________________ सान्वय भाषान्तर 149) 0000000000000000000 पुण्यादयः / ये दोषाभोजने दोषा धर्मघोषाभिधाद्गुरोः / वनं गताभ्यां ते ताभ्यां देशनासु निशामिताः // 363 // चरित्रं अन्वयः-वनं गताभ्यां ताभ्यां धर्मघोषाभिधात् गुरो देशनासु दोषा भोजने ये दोषाः, ते निशामिताः॥ 363 // 1149/ - अर्थः-वनमा गयेला एवा ते बन्ने भाइओए धर्मघोष नामना गुरु पासेथी उपदेशमारफते रात्रिभोजन करवामां जे दोषो रहेला ) छे, ते सांभळ्या . / / 363 / / . तो बोधात्तं गुरुं साक्षीकृत्य कृत्यविवेकनौ। रजनीभोजनत्यागं मुदितौ चक्रतुस्ततः॥३६४ // - अन्वयः-ततः बोधात् तं गुरुं साक्षीकृत्य कृत्य विवेकिनौ तौ मुदिती रजनी भोजन त्यागं चक्रतुः / / 364 // ... | अर्थः-त्यारथी बोध पामीने, तेज गुरुने साक्षीरूप करीने कार्यनो विवेक धरनारा एवा तेओ बन्नेए खुशी थइने रात्रिभोजननो त्याग को. // 364 // . अथ धाम्नि गतौ मध्यंदिने जनितभोजनौ / भागेऽष्टमेऽहस्तौ मातुर्वैकालिकमयाचताम् // 365 // 0000000 OOOOOOOOOOOOOOOOO000 Jun Gun Aaradhak Trust POP.P.AC.Guriratnasun M.S.