________________ M / पुण्याढय चरित्रं सान्वय भाषान्तर 197 97/ कांति जेनी, // 235 // अने अनुपम एवा सर्व प्रकारना अवयवोना. वैभववाळो, तथा मातपिताना हृदयमा आनंद उपजावनारी आ पुत्र अधिक अधिक शोभवा लाग्यो. // 236 // युग्मं // स क्रमादक्रमारूढगूढागूढगुणोच्चयः / अवाप कामं वामधूनयनैकप्रियं वयः // 237 // . अन्वयः-अक्रमारूढ गूढ अगूढ गुण उच्चयः सःक्रमात् कामं वामधूनयन एक प्रियं वयः अवाप. // 237 / / अर्थः-एकीहारे उत्पन्न थयेल छे गुप्त तथा प्रगट गुणोनो समूह जेने एवो ते श्रीदत्त अनुक्रमे सुखेसमाधे स्त्रीओनी आंखोने प्रेम उपजाबनारुं यौवन वय पाम्यो. // 237 // ईदक्षलक्षणः क्षोणीपतिः स्यादिति लौकिकी। तत्कथा पृथिवीनाथश्रुतिगोचरतां गता॥२३८॥ अन्वयः-इदृक्षलक्षणः क्षोणीपतिः स्यात्, इति लौकिकी तत्कथा पृथिवीनाथ श्रुतिगोचरता.गता. // 238 // Sciencead ANARTAMANAVAMASYA COOOOOO .PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust