________________ पुण्याढ्य चरित्रं AN सान्वय भाषान्तर 140 / 140 a अन्वय- यत् मृतः दृष्टः अस्मि, च मे अस्वन्न तुल्यं एतत् रूपं पश्यासि इमौ स्वप्नौ न, जाग्रतः स्वतः क्व // 342 // -अर्थः-वळी जे (मने )मरेलो तें जोयो छे, तेमज मारुं स्वप्न जेवू नही, एवं आ स्वरूप तुं (प्रत्यक्ष) जुए छे. माटे ए पन्ने स्वप्नो नथी, केमके जागता मनुष्यने स्वप्न ते क्याथी होय. ? // 342 // , : तदनल्पयशाशिल्प तल्पमेतलंकुरु / कथयामि यथा भूप खरूपमहमात्मनः॥ 343 // अन्वयः--तत् (हे) अनल्पयशः शिल्प ! एतत् तल्पं (स्वं) अलंकूरु ? यथा (हे) भूप! अहं आत्मनः स्वरूपं कथयामि. // 34 // अर्थ:-माटे हे अतिशय यशनी छापवाळा राजन् ! तुं आ (तारी) शय्याने शोभाव? (अर्थात् शय्या पर बेस के जेथी हे राजन् हु (मारु) पोतानुं वृत्तांत तने कही संभळाबु.॥ 343 // अथोदारचमत्कारस्तच्चकार धराधवः / श्रोतुं तच्चरितं कण्डप्रवणश्रवणद्वयः॥ 344 // अन्वयः--अथ उदार: चमत्कार धरा धवः तत् चरित्रं श्रोतुं कडूक प्रवण श्रवण द्वयः तत् चकार. // 344 // 00000000000000