________________ 00000000000000000000 पुण्याव्य चरित्रं / 139 सान्वय भाषान्तर 1139 // हहा हात्मन्मोहस्त्वां किं ध्वान्तोऽर्कमिवाविशत् / यदन्यथा जिनमतग्रन्थोक्तमपि शङ्कसे // 340 // अन्वयः-हहा! महात्मन् ! अकं ध्वांत इच त्वां मोहः किं अविशत् / यत् जिन मत ग्रंथउक्त अपि अन्यथा शंकसे ! // 30 // अर्थ:--अरे ! महात्मा ! सुर्यमा अंधकारनी पेठे तारामा पण शुं मूढपणुं पेसी गयुं ? के जेथी जिनशासनमां कहेला वचन माटे पण तुं असत्यपणानी शंका करे छे१॥३४०॥ ममृत एवास्मि नाजीवमहं राजीवलोचन / विचार्या चन्द्रशालान्तर्दन्तिनामागतिः कुतः॥३४१ // ' अन्वया-(हे) राजीवलोचन ! अहं मृतः एव अस्मि, न अजीवं, चंद्र शालाअंत: दंतिना आगतिः कृतः ? विचार्या // 34 // अर्थ:-है कमल सरखा नयनवाळा राजन् / हुमरी गयोज छु, जीवतो नथी, वळी तारे विचारवू जोइतुं हतुं के, आ चंद्रशालानी अंदर हाथीनुं आगमन केम संभवी शके 1 // 341 // . दृष्टोऽस्मि यन्मृतो यन्मे रूपमेतच्च पश्यसि / अवनतुल्यं न स्वप्नाविमी स्वप्नः क्व जामतः // 342 // DESIS906 SE000000000000000000