________________ commomsome पुण्याय चरित्र सान्चय भाषान्तर / 209 0000000 * अन्वयः-इत्थं इंसस्य विपदं, च केशवस्य संपदं गुरोः मुखात् श्रुत्वा (हे) स्वर्गिन् ! निशि फलं कथं अधिः // 504 // अर्थ:---एवीरीते हंसनी आपदानुं अने केशवनी समृद्धिनुं वृत्तांत गुरुना मुखथी सांभळीने (पण) हे देव! रात्रिए (हुं) फल केम खाउं? / / 504 // सरा ह्यविरता नित्यं श्रावका विरतिस्पृशः। तदेवमावयो दो जज्ञे पुण्याढ्यपार्थिव // 505 // अन्वया-(हे) पुण्यायपार्थिव ! मुराः नित्यं अविरताः, श्रावकाः विरतिस्पृशः, तत् एवं आवयोः भेदः जज्ञे // 505 // अर्थः-(हे) पुण्याढ्यराजा ! देवो हमेशा विरतिरहित होय छे, अने श्रीवको विरतिवाला होय छे, माटे एवीरीते आपण बन्नेवच्चे तफावत छे. // 505 // . .. ... .... . तदभ्यर्च्य जिनं धर्मिन् घाशावुदयस्पृशि / अडरोगविभङ्गाय तदिदं फलमाहरेः॥ 506 // अन्वयः-तत् (हे) धर्मिन्! धर्माशौ उदयस्पृशि जिनं अभ्यर्च्य अंगरोगविभंगाय तत् इदं फलं आहरेः // 50 // ... 0000000 00X90X00000000000000 P.P.AC. Gunratnasuri MS Jun Gun Aaradhak Trust