________________ DOX9X91009999999999998198 पुण्याइय चरित्र 144 // सान्वय भाषान्तर / 144 // ___अन्वयः-तत् नागविरह आर्तस्य तव सद्यः प्रीतिकृते मुक्त उरु दिव्य रूपश्रीः नाग रूप भाक् स्वां आगां. // 351 // अर्थः-(पछी) ते हाथीना विरहथी पीडाता एवा जे तमो, तेने तुरत खुशी करवा माटे देवसंबंधि मनोहर रूपनी शोभाने तजी हाथीनुं स्वरूप लेइ हुं तमारी पासे आव्यों छु. // 351 // प्रभुत्वं स्वप्रसादस्य मयि पश्येति स द्विपः। तदिव्यं दर्शयामास स्वं वप्पू रविपररुक // 352 // ___अन्वयः-मयि स्वप्रसादस्य प्रभुत्वं पश्यः इति सः द्विपः रविपूररुक् स्वं तत् दिव्यं वपुः दर्शयामास. // 352 / / अर्थः-मारा उपर तमोए करेली मेहेरबानीनो वैभव तो जुओ? एम कही ते हाथीए सर्योना समूह सरखी कांतिवाळं पोतान ते दिव्य शरीर (तेने) देखाड्यु. // 352 // जीवतो भोगदस्त्वं मे नियमाणस्य धर्मदः / तत्प्रभुश्च गुरुश्चासि शून्यहस्तेन नेक्ष्यसे // 353 // ..अन्वयः-जीवतः में त्वं भोगदा, म्रियमाणस्य धर्मदः, तत् प्रभुः च गुरुः च असि, शून्यहस्तेन न ईक्ष्यसे. // 353 // 0000000000000000000 Jurn. Gun Aaradhakig