________________ 090000000 पुण्याढय चरित्र 201 // कदापि क्वापि कस्यापि तवेवाभुतकर्मणः। पुण्यादेवेत्थमैश्वर्य नाभवन्न भविष्यति // 247 // सान्वय __ अन्वया अद्भुत कर्मणः तव इव पुण्यात् एव इत्थं ऐश्वर्य कदा अपि, क अपि, कस्य अपि न अभवत् , न भविष्यति. / 247 / भाषान्तर अर्थ:-आश्चर्यकारक कर्मवाळा एका तमारी पेठे फक्त पुण्यथीज आवी समृद्धि कोइ पण समये, क्यांये कोइने माप्त. यह नथी, अने (CTED यशे पण नहीं. // 247 // ... तदितः स्पष्टदृष्टान्तान्नित्यं कर्मणि निर्मले / स्थातव्यं भवभेदात्तपौरुषैः पुरुषोत्तमैः॥ 248 // अन्वयः-तत् इतः स्पष्टदृष्टांतात् भवभेद आत्तपौरुषैः- पुरुषोत्तमैः नित्यं निर्मले कर्मणि स्थातव्यं // 248 // अर्थ:-माटे आ प्रत्यक्ष उदाहरणथी संसारने तोडवामाटे बलवान ययेला उत्तम पुरुषोए हमेशं निर्मल कार्यमा तत्पर रहे. 248 अथ पृथ्वीपतिः प्राह प्रभो संयच्छ संयमम् / संसारवारिधेः सेतु केतुं धर्ममहीपतेः॥ 249 // अन्वयः--अथ पृथ्वीपतिः माह, (हे) प्रभो ! संसार वारिधेः सेतुं, धर्म महीपतेः केतुं, संयम संयच्छ! // 249 // accoCISCESSSSSSSESED Jun Gun Aaradhak Trust PPA Gunratrasur MS