________________ occccc000000000 पुण्याय चरित्रं सान्वय भाषान्तर 174 / इति ध्यात्वाधिकं धात्रीधवः साधशिरोमणिम् / अपृच्छत्कायसंकोचभाग्यासंकोचकारणम् // 179 // "अन्वयः--इति अधिकं ध्यात्वा धात्रीधवः कायसंकोच भाग्य असंकोच कारणं साधु शिरोमणि अपृच्छत् // 179 // अर्थः--एम खूब-विचारीने ते राजाए (पोताना ) शरीरना संकोच, तथा भाग्योना असंकोचनु ( अर्थात् राज्यआदिक समृKET) द्धिनी प्राप्ति ) कारण ते मुनिराजने पूछयु. // 179 // ततो दन्तद्युतिच्छद्मदृश्यधर्मपुष्पया। आसन्नमुक्तिफलया गिराप्रीणाजनं मुनिः॥ 180 // अन्वयः--ततः दंतद्युतिच्छादृश्यधर्मद्रुपुष्पया, आसनमुक्तिफलया गिरा मुनिः जनं अपीणात. // 18 // अर्थः--पछी दांतोनी कातिना मिषथी धर्मरूपी वृक्षनां पुष्पो देखाडती, अने नजीक छे मुक्तिरूपी फल जेनु, एवी वाणीवडे करीने ते मुनिराज लोकोने आनंद पमाडवा लाग्या. / / 180 / / ENS पुरं लक्ष्मीपुरं नाम शोणश्यामाश्मवेश्मभिः / पदं धर्ममुनेरस्ति महस्तिमिरमेलकृत // 181 // Deccccc 000000000000000000