________________ सान्वय SAKot. in पुण्याढय चरित्र 1184 // भाषान्तर 1184 तुस्त प्रभात नित्यकर्म करीने पारणु करी // 446 // सोऽप्युवाच न वञ्च्योऽहं यक्ष दक्षतया तव / विशालेव निशाद्यापि त्वन्मायोत्थमहमेंहः // 447 // 7 अन्वयः सः अपि उवाच, (है) यक्षा तव दक्षतया ! अहं बंच्यः न, अद्य अपि निशा विशाला एव, अहर्महा वन्मायोत्यं // 44 // अर्थः-(त्यारे) ते केशवे पण क के, (हे) यक्ष ! तारी कपटजाळथी हु ठगाउं तेम नथी, हजु पण रात्रि षणीज छे, (आ) दिवस तेज तो तारी (आ बनावटी) मायाथी थयेलं छे. // 447 // इत्यस्य जल्पतो मुनि पुष्पवृष्टिर्दिवोऽपतत् / स त्वं धीमञ्जय जयेत्यभून्नभसि भारती // 448 अन्वयः इति जल्पतः अस्य मूर्टिन दिवः पुष्पवृष्टिः अपतत् (है) घीमन् / सः त्वं जय जय ? इति नभसि भारती अभूत. अर्थः --एम बोलता एवा आ केशवना मस्तकपर आकाशमाथी पुष्पोनी पुष्टि थइ, तथा (हे) बुद्धिवान् केशव ! ते तुं जय पाम जय पाम एम आकाशवाणी थइ. 448 //