________________ peleeeeeDEOSROGeetee पुण्यालय चरित्रं 1102 / सान्षय भाषान्तर 1102 अर्थ:--पछी ते राजाए कह्यु के, हे प्रभु! आ संसारसमुद्रने ( उल्लंघवामाटे ) पूलसरखं, तथा धर्मरूपी राजानी जयपताकासरखं चारित्र मने आपो१॥ 249 // अथाचष्ट गुरुः स्पष्टं प्रतिले खादिकर्मसु / अक्षमोऽसि क्षमाभर्वितमस्तु कुतस्तव // 250 // . अन्वयर-अथ गुरुः स्पष्टं आचष्ट, ( है ) क्षमामतः! प्रतिलेखादिकर्मसु अक्षमः असि, तव कुतः व्रतं अस्तु.१ // 25 // अर्थः--त्यारे गुरुमहाराजे (तेने ) प्रगटरीते कयु के, हे राजन् ! पडिलेहणआदिक कार्योमाटे तमो असमर्थ छो माटे तमोने चारित्र केम होइ शके 1 // 250 // किं ते व्रतेन कष्टेन विशिष्टसुकृताश्रय / अस्मिन्नेव भवे भावी भवतो ह्यपुनर्भवः // 251 // .... ____ अन्वयः--(हे.) विशिष्टमुकुताश्रय ! कन्टेन व्रतेन ते कि ? हि भवतः अस्मिन् एव भवे अपुनर्भवः भावी. // 251 // अर्थ:-वळी हे उत्तम पुण्यशाली राजन्! कष्टकारी चारित्रनुं तमारे शुं प्रयोजन छे.१ केमके तमोने आ भवमांज मोक्ष मळनार छे. Gemic ORROOOOOOOOOOOOO