________________ Dec00000000000000000 पुण्याढ्य चरित्र 1138 भाषान्तर अर्थ:-“वळी ते विचारता लाग्यो के, शं में आ हाथीने स्वप्नमा मृत्यु पामेलो जोयो ! अथवा आमरण पामेलाज हाथीने ई स्वप्नमा जीवतो जोर्ड कुं! // 337 // मृतो न जीवतीत्युक्तिर्जिनशासनशास्त्रगा। कथंचिदन्यथापि स्यात्किं वा कालेन केनचित // 338 // अन्वयः-या मृतः न जीवति, इति जिनशासन शास्त्रगा उक्तिः केनचित् कालेन कथंचित् किं अन्यथा अपि स्यात् // 338 // अर्थः-अथवा "मरेलो जीवतो न थाय" ए जिनशासनना शास्त्रोनुं वचन कोइ काळे कोइ रीते शुं जुटु होइ होय शके १३५वार इत्यनल्पविकल्पालिं जजल्पालिडनोन्मदम् / नृपं द्विपवरः स्मेरविस्मयं दिव्यया गिरा // 339 // -अन्वय:--इति अनल्प विकल्पालिं, आलिंगनोन्मदं, स्मेरविस्मयं नृपं द्विपवरः दिव्यया गिरा जजल्प. // 339 / / अर्थः-एवीरीते अनेक विकल्पोनी श्रेणिवाळा, तथा ( ते हाथीने) भेटवामा अत्यंत उत्सुक थयेला, अने धणें आश्चर्य पामता एवा (ते) राजाने (ते) इस्तिराजे देववाणीवडे कधु के, // 339 //