________________ peeeeeeeeeCREDIENDS सान्वय भाषान्तर पूण्यालय चरित्र 1143 // 143 // परमेष्ठिनमस्कारसुधाब्धिलहरीभरैः / क्षिप्तः सौधर्मकल्पेऽहं त्वन्मुखेन्दूदितैस्तदा // 349 // अन्वयः--तदा त्वत् मुख इंदु उदितैः परमेष्ठि नमस्कार सुधाब्धि लहरी भरै. अहं सौधर्म कल्पे क्षिप्तः // 349 // . अर्थः--ते वखते तारा मुखरूपी चंद्रथी उछळता पंचपरमेष्ठिना नमस्काररूपी अमृतना समुद्रनां मोजाओनां समूहोए मने सौधर्मदेवलोकमां हडसेली दीधो. 342 // प्राप्य सौधर्मदेवत्वं ममेहग्वैभवं कुतः। इत्याशु ध्यायतादर्श तन्निमित्तं मया भवान् // 35 // ___ अन्वयः--सौधर्मदेवत्वं प्राप्य " मम ईडग् वैभवं कुतः इति आशु ध्यायता मया तत् निमित्तं भवान् अदर्शि. // 350 // अर्थः--(ए रीते) सौधर्मदेवलोकमां देवपणु पामीने "मने आवी, समृद्धि केम मळी?" एम तुरत. विचारतों में तेना कारणरूप तमोने जोया // 50 // सन्नागविरहार्तस्य सद्यः प्रीतिकृते तव / मुक्तोरुदिव्यरूपश्रीस्त्वामागां नागरूपभाक् // 351 // 0000000000000000000 P.P.AC. Gunratnasun M.S. Jun-Gun Aaradhak Trust