________________ 00000000000000000000 पुण्यात्य चरित्र ) सान्वय भाषान्तर // 30 // अर्थः-एम कहीने खरेखर ते श्लोकना अर्थने जाणवामाज एक चित्त छ जेनु एवो ते राजा ते वखते त्यांज पडाव नाखीने रह्यो. 1711 संहताः सूरयः प्रज्ञावज्ञातसुरसूरयः / तैरप्यभेदि न श्लोकष्टकैर्वज्रमणियथा // 72 // अन्वयः-प्रज्ञावज्ञातसुरसूरयः सरयः संहताः, यथा टकैः वज्रमणिः ( तथा ) तैरपि श्लोकः न अमेदि. // 72 // अर्थ:--बुद्धिवडे सुरगुरुनो पण तिरस्कार करनारा एवा पंडितो (त्या) एकठा थया, परंतु टांकणांओथी जेम वज्रमणि, तेम तेओथी पण आ श्लोक भेदायो नही. (अर्थात् तेइलोकनो अर्थ थई शक्यो नही. ) / / 72 // श्लोकार्थ लोकसार्थेषु समन्तान्मतिगर्वितान् / धर्माचार्यानथाकार्यापृच्छत्पृथ्वीपतिः क्रमात् // 73 // - अन्वयः-अथ पृथ्वीपतिः लोकसार्थेषु मतिगर्वितान् धर्माचार्यान् समंतात् क्रमात् आकार्य श्लोकार्थ अपृच्छत्. // 7 // अर्थः-पछी (ते) राजा लोकोना समूहमा बुद्धिना गर्बवाळा धर्माचार्योंने चोतरफथी अनुक्रमे बोलावीने ते श्लोकनो अर्थ पूछवा लाग्यो. // 73 // 000000000000000