________________ PoetreenETEISEMETEREDESIRISISED पुण्याढ्य चरित्रं सान्वय भाषान्तर 1182 28 अन्वयः--अथ निद्रा दरिद्राक्ष केशवः विश्व दिनोज्ज्वलं, च नभः अर्क भूषितं वीक्ष्य इति चिंतयामास. // 442 // अर्थः-ल्यारे निद्राथी घेराती आँखचाळा (ते) केशवे जगतने दिवसथी उज्ज्वल थयेलं, तथा आकाशने सूर्यबड़े शोभितुं थयेलु जोइने एम विचायु के, // 442 // . . . . . ब्राह्म एव मुहर्तेऽहमन्वहं कृत्यनिष्ठधीः / स्वयं यामि त्रियामान्तयामसुतोऽप्यनिद्रताम् // 443 // अन्वयः कृत्यनिष्ठधीः अहं त्रियामा अंतयाम सुप्तः अपि अन्वहं ब्राझे एव मुहर्ते स्वयं अनिद्रता यामि // 443 // अर्थ:-नित्यकर्ममा निश्चल बुद्धिवालो हुँ रात्रिने छल्ले पहोरे सूवा छतां पण हमेशा बेघडी रात्रि बाकी होय त्यारे पोतानी मेळेज निद्रारहित थाउं हूं. // 443 // अहि यामार्धमात्रेऽपि त्रियामार्धशयोऽप्यहम् / स्वयं नाय विनिद्रत्वमासदं किमिदं किल // 444 // अन्वयः त्रियामा अर्धशयः अपि, यामार्धमात्रे अपि अति अद्य अहं स्वयं विनिद्रत्वं न आसद, किल इदं कि॥४४॥ Deceased DESEEEEEEEEEEEEEEED