________________ peeDEREDESIGIReema सान्वय भाषान्तर 150 पुण्याढय - अन्वयः--अथ मध्यंदिने जनित भोजनौ तौ धाम्नि गतौ अन्हः अष्टमे भागे मातुः वैकालिकं अयाचतां // 365 // . चरित्रं अर्थः-हवे मध्यान्हकाळे करेलुं छे भोजन जेओए, एवा तेओ पन्ने घेर गया, तथा दिवसनो आठमो भाग ज्यारे वाकी 150 रह्यो, त्यारे तेओए (पोतानी) माता पासे वाळु करवामाटे भोजन माग्यु. // 365 // . ................... (D) किं भोज्यमधुना वत्सौ यतो दुग्धप्रियौ युवाम् / तत्पुनः स्थितवेलायां निशि स्यात्तत्किमुत्सुकौ // 366 // इति मातुर्वचः श्रुत्वा तौ सत्यमिदमूचतुः। आवाभ्यां नियमान्मातस्तत्यजे रात्रिभोजनम् ॥३६७॥युग्मम्॥ अन्वयः-(हे) वत्सौ! अधुना कि भोज्यं यतः युवां दुग्धमियो, तत्पुनः स्थितवेलायां निशि स्यात्, तत् किं उत्सुकौ? 366 / इति मातुः वचः श्रुत्वा तौ इदं सत्यं ऊचतुः, (हे) मातः! आवाम्या नियमात् रात्रिभोजनं तत्यजे. // 367 // युग्म। अर्थः-) पुत्रो आ बखते तमो शुं जमशो? केमके (वाळ करवामा) तमोने दूध जोइशे, अने ते तो नियमित वखते रात्रिएज मळी शकशे, माटे तमो शमाटे उतावळ करो छो? // 365 // एदी रीतनुं मातानुं वचन सांभळीने तेओए आ प्रमाणे सत्य का QQQQ0000000000OOONOG