________________ OGSSSCDCCCIENCIENCESS सान्धय पान्तर पुण्याय चरित्र भ्रमन्ती यत्न तत्रापि खिन्नेयं नयनद्वयी। तद्विलोकसुधापानं विना तप्ता व शाम्यतु // 333 // अन्वयः-यत्र तत्र भ्रमंती अपि खिन्ना तप्ता इयं नयनद्वयी तद्विलोकसुधापानं विना कशाम्यतु? // 33 // अर्थ:-ज्या त्या भमवाथी पण थाकीने तप्त थयेली आ (मारी) बन्ने आंखो ते हाथीना दर्शनरूपी अमृतपान विना हवे क्याथी शांत थाय! // 23 // पुरातनानि मे सन्ति यदि पुण्यानि कानिचित् / तैरध्वनि दृशोरेकवारमेतु स वारणः॥ 334 // अन्वयः यदि मे कानिचित् पुरातनानि पुण्यानि संति, तैः स वारणः एकवारं दृशोः अध्वनि एतु. // 334 // KEY) अर्थ:-जो (हजु पण) मारा कइंक पूर्वे करेला पुण्यो होय, तो ते पुण्योवडे ते हाथी एकवार (मारी) दृष्टिमार्गमां आवे, अर्थात् मने तेनु दर्शन थाय) // 334 // इति क्षितिपतिया॑यन्नेत्राग्रे गजमैक्षत / अल्पकल्पद्रुनैपुण्यं पुण्यं पुण्यवतां यतः // 335 // Dece08810 00000000000000000000