________________ DO900000000000000000 पुण्याढय चरित्रं सान्वय. भाषान्तर 1831 8 अर्थ:-जे कार्यथी अहीं पण सिद्धोनी पेठे आपणने आनंद थयेलो छे, त्यारे अहो! आ कार्यनुं आगळ हजु केटलु।। ( मोटुं) फळ मळशे ! / / 200 // आस्येन बहहास्येन तदा रामोऽकिरद्विरम् / इहाभूत्पशुरूपत्वं ममैतत्कर्मणः फलम् // 201 // अन्वयः तदा रामः बहुहास्येन आस्येन गिरं अकिरद, इह मम एतत्कर्मणः फलं पशुरूपत्वं अभूत. // 201 // अर्थ:-त्यारे राम घणा हास्ययुक्त मुखथी (एवं) वचन बोल्यो के, अहीं मने तो आ कार्यना फलरूपे पशुपणुं धारण कर, पडधु / 2013 गामग्रहीच्च संग्रामो राम मा मैवमुच्यताम् / हास्योक्त्यापि भवत्येव पुण्यकर्म गलत्फलम् // 202 // - अन्वया-च संग्रामः गां अग्रहीत्, ( हे ) राम! एवं मा मा उच्यता ? हास्य उक्त्या अपि पुण्यकर्म गलत्फलं भवति एव. // 20 // अर्थी-पछी संग्राम बोल्यो के, हे रामः (तुं) एबुं वचन नही बोल 1 (केमके ) हांसीयुक्त वचनथी पण पुण्यकार्य स्वल्प फलवाळु थायज छे. // 20 // GOOOOOOO RANAND BOGB0000000000 NPP.AC.GunratnasuriM.S.. Jun Gun Aarddhak Trust