________________ O9000000000000 पुण्याढ्य चरित्रं सान्वये भाषान्तर // 17 // // 17 // नी, माटे हुं शुं करूं? // 38 // .. इति स्थिते नरेन्द्रेऽथ व्याहारि व्यवहारिणा / स्वामिन् गजस्तवैवोक्तो मूल्यं गृह्वेऽस्य न ध्रुवम् // 39 // अन्वयः-अथ इति नरेंद्रे स्थिते व्यवहारिणा व्याहारि, (हे) स्वामिन् ! गजः तव एवं उक्तः, ध्रुवं अस्य मूल्यं न गृहणे. // 3 // अर्थः-पछी एम कहीने राजा ज्यारे मौन रह्यो, त्यारे ते व्यापारी बोल्यो के, हे स्वामी ! हाथी आपनोज छे, एम में कही दीधुं छे, माटे खरेखर तेनुं मूल्य हुं लेवानो नथी // 39 // इत्यस्मै निश्चयवते सचिवानुमतो नृपः / दत्वा बलेन राज्याधं तं द्विपेन्द्रमुपाददे // 40 // अन्वयः- इति निश्चयवते अस्मै सचिवानुमतः नृपः बलेन राज्याधं दत्वा तं द्विपेंद्र उपाददे // 4 // अर्थः-एवी रीतना निश्चयवाळा एवा ते व्यापारीने मंत्रीनी अनुमतिथी राजाए पराणे अर्धं राज्य आपीने ते हाथी ग्रहण कर्यो. // 40 ततः कृतेभरत्नाप्तिमङ्गलोऽयं महीपतिः / चक्रे यात्रां जगत्कम्पहेतुं जेतुं दिशोऽखिलाः // 41 // 0000000 SS DGEGIOGISCICISIOSETOGGGIaGD P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust