________________ पुण्याढ्य चरित्र सान्वय भाषान्तर ।।१८श 181 (विश्राम पामे) तेम ते केशवे ते शय्यापर विश्राम लीधो. // 439 // यक्षयात्राजनैयक्षादिष्टः संवाहितक्रमः / केशवोऽकलयन्निद्रामुन्निद्रसुकृतक्रमः॥४४॥ अन्वयः-यक्षादिष्टः यक्ष यात्रा जनैः संवाहित क्रमः उन्निद्र सुकृत क्रमः केशवः निद्रा अकलयतः // 440 // अर्थः-यक्षे आज्ञा करेला ते यात्रालुओबड़े दबाता पगोवाळो, (अर्थात् ते यात्राळुओ तेना पगनी चंपी करवा लाग्या) तया उदयं पामेली पुण्यपरंपरा जेनी, एवो ते केशव (त्या) निद्रा करवा लाग्यो. // 440 // विभावरी विभातेयं निद्रा विद्राव्यतामिति / तं प्रत्यक्षो जगौ यक्षो निद्रातन्द्राललोचनम् // 441 // अन्वयः-इयं विभावरी विभाता, निद्रा विद्राव्यता, इति निद्रा तंद्रालु लोचनं तं प्रत्यक्षा यक्षः जगौ. // 441 // अर्थः आरात्रि खलास थइ छे, माटे (तु) निद्रा उडाडी एवी रीते (हजु) निद्राथी घेराती आंखवाळा ते केशवने ते यक्षे प्रत्यक्षथइनेकह्यु.. अथ निद्रादरिद्राक्षो विश्व वीक्ष्य दिनोज्ज्वलम् / नभोऽर्कभूषितं चेति चिन्तयामास केशवः // 442 //