________________ 0010010000000000000000 पुण्याच चरित्र 180 सान्वय भाषान्तर 1180 OOOOOOO अर्थ-आ विचित्र प्रकारनी मायांथी आश्चर्य सहित विकस्वर मुख तथा आंखोवाळा, अने निश्चल मनवाळाओमा अग्रेसर एवा तें केशवने ते यक्षराज कहेचा लाग्यो के, // 437 // खिन्नः सप्तोपवासैस्त्वं क्लिन्नश्चाध्वविहारतः। विश्रम्येह निशामहि सहेभिः कुरु पारणम् // 438 // . अन्वय:-त्वं समीपवासै खिन्ना, च अध्वविहारतः क्लिनः, इह निशा विश्रम्य अनि एभिः सह पारणं कुरु / / 434 // अर्थः-तुं सात उपवासोथी श्रीण थयो छ, तथा मुसाफरीथी पण थाकी गयो छु, माटे अहीं रात्रि रहीने दिवस उग्ये आ यात्रालुओनी साथै पारणु करजे.. // 468 // . . .. ........ इत्युक्त्वादर्शयत्तस्मै स तल्पं शक्तिकल्पितम् / केशवोऽस्मिन्विशश्राम श्रेयसीव यशश्चयः // 439 // अन्वयः-इति उक्त्वा सः तस्मै शक्तिकरिषतं तल्पं अदर्शयत, श्रेयसि यशश्चयः इव केशवः अस्मिन् विशश्रामः // 439 // अर्थः---एम कहीने ते. यक्षे ते केशवने पोताबी शक्तिथी बनावली शय्या देखाडी. (त्यारे.) कल्याणमा जेम यशनो समूह oddelee 00000000000000000000