेयमहत्त्वं ते राज्यं राजन्नराजत // 246 // - अन्वयः-(हे) राजन् ! भवता यद तत्कर्म अमेय फलता भाविता, तत् अमेयमहत्त्वं ते राज्यं अराजत. // 246 // अर्थ-वळी हे राजन् ! तमोर ते कार्यन जे अमितफलपणुं चिंतव्यु, तेथी अमित महत्तावालुं तमारुं राज्य शोभवा लाग्यु. 1246 // OESMSSOCSO00