________________ 090099ESIRESISESIGEOG पुण्याहय चरित्र " सान्वय भाषान्तर अन्वयः कषाय विषय अपाय त्राण चिंता द्वितीयकं, च शुभअशुभः कर्मविपाकः चिंत्यते तृतीयं // 27 // अर्थ:-कषायो अने विषयोरूपी शत्रुओथी (आत्माना ) रक्षण माटेनुं जे चितवन, तेने बीजं धHध्यान जाणवू, तथा कर्मोना सारा नरसा विपाकने चिंतववारूप त्रीजु धर्म्यध्यान जाणवू. // 270 // उत्पत्तिविगमध्रौव्यस्वरूपस्य नराकृतेः। अनाद्यन्तस्य लोकस्य चिन्तनं तच्चतुर्थकम् // 271 // अन्वयः-उत्पत्ति विगम धौव्य स्वरूपस्य नराकृतेः अनाद्यतस्य लोकस्य चिंतन, तत् चतुर्थकं // 271 // अर्थः-उत्पत्ति, विनाश अने निश्चलताना स्वरूपवाळा, पुरुषसरखी आकृतिवाळा, तथा अनादि अनंत एवा लोकनु जे चितवन, C तेने चोथु वर्म्यध्यान कहेलुं छे. // 334 // अन्यथा वा चतुधोक्तं धर्म्यध्यानमिदं बुधैः / पिण्डस्थं च पदस्थं च रूपस्थं रूपवर्जितं // 272 // अन्वयः-चा अन्यथा बुधैः इदं धHध्यानं चतुर्धा उक्त, पिंडस्थ, पदस्थं, रूपस्थं च रूपवर्जितः // 335 // OOOOOOO