________________ OI0000000000000 पुण्याद सान्वय चरित्र 29/ भाषान्तर 129/ अन्वयः-कापि मदिष्टदेवता मयि जगज्जयं दत्वा शिक्षाविशेषाय द्विपरूपभाक् लोकं लिलेख. // 69 // अर्थ:-मारापर स्नेह राखती कोइक देवीए मने जगत्नी विजय अपावीने खास शिखामण आपवामाटे हाथीनुं रूप लेह आ श्लोक लख्यो छे. // 39 // तदस्यार्थमविज्ञाय न विशामि निवेशनम् / अमित्रमित्रसंदेहे कास्तु देहेऽपि निवृतिः // 70 // ..अन्वयः-तत् अस्य अर्थ अविज्ञाय निवेशनं न विशामि, अमित्रमित्रसंदेहे देहे अपि का निर्वृतिः अस्तु. // 70 // अर्थ:-माटे आ लोकनो अर्थ जाण्याविना (9) आवासमा दाखल थइश नही. केमके शत्रु कोण? अने मित्र कोण? ते संबंधि ज्यांमधी संशय होय, त्यांसुधी शरीरमा पण निवृत्ति क्याथी थाय ? ' 70 // .. तदित्युदीर्य काव्यार्थविज्ञानैकमनाः खलु / तत्रैवास्थानमास्थाय विभुर्निविविशे विशाम् // 71 // . - अन्वयः-इति उदीर्य खलु काच्यार्थविज्ञानएकमनाः विशां विभुः तदा तत्रैव आस्थानं आस्थाय निविविशे. // 71 //